श्रीराम पर कहे गए कुछ शेर | श्रीराम पर शायरी राम की शबरी जंगल में तो रहती है बेरों पर उस का अधिकार नहीं होता अम्माँ की बातों में आँखें सुख-दुख सपने सब
श्रीराम पर कहे गए कुछ शेर

अदब से प्यार से अख़्लाक़ से मोहब्बत से
जो दुश्मनी करें उन को भी राम करते चलो
अबरार नग़मी
अम्माँ की बातों में आँखें सुख-दुख सपने सब तो हैं
राम-कहानी उस के पास कबिरा-बानी उस के पास
प्रताप सोमवंशी
अल्लाह मियाँ के हुक्म को है मेरी राम राम
और राम जी के बान को आदाब अर्ज़ है
विनीत आश्ना
आईना-ए-ख़ुलूस-ओ-मोहब्बत यहाँ थे राम
अम्न और शांति की ज़मानत यहाँ थे राम
रहबर जौनपूरी
आकाश में बदल के ये टुकडो की चमक
बाल खाती हुई कोंसे-क़ज़ह की लचक
या भारी धनुष राजकुमारों के बीच
लाये है स्वयंवर के लिए राजा जनक
सलाम संदेलवी
आज भी क़ौम के शेरों का लहू है तुझ में
हौसला राम का भीषम का जिगर पैदा कर
लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
आप के सामने मैं ख़ुश हूँ मगर
मेरे दुख राम ही समझता है
बशीर महताब
आशियाँ की लज्ज्तो में अटकता हुआबदन
और रुह का खिंचाव है बनबास की तरफ
आदिल मंसूरी
आसमानों पे लचकती हुई ये कौस ए कुज्ज़ा
भैस बदले हुए रावण की कमां हे यारों
इक़बाल
इश्क ने मरकर स्वयंवर में उसे जीता है
दिल श्रीराम है, दिलबर की रज़ा सीता है
सय्यद अफ़ज़ल जाफरी
इस क़दर महफ़ूज़ रहता है कि वो
राम का अवतार लगता है मुझे
अहमद सोज़

इस बार दशहरे में फिर
हम जलाएँगे रावण
शायद इस बार
भ्रष्टाचार रूपी रावण की बारी है
उसे जलाकर हम मनाएँगे जश्न
बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न।
वसीम अकरम
उजड़ी उजड़ी हर आस लगे
ज़िंदगी राम का बनबास लगे
जाँ निसार अख्तर
उस की ख़ातिर तो गवारा कोई बन-बास भी है
सब के होंटों पे मिरी राम-कहानी तो रहे
जाफ़र शिराज़ी
उस बुत-ए-काफ़िर का ज़ाहिद ने भी नाम ऐसा जपा
दाना-ए-तस्बीह हर इक राम-दाना हो गया
ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ऊपर-नीचे, आगे-पीछे, दाएं-बाएं रोक
जनता की लक्ष्मण रेखाओं आगे जाने दो
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
एक काटा राम ने सीता के साथ
दूसरा बन-बास मेरे नाम पर
नासिर शहज़ाद
एक पल मैं ने भी तो बाँधा है
प्यार बस राम का नहीं होता
अलख निरंजन
एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है
ज़िंदगी कहते हैं जिस को राम का बन-बास है
हफ़ीज़ बनारसी
क़दम क़दम हैं रावन लेकिन
निर्बल के बस राम बहुत हैं
सब बिलग्रामी
कल का सूरज क्या दिखाए राम जाने
आज इक हफ़्ता हुआ कर्फ़्यू लगा है
प्रकाश पुरोहित
कहूँ जो बरहमन ओ शैख़ से हक़ीक़त-ए-इश्क़
ख़ुदा ख़ुदा ये पुकारे वो राम राम कहे
कलीम आजिज़
काजू भुने पलेट में, व्हिस्की गिलास में
उतरा है रामराज विधायक निवास में
अदम गोंडवी
काफ़िर हूँ गर मैं नाम भी का'बे का लूँ कभी
वो संग-दिल सनम जो कभू मुझ से राम हो
वलीउल्लाह मुहिब
काले देव की काली नगरी अपनी मौत की हामिल है
राम का लश्कर देख के हम को रावण का सर याद आया
इंदर स्वरूप नादान
कि बे-अदब का भला एहतिराम क्या करते
जो नास्तिक था उसे राम-राम क्या करते
रईस सिद्दीक़ी
किस से पूछूं अपना असली नाम नहीं मालूम
मेरे अंदर रावण है या राम नहीं मालूम
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
कृष्न और राम के अवतार दिखाएँगे तुम्हें
यूपी आओ कभी चमत्कार दिखाएँगे तुम्हें
सचिन देव वर्मा
कैसे पीतम के नयन राम हुआ करते थे
वो जो राधा थी तो हम शाम हुआ करते थे
रज़ी हैदर
कैसे रावन का काम कर बैठे
नाम के आप राम हो कर भी
अजीत सिंह बादल
क्या सितम करते हैं मिट्टी के खिलौने वाले
राम को रक्खे हुए बैठे हैं रावण के क़रीब
असग़र मेहदी होश
क्या हमारी बात हम किस काम के
सब भरोसे चल रहा श्री राम के
अरमान जोधपुरी

