ये किसका लहू है कौन मरा - साहिर लुधियानवी

ये किसका लहू है कौन मरा - धरती की सुलगती छाती से बेचैन शरारे पूछते हैं तुम लोग जिन्हें अपना न सके वो ख़ून के धारे पूछते हैं

ये किसका लहू है कौन मरा

धरती की सुलगती छाती से
बेचैन शरारे पूछते हैं
तुम लोग जिन्हें अपना न सके
वो ख़ून के धारे पूछते हैं
सड़कों की ज़बाँ चिल्लाती है
सागर के किनारे पूछते हैं
ये किसका लहू है कौन मरा
ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा

ये जलते हुए घर किसके हैं
ये कटते हुए तन किसके है,
तकसीम के अंधे तूफ़ान में
लुटते हुए गुलशन किसके हैं,
बदबख्त फिजायें किसकी हैं
बरबाद नशेमन किसके हैं,

कुछ हम भी सुने, हमको भी सुना

ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा

किस काम के हैं ये दीन धरम
जो शर्म के दामन चाक करें,
किस तरह के हैं ये देश भगत
जो बसते घरों को खाक करें,
ये रूहें कैसी रूहें हैं
जो धरती को नापाक करें,

आँखे तो उठा, नज़रें तो मिला.

ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा

जिस राम के नाम पे खून बहे
उस राम की इज्जत क्या होगी,
जिस दीन के हाथों लाज लूटे
उस दीन की कीमत क्या होगी,
इन्सान की इस जिल्लत से परे
शैतान की जिल्लत क्या होगी,

ये वेद हटा, कुरआन उठा

ऐ रहबर-ए-मुल्क-ओ-कौम बता
ये किसका लहू है कौन मरा - साहिर लुधियानवी



ye kiska lahu hai kaun maraa

Dharti ki sulgati chhati se
bechain sharare puchhte hai
tum log jinhe apna n sake
wo khoon ke dhare puchhte hai
sadko ki zabaaN chillati hai
sagar ke kinare puchhte hai

Ye kiska lahoo hai kaun maraa
ai rahabar-e-mulk-o-kaum bataa
ye kiska lahoo hai kaun maraa

ye jalate hue ghar kiske hain
ye katate hue tan kiske hai,
takaseem ke andhe toophaan men
lutate hue gulashan kiske hain,
badabakht fijaayen kiski hain
barabaad nasheman kiske hain,

kuchh ham bhi sune, hamako bhi sunaa

ai rahabar-e-mulk-o-kaum bataa
ye kiska lahoo hai kaun maraa

kis kaam ke hain ye deen dharam
jo sharm ke daaman chaak karen,
kis tarah ke hain ye desh bhagat
jo basate gharon ko khaak karen,
ye roohen kaisi roohe hain
jo dharatee ko naapaak karen,

aankhe to uthaa, nazaren to milaa.
Ai rahabar-e-mulk-o-kaum bataa
ye kiska lahoo hai kaun maraa

Jis raam ke naam pe khoon bahe
us raam kee ijjat kyaa hogee,
jis deen ke haathon laaj loote
us deen kee keemat kyaa hogee,
insaan kee is jillat se pare
shaitaan kee jillat kyaa hogee,

ye ved hataa, kuraan uthaa

ai rahabar-e-mulk-o-kaum bataa
ye kiska lahoo hai kaun maraa - Sahir Ludhiyanvi

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