मुझ पर इनायतें हैं कई साहिबान की - अशोक मिज़ाज

मुझ पर इनायतें हैं कई साहिबान की

मुझ पर इनायतें हैं कई साहिबान की
कुछ हैं ज़मीन वालों की कुछ आसमान की

अपने सफ़र का तन्हा मुसाफ़िर नहीं हूँ मैं
इज़्ज़त जुड़ी है मुझ से मिरे ख़ानदान की

वो मुझ को आज़मा के कड़ी धूप में रहा
मुझ को ख़िज़ाँ बहार लगी इम्तिहान की

'ख़ुसरव-अमीर' की या बरहमन की हो ग़ज़ल
मुहताज कब रही है किसी भी ज़बान की

हिन्दी की अपनी शान है उर्दू की अपनी शान
दोनों ही आन-बान हैं हिन्दोस्तान की - अशोक मिज़ाज


mujh par inayaten hain kai sahiban ki

mujh par inayaten hain kai sahiban ki
kuchh hain zamin walon ki kuchh aasman ki

apne safar ka tanha musafir nahin hun main
izzat judi hai mujh se mere khandan ki

wo mujh ko aazma ke kadi dhup mein raha
mujh ko khizan bahaar lagi imtihan ki

'khusraw-amir' ki ya barahman ki ho ghazal
muhtaj kab rahi hai kisi bhi zaban ki

hindi ki apni shan hai urdu ki apni shan
donon hi aan-ban hain hindostan ki - Ashok Mizaj Badr

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