धूप पर शायरी
शायरी ने लगभग हर शब्द और भावना को अपने शब्दों में पिरोया है और उन पर शायरों ने अपने-अपने हिसाब से लिखा है या उन शब्दों को लेकर किसी और तरफ निशाना साधा है | आप सभी के लिए पेश है धुप पर बेहतरीन शेर का संकलन |
अपनी उदास धूप तो घर-घर चली गयी
ये रोशनी लक़ीर के बाहर चली गयी
- बशीर बद्र
अपनी क़िस्मत में लिखी थी धूप की नाराज़गी
साया-ए-दीवार था लेकिन पस-ए-दीवार था
- राहत इंदौरी
अपने साए को इतना समझाने दे
मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे
- वसीम बरेलवी
अब 'इंशा'-जी को बुलाना क्या अब प्यार के दीप जलाना क्या
जब धूप और छाया एक से हों जब दिन और रात बराबर हो
- इब्न-ए-इंशा
अब की सर्दी में कहाँ है वो अलाव सीना
अब की सर्दी में मुझे ख़ुद को जलाना होगा
- नईम सरमद
अब शहर-ए-आरज़ू में वो रानाइयाँ कहाँ
हैं गुल-कदे निढाल बड़ी तेज़ धूप है
- साग़र सिद्दीक़ी
अभी अभी थी धूप, बरसने लगा कहाँ से यह पानी
किसने फोड़ घड़े बादल के की है इतनी शैतानी।
- सुभद्रा कुमारी चौहान
अभी तक जिस को अपनाया नहीं था
वो सिर्फ़ इक धूप थी साया नहीं था
- रज़ा अमरोहवी
'अल्वी' ये मो'जिज़ा है दिसम्बर की धूप का
सारे मकान शहर के धोए हुए से हैं
- मोहम्मद अल्वी
आँखों में चुभ रही है गुज़रती रुतों की धूप
जल्वा दिखाए अब तो नए मौसमों की धूप
- नासिर ज़ैदी
आग ओढ़े था मगर बाँट रहा था साया
धूप के शहर में इक तन्हा शजर ऐसा था
- राहत इंदौरी
आज कुछ ऐसे शोले भड़के बारिश के हर क़तरे से
धूप पनाहें माँग रही है भीगे हुए दरख़्तों में
- कैफ़ अहमद सिद्दीकी
इक ख़्वाब-गूँ सी धूप थी ज़ख़्मों की आँच में
इक साएबाँ सा दर्द की पुरवाइयों में था
- अदा जाफ़री
इक चील एक मुम्टी पे बैठी है धूप में
गलियाँ उजड़ गई हैं मगर पासबाँ तो है
- मुनीर नियाज़ी
इक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ
इक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो
- अहमद सलमान
इक नई धूप में फिर अपना सफ़र जारी है
वो घना साया फ़क़त तिफ़्ल-ए-तसल्ली निकला
- साक़ी फ़ारुक़ी
इक पटरी पर सर्दी में अपनी तक़दीर को रोए
दूजा ज़ुल्फ़ों की छाँव में सुख की सेज पे सोए
- हबीब जालिब
इक बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश
फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा
- परवीन शाकिर
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं
- दुष्यंत कुमार
इस उफुक् से उस उफूक तक धूप मेरी मुमल्कत
तेरे क़ब्जे में बस एक साए का टुकड़ा रह गया
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
इस कड़ी धूप में साया कर के
तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के
- नसीर तुराबी
इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
चमकी जो ज़रा धूप तो जलने लगे साए
- हिमायत अली शाएर
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
क्या हाल पेड़ कटते ही बस्ती का हो गया
- नोमान शौक़
इस रूमाल को काम में लाओ अपनी पलकें साफ़ करो
मैला मैला चाँद नहीं है धूल जमी है आँखों में
- बशीर बद्र
उठो कि ओस की बूँदें जगा रही हैं तुम्हें
चलो कि धूप दरीचों में आ के बैठ गई
- मुनव्वर राना
उड़ गया तो शाख़ का सारा बदन जलने लगा
धूप रख ली थी परिंदे ने परों के दरमियाँ
- बशीर फ़ारूक़ी
उन से मिलने का बहाना नहीं मिलता कोई
धूप ही मिलती है साया नहीं मिलता कोई
- सिद्धार्थ सैनी साद
उस के जमाल का था दिन मेरा वजूद और फिर
सुब्ह से धूप भी गई रात से चाँदनी गई
- जौन एलिया
उस को ज़ख़्म मिले दुनिया में जिस ने माँगे ताज़ा फूल
जिस ने चाही छाँव की छतरी उस के सर पर छाई धूप
- नौबहार साबिर
उस को भी मेरी तरह अपनी वफ़ा पर था यक़ीं
वो भी शायद इसी धोके में मिला था मुझ को
- भारत भूषण पन्त
उस ज़ाविए से देखिए आईना-ए-हयात
जिस ज़ाविए से मैं ने लगाया है धूप में
- ताहिर फ़राज़
उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से दिन की धूप दबे
इस शहर में क्या क्या गोरी है महताब-रुख़े गुलनार-लबे
- इब्न-ए-इंशा
ए मिरे हम-सफ़रो तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम तो मिलावट न करो छाँव में
- क़तील शिफ़ाई
एक बच्चा डगमगा कर गिर पड़ा
धूप सुखलाती रही पर लान पर
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
- उम्मीद फ़ाज़ली
कब तलक यूँ धूप छाँव का तमाशा देखना
धूप में फिरना घने पेड़ों का साया देखना
- अनवर मसूद
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
- अख़्तर होशियारपुरी
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
- अख़्तर होशियारपुरी
कभी दहकती कभी महकती कभी मचलती आई धूप
हर मौसम में आँगन आँगन रूप बदल कर छाई धूप
- नौबहार साबिर
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
होता रहता है यूँ ही क़र्ज़ बराबर मेरा
- अतहर नफ़ीस
कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर
बच्चों ने खिलखिला के मुझे भी जगा दिया
- फ़ज़्ल ताबिश
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
- राजेश रेड्डी
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए
- दुष्यंत कुमार
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाए धूप ढल गई
- गोपालदास नीरज
किस तरह कोई धूप में पिघले है जले है
ये बात वो क्या जाने जो साए में पले है
- कलीम आजिज़
किस ने सहरा में मिरे वास्ते रक्खी है ये छाँव
धूप रोके है मिरा चाहने वाला कैसा
- ज़ेब ग़ौरी
किसी की याद से इस उम्र में दिल की मुलाक़ातें
ठिठुरती शाम में इक धूप का कोना ज़रूरी है
- शोएब बिन अज़ीज़
किसी ज़ुल्फ़ को सदा दो किसी आँख को पुकारो
बड़ी धूप पड़ रही है कोई साएबाँ नहीं है
- मुस्तफ़ा ज़ैदी
कुछ अब के धूप का ऐसा मिज़ाज बिगड़ा है
दरख़्त भी तो यहाँ साएबान माँगते हैं
- मंज़ूर हाशमी
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
'क़ाबिल' ग़म-ए-दौराँ की अभी धूप कड़ी है
- क़ाबिल अजमेरी
कुछ पेड़ भी बे-फ़ैज़ हैं इस राहगुज़र के
कुछ धूप भी ऐसी है कि साया नहीं होता
- फ़रहत एहसास
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता
बूँदा-बाँदी भी धूप भी है अभी
- अहमद फ़राज़
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
- अहमद मुश्ताक़
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
- अहमद मुश्ताक़
कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है
- बशीर बद्र
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया नया न कहा हुआ न सुना हुआ
