पतंग और पतंगबाजी पर कुछ बेहतरीन शेर | संक्रांति शायरी
अज़ीज़ क़द्रों पे जाँ-कनी की गिरफ़्त मज़बूत हो गई है
पतंग की तरह कट चुके हैं तमाम रिश्ते
- मज़हर इमाम
अब तो रखा है काट हमारा ये आप ने
ग़ैरों से मिल पतंग उड़ाते हो जब न तब
- वलीउल्लाह मुहिब
अब हैं सौ- सौ ख़्वाहिशें जीवन तेरे संग
बचपन तक अच्छी लगीं तितली और पतंग
- फ़ारूक़ इंजीनियर
आई हुई गिरफ़्त में है गर्द-बाद की
अब जंगलों में जा के गिरेगी पतंग ये
- नसीम सहर
आता है क्या नज़र उसे शोले में शम्अ के
देता है जान-बूझ के क्यूँ अपना जी पतंग
- मीर हसन
इतनी भी पतंग पेश-क़दमी!
गर शाम नहीं सहर गए हम
- मोहम्मद रफ़ी सौदा
इश्क़ कहता है कि सर-रिश्ता दिल का मेरे हाथ
जूँ पतंग इक दिन कटा कर मैं लुटा दूँ तो सही
- मोहम्मद अमान निसार
उड़ रहे हैं शहर में पतंग रंग रंग
जगमगा उठा गगन बसंत आ गई
- नासिर काज़मी
उड़ती हुई पतंग के मानिंद मैं भी हूँ
मज़बूत एक डोर से लेकिन बँधा हुआ
- हसन निज़ामी
उन की हसरत है उड़ें वो अर्श पर बन कर पतंग
और फिर उन को संभालूँ बन के मैं इक डोर सा
- संजय शर्मा 'तल्ख़'
उलझ रही है नई डोर नर्म हाथों से
पतंग शाख़-ए-शजर पर अड़े हुए हैं कहीं
- शाहीन मुफ़्ती
उस शम्अ-रू ने अपने शहीदों की जूँ पतंग
गड़ने न दीं ज़मीन में लाशें जलाइयाँ
- बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
उसे था शौक़ बहुत आसमान छूने का
ये कट गई थी हमारी पतंग क्या करते
- मंज़ूर नदीम
उस्तुख़ाँ-बंदी-ए-तन-ए-मजनूँ
अपनी नज़रों में है पतंग का ढाँच
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
एक उजली उमंग उड़ाई थी
हम ने तुम ने पतंग उड़ाई थी
- अफ़ज़ाल नवेद
एक पतंग उड़ती है मेरी सोच में रोज़
डोर लिए वो पस-मंज़र में रहता है
- फ़रहत ज़ाहिद
कई पतंग की सूरत ख़ला में डूब गया
वो जितना तेज़ था इतना ही ला-उबाली था
- फ़रहत क़ादरी
कटी पतंग की मानिंद डोलते हो तुम
मुझे वतन से निकाले गए लगे हो तुम
- मुनीर अनवर
कटी पतंग सी अटकी हूँ शाख़-ए-नाज़ुक पर
हवा का हाथ भी करता है तार तार मुझे
- फ़ौज़िया शेख़
कटी पतंग हूँ मैं और बे-सहारा हूँ
मुझे कहा नहीं उस ने कि मैं तुम्हारा हूँ
- बीना गोइंदी
कभी ये आँखें ख़ुद भी उड़ा करती थीं पतंग के साथ
दूर दरीचे से होते थे इशारे हैरत वाले
- जमाल एहसानी
कल अगर इक है पतंग, आज बने उस की डोर
है असर कल का वक़्त-ए-हाल पे ऐसा पुर-ज़ोर
- आदित्य पंत नाक़िद
कल पतंग उस ने जो बाज़ार से मँगवा भेजा
सादा माँझे का उसे माह ने गोला भेजा
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
कहीं फ़लक पे सरकती है सरसराती हुई
कहीं दिलों की फ़ज़ा में पतंग उड़ती है
- ज़फ़र इक़बाल
काटती है पतंग ग़ैरों की
हम से तक्कल तिरे उड़ा न करे
- कल्ब-ए-हुसैन नादिर
कूचा-ब-कूचा फिरते हैं अब इस तरह 'बशर'
भटके है जैसे हाथ से टूटी हुई पतंग
- बशर नवाज़
कैसे कह दूँ ख़ामुशी से और ऊँचा कर मुझे