खास है वो जो आम है ... तुझको ज्ञान नही
निर्बल का बल राम है ... तुझको ज्ञान नही
सतलज राहत
ख़ुदा के बंदे ख़ुदा तक पहुँच गए हैं 'अली'
जो राम वाले हैं वो राम तक पहुँच जाएँ
अली शीरान
ख़ुदा राम है और ख़ुदा ईश्वर
वो भगवान है कुल जहाँ उस का घर
वक़ार ख़लील
ख़ूब-रू आश्ना हैं 'फ़ाएज़' के
मिल सभी राम राम करते हैं
फ़ाएज़ देहलवी
गोबर से लिपी देहरी पे आशाएं बिछी हैं,
गुज़रेंगे कभी राम मेरे घर की तरफ़ से।
अशोक मिज़ाज
घर मिला है जिस्म के जंगल में चौदह साल बाद
जिस में दो मुट्ठी हुआ है हाथ भर का आसमां
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चंद रेखाओं की सीमाओं में ज़िंदगी कैद है सीता की तरह
राम कब लौटेंगे मालूम नहीं, काश रावण ही कोई आ जाता
कैफ़ी आज़मी
छलनी जो कर गया था अयोध्या को राम की
निकला था तीर वो भी उसी की कमान से
अतीक़ मुज़फ़्फ़रपुरी
जनम जनम के हैं चक्कर नए सफ़र के लिए
न जाने 'इंद्र' चलेगा कि राम आएगा
मुसव्विर सब्ज़वारी
जनम दिन लक्ष्मी का है भला इस दिन का क्या कहना
यही वो दिन है जिस ने राम को राजा बनाया था
नज़ीर बनारसी
जपे है विर्द सा तुझ से सनम के नाम को शैख़
नमाज़ तोड़ उठे तेरे राम राम को शैख़
वली उज़लत
जब जनता सरकार ही संतुलन बिगाड़ने लग जाए
तो फिर देश को बस जय श्री राम ही बचाए
सचिन देव वर्मा
जब तुम्हारे दुश्मनों को कुछ गिला तुम से हुआ
राम सारे हो गए जब सामना तुम से हुआ
सुदर्शन कुमार वुग्गल
ज़िंदगी तो सपना है कौन 'राम' अपना है
क्या किसी को दुख देना क्या किसी का ग़म करना
राम रियाज़
जिन की दर्द-भरी बातों से एक ज़माना राम हुआ
'क़ासिर' ऐसे फ़न-कारों की क़िस्मत में बन-बास रहा
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
जिनके चेहरे पर लिखी थी जेल की ऊँची फ़सील
रामनामी ओढ़कर संसद के अन्दर आ गए ।
अदम गोंडवी
जिस तरफ देखिए सहरा नज़र आता है मुझे
अन गिनत सदियों का बनवास डराता है मुझे
सुल्तान अख़्तर
जिस राम के नाम पे ख़ून बहे उस राम की इज़्ज़त क्या होगी
जिस दीन के हाथों लाज लुटे इस दीन की क़ीमत क्या होगी
साहिर लुधियानवी
जो हम पे फ़र्ज़ है हमको वो काम करना है
उठो कि हमको सितारों को राम करना है
आदिल रशीद
तमाम ज़ोर मेरा आईने ने छीन लिया
कहां से राम ने बाली पे तीर मारा हे
मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
तुझे रब कहे कोई वहगुरो तू कहीं ख़ुदा कहीं राम है
ये हैं एक नाम की बरकतें हमें नाम लेने से काम है
जूलियस नहीफ़ देहलवी