- बशीर बद्र
कोई हे जो बिछा दे धूप को उस पार ले जा कर
उठा तो लाए हैं उस पार तक हम से नहीं उठती
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
कौन जाने कि उड़ती हुई धूप भी
किस तरफ़ कौन सी मंज़िलों में गई
- किश्वर नाहीद
ख़्वाब आईने हैं आँखों में लिए फिरते हो
धूप में चमकेंगे टूटेंगे तो चुभ जाएँगे
- बशीर बद्र
ख़्वाब-गाहों से निकलते हुए डरते क्यूँ हो
धूप इतनी तो नहीं है कि पिघल जाओगे
- इक़बाल अज़ीम
ग़म का सूरज तो डूबता ही नहीं
धूप ही धूप है किधर जाएँ
- सरफ़राज़ दानिश
ग़म लगे रहते हैं हर आन ख़ुशी के पीछे
दुश्मनी धूप की है साया-ए-दीवार के साथ
- क़तील शिफ़ाई
गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
वक़्त से पहले धूप सरों पे आ पहुँची
- आनिस मुईन
ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप
क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बाद
- कैफ़ी आज़मी
घर में गुंजाईश ही कब थी पर फैलाने की
दरवाज़े से लौट गईं शर्मिंदा हो कर धूप
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चकरा के गिर न जाऊँ मैं इस तेज़ धूप में
मुझ को ज़रा संभाल बड़ी तेज़ धूप है
- साग़र सिद्दीक़ी
चढ़ते ही धूप शहर के खुल जाएँगे किवाड़
जिस्मों का रहगुज़ार रवानी में आएगा
- इक़बाल साजिद
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
हमें तो खा गया साया शजर का
- उमर अंसारी
चलो धूप से आशनाई करें
ये दीवार का आसरा ठीक नहीं
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चाँदनी देख के चेहरे को छुपाने वाले
धूप में बैठ के अब बाल सुखाता क्या है
- शहज़ाद अहमद
चांद चीखा रात पागल हो गई है
धूप का गजरा लगाना चाहती है
- संदीप ठाकुर
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया
- राहत इंदौरी
छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल
वहीं से धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या
- कैफ़ी आज़मी
छत से उस की धूप के नेज़े आते हैं
जब आँगन में छाँव हमारी रहती है
- राहत इंदौरी
छाँव की शक्ल धूप की रंगत बदल गई
अब के वो लू चली है कि सूरत बदल गई
- फ़ारूक़ शफ़क़
छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं
- निदा फ़ाज़ली
जगह जगह सील के ये धब्बे ये सर्द बिस्तर
हमारे कमरे से धूप की बे-रुख़ी तो देखो
- शारिक़ कैफ़ी
जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके
एक तन्हा पेड़ था मेरी तरह जलता हुआ
- वहाब दानिश
जब हिज्र के शहर में धूप उतरी मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
मिरी सोच ख़िज़ाँ की शाख़ बनी तिरा चेहरा और गुलाब हुआ
- मोहसिन नक़वी
ज़रा ये धूप ढल जाए तो उन का हाल पूछेंगे
यहाँ कुछ साए अपने आप को पैकर बताते हैं
- ख़ुशबीर सिंह शाद
ज़र्द गुलाब और आईनों को चाहने वाली
ऐसी धूप और ऐसा सवेरा फिर नहीं होगा
- सरवत हुसैन
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
टपकती हैं अभी तक रस्सियाँ आहिस्ता आहिस्ता
- अहमद मुश्ताक़
जाती है धूप उजले परों को समेट के
ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के
- शकेब जलाली
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
साए को जिस्म की जुम्बिश से जुदा देखते हैं
- आसिम वास्ती
ज़िंदगी की ऐ कड़ी धूप बचा ले मुझ को
पीछे पीछे ये मिरे मौत का साया क्या है
- उबैदुल्लाह अलीम
ज़िंदगी की धूप में मुरझा गया मेरा शबाब
अब बहार आई तो क्या अब्र-ए-बहार आया तो क्या
- जौन एलिया
जिस दिन शहर जला था उस दिन धूप में कितनी तेज़ी थी
वर्ना इस बस्ती पर 'अंजुम' बादल रोज़ बरसता था
- अंजुम तराज़ी
जिस धूप की दिल में ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बलती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिए
- नासिर काज़मी
जिस्म का बोझ उठाए हुए चलते रहिए
धूप में बर्फ़ की मानिंद पिघलते रहिए
- मेराज फ़ैज़ाबादी
ज़ुल्फ़ ओ रुख़ के साए में ज़िंदगी गुज़ारी है
धूप भी हमारी है छाँव भी हमारी है
- मंज़र भोपाली
जो बादलों से भी मुझ को छुपाए रखता था
बढ़ी है धूप तो बे-साएबान छोड़ गया
- परवीन शाकिर
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इल्तिजाएँ करने लगे
- राहत इंदौरी
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
धूप इतनी थी कि साया कर लिया
- शारिक़ कैफ़ी
टूटी दीवार का साया भी बहुत होता है
पाँव जल जाएँ अगर धूप में चलते चलते
- इक़बाल अज़ीम
तअ'ल्लुक़ात की गर्मी न ए'तिबार की धूप
झुलस रही है ज़माने को इंतिशार की धूप
- अली अब्बास उम्मीद
तन्हा हुआ सफ़र में तो मुझ पे खुला ये भेद
साए से प्यार धूप से नफ़रत उसे भी थी
- मोहसिन नक़वी
तमाशा ख़त्म हुआ धूप के मदारी का
सुनहरी साँप छुपे शाम के पिटारे में
- इक़बाल साजिद
तारीकियों ने ख़ुद को मिलाया है धूप में
साया जो शाम का नज़र आया है धूप में
- ताहिर फ़राज़
तिरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को
चमकती धूप में साए इकट्ठे कर रहा हूँ मैं
- अहमद मुश्ताक़
तिरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को
चमकती धूप में साए इकट्ठे कर रहा हूँ मैं
- अहमद मुश्ताक़
तुझे हम दोपहर की धूप में देखेंगे ऐ ग़ुंचे
अभी शबनम के रोने पर हँसी मालूम होती है
- शफ़ीक़ जौनपुरी
तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
- जावेद अख़्तर
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
- नोमान शौक़
तुम्हारी ये अदा ऐसी हे जैसे धूप में बारिश
हमें पहचान भी लेते हो अनजानी भी करते हो
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
तुम्हारे क़द्र से अगर बढ़ रही हो परछाईं
समझ लो धूप का वक़्त-ए-ज़वाल होने लगा
- बेकल उत्साही
तुला है धूप बरसाने पे सूरज
शजर भी छतरियाँ ले कर खड़े हैं
- राहत इंदौरी
तेज़ धूप में आई ऐसी लहर सर्दी की
मोम का हर इक पुतला बच गया पिघलने से
- क़तील शिफ़ाई
दर्द की धूप से चेहरे को निखर जाना था
आइना देखने वाले तुझे मर जाना था
- नसीर तुराबी
दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं
इस कहानी में बहर हाल कई बातें हैं
- जावेद नासिर
दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल
वो धूप है कि रंग हैं काले पड़े हुए
- होश तिर्मिज़ी
दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
- नासिर काज़मी
दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफाओं में
- बशीर बद्र
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
