ज़ेहन-ओ-दिल में है जंग या कुछ और
ज़ेहन-ओ-दिल में है जंग या कुछ औरहो रहा हूँ मलंग या कुछ और
हाल क्या हो गया समाअ'त का
तेरी बातें थीं संग या कुछ और
कोई उतरा है झील में दिल की
उठ रही है तरंग या कुछ और
तेरे हाथों में डोर है या दिल
हो गया हूँ पतंग या कुछ और
कोशिशें राएगाँ मनाने की
मुझ को ही था न ढंग या कुछ और
मुश्किलें रोज़ बढ़ती जाती हैं
वो सितमगर है तंग या कुछ और
दिल में है आस आरज़ू वहशत
बे-क़रारी उमंग या कुछ और
हौसले मेरे मिस्ल कोह हुए
तेरी चाहत है संग या कुछ और
मेरे शे'रों पे हो गए साकित
यार मेरे हैं दंग या कुछ और
उन के हाथों में आज-कल 'राग़िब'
है रिफ़ाक़त का रंग या कुछ और - इफ़्तिख़ार राग़िब
zehn-o-dil mein hai jang ya kuchh aur
zehn-o-dil mein hai jang ya kuchh aurho raha hun malang ya kuchh aur
haal kya ho gaya samaat ka
teri baaten thin sang ya kuchh aur
koi utra hai jhil mein dil ki
uth rahi hai tarang ya kuchh aur
tere hathon mein dor hai ya dil
ho gaya hun patang ya kuchh aur
koshishen raegan manane ki
mujh ko hi tha na dhang ya kuchh aur
mushkilen roz badhti jati hain
wo sitamgar hai tang ya kuchh aur
dil mein hai aas aarzu wahshat
be-qarari umang ya kuchh aur
hausle mere misl koh hue
teri chahat hai sang ya kuchh aur
mere sheron pe ho gae sakit
yar mere hain dang ya kuchh aur
un ke hathon mein aaj-kal 'raghib'
hai rifaqat ka rang ya kuchh aur -Iftikhar Raghib