मैं मोहब्बत की पतंग कटने लगी हूँ शोर से
- उज़्मा नक़वी
कैसे कहूँ क्या हाल हुआ ख़ार-ज़ार में
दिल की पतंग जब से गई दस्त-ए-यार में
- मुख़लिस मुसव्विरी
कोठे पर चढ़ के उड़ाया न करें आप पतंग
डोरे डालें न कहीं यार उड़ाने वाले
- दत्तात्रिया कैफ़ी
कोठों पे मुँह-अँधेरे सितारे उतर पड़े
बन के पतंग मैं भी हवा में उड़ा किया
- मोहम्मद अल्वी
क्या अजब है जो दिया जान को यकबार पतंग
ता-सहर शम्अ कूँ जलने सेती फ़ुर्सत नीं है
- दाऊद औरंगाबादी
क्या आसमाँ उठाते मोहब्बत में जब कि दिल
तार-ए-निगह में उलझी हुई इक पतंग था
- अमीर हम्ज़ा साक़िब
ख़त आप भेजेंगे मुझ को पतंग पर लिख कर
ये डोरे जाते हुए हैं उड़ाइए न मुझे
- पंडित दया शंकर नसीम लखनवी
गर्दन पे जिस की कितनी पतंगों का ख़ून था
मुद्दत हुई पतंग हमारी वो कट गई
- मुज़्तर मजाज़
गर्म-रौ राह-ए-फ़ना का नहीं हो सकता पतंग
उस से तो शम्अ-नमत सर भी कटाया न गया
- मीर तक़ी मीर
गिरेगी कौन सी छत पे ये कब किसे मालूम
कटी पतंग हवाओं के इम्तिहान में है
- ग़नी एजाज़
घर के माँझे की डोरी छत पतंग और बच्चा
अब कहाँ ये मिलते हैं चरखियों के पहलू में
- जावेद उल्फ़त
चढ़े हैं काटने वालों पे लूटने वाले
इसी हुजूम-ए-बला में पतंग उड़ती है
- ज़फ़र इक़बाल
चराग़-ए-दाग़ दिल-ए-सोख़्ता जो हो रौशन
पतंग फिर कहीं आँखों को सेंकता न फिरे
- मीर शम्सुद्दीन फ़ैज़
चल दिला वो पतंग उड़ाता है
अभी आने में उस के ढील सी है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
चले मक़्तल की जानिब और छाती खोल दी हम ने
बढ़ाने पर पतंग आए तो चर्ख़ी खोल दी हम ने
- मुनव्वर राना
जब तक है डोर हाथ में तब तक का खेल है,
देखी तो होंगी तुम ने पतंगें कटी हुई।
- मुनव्वर राना
जब से पतंग हूँ मैं तिरे शम्अ-रू का यार
मालूम था न तुझ को उड़ाना पतंग का
- मातम फ़ज़ल मोहम्मद
जला दिया जो पतंग अब न रो हुआ सो हुआ
ऐ शम्अ' सुब्ह को जो हो सो हो हुआ सो हुआ
- वली उज़लत
जश्न-ए-मुरव्वत में लोगों की ऊँची उड़ी पतंग
मर्ग-ए-मुरव्वत में उन सब का 'अनवर' रोया नाम
- अनवर सदीद
जाओ बारिश का एहतिमाम करो
अब्र-ए-आवारा से पतंग बनाओ
- मोहम्मद अनवर ख़ालिद
डरो अपने जी की उमंग से
कटे क्यूँ निगाह पतंग से
- महबूब ख़िज़ां
डोर औरों की हथेली में रखी है हम ने
ज़िंदगी तेरी पतंग हम से उड़ाई न गई
- रासिख़ शाहिद
डोर, चरखी, पतंग सब कुछ था,
उसके घर की तरफ हवा न चली
- फ़हमी बदायूनी
तवाफ़-ए-सोख़्ता-ए-इश्क़ देख ले ऐ शम्अ
करे है जलने से आगे पतंग-ए-मफ़्तूँ रक़्स
- वली उज़लत
तुझ को पतंग उड़ाते देखा जो आशिक़ों ने
कट मर के बैठे अक्सर घर-वर लुटा लुटा कर
- वलीउल्लाह मुहिब
तुम पतंग बन के हवाओं में तैरती फिरो
और डोर मिरे हाथों को काटती रहे
- फ़हीम जोज़ी
तेरे हाथों में डोर है या दिल
हो गया हूँ पतंग या कुछ और
- इफ़्तिख़ार राग़िब
दम-ए-सुब्ह बज़्म-ए-ख़ुश जहाँ शब-ए-ग़म से कम न थी मेहरबाँ