तुम ने बन-बास कहाँ काटा है
तुम न समझोगे कभी राम का दुख
हिरा क़ासमी
तुम से नाराज़ हो अगर कोई
अपनी बातों से उस को राम करो
मोहम्मद शरफ़ुद्दीन साहिल
दर्द घनेरा हिज्र का सहरा घोर अंधेरा और यादें
राम निकाल ये सारे रावन मेरी राम कहानी से
सय्यद सरोश आसिफ़
दिल जैसा अन-मोल रतन तो जब भी गया बे-राम गया
जान की क़ीमत क्या माँगें ये चीज़ तो ख़ैर अब सस्ती है
राही मासूम रज़ा
दुनिया भर की राम-कहानी किस किस ढंग से कह डाली
अपनी कहने जब बैठे तो एक एक लफ़्ज़ पिघलता था
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
दोनों ही एक ड़ाल के पंछी की तरह थे
ये राम वो रसूल, अभी कल की बात है
हस्तीमल हस्ती
नक्श-ए-तहजीब-ए-हुनुद अब भी नुमायाँ है अगर
तो वह सीता से है, लक्ष्मण से है, राम से है
ज़फ़र अली खां
नफ्स कशी के जंगल में पांव हैं मेरे लहूलुहान
मौवा के राज सिंघासन पर ये किस ने रख दी खड़ाऊ
रिफ़अत सरोश
नहीं है अम्न का दुनिया में अब मक़ाम कोई
ख़ुदा ख़ुदा कहे कोई कि राम राम कोई
राग़िब बदायुनी
निस्बत जो लोग अपनी बताते हैं राम से
बन-बास मुझ को देते हैं सीता के नाम से
मीना नक़वी
पत्थरों को है ये डर दौर-ए-मुनासिब में कहीं
उन को छू कर न कोई राम अहलिया कर दे
राजकुमार कोरी राज़
पाँव धोए बिना सरजू के किनारे से उठे
राम ये कहते हुए अपने द्वारे से उठे
कैफ़ी आज़मी
पी शराब नाम-ए-रिंदाँ ता असर सूँ कैफ़ के
ज़िक्र-ए-अल्लाह अल्लाह हो वे गर कहे तू राम राम
क़ुर्बी वेलोरी
बन में जो राम है तो अयोध्या उदास है
कोशल्या गरीब भी क्या ही उदास है
सरूर जहानाबादी
बाबा कहते ये जो खंडर है सीता-राम का मंदिर था
उस मंदिर की एक पुजारन राम-दुलारी होती थी
जानाँ मलिक
भूल जाता हूँ मैं ख़ुदाई को
उस से जब राम राम होती है
जोशिश अज़ीमाबादी
मर्यादा पुरुष राम उत्पन्न होंगे कभी न कभी
तब रावन अपने आप ही परास्त हो जाएगा
परवेज़ शहरयार
मसअला सिर्फ़ कुर्सियों का था
बात बाबर से राम तक पहुँची
अब्दुस सत्तार दानिश
मैं अपने ख़ुद के बनाए हुए उसूलों में
कभी मैं कृष्ण कभी राम होना चाहता हूँ
मुंतज़िर क़ाएमी
मैं ने देखा है वो इंसान तुम्हारे अंदर
राम बन जाओगे रावण तो नहीं बन सकते
फ़े सीन एजाज़
मैं हूं इन्सान तो होने का पता दे जंगल
राम जैसे थे मुझे वैसा बना दे जंगल
शकील आज़मी
ये हल्के सलोने सांवलेपन का समां
जमुना जल में और आसमानों में कहां
सीता पे स्वयंवर में पड़ा राम का अक्स
या चांद के मुखड़े पे है जुल्फों का धुआं
फिराक़ गोरखपुरी