ये बात भूलने में ज़माना लगा मुझे
- असग़र मेहदी होश
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
ये बात भूलने में ज़माना लगा मुझे
- होश जौनपुरी
दूर तक मिलता नहीं है उस में आशिक़ का वजूद
इश्क़ ऐसी धूप है जिस में कोई साया नहीं
- अर्पित शर्मा अर्पित
दो ही मौसम थे धूप या बारिश
छतरियों की दुकान चलती रही
- फ़हमी बदायूनी
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी
धुप हूँ, साया-ए-दीदार से डर जाता हूँ
तुझसे मिलता हूँ तो कुछ और बिखर जाता हूँ
- जाजिब कुरैशी
धूप इतनी है बंद हुई जाती है आँख
और पलक झपकूँ तो मंज़र जाता है
- ज़ेब ग़ौरी
धूप और छाँव बाँट के तुम ने आँगन में दीवार चुनी
क्या इतना आसान है ज़िंदा रहना इस आसाइश पर
- गुलज़ार
धूप कहती ही रही मैं धूप हूँ मैं धूप हूँ
अपने साए पर भरोसा देखने की चीज़ थी
- लियाक़त अली आसिम
धूप की गरमी से ईंटें पक गईं फल पक गए
इक हमारा जिस्म था अख़्तर जो कच्चा रह गया
- अख़्तर होशियारपुरी
धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हम-सायों में आरे निकले
- परवीन शाकिर
धूप के क़हर का डर है तो दयार-ए-शब से
सर-बरहना कोई परछाईं निकलती क्यूँ है
- शहरयार
धूप के दश्त में कितना वो हमें ढूँडता था
'ए'तिबार' उस के लिए अब्र की सूरत हम थे
- ऐतबार साजिद
धूप को हे ये निदामत कैसी
क्यों सिसकती हे घटा देखा जाए
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
धूप थी नसीब में धूप में लिया है दम
चाँदनी मिली तो हम चाँदनी में सो लिए
- मजरूह सुल्तानपुरी
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी
धूप ने, जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें
इन दरख्तों की कहानी आँधियों को क्या पता
- ओमप्रकाश यती
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा
साया-ए-दीवार भी दीवार से
- बहराम तारिक़
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा
साया-ए-दीवार भी दीवार से
- बहराम तारिक़
धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
मैं ने फिर साया-ए-दीवार को ज़हमत नहीं दी
- फ़रहत एहसास
धूप मुझ को जो लिए फिरती है साए साए
है तो आवारा मगर ज़ेहन में घर रखती है
- ताहिर फ़राज़
धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तिरे शहर में बरसात तो होती होगी
- अमीर इमाम
धूप में दीवार ही काम आएगी
तेज़ बारिश का सहारा और है
- परवीन शाकिर
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
- निदा फाजली
धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं
बड़े लोगों के ख़सारे भी बड़े होते हैं
- अज़हर फ़राग़
धूप से चेहरों ने दुनिया में
क्या अंधेर मचा रक्खा है
- नासिर काज़मी
धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो
किसी दामन की हवा ज़ुल्फ़ का साया माँगो
- आसी रामनगरी
धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो
- वसी शाह
नक़ाब-ए-रुख़ उठाया जा रहा है
वो निकली धूप साया जा रहा है
- माहिर-उल क़ादरी
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में
उजाले पाँव पटकने लगे हैं पानी में
- राहत इंदौरी
नश्शा तो मौत है ग़म-ए-हस्ती की धूप में
बिखरा के ज़ुल्फ़ साथ चलो मैं नशे में हूँ
- साग़र सिद्दीक़ी
निगाह-ए-नाज़ कुछ उन की भी है ख़बर तुझ को
जो धूप में हैं मगर बदलियाँ बनाते हैं
- अहमद मुश्ताक़
नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा
धूप दीवार से आँगन में उतर आई है
- सरशार सिद्दीक़ी
पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब
ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए
- परवीन शाकिर
पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया
वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था
- हनीफ़ तरीन
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
- बशीर बद्र
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
- बशीर बद्र
फैलती धूप का है रूप लड़कपन का उठान
दोपहर ढलते ही उतरेगा ये चढ़ता पानी
- आरज़ू लखनवी
बंद कमरे खोल कर सच्चाइयाँ रहने लगीं
ख़्वाब कच्ची धूप थे दालान में रक्खे रहे
- राहत इंदौरी
बदन चुराते हुए रूह में समाया कर
मैं अपनी धूप में सोया हुआ हूँ साया कर
- साक़ी फ़ारुक़ी
बदल जाएगा सब कुछ बादलों से धूप चटख़ेगी
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते मैंने देखा है
- आलोक श्रीवास्तव
बनाओ साए हरारत बदन में जज़्ब करो
कि धूप सह्न में कब से यूँही पड़ी हुई है
- इरफ़ान सत्तार
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या
- अहमद ज़िया
बाहर का धन आता जाता अस्ल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है
- उबैदुल्लाह अलीम
बूढ़े बाजू टूट चुके थे घर का चूल्हा ठंडा था
आंगन में देखा तो बैठी कांप रही थी थर थर धूप
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मरकज़ पे अपने धूप सिमटती है जिस तरह
यूँ रफ़्ता रफ़्ता तेरे क़रीब आ रहा हूँ मैं
- सीमाब अकबराबादी
मिरे साए में उस का नक़्श-ए-पा है
बड़ा एहसान मुझ पर धूप का है
- फ़हमी बदायूनी
मिरे साए में उस का नक़्श-ए-पा है
बड़ा एहसान मुझ पर धूप का है
- फ़हमी बदायूनी
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
- बशीर बद्र
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो
- ऐतबार साजिद
मुझे नवम्बर की धूप की तरह मत चाहो
कि इस में डूबो तो तमाज़त में नहा जाओ
- किश्वर नाहीद
मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इस लिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है
- बशीर बद्र
मुबारक तुम्हें पर्चम वो तख्तों ताज
मेरी धूप और बोरिया छोड़ दो
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मुसलसल धूप में चलना चराग़ों की तरह जलना
ये हंगामे तो मुझ को वक़्त से पहले थका देंगे
- अनवर जलालाबादी
मुसाफिरों के लिए छांव अपने सिर पर धूप
यहां भी कौन सा आराम है शजर बन कर
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
में मुसाफ़िर नवाज़ों का मारा हुआ
बीज बोता रहा उम्र भर धूप में
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मेज पर खेलता हुआ बच्चा
धूप निकली तो लान पर आया
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मेज़ पर गेंद खेलता बच्चा
धूप निकली तो लॉन पर आया
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मेरे पड़ोस की सब खिड़कियां चुनी जाएं
ज़रा सी धूप अगर मेरे घर में आ जाए
