औरत शायरी | औरत पर बेहतरीन शेर | औरत पर शायरी

औरत शायरी | औरत पर बेहतरीन शेर 50 + | औरत पर शायरी

औरत शायरी | औरत पर बेहतरीन शेर-ओ-शायरी

एक औरत इस दुनिया में कई तरह के किरदार निभाती है वह माँ, बहन, बेटी, बीबी और भी कई भूमिकाए निभाती है | उर्दू शायरी में भी औरत विषय अछूता नहीं रहा | औरत पर शायरों ने कई बेहतरीन शेर-ओ-शायरी की है | शायरों ने अपनी शायरी के माध्यम से औरत के कई पहलुओ को अपनी शायरी में पिरोया है वह सिर्फ और सिर्फ औरत के हुस्न तक ही सिमित नहीं रहा बल्कि उसने औरत के दुःख-दर्द और स्त्री की वेदना को भी अपनी शायरी में उजागर किया है | इन्ही पहलुओ को उजागर करते हम आपके लिए औरत शायरी (Aurat Shayari) का संग्रह लेकर आये है | इस संग्रह में औरत पर शेर-ओ-शायरी को केंद्र बिंदु में रख कर औरत पर कहे गए बेहतरीन शेर पेश है :

अच्छी-ख़ासी रुस्वाई का सबब होती है
दूसरी औरत पहली जैसी कब होती है
- फ़े सीन एजाज़



अभी रौशन हुआ जाता है रस्ता
वो देखो एक औरत आ रही है
- शकील जमाली



Aurat shayari | औरत शायरी | aurat shayari status | आदमी के लिए है क्या औरत माँ बहन और प्रेमिका औरत
आदमी के लिए है क्या औरत
माँ बहन और प्रेमिका औरत
- बलजीत सिंह बेनाम



इश्क़ इंसान में औरत को जगा देता है
लोग हो जाते हैं शादाब समझ लो लड़की
- त्रिपुरारि



उन को भी तिरे इश्क़ ने बे-पर्दा फिराया
जो पर्दा-नशीं औरतें रुस्वा न हुईं थीं
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी



उसे हम पर तो देते हैं मगर उड़ने नहीं देते
हमारी बेटी बुलबुल है मगर पिंजरे में रहती है
- रहमान मुसव्विर



एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
जाने कितनी औरतों की बद-दुआएँ साथ हैं
- बशीर बद्र



एक के घर की ख़िदमत की और एक के दिल से मोहब्बत की
दोनों फ़र्ज़ निभा कर उस ने सारी उम्र इबादत की
- ज़ेहरा निगाह



एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
- अब्बास ताबिश



औरत अपना आप बचाए तब भी मुजरिम होती है
औरत अपना आप गँवाए तब भी मुजरिम होती है
- नीलमा नाहीद दुर्रानी



औरत के ख़ुदा दो हैं हक़ीक़ी ओ मजाज़ी
पर उस के लिए कोई भी अच्छा नहीं होता
- ज़ेहरा निगाह



औरत को भी हमवार करने के लिए,
तुम कैसे कैसे जतन करते हो
- किश्वर नाहीद



औरत को समझता था जो मर्दों का खिलौना
उस शख़्स को दामाद भी वैसा ही मिला है
- तनवीर सिप्रा



औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
- साहिर लुधियानवी



औरत हूँ मगर सूरत-ए-कोहसार खड़ी हूँ
इक सच के तहफ़्फ़ुज़ के लिए सब से लड़ी हूँ
- फ़रहत ज़ाहिद



औरत हो तुम तो तुम पे मुनासिब है चुप रहो
ये बोल ख़ानदान की इज़्ज़त पे हर्फ़ है
- सय्यदा अरशिया हक़



औरतें काम पे निकली थीं बदन घर रख कर,
जिस्म ख़ाली जो नज़र आए तो मर्द आ बैठे
- फ़रहत एहसास



औरतों की आँखों पर काले काले चश्मे थे सब की सब बरहना थीं
ज़ाहिदों ने जब देखा साहिलों का ये मंज़र लिख दिया गुनाहों में
- ज़ुबैर रिज़वी



कल अपने-आप को देखा था माँ की आँखों में
ये आईना हमें बूढ़ा नहीं बताता है
- मुनव्वर राना



किताब, फ़िल्म, सफ़र इश्क़, शायरी, औरत
कहाँ कहाँ न गया ख़ुद को ढूँढता हुआ मैं
- जव्वाद शैख़



