अपनी उदास धूप तो घर-घर चली गयी - बशीर बद्र

अपनी उदास धूप तो घर-घर चली गयी ये रोशनी लक़ीर के बाहर चली गयी - बशीर बद्र

अपनी उदास धूप तो घर-घर चली गयी

अपनी उदास धूप तो घर-घर चली गयी
ये रोशनी लक़ीर के बाहर चली गयी

नीला-सफ़ेद कोट-जमीं पर बिछा दिया
फिर मुझको आसमान पे लेकर चली गयी

कब तक झुलसती रेत पे चलती तुम्हारे साथ
दरिया की मौज, दरिया के अन्दर चली गयी

हम लोग ऊँचे पोल के निचे खड़े रहे
उल्टा था बल्ब रोशनी ऊपर चली गयी

लहरों ने घेर रखा था सारे मकान को
मछली किधर से कमरे के अन्दर चली गयी - बशीर बद्र


apni udaas dhoop to ghar-ghar chali gayi

apni udaas dhoop to ghar-ghar chali gayi
ye roshni lakeer ke bahar chali gayi

neela-safed kot-zameen par bichha diya
phir usko aasmaan pe lekar chali gayi

kab tak jhulsati ret pe chalti tumhare saath
dariya ki moz, dariya ke andar chali gayi

ham log unche pole ke niche khade rahe
ulta tha bulb roshni upar chali gayi

lahro ne gher rakha sare makaan ko
machhli kidhar se kamre ke andar chali gayi - Bashir Badra

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