फिक्र पर शायरी | हमें अपने करीबी लोगो की किसी न किसी बात पर फ़िक्र लगी रहती है | और अपने सबसे ज्यादा करीबी की फ़िक्र तो हमें बेहद परेशां कर देती है इनमे
फिक्र पर शायरी
हमें अपने करीबी लोगो की किसी न किसी बात पर फ़िक्र लगी रहती है | और अपने सबसे ज्यादा करीबी की फ़िक्र तो हमें बेहद परेशां कर देती है इनमे हमारे परिवार, दोस्त कोई भी शामिल है | फ़िक्र किसी व्यक्ति की हो सकती, संपत्ति की, पैसो की या फिर नौकरी की | हम आपके लिए लाए है फ़िक्र पर शायरी का बेहतरीन संकलन |
करें दुनिया जहाँ की फ़िक्र क्यों हम
हमारी उम्र है आवारगी की
- अंकित मौर्या
फ़िक्र-ए-'अंजुम' को शाइ'री न कहो
एक ग़ैबी पयाम है यारो
- अंजुम फ़ौक़ी बदायूनी
घर-बार छोड़ कर वो फ़क़ीरों से जा मिले
चाहत ने बादशाहों को महकूम कर दिया
- अंजुम बाराबंकवी
ये बादशाह नहीं है फ़क़ीर है सूरज
हमेशा रात की झोली से दिन निकालता है
- अंजुम बाराबंकवी
बिछड़ते वक़्त उस को फ़िक्र क्यूँ थी
बसर करनी तो मेरा मसअला था
- अंजुम सलीमी
तुम्हें नहीं हो अगर आज गोश-बर-आवाज़
ये मेरी फ़िक्र ये मेरी नवा है किस के लिए
- अकबर अली खान अर्शी जादह
मिरी शिकस्त भी थी मेरी ज़ात से मंसूब
कि मेरी फ़िक्र का हर फ़ैसला शुऊरी था
- अकबर हैदराबादी
मैं भी 'अकबर' कर्ब-आगीं जानता हूँ ज़ीस्त को
मुंसलिक है फ़िक्र मेरी फ़िक्र-ए-शोपनहॉर से
- अकबर हैदराबादी
हर दुकाँ अपनी जगह हैरत-ए-नज़्ज़ारा है
फ़िक्र-ए-इंसाँ के सजाए हुए बाज़ार तो देख
- अकबर हैदराबादी
अपने एहसास की शिद्दत को बुझाने के लिए
मैं नई तर्ज़ के ख़ुश-फ़िक्र रिसाले मांगों
- अकमल इमाम
हिकमतें फ़िक्र-ओ-तदब्बुर में रखी हैं 'जाज़िब'
फ़ल्सफ़ा शो'ला-बयानी से निकल आया है
- अकरम जाज़िब
आग बरसेगी अभी कुछ देर में
छोड़ मेरी फ़िक्र अपना सर छुपा
- अक़ील जामिद
मेरे ज़ेहन-ओ-दिल में फ़िक्र-ओ-फ़न में था
नीम का वो पेड़ जो आँगन में था
- अक़ील शादाब
अफ़्सोस फ़िक्र-ए-जाँ ही नहीं रहती है हमें
अफ़्सोस आप जान हमें मानने लगे
- अक्स समस्तीपुरी
मसअला बन गई फ़िक्र तफ़्हीम का
लफ़्ज़ का हुस्न भी राएगाँ हो गया
- अख़तर शाहजहाँपुरी
अंजुम-ए-चर्ख़-ए-फ़िक्र-ए-आदम का
चल गया दाव देखते क्या हो
- अख़्तर अंसारी
बना के फ़िक्र-ओ-तदब्बुर को ख़ादिम-ए-इंसाँ
मुक़द्दरात के छक्के छुड़ा दिए हम ने
- अख़्तर अंसारी
अपने दामन की कभी फ़िक्र न की
चाक औरों के सिया करते थे
- अख़्तर अमान
होश्यार कर रहा है गजर जागते रहो
ऐ साहिबान-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र जागते रहो
- अख्तर लख़नवी
कुछ फ़िक्र नहीं ले चल!
ऐ इश्क़ कहीं ले चल!