क़िस्सा-ए-आदम में एक और ही वहदत पैदा कर ली है
मैं ने अपने अंदर अपनी औरत पैदा कर ली है
- फ़रहत एहसास



कौन बदन से आगे देखे औरत को
सब की आँखें गिरवी हैं इस नगरी में
- हमीदा शाहीन



ख़ाक ही ख़ाक थी और ख़ाक भी क्या कुछ नहीं था
मैं जब आया तो मेरे घर की जगह कुछ नहीं था।
- तहज़ीब हाफ़ी



ख़ुद पे ये ज़ुल्म गवारा नहीं होगा हम से
हम तो शो'लों से न गुज़़रेंगे न सीता समझें
- बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन



ख़ुदा ने गढ़ तो दिया आलम-ए-वजूद मगर
सजावटों की बिना औरतों की ज़ात हुई
- अब्दुल हमीद अदम



गुलनार देखती हैं ये मज़दूर औरतें
मेहनत पे अपने पेट से मजबूर औरतें
- जाँ निसार अख़्तर



Aurat shayari | औरत शायरी | aurat shayari status |  औरत - उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे - कैफ़ी आज़मी
गोशे गोशे में सुलगती है चिता तेरे लिए
फ़र्ज़ का भेस बदलती है क़ज़ा तेरे लिए
क़हर है तेरी हर इक नर्म अदा तेरे लिए
ज़हर ही ज़हर है दुनिया की हवा तेरे लिए
रुत बदल डाल अगर फूलना फलना है तुझे
उठ मिरी जान मिरे साथ ही चलना है तुझे
- कैफ़ी आज़मी



घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
लड़कियाँ धान के पौदों की तरह होती हैं
- मुनव्वर राना



चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है
मैं ने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है
- मुनव्वर राना



Aurat shayari | औरत शायरी | aurat shayari status | सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो, अब गोविंद ना आयेंगे
छोडो मेहँदी खड्ग संभालो
खुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाये बैठे शकुनि,
मस्तक सब बिक जायेंगे
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठालो,
अब गोविंद ना आयेंगे |
- पुष्यमित्र उपाध्याय



ज़माने अब तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल
कोई कमज़ोर सी औरत नहीं है
- फरीहा नक़वी



जवान गेहूँ के खेतों को देख कर रो दें
वो लड़कियाँ कि जिन्हें भूल बैठीं माएँ भी
- किश्वर नाहीद



जिस को तुम कहते हो ख़ुश-बख़्त सदा है मज़लूम
जीना हर दौर में औरत का ख़ता है लोगो
- रज़िया फ़सीह अहमद



तमाम पैकर-ए-बदसूरती है मर्द की ज़ात
मुझे यक़ीं है ख़ुदा मर्द हो नहीं सकता
- फ़रहत एहसास



तलाक़ दे तो रहे हो इताब-ओ-क़हर के साथ
मिरा शबाब भी लौटा दो मेरी महर के साथ
- साजिद सजनी



तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था
- असरार-उल-हक़ मजाज़



तुम भी आख़िर हो मर्द क्या जानो
एक औरत का दर्द क्या जानो
- सय्यदा अरशिया हक़



तू आग में ऐ औरत ज़िंदा भी जली बरसों
साँचे में हर इक ग़म के चुप-चाप ढली बरसों
- हबीब जालिब



दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए
- इफ़्तिख़ार आरिफ़



देख कर शाइ'र ने उस को नुक्ता-ए-हिकमत कहा
और बे-सोचे ज़माने ने उसे ''औरत'' कहा
- शाद आरफ़ी



दौलत के लिए जब औरत की इस्मत को न बेचा जाएगा
चाहत को न कुचला जाएगा ग़ैरत को न बेचा जाएगा
- साहिर लुधियानवी



प्रेम करती हुई औरत के बाद भी अगर कोई दुनिया है
उस इलाक़े में मैं साँस तक नहीं ले सकता
जिसमें औरतों की गंध वर्जित है
सचमुच मैं भाग जाता चंद्रमा से फूल और कविता से
नहीं सोचता कभी कोई भी बात ज़ुल्म और ज़्यादती के बारे में
अगर नहीं होती प्रेम करने वाली औरतें इस पृथ्वी पर
- चंद्रकांत देवताले