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मैं धूप में जल के इतना काला नहीं हुआ था
कि जितना इस रात मैं सुलग के सियह हुआ हूँ
- गुलज़ार
मैं ने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए
- राहत इंदौरी
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया
- अहमद मुश्ताक़
मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा 'आबिद'
सुलगती धूप में इक छत बहुत ज़रूरी है
- आबिद वदूद
यह धूप तो धोखे से चली आई है उस को
दोबारा मेरे घर में दिखाई नहीं देना
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
यहाँ दरख़्तों के साए में धूप लगती है
चलें यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए
- दुष्यंत कुमार
याद की धूप तो है रोज़ की बात
हाँ मुझे चाँदनी से ख़तरा है
- जौन एलिया
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें
- नासिर काज़मी
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
- हसीब सोज़
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
- हसीब सोज़
ये इक कमी कि जो अब ज़िंदगी सी लगती है
हमारी धूप में वो साएबान भी पड़ता
- अभिषेक शुक्ला
ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी
ये क्या कि रोज़ वही चाँदनी का बिस्तर हो
कभी तो धूप की चादर बिछा के सो लेते
- बशीर बद्र
ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी
क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया
- अतहर नफ़ीस
ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी
क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया
- अतहर नफ़ीस
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
साए से मगर उस को मोहब्बत भी बहुत थी
- परवीन शाकिर
रहा जो धूप में सर पर मिरे वही आँचल
हवा चली है तो कितना बदलता जाता है
- नोशी गिलानी
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
- गुलज़ार
रोज़ जब धूप पहाड़ों से उतरने लगती
कोई घटता हुआ बढ़ता हुआ बेकल साया
- अहमद फ़राज़
लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए
- अनवर शऊर
लफ़्ज़ तो लफ़्ज़ यहाँ धूप निकल आती है
तेरी आवाज़ की बारिश में नहाने के लिए
- अब्बास ताबिश
लहू रुलाएगा वो धूप छाँव का मंज़र
नज़र उठाऊँगा जिस सम्त झुटपुटा होगा
- रियाज़ मजीद
लोग पीपल के दरख़्तों को ख़ुदा कहने लगे
मैं ज़रा धूप से बचने को इधर आया था
- राहत इंदौरी
वक़्त की धूप में तुम्हारे लिए
शजर-ए-साया-दार थे हम तो
- जौन एलिया
वर्ना धूप का पर्बत किस से कटता था
उस ने छतरी खोल के रस्ते खोले हैं
- तहज़ीब हाफ़ी
वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ
- अकबर मासूम
वो ज़ुल्फ़ धूप में फ़ुर्क़त की आई है जब याद
तो बादल आए हैं और शामियाने हो गए हैं
- जौन एलिया
वो तपिश है कि जल उठे साए
धूप रक्खी थी साएबान में क्या
- ख़ालिदा उज़्मा
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठाएँगे मिल जुल के उठाएँगे
- बशीर बद्र
वो फ़ासला था दुआ और मुस्तजाबी में
कि धूप माँगने जाते तो अब्र आ जाता
- परवीन शाकिर
वो मुझ को आज़मा के कड़ी धूप में रहा
मुझ को ख़िज़ाँ बहार लगी इम्तिहान की
- अशोक मिज़ाज
वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते
- परवीन शाकिर
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
- मुसव्विर सब्ज़वारी
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
- मुसव्विर सब्ज़वारी
वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
- नसीर तुराबी
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है
- शकील जमाली
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है
- शकील जमाली
शदीद धूप में सारे दरख़्त सूख गए
बस इक दुआ का शजर था जो बे-समर न हुआ
- अलीना इतरत
शबनमी में धूप की जैसे वतन का ख़्वाब था
लोग ये समझे मैं सब्ज़े पर पड़ा सोता रहा
- बशीर बद्र
शाख़ पर शब की लगे इस चाँद में है धूप जो
वो मिरी आँखों की है सो वो समर मेरा भी है
- स्वप्निल तिवारी
शौक़ चढ़ती धूप जाता वक़्त घटती छाँव है
बा-वफ़ा जो आज हैं कल बे-वफ़ा हो जाएँगे
- आरज़ू लखनवी
सड़कें तमाम धूप से अंगारा हो गईं
अंधी हवाएँ चलती हैं इन पर बरहना-पा
- आदिल मंसूरी
सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं
धूप आँखों तक आ जाए तो ख़्वाब बिखरने लगते हैं
- अमजद इस्लाम अमजद
सदियों से इंसान ये सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है
- साहिर लुधियानवी
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने
वो अंदेशे थे रंग आँखों के गहरे कर लिए हम ने
- साक़ी फ़ारुक़ी
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
- निदा फ़ाज़ली
सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं
ये धूप सारा समुंदर ही पी न जाए कहीं
- मोहम्मद अल्वी
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता
- वसीम बरेलवी
साए अपने साथ ले आते हैं आलाइश बहुत
हम ने घर में धूप की रखी है गुंजाइश बहुत
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
ठंडी ठंडी हवा फिर चली सो रहो सो रहो
- नासिर काज़मी
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ
- परवीन शाकिर
हम को दिल ने नहीं हालात ने नज़दीक किया
धूप में दूर से हर शख़्स शजर लगता है
- अब्बास ताबिश
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अज्दाद कहीं पेड़ भी कुछ बो गए होते
- शहरयार
हम तिरे साए में कुछ देर ठहरते कैसे
हम को जब धूप से वहशत नहीं करनी आई
- आबिदा करामत
हम ने धूप का हाथ न छोड़ा
छांव बिछी थी बिस्तर जैसी
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप
और ये रात अपनी चादर है
- आबिद वदूद
हमारे मुँह पे उस ने आइने से धूप तक फेंकी
अभी तक हम समझ कर उस को बच्चा छोड़ देते हैं
- मोहम्मद आज़म
हमें जला नहीं सकती है धूप हिजरत की
हमारे सर पे ज़रूरत का शामियाना है
- सय्यद सरोश आसिफ़
हर आँगन में आए तेरे उजले रूप की धूप
छैल-छबेली रानी थोड़ा घूँघट और निकाल
- क़तील शिफ़ाई
हर तरफ़ धूप की चादर को बिछाने वाला
काम पर निकला है दुनिया को जगाने वाला
- साजिद प्रेमी
हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में ख़ुश हूँ कोई साया न करे
- काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
हिज्र की धूप में छाओं जैसी बातें करते हैं
आँसू भी तो माओं जैसी बातें करते हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