- अख़्तर शीरानी
ग़म-ए-आक़िबत है न फ़िक्र-ए-ज़माना
पिए जा रहे हैं जिए जा रहे हैं
- अख़्तर शीरानी
ज़ेहन आज़ाद फ़िक्र हस्ती है
जो गुना का तनूर लगता है
- अख़्तर सईद
फ़िक्र मफ़्लूज जो ज़िंदानी-ए-अफ़्लाक रहे
तीर बे-कार जो निकले न कमाँ से आगे
- अख़्तर सईद
हर घड़ी फ़िक्र-ए-रास्ती क्या है
इक मुसीबत है ज़िंदगी क्या है
- अख़्तर सईद
फ़िक्र-ए-फ़र्दा ग़म-ए-इमरोज़ रिवायात-ए-कुहन
कितनी राहें हैं तिरी राहगुज़र से पहले
- अज़मत अब्दुल क़य्यूम ख़ाँ
फ़िक्र में हैं हमें बुझाने की
आँधियाँ 'मीर' के ज़माने की
- अज़हर इनायती
जो रस्तों में भटकती फिर रही है
इसे पहचान फ़िक्र-ए-ज़िंदगी है
- अज़हर नैयर
फ़िक्र भी लुत्फ़-ए-इंतिज़ार में है
बे-क़रारी भी कुछ क़रार में है
- अज़ीज़ अन्सारी
कर चुके बर्बाद दिल को फ़िक्र क्या अंजाम की
अब हमें दे दो ये मिट्टी है हमारे काम की
- अज़ीज़ लखनवी
लाख पाबंद-ए-अलाएक न रहे कोई यहाँ
तब-ए-वारस्ता मगर फ़िक्र से आज़ाद नहीं
- अज़ीज़ लखनवी
तक़रीर की लज़्ज़त बे-मा'नी तहरीर की नुदरत ला-हासिल
ये फ़िक्र-ओ-अमल की है दुनिया कुछ फ़िक्र-ओ-अमल की बात करो
- अज़ीज़ वारसी
ग़ुरूर ले के मरा इख़्तियार-ए-हस्ती का
तू अपनी फ़िक्र-ए-हयात-ओ-ममात ले के गया
- अज़ीज़ुर्रहमान शहीद फ़तेहपुरी
कभी-कभार तो सुक़रात की रिदा बन कर
शऊर-ए-फ़िक्र तिलिस्मात पर उतरता है
- अज़्म शाकरी
फ़िक्र है ख़ुल्द-ब-दामाँ 'अतहर'
कूचा-ए-रश्क-ए-इरम याद आया
- अतहर ज़ियाई
ये इंक़िलाब-ए-ज़माना नहीं तो फिर क्या है
अमीर-ए-शहर जो कल था वो है फ़क़ीरों में
- अतहर नादिर
फ़िक्र-ए-मआश ने उन्हें क़िस्सा बना दिया
सजती थीं अपनी महफ़िलें आगे जो रात भर
- अता तुराब
सफ़र हो शाह का या क़ाफ़िला फ़क़ीरों का
शजर मिज़ाज समझते हैं राहगीरों का
- अतुल अजनबी
इक तरफ़ वो फ़िक्र-ए-फ़र्दा ज़ेहन परछाई हुई
इक तरफ़ ये ज़िंदगी यादों की ठहराई हुई
- अदील शाकिर
जमाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न का तेरे 'अनवर'
सुख़न-दानों में चर्चा हो रहा है
- अनवर जमाल अनवर
सहीफ़े फ़िक्र-ओ-नज़र के जो दे गए तरतीब
वही तो शेर-ओ-सुख़न के पयम्बरों में रहे
- अनवर मीनाई
गुलशन-ए-फ़िक्र पे 'अनवर' है गिराँ-बार मिज़ाज
शेर की बारिश-ए-इल्हाम इलाही तौबा
- अनवर साबरी
मेरी निगाह-ए-फ़िक्र में 'अनवर'
इश्क़ फ़साना हुस्न है उर्यां
- अनवर साबरी
निगाह चाहिए बस अहल-ए-दिल फ़क़ीरों की
बुरा भी देखूँ तो मुझ को भला नज़र आए
- अनीस देहलवी
तारीफ़ तेरी एड़ हो तन्क़ीद हो लगाम
सहरा-ए-फ़िक्र में उड़ा घोड़े ख़याल के
- अनीस शिकारी
सबा को फ़िक्र है का'बा नया बनाने की
कि जम्अ' करती है ख़ाक उन के आस्ताने की
- अफ़क़र मोहानी
