फैला है जाल बाम पे ज़ुल्फ़-ए-दराज़ का - हाशिम अज़ीमाबादी

फैला है जाल बाम पे ज़ुल्फ़-ए-दराज़ का

फैला है जाल बाम पे ज़ुल्फ़-ए-दराज़ का
तोता उड़े न हाथ से अहल-ए-नियाज़ का

देखी नहीं है तुम ने हमारी पतंग अभी
क्या नाम ले रहे हो हवाई-जहाज़ का

आमद प्रिंसिपल की है होश्यार लड़कियो
ये वक़्त है शगुफ़्तन-ए-गुल-हा-ए-नाज़ का

गूगल लगा के आँख पे चलने लगे हसीं
वो लुत्फ़ अब कहाँ निगह-ए-नीम-बाज़ का

पीते नहीं हैं देस के सेवक बिदेस की
चुक्कड़ पिलाओ उन को मय-ख़ाना-साज़ का

ऐ बहर-ए-शौक़ इतना तलातुम है नारवा
मस्तूल गिर न जाए ख़िरद के जहाज़ का

'हाशिम' वो देखता जो किसी टेड्डी ब्वॉय को
महमूद नाम लेता ना हरगिज़ अयाज़ का -हाशिम अज़ीमाबादी


phaila hai jal baam pe zulf-e-daraaz ka

phaila hai jal baam pe zulf-e-daraaz ka
tota ude na hath se ahl-e-niyaz ka

dekhi nahin hai tum ne hamari patang abhi
kya nam le rahe ho hawai-jahaz ka

aamad principal ki hai hoshyar ladkiyo
ye waqt hai shaguftan-e-gul-ha-e-naz ka

google laga ke aankh pe chalne lage hasin
wo lutf ab kahan nigah-e-nim-baz ka

pite nahin hain des ke sewak bides ki
chukkad pilao un ko mai-khana-saz ka

ai bahr-e-shauq itna talatum hai narawa
mastul gir na jae khirad ke jahaz ka

'hashim' wo dekhta jo kisi teddy boy ko
mahmud nam leta na hargiz ayaz ka - Hashim Azimabadi

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