हम भरे शहरो में भी तन्हा है जाने किस तरह - अहमद फ़राज़

tum zamana-ashna, tumse zamana na-ashna

तुम जमाना-आशना, तुमसे जमाना ना-आशना

तुम जमाना-आशना, तुमसे जमाना ना-आशना
और हम अपने लिए भी अजनबी, ना-आशना

रास्ते भर की रिफाक़त भी बहुत है जानेमन
वरना मंजिल पर पहुच कर कौन किसका आशना

मुद्दते गुजरी इसी बस्ती में लेकिन अब तलक
लोग नावाकिफ, फ़ज़ा बेगाना, हम ना-आशना

हम भरे शहरो में भी तन्हा है जाने किस तरह
लोग वीराने में भी पैदा कर लेते है आशना

अपनी बर्बादी पे कितने खुश थे हम लेकिन फ़राज़
दोस्त दुश्मन का निकल आया है अपना आशना- अहमद फ़राज़


tum zamana-ashna, tumse zamana na-ashna

tum zamana-ashna, tumse zamana na-ashna
aur ham apne liye bhi ajnabi, na-ashna

rashte har ki rifaqat bhi bahut hai janeman
warna manzil par pahuch kar koun kiska aashna

muddate gujri isi basti me lekin ab talak
log nawaqif, faza begana, ham na-ashna

ham bhare shahro me bhi tanha hai jane kis tarah
log virane me bhi paida kar lete hai aashna

apni barbadi pe kitne khush the ham lekin faraz
dost dushman ka nikal aaya hai apna ashna - Ahmad Faraz

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