बाज़ीगाह-ए-दार-ओ-रसन में मय-कदा-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न में
हम रिंदों से रौनक़ है हम दरवेशों से मेले हैं
- अफ़ज़ल परवेज़
मुझे फ़र्दा की फ़िक्र क्यूँ-कर हो
ग़म-ए-इमरोज़ खाए जाता है
- अफ़सर मेरठी
फ़िक्र का गर सिलसिला मौजूद है
फ़ाश है वो भी जो ना-मौजूद है
- अबरार आबिद
जुमूद-ए-फ़िक्र तोड़ा फिर बशर ने
उरूज-ए-ज़ेहन-ए-इंसानी के दिन हैं
- अबु मोहम्मद सहर
कोह-ए-ग़म से क्या ग़रज़ फ़िक्र-ए-बुताँ से क्या ग़रज़
ऐ सुबुक-रुई तुझे बार-ए-गराँ से क्या ग़रज़
- अबू ज़ाहिद सय्यद यहया हुसैनी क़द्र
जहान-ए-फ़िक्र पे चमकेगा जब सितारा मिरा
हुनर ज़माने पे तब होगा आश्कारा मिरा
- अब्दुर्राहमान वासिफ़
नख़चीर हूँ मैं कश्मकश-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र का
हक़ मुझ से अदा हो न दर-ओ-बस्त-ए-हुनर का
- अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
क्या फ़िक्र-ए-बहार ओ महफ़िल-ए-यार
अब ख़त्म वो बाब हो गया है
- अब्दुल अज़ीज़ फ़ितरत
ख़ुद को क्यूँ जिस्म का ज़िंदानी करें
फ़िक्र को तख़्त-ए-सुलैमानी करें
- अब्दुल अहद साज़
खुद को क्यूँ जिस्म का ज़िन्दानी करें
फ़िक्र को तख़्त-ए-सुलेमानी करें
- अब्दुल अहद साज़
ज़ात की फ़िक्र है क़यास-आलूद
ज़िंदगी का यक़ीं गुमान-ज़दा
- अब्दुल अहद साज़
तिश्ना-ए-नूर मिरी फ़िक्र के महताब ओ नुजूम
मिरे ख़ुर्शीद मिरी काहकशाँ में आना
- अब्दुल अहद साज़
दूर से शहर-ए-फ़िक्र सुहाना लगता है
दाख़िल होते ही हर्जाना लगता है
- अब्दुल अहद साज़
मसाफ़तें थीं शब-ए-फ़िक्र किन ज़मानों की
कहाँ कहाँ गए हम कैसी हस्तियों में रहे
- अब्दुल अहद साज़
हर तरफ़ था हिसार काँटों का
फूल फ़िक्र-ए-नुमू में खोए रहे
- अब्दुल क़वी ज़िया
फ़िक्र-ए-फ़र्दा भी करेंगे 'हैरत'
पहले ये शब तो बसर हो जाए
- अब्दुल मजीद हैरत
सुब्ह ये फ़िक्र कि हो जाए शाम
शाम को ये कि सहर हो जाए
- अब्दुल मजीद हैरत
कुछ फ़िक्र न हो कुछ झूट न हो
दुनिया में कहीं पर लूट न हो
- अब्दुल मतीन नियाज़
दामन की फ़िक्र है न गरेबाँ की फ़िक्र है
अहल-ए-वतन को फ़ित्ना-ए-दौराँ की फ़िक्र है
- अब्दुल मतीन नियाज़
लोगों को अपनी फ़िक्र है लेकिन मुझे नदीम
बज़्म-ए-हयात-ओ-नज़्म-ए-गुलिस्ताँ की फ़िक्र है
- अब्दुल मतीन नियाज़
फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ की नज़्र हुए
वो ग़म-ए-आशिक़ी वो रुस्वाई
- अब्दुल मलिक सोज़
क्या मिले उस से एक बार 'सुख़न'
मौज में फ़िक्र का समंद रहा
- अब्दुल वहाब सुख़न
नई ग़ज़ल का नई फ़िक्र-ओ-आगही का वरक़
ज़माना खोल रहा है सुख़नवरी का वरक़
- अब्दुल वहाब सुख़न
वो पहले फ़िक्र को हर्फ़-ए-कमाल देता है
फिर आगही से सुख़न को उजाल देता है
- अब्दुल वहाब सुख़न
बे-सबब क्यूँ तबाह होता है