होंटों पे हँसी की धूप खिले माथे पे ख़ुशी का ताज रहे
कभी जिस की जोत न हो फीकी तुझे ऐसा रूप-सिंघार मिले
- साहिर लुधियानवी
ये रोशनी लक़ीर के बाहर चली गयी
- बशीर बद्र
अपनी क़िस्मत में लिखी थी धूप की नाराज़गी
साया-ए-दीवार था लेकिन पस-ए-दीवार था
- राहत इंदौरी
अपने साए को इतना समझाने दे
मुझ तक मेरे हिस्से की धूप आने दे
- वसीम बरेलवी
अब 'इंशा'-जी को बुलाना क्या अब प्यार के दीप जलाना क्या
जब धूप और छाया एक से हों जब दिन और रात बराबर हो
- इब्न-ए-इंशा
अब की सर्दी में कहाँ है वो अलाव सीना
अब की सर्दी में मुझे ख़ुद को जलाना होगा
- नईम सरमद
अब शहर-ए-आरज़ू में वो रानाइयाँ कहाँ
हैं गुल-कदे निढाल बड़ी तेज़ धूप है
- साग़र सिद्दीक़ी
अभी अभी थी धूप, बरसने लगा कहाँ से यह पानी
किसने फोड़ घड़े बादल के की है इतनी शैतानी।
- सुभद्रा कुमारी चौहान
अभी तक जिस को अपनाया नहीं था
वो सिर्फ़ इक धूप थी साया नहीं था
- रज़ा अमरोहवी
'अल्वी' ये मो'जिज़ा है दिसम्बर की धूप का
सारे मकान शहर के धोए हुए से हैं
- मोहम्मद अल्वी
आँखों में चुभ रही है गुज़रती रुतों की धूप
जल्वा दिखाए अब तो नए मौसमों की धूप
- नासिर ज़ैदी
आग ओढ़े था मगर बाँट रहा था साया
धूप के शहर में इक तन्हा शजर ऐसा था
- राहत इंदौरी
आज कुछ ऐसे शोले भड़के बारिश के हर क़तरे से
धूप पनाहें माँग रही है भीगे हुए दरख़्तों में
- कैफ़ अहमद सिद्दीकी
इक ख़्वाब-गूँ सी धूप थी ज़ख़्मों की आँच में
इक साएबाँ सा दर्द की पुरवाइयों में था
- अदा जाफ़री
इक चील एक मुम्टी पे बैठी है धूप में
गलियाँ उजड़ गई हैं मगर पासबाँ तो है
- मुनीर नियाज़ी
इक धूप से उलझा हुआ साया है कि मैं हूँ
इक शाम के होने का भरोसा है कि तुम हो
- अहमद सलमान
इक नई धूप में फिर अपना सफ़र जारी है
वो घना साया फ़क़त तिफ़्ल-ए-तसल्ली निकला
- साक़ी फ़ारुक़ी
इक पटरी पर सर्दी में अपनी तक़दीर को रोए
दूजा ज़ुल्फ़ों की छाँव में सुख की सेज पे सोए
- हबीब जालिब
इक बार जिसे चाट गई धूप की ख़्वाहिश
फिर शाख़ पे उस फूल को खिलते नहीं देखा
- परवीन शाकिर
इन ठिठुरती उँगलियों को इस लपट पर सेंक लो
धूप अब घर की किसी दीवार पर होगी नहीं
- दुष्यंत कुमार
इस उफुक् से उस उफूक तक धूप मेरी मुमल्कत
तेरे क़ब्जे में बस एक साए का टुकड़ा रह गया
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
इस कड़ी धूप में साया कर के
तू कहाँ है मुझे तन्हा कर के
- नसीर तुराबी
इस दश्त-ए-सुख़न में कोई क्या फूल खिलाए
चमकी जो ज़रा धूप तो जलने लगे साए
- हिमायत अली शाएर
इस बार इंतिज़ाम तो सर्दी का हो गया
क्या हाल पेड़ कटते ही बस्ती का हो गया
- नोमान शौक़
इस रूमाल को काम में लाओ अपनी पलकें साफ़ करो
मैला मैला चाँद नहीं है धूल जमी है आँखों में
- बशीर बद्र
उठो कि ओस की बूँदें जगा रही हैं तुम्हें
चलो कि धूप दरीचों में आ के बैठ गई
- मुनव्वर राना
उड़ गया तो शाख़ का सारा बदन जलने लगा
धूप रख ली थी परिंदे ने परों के दरमियाँ
- बशीर फ़ारूक़ी
उन से मिलने का बहाना नहीं मिलता कोई
धूप ही मिलती है साया नहीं मिलता कोई
- सिद्धार्थ सैनी साद
उस के जमाल का था दिन मेरा वजूद और फिर
सुब्ह से धूप भी गई रात से चाँदनी गई
- जौन एलिया
उस को ज़ख़्म मिले दुनिया में जिस ने माँगे ताज़ा फूल
जिस ने चाही छाँव की छतरी उस के सर पर छाई धूप
- नौबहार साबिर
उस को भी मेरी तरह अपनी वफ़ा पर था यक़ीं
वो भी शायद इसी धोके में मिला था मुझ को
- भारत भूषण पन्त
उस ज़ाविए से देखिए आईना-ए-हयात
जिस ज़ाविए से मैं ने लगाया है धूप में
- ताहिर फ़राज़
उस नार में ऐसा रूप न था जिस रूप से दिन की धूप दबे
इस शहर में क्या क्या गोरी है महताब-रुख़े गुलनार-लबे
- इब्न-ए-इंशा
ए मिरे हम-सफ़रो तुम भी थके-हारे हो
धूप की तुम तो मिलावट न करो छाँव में
- क़तील शिफ़ाई
एक बच्चा डगमगा कर गिर पड़ा
धूप सुखलाती रही पर लान पर
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
ऐ दोपहर की धूप बता क्या जवाब दूँ
दीवार पूछती है कि साया किधर गया
- उम्मीद फ़ाज़ली
कब तलक यूँ धूप छाँव का तमाशा देखना
धूप में फिरना घने पेड़ों का साया देखना
- अनवर मसूद
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
- अख़्तर होशियारपुरी
कब धूप चली शाम ढली किस को ख़बर है
इक उम्र से मैं अपने ही साए में खड़ा हूँ
- अख़्तर होशियारपुरी
कभी दहकती कभी महकती कभी मचलती आई धूप
हर मौसम में आँगन आँगन रूप बदल कर छाई धूप
- नौबहार साबिर
कभी साया है कभी धूप मुक़द्दर मेरा
होता रहता है यूँ ही क़र्ज़ बराबर मेरा
- अतहर नफ़ीस
कमरे में आ के बैठ गई धूप मेज़ पर
बच्चों ने खिलखिला के मुझे भी जगा दिया
- फ़ज़्ल ताबिश
कहीं छाँव है कहीं धूप है कहीं और ही कोई रूप है
कई चेहरे इस में छुपे हुए इक अजीब सी ये नक़ाब है
- राजेश रेड्डी
कहीं पे धूप की चादर बिछा के बैठ गए
कहीं पे शाम सिरहाने लगा के बैठ गए
- दुष्यंत कुमार
कारवाँ गुज़र गया ग़ुबार देखते रहे
नींद भी खुली न थी कि हाए धूप ढल गई
- गोपालदास नीरज
किस तरह कोई धूप में पिघले है जले है
ये बात वो क्या जाने जो साए में पले है
- कलीम आजिज़
किस ने सहरा में मिरे वास्ते रक्खी है ये छाँव
धूप रोके है मिरा चाहने वाला कैसा
- ज़ेब ग़ौरी
किसी की याद से इस उम्र में दिल की मुलाक़ातें
ठिठुरती शाम में इक धूप का कोना ज़रूरी है
- शोएब बिन अज़ीज़
किसी ज़ुल्फ़ को सदा दो किसी आँख को पुकारो
बड़ी धूप पड़ रही है कोई साएबाँ नहीं है
- मुस्तफ़ा ज़ैदी
कुछ अब के धूप का ऐसा मिज़ाज बिगड़ा है
दरख़्त भी तो यहाँ साएबान माँगते हैं
- मंज़ूर हाशमी
कुछ देर किसी ज़ुल्फ़ के साए में ठहर जाएँ
'क़ाबिल' ग़म-ए-दौराँ की अभी धूप कड़ी है
- क़ाबिल अजमेरी
कुछ पेड़ भी बे-फ़ैज़ हैं इस राहगुज़र के
कुछ धूप भी ऐसी है कि साया नहीं होता
- फ़रहत एहसास
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता
बूँदा-बाँदी भी धूप भी है अभी
- अहमद फ़राज़
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
- अहमद मुश्ताक़
कोई तस्वीर मुकम्मल नहीं होने पाती
धूप देते हैं तो साया नहीं रहने देते
- अहमद मुश्ताक़
कोई नग़्मा धूप के गाँव सा कोई नग़्मा शाम की छाँव सा
ज़रा इन परिंदों से पूछना ये कलाम किस का कलाम है
- बशीर बद्र
कोई फूल धूप की पत्तियों में हरे रिबन से बँधा हुआ
वो ग़ज़ल का लहजा नया नया न कहा हुआ न सुना हुआ
- बशीर बद्र
कोई हे जो बिछा दे धूप को उस पार ले जा कर
उठा तो लाए हैं उस पार तक हम से नहीं उठती
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