बताऊँ क्या तुझे ऐ हम-नशीं किस से मोहब्बत है
मैं जिस दुनिया में रहता हूँ वो इस दुनिया की औरत है
- असरार-उल-हक़ मजाज़



बिंत-ए-हव्वा हूँ मैं ये मिरा जुर्म है
और फिर शाएरी तो कड़ा जुर्म है
- सरवत ज़ेहरा



बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़



मर्दों के लिए हर ज़ुल्म रवा औरत के लिए रोना भी ख़ता
मर्दों के लिए हर ऐश का हक़ औरत के लिए जीना भी सज़ा
- साहिर लुधियानवी



माना जीवन में औरत इक बार मोहब्बत करती है
लेकिन मुझ को ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं
- क़तील शिफ़ाई



मिट्टी पे नुमूदार हैं पानी के ज़ख़ीरे
इन में कोई औरत से ज़ियादा नहीं गहरा
- सरवत हुसैन



Aurat shayari | औ़रत शायरी | मैं आकाश में इतने ऊपर कभी नहीं उड़ा कि स्त्री दिखाई ही न दे इसलिए मैं उन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता
मैं आकाश में इतने ऊपर कभी नहीं उड़ा
कि स्त्री दिखाई ही न दे
इसलिए मैं उन लोगों के बारे में कुछ नहीं जानता
कि वे किस तरह सोचते हैं जो ईश्वर के साथ रहते हैं
वैसे मेरी आत्मा आकाश में बहुत ऊँचे तक उड़ी है
पर डोर हमेशा किसी स्त्री के हाथ में रही
और सब जानते हैं कि औरत ज़्यादह ढील नहीं देती
-चंद्रकांत देवताले



औरत पर शायरी | Aurat Shayari सुब्ह का झरना हमेशा हँसने वाली औरतें झुटपुटे की नद्दियाँ ख़ामोश गहरी औरतें
मो'तदिल कर देती हैं ये सर्द मौसम का मिज़ाज
बर्फ़ के टीलों पे चढ़ती धूप जैसी औरतें
- बशीर बद्र



यहाँ की औरतों को इल्म की परवा नहीं बे-शक
मगर ये शौहरों से अपने बे-परवा नहीं होतीं
- अकबर इलाहाबादी



ये औरतों में तवाइफ़ तो ढूँड लेती हैं
तवाइफ़ों में इन्हें औरतें नहीं मिलतीं
- मीना नक़वी



Aurat Shayari Status | औरत पर शायरी | ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की अजब जज़्बे अजब तेवर की लड़की
ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की
अजब जज़्बे अजब तेवर की लड़की
- इशरत आफ़रीं



रौशनी भी नहीं हवा भी नहीं
माँ का नेमुल-बदल ख़ुदा भी नहीं
- अंजुम सलीमी



लोग औरत को फ़क़त जिस्म समझ लेते हैं
रुह भी होती है उस में ये कहाँ सोचते हैं
- साहिर लुधियानवी



वजूद-ए-ज़न से है तस्वीर-ए-काएनात में रंग
इसी के साज़ से है ज़िंदगी का सोज़-ए-दरूँ
- अल्लामा इक़बाल



वो ही सीता वही अहिल्या भी
फिर क्यों सदियों से बेवफ़ा औरत
- बलजीत सिंह बेनाम



शहर का तब्दील होना शाद रहना और उदास
रौनक़ें जितनी यहाँ हैं औरतों के दम से हैं
- मुनीर नियाज़ी



शो-केस में रक्खा हुआ औरत का जो बुत है
गूँगा ही सही फिर भी दिल-आवेज़ बहुत है
- कृष्ण अदीब



सदियों से मिरे पाँव तले जन्नत-ए-इंसाँ
मैं जन्नत-ए-इंसाँ का पता ढूँढ रही हूँ
- अदा जाफ़री



सब ने माना मरने वाला दहशत-गर्द और क़ातिल था
माँ ने फिर भी क़ब्र पे उस की राज-दुलारा लिक्खा था
- अहमद सलमान



सियासत के चेहरे पे रौनक़ नहीं
ये औरत हमेशा की बीमार है
- शकील जमाली



सुब्ह का झरना हमेशा हँसने वाली औरतें
झुटपुटे की नद्दियाँ ख़ामोश गहरी औरतें
- बशीर बद्र



है कामयाबी-ए-मर्दां में हाथ औरत का
मगर तू एक ही औरत पे इंहिसार न कर
- अज़ीज़ फ़ैसल


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