फ़िक्र-ए-फ़र्दा गुनाह होता है
- अब्दुल हमीद अदम
उसे खिलौनों से बढ़ कर है फ़िक्र रोटी की
हमारे दौर का बच्चा जनम से बूढ़ा है
- अब्दुस्समद ’तपिश’
ज़िक्र ता फ़िक्र नज़र तक महदूद
जुस्तुजू सारी ख़बर तक महदूद
- अब्दुस्सलाम आसिम
साल भर दिल लगाएँ पढ़ने में
रात दिन फ़िक्र-ए-इम्तिहाँ से बचें
- अब्दुस्सलाम आसिम
रंज-ओ-ग़म उठाए हैं फ़िक्र-ओ-फ़न भी पाए हैं
ज़िंदगी को जितना भी जी सके जिया हम ने
- अमीक़ हनफ़ी
हो फ़िक्र उस को समाज की
और अपने भी काम काज की
- अमीन हज़ीं
फ़िक्र-ए-ग़ुर्बत है न अंदेशा-ए-तन्हाई है
ज़िंदगी कितने हवादिस से गुज़र आई है
- अमीर क़ज़लबाश
चाहिए इक़बाल की फ़िक्र-ए-रसा
दाग़ की तब-ए-रवाँ दरकार है
- अमीर चंद बहार
हासिदों में घिर गया हूँ ऐ 'बहार'
फ़िक्र-ओ-फ़न का क़द्र-दाँ दरकार है
- अमीर चंद बहार
तह कर चुके बिसात-ए-ग़म-ओ-फ़िक्र-ए-रोज़गार
तब ख़ानक़ाह-ए-इश्क़-ओ-मोहब्बत में आए हैं
- अमीर हम्ज़ा साक़िब
मता-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र रहा हूँ
मिसाल-ए-ख़ुशबू बिखर रहा हूँ
- अय्यूब साबिर
'अरमान' वो ख़याल मिरी जाएदाद था
इस फ़िक्र में निखार था वो भी नहीं रहा
- अरमान जोधपुरी
ग़फ़लत ये है किसी को नहीं क़ब्र का ख़याल
कोई है फ़िक्र-ए-नाँ में कोई फ़िक्र-ए-जाह में
- अरशद अली ख़ान क़लक़
फ़िक्र सोई है सर-ए-शाम जगा दी जाए
एक बुझती सी अँगीठी को हवा दी जाए
- अरशद कमाल
एक आलम को है समेटे हुए
मेरी फ़िक्र-ए-नज़र की तन्हाई
- अर्पित शर्मा अर्पित
वो मक़ाम-ए-फ़िक्र है मिरा 'अली'
जिस बुलंदी तक कोई पहुँचा नहीं
- अली अहमद जलीली
इशारा फ़िक्र को महमेज़ हश्र-परवर का
ख़ता मुआ'फ़ हो तेरे ही बाँकपन से मिला
- अली जव्वाद ज़ैदी
हाए ख़ौफ़-ए-बदनामी वाए फ़िक्र-ए-नाकामी
बेवफ़ा के हाथों में हासिल-ए-वफ़ा मेरा
- अली मंज़ूर हैदराबादी
ज़ात में जिस की हो ठहराव ज़मीं की मानिंद
फ़िक्र में उस की समुंदर की सी वुसअ'त होगी
- अलीना इतरत
फ़िक्र-ए-फ़र्दा हुई या फ़िक्र-ए-ग़म-ए-दोश हुई
तेरी याद आई कि हर बात फ़रामोश हुई
- अलीम मसरूर
अक़्ल-ए-जुज़वी छोड़ कर ऐ यार फ़िक्र-ए-कुल करो
मिशअल-ए-दिल को चिता फ़ानी चराग़ाँ गुल करो
- अलीमुल्लाह
एक को कुछ आज अगर मिल गया
कल की है ये फ़िक्र कि खाएँगे क्या
- अल्ताफ़ हुसैन हाली
वो आए बज़्म में इतना तो 'फ़िक्र' ने देखा
फिर इस के बा'द चराग़ों में रौशनी न रही
- अल्ताफुर्रहमान फ़िक्र यज़दानी
किए हैं फ़ाश रुमूज़-ए-क़लंदरी मैं ने
कि फ़िक्र-ए-मदरसा-ओ-ख़ानक़ाह हो आज़ाद
- अल्लामा इक़बाल
तमन्ना दर्द-ए-दिल की हो तो कर ख़िदमत फ़क़ीरों की
नहीं मिलता ये गौहर बादशाहों के ख़ज़ीनों में
- अल्लामा इक़बाल
वतन की फ़िक्र कर नादाँ मुसीबत आने वाली है
