लोग जिसको ताज पहनाने चले - चाँद शेरी

लोग जिसको ताज पहनाने चले हाथ अपने खुद ही बंधवाने चले चंद सिक्को के लिए वो सिरफिरे आदमियत को ही बिकवाने चले

लोग जिसको ताज पहनाने चले

लोग जिसको ताज पहनाने चले
हाथ अपने खुद ही बंधवाने चले

मंदिरों के मस्जिदों के आदमी
बस्तिया यूं ही उजडवाने चले

चंद सिक्को के लिए वो सिरफिरे
आदमियत को ही बिकवाने चले

धुप की चादर में लिपटे वो गरीब
नाम बेकारो में लिखवाने चले

राम तेरी सरज़मी में लोग अब
नफरतो की आग फ़ैलाने चले

लोग अपनी वहशियाना भूख में
आदमी को भुनकर खाने चले

खून की खबरों से तर अखबार में
लो ग़ज़ल 'शेरी' भी छपवाने चले -चाँद शेरी


log jisko taaj pahnane chale

log jisko taaj pahnane chale
haath apne khud hi bandhwane chale

mandiro ke masjido ke aadmi
bastiya yun hi ujadwane chale

chand sikko ke liye wo sirfire
aadmiyat ko hi bikwane chale

dhoop ki chandar me lipte wo garib
naam bekaro me likhwane chale

ram teru sarzami ne log ab
nafrato ki aag failane chale

log apni wahsiyana bhookh me
aadmi ko bhunkar khane chale

khoon ki khabro se tar akhbaar me
lo gazal "Sheri" bhi chapwane chale - Chand Sheri

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