रघुपति राघव राजा राम
पतित पावन सीता राम
तुलसी की रामायन के
राम की लीला वाले राम
अशोक लाल
रहीम ओ राम की सुमरन है शैख़ ओ हिन्दू को
दिल उस के नाम की रटना रटे है क्या कीजे
वलीउल्लाह मुहिब
राम अयोध्या लौट चले हैं
दीवाली के दीप जले हैं
हैदर बयाबानी
राम आएँ तो दिए घी के जलाऊँ घर घर
दीप-माला का समाँ आज दिखाऊँ घर घर
आफ़ताब रईस पानीपती
राम उसे कर लेता सच्चा इश्क़ मिरा
लेकिन वो 'ज़ीशान' पुजारी धन का था
ज़िशान इलाही
राम कब लौटेंगे मालूम नहीं
काश रावण ही कोई आ जाता
कैफ़ी आज़मी
राम की शबरी जंगल में तो रहती है
बेरों पर उस का अधिकार नहीं होता
प्रताप सोमवंशी
राम के जीवन से सारे दुख हटा कर देख लो
कुछ नहीं तुम को मिलेगा जान की को छोड़ कर
तनोज दाधीच

राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था
दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था
प्रताप सोमवंशी
राम तेरी सरज़मी में लोग अब
नफरतो की आग फ़ैलाने चले
चाँद शेरी
राम थे मर्यादा पुरुषोत्तम राम की बातें रहने दो
और बताओ इस दुनिया में किस ने किस का मान किया
बलराज हैरत
राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालो
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का
हरिओम पंवार
राम बातों में तो वो हो न सका
नक़्श ओ अफ़्सूँ भी कोई कर देखो
मीर हसन
राम सा बन-बास कुछ मुश्किल नहीं
सिर्फ़ इक मुश्किल है सीता कौन है
तन्हा तिम्मापुरी
राम हो और रहीम और न होने पाए
अब कोई बच्चा यतीम और न होने पाए
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
रावण ने फिर जुदा किया सीता को राम से
फिर कल्पना बुझाई गई क़यास छीन कर
नासिर शहज़ाद

लक्ष्मण रेखा भी आखिर क्या कर लेगी
सारे रावण घर के अंदर निकलेंगे
प्रताप सोमवंशी
लड़वा रहे हैं राम को जो भी रहीम से
इन मज़हबी ख़ुदाओं से क्या दोस्ती करें
अनवर अंसारी
लोगों ने यहाँ राम से सीखा तो यही बस
हर शख़्स ही सोने का हिरन ढूँड रहा है
प्रताप सोमवंशी
लौट आओ जो कभी राम की सूरत तुम तो
मन का सुनसान अवध दीप नगर हो जाए
दरवेश भारती
वफ़ा किसी को मयस्सर ही कब हुई है यहाँ
जो हुक्मराँ है वो रावन है राम थोड़ी है
ज़ुबैर अहमद तन्हा मलिक रामपुरी
वो नन्ही सी ख्वाहिश अब भी दिल को जलाए रखती है
जिसके त्याग की खातिर मैने कितने ही बनबास लिए
रिफ़अत सरोश
श्रीराम बोलना भी सियासत में आ गया
अब तो ख़ुदा का घर भी अदालत में आ गया।
गोपाल कृष्ण सक्सेना पंकज
सत-गुरु लिख या रहीम-ओ-राम लिख
एक है उस के हज़ारों नाम लिख
सय्यद सफ़दर रज़ा खंडवी
सभी हैं राम भरोसे ख़ुदा की बस्ती में
कोई तो ख़ुद पे करे इंहिसार कम से कम
शमीम अब्बास
सारा जग है प्रेरणा
प्रभाव सिर्फ राम है
भाव सूचियाँ बहुत हैं
भाव सिर्फ राम हैं
अमन अक्षर
सिंहासन हो, मर्यादा हो, राम भी हो ये मुश्किल है
ओहदा, पैसा आ जाने पर रावण भी हो जाता है
प्रताप सोमवंशी
सितम मिटाने तुम आए थे मेरी लंका में
बताओ राम ये क्या है तुम्हारी बस्ती में
अब्ब्दुर्रऊफ़ मख़्फ़ी

सीता राम की राहों को अब फूलों से महकाओ
चौदह बरस में लौटे घर को लछमन सीता राम
मसूदा हयात
हँस के मिलना राम कर लेना हर हर इंसान को
सब से मीठा बोलने की तुम को आदत चाहिए
अल्लामा इक़बाल
हज़ारों भेस में फिरते हैं राम और रहीम
कोई ज़रूरी नहीं है भला भला ही लगे
बशीर बद्र
हम भी तो उस ख़ुदा के बंदे हैं
हम से भी राम-राम कर लीजे
नाज़िम नक़वी
हर लिया किसने सीता को
ज़िंदगी है के राम का बनवास
फिराक़ गोरखपुरी
हिंदियों के दिल में, बाकी है मोहब्बत राम की
मिट नहीं सकती क़यामत तक हुकूमत राम की
सागर निज़ामी
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज़
अहल-ए-नज़र समझते हैं उस को इमाम-ए-हिंद
अल्लामा इक़बाल
हैं अगर राम हमारे तो तुम्हारे भी तो हैं
बस मोहम्मद हैं मुसलमाँ के तो ऐसा भी नहीं
राजकुमार कोरी राज़
हैं सीता की तरह हम घर से निकले
तो या'नी राम सा था मन तुम्हारा
अंकित मौर्या
हो गए राम जो तुम ग़ैर से ए जान-ए-जहाँ
जल रही है दिल-ए-पुर-नूर की लंका देखो
कल्ब-ए-हुसैन नादिर
हो जाएगा राम रफ़्ता रफ़्ता
वहशत तो मिटी झिजक रही है
रिन्द लखनवी
हो धरम या सियासत बस एक ही कहानी
हाथों में छुरी ले के राम राम हो रहा है ।
गुरप्रीत काफिऱ
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