कौन जाने कि उड़ती हुई धूप भी
किस तरफ़ कौन सी मंज़िलों में गई
- किश्वर नाहीद
ख़्वाब आईने हैं आँखों में लिए फिरते हो
धूप में चमकेंगे टूटेंगे तो चुभ जाएँगे
- बशीर बद्र
ख़्वाब-गाहों से निकलते हुए डरते क्यूँ हो
धूप इतनी तो नहीं है कि पिघल जाओगे
- इक़बाल अज़ीम
ग़म का सूरज तो डूबता ही नहीं
धूप ही धूप है किधर जाएँ
- सरफ़राज़ दानिश
ग़म लगे रहते हैं हर आन ख़ुशी के पीछे
दुश्मनी धूप की है साया-ए-दीवार के साथ
- क़तील शिफ़ाई
गहरी सोचें लम्बे दिन और छोटी रातें
वक़्त से पहले धूप सरों पे आ पहुँची
- आनिस मुईन
ग़ुर्बत की ठंडी छाँव में याद आई उस की धूप
क़द्र-ए-वतन हुई हमें तर्क-ए-वतन के बाद
- कैफ़ी आज़मी
घर में गुंजाईश ही कब थी पर फैलाने की
दरवाज़े से लौट गईं शर्मिंदा हो कर धूप
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चकरा के गिर न जाऊँ मैं इस तेज़ धूप में
मुझ को ज़रा संभाल बड़ी तेज़ धूप है
- साग़र सिद्दीक़ी
चढ़ते ही धूप शहर के खुल जाएँगे किवाड़
जिस्मों का रहगुज़ार रवानी में आएगा
- इक़बाल साजिद
चले जो धूप में मंज़िल थी उन की
हमें तो खा गया साया शजर का
- उमर अंसारी
चलो धूप से आशनाई करें
ये दीवार का आसरा ठीक नहीं
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
चाँदनी देख के चेहरे को छुपाने वाले
धूप में बैठ के अब बाल सुखाता क्या है
- शहज़ाद अहमद
चांद चीखा रात पागल हो गई है
धूप का गजरा लगाना चाहती है
- संदीप ठाकुर
चेहरों की धूप आँखों की गहराई ले गया
आईना सारे शहर की बीनाई ले गया
- राहत इंदौरी
छटा जहाँ से उस आवाज़ का घना बादल
वहीं से धूप ने तलवे जलाए हैं क्या क्या
- कैफ़ी आज़मी
छत से उस की धूप के नेज़े आते हैं
जब आँगन में छाँव हमारी रहती है
- राहत इंदौरी
छाँव की शक्ल धूप की रंगत बदल गई
अब के वो लू चली है कि सूरत बदल गई
- फ़ारूक़ शफ़क़
छाँव में रख के ही पूजा करो ये मोम के बुत
धूप में अच्छे भले नक़्श बिगड़ जाते हैं
- निदा फ़ाज़ली
जगह जगह सील के ये धब्बे ये सर्द बिस्तर
हमारे कमरे से धूप की बे-रुख़ी तो देखो
- शारिक़ कैफ़ी
जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके
एक तन्हा पेड़ था मेरी तरह जलता हुआ
- वहाब दानिश
जब हिज्र के शहर में धूप उतरी मैं जाग पड़ा तो ख़्वाब हुआ
मिरी सोच ख़िज़ाँ की शाख़ बनी तिरा चेहरा और गुलाब हुआ
- मोहसिन नक़वी
ज़रा ये धूप ढल जाए तो उन का हाल पूछेंगे
यहाँ कुछ साए अपने आप को पैकर बताते हैं
- ख़ुशबीर सिंह शाद
ज़र्द गुलाब और आईनों को चाहने वाली
ऐसी धूप और ऐसा सवेरा फिर नहीं होगा
- सरवत हुसैन
जहाँ डाले थे उस ने धूप में कपड़े सुखाने को
टपकती हैं अभी तक रस्सियाँ आहिस्ता आहिस्ता
- अहमद मुश्ताक़
जाती है धूप उजले परों को समेट के
ज़ख़्मों को अब गिनूँगा मैं बिस्तर पे लेट के
- शकेब जलाली
ज़ाविया धूप ने कुछ ऐसा बनाया है कि हम
साए को जिस्म की जुम्बिश से जुदा देखते हैं
- आसिम वास्ती
ज़िंदगी की ऐ कड़ी धूप बचा ले मुझ को
पीछे पीछे ये मिरे मौत का साया क्या है
- उबैदुल्लाह अलीम
ज़िंदगी की धूप में मुरझा गया मेरा शबाब
अब बहार आई तो क्या अब्र-ए-बहार आया तो क्या
- जौन एलिया
जिस दिन शहर जला था उस दिन धूप में कितनी तेज़ी थी
वर्ना इस बस्ती पर 'अंजुम' बादल रोज़ बरसता था
- अंजुम तराज़ी
जिस धूप की दिल में ठंडक थी वो धूप उसी के साथ गई
इन जलती बलती गलियों में अब ख़ाक उड़ाऊँ किस के लिए
- नासिर काज़मी
जिस्म का बोझ उठाए हुए चलते रहिए
धूप में बर्फ़ की मानिंद पिघलते रहिए
- मेराज फ़ैज़ाबादी
ज़ुल्फ़ ओ रुख़ के साए में ज़िंदगी गुज़ारी है
धूप भी हमारी है छाँव भी हमारी है
- मंज़र भोपाली
जो बादलों से भी मुझ को छुपाए रखता था
बढ़ी है धूप तो बे-साएबान छोड़ गया
- परवीन शाकिर
झुलस रहे हैं यहाँ छाँव बाँटने वाले
वो धूप है कि शजर इल्तिजाएँ करने लगे
- राहत इंदौरी
झूट पर उस के भरोसा कर लिया
धूप इतनी थी कि साया कर लिया
- शारिक़ कैफ़ी
टूटी दीवार का साया भी बहुत होता है
पाँव जल जाएँ अगर धूप में चलते चलते
- इक़बाल अज़ीम
तअ'ल्लुक़ात की गर्मी न ए'तिबार की धूप
झुलस रही है ज़माने को इंतिशार की धूप
- अली अब्बास उम्मीद
तन्हा हुआ सफ़र में तो मुझ पे खुला ये भेद
साए से प्यार धूप से नफ़रत उसे भी थी
- मोहसिन नक़वी
तमाशा ख़त्म हुआ धूप के मदारी का
सुनहरी साँप छुपे शाम के पिटारे में
- इक़बाल साजिद
तारीकियों ने ख़ुद को मिलाया है धूप में
साया जो शाम का नज़र आया है धूप में
- ताहिर फ़राज़
तिरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को
चमकती धूप में साए इकट्ठे कर रहा हूँ मैं
- अहमद मुश्ताक़
तिरे आने का दिन है तेरे रस्ते में बिछाने को
चमकती धूप में साए इकट्ठे कर रहा हूँ मैं
- अहमद मुश्ताक़
तुझे हम दोपहर की धूप में देखेंगे ऐ ग़ुंचे
अभी शबनम के रोने पर हँसी मालूम होती है
- शफ़ीक़ जौनपुरी
तुम को देखा तो ये ख़याल आया
ज़िंदगी धूप तुम घना साया
- जावेद अख़्तर
तुम तो सर्दी की हसीं धूप का चेहरा हो जिसे
देखते रहते हैं दीवार से जाते हुए हम
- नोमान शौक़
तुम्हारी ये अदा ऐसी हे जैसे धूप में बारिश
हमें पहचान भी लेते हो अनजानी भी करते हो
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
तुम्हारे क़द्र से अगर बढ़ रही हो परछाईं
समझ लो धूप का वक़्त-ए-ज़वाल होने लगा
- बेकल उत्साही
तुला है धूप बरसाने पे सूरज
शजर भी छतरियाँ ले कर खड़े हैं
- राहत इंदौरी
तेज़ धूप में आई ऐसी लहर सर्दी की
मोम का हर इक पुतला बच गया पिघलने से
- क़तील शिफ़ाई
दर्द की धूप से चेहरे को निखर जाना था
आइना देखने वाले तुझे मर जाना था
- नसीर तुराबी
दश्त की धूप है जंगल की घनी रातें हैं
इस कहानी में बहर हाल कई बातें हैं
- जावेद नासिर
दश्त-ए-वफ़ा में जल के न रह जाएँ अपने दिल
वो धूप है कि रंग हैं काले पड़े हुए
- होश तिर्मिज़ी
दिन भर तो मैं दुनिया के धंदों में खोया रहा
जब दीवारों से धूप ढली तुम याद आए
- नासिर काज़मी
दिन भर धूप की तरह से हम छाए रहते हैं दुनिया पर
रात हुई तो सिमट के आ जाते हैं दिल की गुफाओं में
- बशीर बद्र
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
ये बात भूलने में ज़माना लगा मुझे
- असग़र मेहदी होश
दीवार उन के घर की मिरी धूप ले गई
ये बात भूलने में ज़माना लगा मुझे
- होश जौनपुरी
दूर तक मिलता नहीं है उस में आशिक़ का वजूद
इश्क़ ऐसी धूप है जिस में कोई साया नहीं
- अर्पित शर्मा अर्पित
दो ही मौसम थे धूप या बारिश
छतरियों की दुकान चलती रही
- फ़हमी बदायूनी
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी
दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
- हसरत मोहानी
धुप हूँ, साया-ए-दीदार से डर जाता हूँ
तुझसे मिलता हूँ तो कुछ और बिखर जाता हूँ
- जाजिब कुरैशी
धूप इतनी है बंद हुई जाती है आँख
और पलक झपकूँ तो मंज़र जाता है
- ज़ेब ग़ौरी
धूप और छाँव बाँट के तुम ने आँगन में दीवार चुनी
क्या इतना आसान है ज़िंदा रहना इस आसाइश पर
- गुलज़ार
धूप कहती ही रही मैं धूप हूँ मैं धूप हूँ
अपने साए पर भरोसा देखने की चीज़ थी
- लियाक़त अली आसिम
धूप की गरमी से ईंटें पक गईं फल पक गए
इक हमारा जिस्म था अख़्तर जो कच्चा रह गया
- अख़्तर होशियारपुरी
धूप की रुत में कोई छाँव उगाता कैसे
शाख़ फूटी थी कि हम-सायों में आरे निकले
- परवीन शाकिर
धूप के क़हर का डर है तो दयार-ए-शब से
सर-बरहना कोई परछाईं निकलती क्यूँ है
- शहरयार
धूप के दश्त में कितना वो हमें ढूँडता था
'ए'तिबार' उस के लिए अब्र की सूरत हम थे
- ऐतबार साजिद
धूप को हे ये निदामत कैसी
क्यों सिसकती हे घटा देखा जाए
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
धूप थी नसीब में धूप में लिया है दम
चाँदनी मिली तो हम चाँदनी में सो लिए
- मजरूह सुल्तानपुरी
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी
धूप ने गुज़ारिश की
एक बूँद बारिश की
- मोहम्मद अल्वी
धूप ने, जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें
इन दरख्तों की कहानी आँधियों को क्या पता
- ओमप्रकाश यती
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा
साया-ए-दीवार भी दीवार से
- बहराम तारिक़
धूप बढ़ते ही जुदा हो जाएगा
साया-ए-दीवार भी दीवार से
- बहराम तारिक़
धूप बोली कि मैं आबाई वतन हूँ तेरा
मैं ने फिर साया-ए-दीवार को ज़हमत नहीं दी
- फ़रहत एहसास
धूप मुझ को जो लिए फिरती है साए साए
है तो आवारा मगर ज़ेहन में घर रखती है
- ताहिर फ़राज़
धूप में कौन किसे याद किया करता है
पर तिरे शहर में बरसात तो होती होगी
- अमीर इमाम
धूप में दीवार ही काम आएगी
तेज़ बारिश का सहारा और है
- परवीन शाकिर
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो
ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो
- निदा फाजली
धूप में साया बने तन्हा खड़े होते हैं
बड़े लोगों के ख़सारे भी बड़े होते हैं
- अज़हर फ़राग़
धूप से चेहरों ने दुनिया में
क्या अंधेर मचा रक्खा है
- नासिर काज़मी
धूप हालात की हो तेज़ तो और क्या माँगो
किसी दामन की हवा ज़ुल्फ़ का साया माँगो
- आसी रामनगरी
धूप ही धूप हूँ मैं टूट के बरसो मुझ पर
इस क़दर बरसो मिरी रूह में जल-थल कर दो
- वसी शाह
नक़ाब-ए-रुख़ उठाया जा रहा है
वो निकली धूप साया जा रहा है
- माहिर-उल क़ादरी
नदी ने धूप से क्या कह दिया रवानी में
उजाले पाँव पटकने लगे हैं पानी में
- राहत इंदौरी
नश्शा तो मौत है ग़म-ए-हस्ती की धूप में
बिखरा के ज़ुल्फ़ साथ चलो मैं नशे में हूँ
- साग़र सिद्दीक़ी
निगाह-ए-नाज़ कुछ उन की भी है ख़बर तुझ को
जो धूप में हैं मगर बदलियाँ बनाते हैं
- अहमद मुश्ताक़
नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागा
धूप दीवार से आँगन में उतर आई है
- सरशार सिद्दीक़ी
पलकों पे कच्ची नींदों का रस फैलता हो जब
ऐसे में आँख धूप के रुख़ कैसे खोलिए
- परवीन शाकिर
पानी ने जिसे धूप की मिट्टी से बनाया
वो दाएरा-ए-रब्त बिगड़ने के लिए था
- हनीफ़ तरीन
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
- बशीर बद्र
फिर याद बहुत आएगी ज़ुल्फ़ों की घनी शाम
जब धूप में साया कोई सर पर न मिलेगा
- बशीर बद्र
फैलती धूप का है रूप लड़कपन का उठान
दोपहर ढलते ही उतरेगा ये चढ़ता पानी
- आरज़ू लखनवी
बंद कमरे खोल कर सच्चाइयाँ रहने लगीं
ख़्वाब कच्ची धूप थे दालान में रक्खे रहे
- राहत इंदौरी
बदन चुराते हुए रूह में समाया कर
मैं अपनी धूप में सोया हुआ हूँ साया कर
- साक़ी फ़ारुक़ी
बदल जाएगा सब कुछ बादलों से धूप चटख़ेगी
बुझी आँखों में कोई ख़्वाब जलते मैंने देखा है
- आलोक श्रीवास्तव
बनाओ साए हरारत बदन में जज़्ब करो
कि धूप सह्न में कब से यूँही पड़ी हुई है
- इरफ़ान सत्तार
बस्ती बस्ती पर्बत पर्बत वहशत की है धूप 'ज़िया'
चारों जानिब वीरानी है दिल का इक वीराना क्या
- अहमद ज़िया
बाहर का धन आता जाता अस्ल ख़ज़ाना घर में है
हर धूप में जो मुझे साया दे वो सच्चा साया घर में है
- उबैदुल्लाह अलीम
बूढ़े बाजू टूट चुके थे घर का चूल्हा ठंडा था
आंगन में देखा तो बैठी कांप रही थी थर थर धूप
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मरकज़ पे अपने धूप सिमटती है जिस तरह
यूँ रफ़्ता रफ़्ता तेरे क़रीब आ रहा हूँ मैं
- सीमाब अकबराबादी
मिरे साए में उस का नक़्श-ए-पा है
बड़ा एहसान मुझ पर धूप का है
- फ़हमी बदायूनी
मिरे साए में उस का नक़्श-ए-पा है
बड़ा एहसान मुझ पर धूप का है
- फ़हमी बदायूनी
मिरे साथ चलने के शौक़ में बड़ी धूप सर पे उठाएगा
तिरा नाक नक़्शा है मोम का कहीं ग़म की आग घुला न दे
- बशीर बद्र
मुझे अपने रूप की धूप दो कि चमक सकें मिरे ख़ाल-ओ-ख़द
मुझे अपने रंग में रंग दो मिरे सारे रंग उतार दो
- ऐतबार साजिद
मुझे नवम्बर की धूप की तरह मत चाहो
कि इस में डूबो तो तमाज़त में नहा जाओ
- किश्वर नाहीद
मुद्दत से इक लड़की के रुख़्सार की धूप नहीं आई
इस लिए मेरे कमरे में इतनी ठंडक रहती है
- बशीर बद्र
मुबारक तुम्हें पर्चम वो तख्तों ताज
मेरी धूप और बोरिया छोड़ दो
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मुसलसल धूप में चलना चराग़ों की तरह जलना
ये हंगामे तो मुझ को वक़्त से पहले थका देंगे
- अनवर जलालाबादी
मुसाफिरों के लिए छांव अपने सिर पर धूप
यहां भी कौन सा आराम है शजर बन कर
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
में मुसाफ़िर नवाज़ों का मारा हुआ
बीज बोता रहा उम्र भर धूप में
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मेज पर खेलता हुआ बच्चा
धूप निकली तो लान पर आया
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मेज़ पर गेंद खेलता बच्चा
धूप निकली तो लॉन पर आया
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मेरे पड़ोस की सब खिड़कियां चुनी जाएं
ज़रा सी धूप अगर मेरे घर में आ जाए
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
मैं धूप में जल के इतना काला नहीं हुआ था
कि जितना इस रात मैं सुलग के सियह हुआ हूँ
- गुलज़ार
मैं ने ऐ सूरज तुझे पूजा नहीं समझा तो है
मेरे हिस्से में भी थोड़ी धूप आनी चाहिए
- राहत इंदौरी
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया
- अहमद मुश्ताक़
मैं बारिशों में बहुत भीगता रहा 'आबिद'
सुलगती धूप में इक छत बहुत ज़रूरी है
- आबिद वदूद
यह धूप तो धोखे से चली आई है उस को
दोबारा मेरे घर में दिखाई नहीं देना
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
यहाँ दरख़्तों के साए में धूप लगती है
चलें यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए
- दुष्यंत कुमार
याद की धूप तो है रोज़ की बात
हाँ मुझे चाँदनी से ख़तरा है
- जौन एलिया
यूँ किस तरह कटेगा कड़ी धूप का सफ़र
सर पर ख़याल-ए-यार की चादर ही ले चलें
- नासिर काज़मी
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
- हसीब सोज़
ये इंतिक़ाम है या एहतिजाज है क्या है
ये लोग धूप में क्यूँ हैं शजर के होते हुए
- हसीब सोज़
ये इक कमी कि जो अब ज़िंदगी सी लगती है
हमारी धूप में वो साएबान भी पड़ता
- अभिषेक शुक्ला
ये कह के दिल ने मिरे हौसले बढ़ाए हैं
ग़मों की धूप के आगे ख़ुशी के साए हैं
- माहिर-उल क़ादरी
ये क्या कि रोज़ वही चाँदनी का बिस्तर हो
कभी तो धूप की चादर बिछा के सो लेते
- बशीर बद्र
ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी
क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया
- अतहर नफ़ीस
ये धूप तो हर रुख़ से परेशान करेगी
क्यूँ ढूँड रहे हो किसी दीवार का साया
- अतहर नफ़ीस
रस्ता भी कठिन धूप में शिद्दत भी बहुत थी
साए से मगर उस को मोहब्बत भी बहुत थी
- परवीन शाकिर
रहा जो धूप में सर पर मिरे वही आँचल
हवा चली है तो कितना बदलता जाता है
- नोशी गिलानी
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे
धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में
- गुलज़ार
रोज़ जब धूप पहाड़ों से उतरने लगती
कोई घटता हुआ बढ़ता हुआ बेकल साया
- अहमद फ़राज़
लगी रहती है अश्कों की झड़ी गर्मी हो सर्दी हो
नहीं रुकती कभी बरसात जब से तुम नहीं आए
- अनवर शऊर
लफ़्ज़ तो लफ़्ज़ यहाँ धूप निकल आती है
तेरी आवाज़ की बारिश में नहाने के लिए
- अब्बास ताबिश
लहू रुलाएगा वो धूप छाँव का मंज़र
नज़र उठाऊँगा जिस सम्त झुटपुटा होगा
- रियाज़ मजीद
लोग पीपल के दरख़्तों को ख़ुदा कहने लगे
मैं ज़रा धूप से बचने को इधर आया था
- राहत इंदौरी
वक़्त की धूप में तुम्हारे लिए
शजर-ए-साया-दार थे हम तो
- जौन एलिया
वर्ना धूप का पर्बत किस से कटता था
उस ने छतरी खोल के रस्ते खोले हैं
- तहज़ीब हाफ़ी
वो और होंगे जो कार-ए-हवस पे ज़िंदा हैं
मैं उस की धूप से साया बदल के आया हूँ
- अकबर मासूम
वो ज़ुल्फ़ धूप में फ़ुर्क़त की आई है जब याद
तो बादल आए हैं और शामियाने हो गए हैं
- जौन एलिया
वो तपिश है कि जल उठे साए
धूप रक्खी थी साएबान में क्या
- ख़ालिदा उज़्मा
वो धूप के छप्पर हों या छाँव की दीवारें
अब जो भी उठाएँगे मिल जुल के उठाएँगे
- बशीर बद्र
वो फ़ासला था दुआ और मुस्तजाबी में
कि धूप माँगने जाते तो अब्र आ जाता
- परवीन शाकिर
वो मुझ को आज़मा के कड़ी धूप में रहा
मुझ को ख़िज़ाँ बहार लगी इम्तिहान की
- अशोक मिज़ाज
वो मुसाफ़िर ही खुली धूप का था
साए फैला के शजर क्या करते
- परवीन शाकिर
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
- मुसव्विर सब्ज़वारी
वो सर्दियों की धूप की तरह ग़ुरूब हो गया
लिपट रही है याद जिस्म से लिहाफ़ की तरह
- मुसव्विर सब्ज़वारी
वो हम-सफ़र था मगर उस से हम-नवाई न थी
कि धूप छाँव का आलम रहा जुदाई न थी
- नसीर तुराबी
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है
- शकील जमाली
शदीद गर्मी में कैसे निकले वो फूल-चेहरा
सो अपने रस्ते में धूप दीवार हो रही है
- शकील जमाली
शदीद धूप में सारे दरख़्त सूख गए
बस इक दुआ का शजर था जो बे-समर न हुआ
- अलीना इतरत
शबनमी में धूप की जैसे वतन का ख़्वाब था
लोग ये समझे मैं सब्ज़े पर पड़ा सोता रहा
- बशीर बद्र
शाख़ पर शब की लगे इस चाँद में है धूप जो
वो मिरी आँखों की है सो वो समर मेरा भी है
- स्वप्निल तिवारी
शौक़ चढ़ती धूप जाता वक़्त घटती छाँव है
बा-वफ़ा जो आज हैं कल बे-वफ़ा हो जाएँगे
- आरज़ू लखनवी
सड़कें तमाम धूप से अंगारा हो गईं
अंधी हवाएँ चलती हैं इन पर बरहना-पा
- आदिल मंसूरी
सदियाँ जिन में ज़िंदा हों वो सच भी मरने लगते हैं
धूप आँखों तक आ जाए तो ख़्वाब बिखरने लगते हैं
- अमजद इस्लाम अमजद
सदियों से इंसान ये सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है
- साहिर लुधियानवी
सफ़र की धूप में चेहरे सुनहरे कर लिए हम ने
वो अंदेशे थे रंग आँखों के गहरे कर लिए हम ने
- साक़ी फ़ारुक़ी
सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो
- निदा फ़ाज़ली
सफ़र में सोचते रहते हैं छाँव आए कहीं
ये धूप सारा समुंदर ही पी न जाए कहीं
- मोहम्मद अल्वी
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता
- वसीम बरेलवी
साए अपने साथ ले आते हैं आलाइश बहुत
हम ने घर में धूप की रखी है गुंजाइश बहुत
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
सारा दिन तपते सूरज की गर्मी में जलते रहे
ठंडी ठंडी हवा फिर चली सो रहो सो रहो
- नासिर काज़मी
सुंदर कोमल सपनों की बारात गुज़र गई जानाँ
धूप आँखों तक आ पहुँची है रात गुज़र गई जानाँ
- परवीन शाकिर
हम को दिल ने नहीं हालात ने नज़दीक किया
धूप में दूर से हर शख़्स शजर लगता है
- अब्बास ताबिश
हम ख़ुश हैं हमें धूप विरासत में मिली है
अज्दाद कहीं पेड़ भी कुछ बो गए होते
- शहरयार
हम तिरे साए में कुछ देर ठहरते कैसे
हम को जब धूप से वहशत नहीं करनी आई
- आबिदा करामत
हम ने धूप का हाथ न छोड़ा
छांव बिछी थी बिस्तर जैसी
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप
और ये रात अपनी चादर है
- आबिद वदूद
हमारे मुँह पे उस ने आइने से धूप तक फेंकी
अभी तक हम समझ कर उस को बच्चा छोड़ देते हैं
- मोहम्मद आज़म
हमें जला नहीं सकती है धूप हिजरत की
हमारे सर पे ज़रूरत का शामियाना है
- सय्यद सरोश आसिफ़
हर आँगन में आए तेरे उजले रूप की धूप
छैल-छबेली रानी थोड़ा घूँघट और निकाल
- क़तील शिफ़ाई
हर तरफ़ धूप की चादर को बिछाने वाला
काम पर निकला है दुनिया को जगाने वाला
- साजिद प्रेमी
हाल पूछा न करे हाथ मिलाया न करे
मैं इसी धूप में ख़ुश हूँ कोई साया न करे
- काशिफ़ हुसैन ग़ाएर
हिज्र की धूप में छाओं जैसी बातें करते हैं
आँसू भी तो माओं जैसी बातें करते हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
होंटों पे हँसी की धूप खिले माथे पे ख़ुशी का ताज रहे
कभी जिस की जोत न हो फीकी तुझे ऐसा रूप-सिंघार मिले
- साहिर लुधियानवी