कि चराग़ था सो तू दूद था जो पतंग था सो ग़ुबार था
- मीर तक़ी मीर
दाना-ए-इश्क़ बो रहा है पतंग
सोख़्ता गरचे है ज़मीन-ए-शम्अ'
- किशन कुमार वक़ार
दिखाई देती है बस मुझ को अपनी पतंग
आसमान और मिरे दरमियाँ
- जयंत परमार
देख कैसा पतंग की ख़ातिर
शोला-ए-शम्अ हाथ मलता है
- क़ाएम चाँदपुरी
देखी नहीं है तुम ने हमारी पतंग अभी
क्या नाम ले रहे हो हवाई-जहाज़ का
- हाशिम अज़ीमाबादी
देखे ज़रा कोई कि हूँ कैसा मलंग मैं
बरसात में चला हूँ उड़ाने पतंग मैं
- राणा गन्नौरी
देता है कफ़ से दौलत-ए-पा-बोस शम्अ की
रो देगा सर पे धर के फिर आख़िर पतंग दस्त
- बक़ा उल्लाह 'बक़ा'
न जाने कितने थे 'शाहीन' उस के मतवाले
अगरचे शाख़ में उलझी हुई पतंग थी वो
- वली आलम शाहीन
नफ़रत के साथ प्यार की मीठी तरंग है
माँझा है काट-दार रंगीली पतंग है
- क़ाज़ी हसन रज़ा
पक्के पक्के रंगों की कच्ची डोर के बल पर
इक पतंग अपनी भी उन के बाम तक पहुँचे
- ख़्वाजा ग़ुलामुस सय्यदैन रब्बानी
पतंग उड़ाने से क्या मनअ कर सके ज़ाहिद
कि उस की अपनी अबा में पतंग उड़ती है
- ज़फ़र इक़बाल
पतंग कट गई तो इस का इतना ग़म क्यूँ है
पतंग उड़ाने से पहले ये जान लेना था
- शहराम सर्मदी
पतंग कटने का बाइस और है कुछ
अगरचे डोर भी उलझी पड़ी है
- लियाक़त जाफ़री
पतंग क्यूँकर न होवे हैराँ कि शम्अ शब को दिखा रही है
ब-चश्म-ए-गिर्यां ओ ताज-ए-ज़र से फ़लक पे बिजली ज़मीं पे बाराँ
- शाह नसीर
पतंग टूट के आँगन के पेड़ में उलझी
शरीर बच्चों की यलग़ार मेरे घर पहुँची
- सिब्त अली सबा
पल में धज्जी धज्जी बिखरने वाली ऐसी है ये ज़ीस्त
इक से ज़ियादा बच्चों के हाथों में जैसे कटी पतंग
- साबिर ज़फ़र
फिर पूछना कि कैसे भटकती है ज़िंदगी
पहले किसी पतंग की मानिंद कट के देख
- नज़ीर बाक़री
ब-जुज़ दरीद-ओ-बुरीद और क्या है उस का मआल
वो फिर भी डोर से टूटी हुई पतंग रहा
- सलीम शहज़ाद
बात सही सन् सत्तावन-अट्ठावन की होगी
मैं छोटा था, पतंग देख कर ख़ुश होता था
- वीरेन डंगवाल
बाम-ए-फ़लक पे गर वो उड़ाता नहीं पतंग
ख़ुर्शीद ओ माह डोर के फिर किस की गोले हैं
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
बिला-जवाज़ नहीं है फ़लक से जंग मिरी
अटक गई है सितारे में इक पतंग मिरी
- दानियाल तरीर
मज्लिस में रात एक तिरे परतवे बग़ैर
क्या शम्अ क्या पतंग हर इक बे-हुज़ूर था
- मीर तक़ी मीर
माँझा कोई यक़ीन के क़ाबिल नहीं रहा
तन्हाइयों के पेड़ से अटकी पतंग हूँ
- सूर्यभानु गुप्त
मार कर लकड़ी किसी की फाड़ देता था पतंग
बे-वज्ह ख़ुद दूसरों से कर लिया करता था जंग
- मुर्तजा साहिल तस्लीमी
मिट्टी में मिलने वाले हैं कल उस के चीथड़े
उड़ती रहे पतंग भले आसमान में
- रहमान हफ़ीज़
मेरे ख़्वाबों की पतंग मुझ से
करती है अन-गिनत सवाल
- ज्योती आज़ाद खतरी
मैं मआल-ए-हुस्न-ओ-वफ़ा पे कुछ नज़र अपनी डालने जब लगा
न पतंग ही थे न शम्अ' थी वो पिघल गई तो वो जल गए
- ज़ाइक़ बैंग्लोरी