तिरी बर्बादियों के मशवरे हैं आसमानों में
- अल्लामा इक़बाल
अभी इस फ़िक्र से निकला नहीं हूँ
मैं क्या हूँ और आख़िर क्या नहीं हूँ
- अशफ़ाक़ हुसैन
बदल रहे है यहाँ सब, रिवाज़ क्या होगा
मुझे ये फ़िक्र है, कल का समाज क्या होगा
- अशोक मिजाज़
फ़िक्र की असली बात ये है मगर
इन दिनों यूँ भी हुआ है अक्सर
- अशोक लाल
कह रहा इबलीस अब शैतान से
फ़िक्र-ए-फ़र्दा छीन इस इंसान से
- अश्क अलमास
फ़िक्र आग़ाज़ ही की है सब को
कोई अंजाम सोचता ही नहीं
- असग़र वेलोरी
फ़िक्र को ख़्वाब ख़यालात को फ़ानी लिखना
ज़िंदगी आँख चुराए तो कहानी लिखना
- असद रिज़वी
फ़िक्र-ए-जहान दर्द-ए-मोहब्बत फ़िराक़-ए-यार
क्या कहिए कितने ग़म हैं मिरी ज़िंदगी के साथ
- असर अकबराबादी
अशआर 'असर' मेरे मंसूब उसी से हैं
जिस फ़िक्र-ए-रसा की भी अंगड़ाई क़यामत है
- असर निज़ामी
कुछ देर फ़िक्र आलम-ए-बाला की छोड़ दो
इस अंजुमन का राज़ इसी अंजुमन में है
- असर लखनवी
पेचीदगी-ए-फ़िक्र में क्या ख़ूब फँसाया
एहसास के शानों से ही सुलझाए गए लोग
- असरा रिज़वी
तक़ाज़े क्यूँ करूँ पैहम न साक़ी
किसे याँ फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं है
- असरार-उल-हक़ मजाज़
नहीं ये फ़िक्र कोई रहबर-ए-कामिल नहीं मिलता
कोई दुनिया में मानूस-ए-मिज़ाज-ए-दिल नहीं मिलता
- असरार-उल-हक़ मजाज़
उन्हें ये फ़िक्र कि दिल को कहाँ छुपा रक्खें
हमें ये शौक़ कि दिल का ख़सारा क्यूँकर हो
- असलम इमादी
फ़िक्र जैसे आइना-दर-आइना रौशन चराग़
तीरगी मेरे लिए एहसास-ए-रा'नाई भी है
- अहमद ज़फ़र
आइंदा की फ़िक्र न कर
वर्ना देख ले मेरा हाल
- अहमद जावेद
फ़िक्र के सारे धागे टूटे ज़ेहन भी अब म'अज़ूर हुआ
अब के बहार ये कैसी आई कैसा ये दस्तूर हुआ
- अहमद ज़िया
क़ासिदा हम फ़क़ीर लोगों का
इक ठिकाना नहीं कि तुझ से कहें
- अहमद फ़राज़
मैं बिस्तर पर चुप लेटा हूँ रात जहाँ से भाग रही है
किरनों की शहज़ादी लेकिन सुब्ह की फ़िक्र में जाग रही है
- अहमद वसी
इल्म का दम भरना छोड़ो भी और अमल को भूल भी जाओ
आईना-ख़ाने में हो साहिब फ़िक्र करो हैरानी की
- अहमद शहरयार
न दस्तकें न सदा कौन दर पे आया है
फ़क़ीर-ए-शहर है या शहरयार देखिएगा
- अहमद शहरयार
फ़क़ीर-ए-शहर भी रहा हूँ 'शहरयार' भी मगर
जो इत्मिनान फ़क़्र में है ताज-ओ-तख़्त में नहीं
- अहमद शहरयार
ये क्या कि आशिक़ी में भी फ़िक्र-ए-ज़ियाँ रहे
दामन का चाक ता-ब-जिगर जाना चाहिए
- अहमद सग़ीर सिद्दीक़ी
हालात हूँ हमवार तो क्या फ़िक्र है लेकिन
मुश्किल में मुनाजात ज़रा और ज़रा और
- अहया भोजपुरी
अब नहीं फ़िक्र-ए-सूद रंज-ए-ज़ियाँ
ख़्वार होना था हो चुके हैं हम
- अहसन अली ख़ाँ
शेख़ को जन्नत मुबारक हम को दोज़ख़ है क़ुबूल
फ़िक्र-ए-उक़्बा वो करें हम ख़िदमत-ए-दुनिया करें
