ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की - इशरत आफ़रीं

ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की अजब जज़्बे अजब तेवर की लड़की यूँ ही ज़ख़्मी नहीं हैं हाथ मेरे तराशी मैं ने इक पत्थर की लड़की

ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की

ये नाज़ुक सी मिरे अंदर की लड़की
अजब जज़्बे अजब तेवर की लड़की

यूँ ही ज़ख़्मी नहीं हैं हाथ मेरे
तराशी मैं ने इक पत्थर की लड़की

खड़ी है फ़िक्र के आज़र-कदे में
बुरीदा-दस्त फिर आज़र की लड़की

अना खोई तो कुढ़ कर मर गई वो
बड़ी हस्सास थी अंदर की लड़की

सज़ावार-ए-हुनर मुझ को न ठहरा
ये फ़न मेरा न मैं आज़र की लड़की

बिखर कर शीशा शीशा रेज़ा रेज़ा
सिमट कर फूल से पैकर की लड़की

हवेली के मकीं तो चाहते थे
कि घर ही में रहे ये घर की लड़की - इशरत आफ़रीं


ye nazuk si mere andar ki ladki

ye nazuk si mere andar ki ladki
ajab jazbe ajab tewar ki ladki

yunhi zakhmi nahin hain hath mere
tarashi main ne ek patthar ki ladki

khadi hai fikr ke aazar-kade mein
burida-dast phir aazar ki ladki

ana khoi to kudh kar mar gai wo
badi hassas thi andar ki ladki

sazawar-e-hunar mujh ko na thahra
ye fan mera na main aazar ki ladki

bikhar kar shisha shisha reza reza
simat kar phul se paikar ki ladki

haweli ke makin to chahte the
ki ghar hi mein rahe ye ghar ki ladki - Ishrat Afreen

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post