धुप हूँ, साया-ए-दीदार से डर जाता हूँ
धुप हूँ, साया-ए-दीदार से डर जाता हूँतुझसे मिलता हूँ तो कुछ और बिखर जाता हूँ
सहिलो पर मुझे आवाज न देना कोई
आग जिस सिम्त लगी हो मै उधर जाता हूँ
तू नहीं है तो ख्यालो के अजब मौसम है
जाने किस सोच में चलता हूँ ठहर जाता हूँ
आसमा-रंग समुन्दर है तआकुब में मेरे
प्यास लगती है तो सहरा में उतर जाता हूँ
रूह जलती है बहूँत जिस्म पिघलता है बहूँत
और मै शहर के जंगल से गुजर जाता हूँ
किसकी आँखों ने मेरे अक्स पहन रखे है
खुद से मिलना हो तो उस शख्स के घर जाता हूँ - जाजिब कुरैशी
Dhoop hu, sayae-deedar se dar jata hu
Dhoop hu, sayae-deedar se dar jata hutujhse milta hu to kuch aur bikhar jata hu
sahilo par mujhe awaj n dena koi
aag jis simt lagi ho mai udhar jata hu
tu nahi hai to khayalo ke ajab mousam hai
jane kis soch me chalta hu thahar jata hu
aasama-rang samundar hai taakub me mere
pyas lagti hai to sahra me utar jata hu
ruh jalati hai bahut jism pighlata hai bahut
aur mai shahar ke jangal se gujar jata hu
kiski aankho ne mere aks pahan rakhe hai
khud se milna ho to us shakhs ke ghar jata hu - Jazib Qureshi