राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था - प्रताप सोमवंशी

राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था

राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था

राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था
दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था

दुख दे कर ही चैन कहाँ था ज़ालिम को
टूट पड़ा था चेहरे पर वो पढ़ता था

शाम ढले ये टीस तो भीतर उठती है
मेरा ख़ुद से हर इक वा'दा झूटा था

ये भी था कि दिल को कितना समझा लो
बात ग़लत होती थी तो वो लड़ता था

मेरे दौर को कुछ यूँ लिक्खा जाएगा
राजा का किरदार बहुत ही बौना था - प्रताप सोमवंशी


Ram tumhare yug ka rawan achha tha

Ram tumhare yug ka rawan achha tha
das ke das chehre sab bahar rakhta tha

dukh de kar hi chain kahan tha jalim ko
tut pada tha chehre par wo padhta tha

sham dhale ye tees to bhitar uthti hai
mera khud se har ek wada jhutha tha

ye bhi tha ki dil ko kitna samjha lo
baat galat hoti thi to wo ladta tha

mere dour ko kuch yun likha jayega
raja ka kirdar bahut hi bouna tha - Pratap Somvanshi

प्रताप सोमवंशी की किताब:-

राम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था दस के दस चेहरे सब बाहर रखता थाराम तुम्हारे युग का रावन अच्छा था दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post