घर जलेंगे उनसे इक दिन तीलियों को क्या पता
घर जलेंगे उनसे इक दिन तीलियों को क्या पताहै नज़र उन पर किसी की बस्तियों को क्या पता
ढूँढ़ती हैं आज भी पहली सी रंगत फूल में
ज़हर कितना है हवा में तितलियों को क्या पता
हाल क्या है ? ठीक है, जब भी मिले इतना हुआ
किसके अन्दर दर्द क्या है, साथियों को क्या पता
धूप ने, जल ने, हवा ने किस तरह पाला इन्हें
इन दरख्तों की कहानी आँधियों को क्या पता
जाएगा उनके सहारे ही शिखर तक आदमी
फिर गिरा देगा उन्हें ही सीढ़ियों को क्या पता
वो गुज़र जाती हैं यूँ ही रास्तों को काटकर
अपशकुन है ये किसी का, बिल्लियों को क्या पता
हौसले के साथ लहरों की सवारी कर रहीं
कब कहाँ तूफ़ान आए कश्तियों को क्या पता
वो तो अपना घर समझकर कर रहीं अठखेलियाँ
जाल फैला है नदी में मछलियों को क्या पता - ओमप्रकाश यती
ghar jalenge unke ik din tiliyon ko kya pata
ghar jalenge unke ik din tiliyon ko kya patahai nazar un par kisi ki bastiyon ko kya pata
dhundhti hai aaj bhi pahli si rangat phool mein
zahar kitna hai hawa mein titliyon ko kya pata
haal kya hai? theek hai, jab bhi mile itna hua,
kiske andar dard kya hai, sathiyon ko kya pata
dhoop ne, jal ne, hawa ne kis tarah pala inhe
in darkhto ki kahani aandhiyon ko kya pata
jaega unke sahare hi shikhar tak aadmi
phir gira dega unhe hi sidhiyon ko kya pata
wo gujar jati hai hun hi rasto ko katkar
apshakun hai ye kisi ka, billiyon ko kya pata
hauslo ke sath lahro ki sawari kar rahi
kab kahan tufan aae kashtiyon ko kya pata
wo to apna ghar samjhakar kar athkheliyan
jaal faila hai nadi mein machhliyon ko kya pata - Omprakash Yati