मैं हूँ पतंग-ए-काग़ज़ी डोर है उस के हाथ में
चाहा इधर घटा दिया चाहा उधर बढ़ा दिया
- नज़ीर अकबराबादी
यारो मैं क्या कहूँ कि जला किस तरह पतंग
पूछो ज़बान-ए-शम्अ से उस की लगन की बात
- जुरअत क़लंदर बख़्श
ये जो लाल रंग पतंग का सर-ए-आसमाँ है उड़ा हुआ
ये चराग़ दस्त-ए-हिना का है जो हवा में उस ने जला दिया
- मुनीर नियाज़ी
ये देखकर पतंगें भी हैरान हो गईं
कि अब तो छतें भी हिंदू-मुसलमान हो गईं
- मुनव्वर राना
रहा था शम्अ' से मज्लिस में दोष कितना फ़र्क़
कि जल बुझे थे ये हम पर पतंग था आगे
- मीर तक़ी मीर
लड़कों की जंग देखो
डोर और पतंग देखो
- हफ़ीज़ जालंधरी
लोग बिल्कुल पतंग जैसे हैं
मैं ज़रा सी जो ढील देती हूँ
- इक़रा आफ़िया
वो डोर है तो मिरे हाथ में रहेगी सदा
पतंग है तो हवा में उसे उड़ाऊँगा
- मिद्हत-उल-अख़्तर
वो दूर आसमान पे चढ़ती पतंग की
इक डोर थे कि टूट गए दरमियाँ से हम
- अय्यूब सलीम
वो पतंग उड़ने उड़ाने का मज़ा क्या जाने
जो न उलझी हो कभी शोख़ हवा से पहले
- शब्बीर अहमद क़रार
शब शम्अ' पर पतंग के आने को इश्क़ है
उस दिल-जले के ताब के लाने को इश्क़ है
- मीर तक़ी मीर
शम्अ'-रू पर न हुए क्यूँ कर डोर
दिल हमारा पतंग है यारो
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
समझ ऐ 'अलीम' आज राह-ए-हक़ीक़त निपट सख़्त मुश्किल है जाँ सूँ गुज़रना
पतंग हो के जलने में वासिल रहें हक़ सूँ हो मर्द-ए-वाहिद यकंगों में रहिए
- अलीमुल्लाह
सर-रिश्ता-ए-वफ़ा से क्या शम्अ'-रू हैं वाक़िफ़
हम ने पतंग उन से मिलना उड़ा दिया है
- अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
सितमगरी या तशद्दुद हमारा ढंग न हो
ये हँसती खेलती दुनिया कटी पतंग न हो
- मोहम्मद इक़बाल अहमद
हम इतने नादान भी नहीं हैं के बारिशों में पतंग उड़ाएँ
हमारी इतनी ख़राब आदत कभी थी जानाँ पर अब नहीं है
- शशांक सिंह ठाकुर साहिल
हमें दुनिया फ़क़त काग़ज़ का इक टुकड़ा समझती है
पतंगों में अगर ढल जाएँ हम तो आसमाँ छू लें
- नफ़स अम्बालवी
हमें भी होवे इजाज़त कि शम्अ-रू तुझ पर
पतंग की नमत इक दम तू आस-पास फिरें
- मीर हसन
हर पाँव से उलझा हूँ कटी डोर के मानिंद
'तारिक़' मिरी क़िस्मत की पतंग जब से कटी है
- शमीम तारिक़
हवा के हाथों हुआ परेशाँ
पतंग बन कर मैं क्या उड़ा था
- जगदीश राज फ़िगार
हवाएँ चुप थीं लहकती जिहत पे कोई न था
पतंग लूट के आया तो छत पे कोई न था
- तालिब हुसैन तालिब
हसरत-ए-ख़ाक है परवाने की
अरमाँ एक पतंग है बाबा
- सज्जाद सय्यद
हुई दिल में जब से है शोला-ज़न मिरी आतिश-ए-इश्क़ की हर नफ़स
जो पतंग ओ शम्अ' में देखिए न वो सोज़ है न गुदाज़ है
- वलीउल्लाह मुहिब
हुस्न इस शम्अ-रू का है गुल-रंग
क्यूँ न बुलबुल जले मिसाल-ए-पतंग
- दाऊद औरंगाबादी
हुस्न में जब तईं गर्मी न हो जी देवे कौन
शम्-ए-तस्वीर के कब गिर्द पतंग आते हैं
- मीर हसन
हैं इसी तहरीक में आख़िर फ़ना
शम्अ की लौ में फ़ना जैसे पतंग
- साहिर देहल्वी