- अहसन मारहरवी
दो-शाला शाल कश्मीरी अमीरों को मुबारक हो
गलीम-ए-कोहना में जाड़ा फ़क़ीरों का बसर होगा
- आग़ा अकबराबादी
सितम-दोस्त फ़िक्र-ए-अदावत कहाँ तक
कहाँ तक वफ़ा से बग़ावत कहाँ तक
- आज़ाद अंसारी
दिन भर चलेगा रंग,मिलेगा न कोई काम,
मज़दूर ग़मज़दा है बहुत कल की फ़िक्र में
- आदर्श बाराबंकवी
फ़िक्र मुझ से पूछती है रात-दिन
नींद है फिर क्यों नहीं सोता कभी
- आनंद वर्मा
कल ये साया हमें फिर घेरे गा
कल यही फ़िक्र हमें खाएगी
- आफ़ताब शम्सी
जिन्हें ये फ़िक्र नहीं सर रहे रहे न रहे
वो सच ही कहते हैं जब बोलने पे आते हैं
- आबिद अदीब
हम फ़क़ीरों का पैरहन है धूप
और ये रात अपनी चादर है
- आबिद वदूद
टिकटिकी बांधे वो फिरते है में इस फ़िक्र में हूँ,
कही खाने लगे ना चक्कर ये गहरा पानी
- आरजू लखनवी
तुम्हें फ़िक्र हो, मिरे हाल की,
कोई गुफ़्तुगू हो मलाल की,
- आरिफ़ इशतियाक़
फ़िक्र उन के पेट भरने की करो
और फिर स्कूल के क़िस्से सुनो
- आल-ए-अहमद सूरूर
मिरी दस्तरस में है गर क़लम मुझे हुस्न-ए-फ़िक्र-ओ-ख़याल दे
मुझे शहरयार-ए-सुख़न बना और एनान-ए-शहर-ए-कमाल दे
- आलमताब तिश्ना
गुनाहगार हूँ मैं वाइ'ज़ो तुम्हें क्या फ़िक्र
मिरा मुआ'मला छोड़ो शफ़ी-ए-महशर पर
- आसी ग़ाज़ीपुरी
जब कोई फ़िक्र छटपटाती है
तब कहाँ नींद-वींद आती है
- डॉक्टर आज़म
बुलंद फ़िक्र की हर शे'र से अयाँ हो रमक़
मिरे क़लम से अदा हो कभी ग़ज़ल का हक़
- डॉक्टर आज़म
ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न की 'बख़्श' तोहमत
जलाल-ए-हर्फ़ पर आती नहीं है
- बख़्श लाइलपूरी
कहाँ हैं शहर के बे-फ़िक्र बच्चे
मसर्रत के ख़ज़ाने क्या हुए सब
- बदनाम नज़र
क़तरा-ए-दीदा-ए-नमनाक मसीहाई करे
फ़िक्र के बंद दरीचों की शिकन खुल जाए
- बद्र वास्ती
फ़िक्र-ए-अहल-ए-हुनर पे बैठी है
शाइरी सीम-ओ-ज़र पे बैठी है
- बद्र वास्ती
फ़िक्र जो ख़ुद गिरफ़्त में रक्खे
उस का अंदाज़ शाइ'राना है
- बबल्स होरा सबा
फ़िक्र-ओ-ख़याल में तुम्हें लाने से फ़ाएदा
ख़ुद अपने घर में आग लगाने से फ़ाएदा
- बलदेव राज
कौन किसी की फ़िक्र करता है यहाँ
अपने अपने जाल में उलझे हैं लोग
- बलबीर राठी
मंदिर गए मस्जिद गए पीरों फ़क़ीरों से मिले
इक उस को पाने के लिए क्या क्या किया क्या क्या हुआ
- बशीर बद्र
नींद के नगर से तो राब्ता नहीं टूटा
फ़िक्र-ए-शेर में 'सैफ़ी' करवटें बदलते हैं
- बशीर सैफ़ी
'बहराम' आशिक़ाना ग़ज़ल एक और भी
क़ुव्वत अभी बहुत तिरी फ़िक्र-ए-रसा में है
- बहराम जी
अभी तो रोज़ यही फ़िक्र है जिएँ कैसे
अभी तो रात यूँही बे-क़रार गुज़रेगी
- बाक़र मेहदी
आवारगी में लुत्फ़ ओ अज़िय्यत के बावजूद
ऐसा नहीं हुआ है कि फ़िक्र-ए-सहर नहीं
- बाक़र मेहदी
इस फ़िक्र-ए-रोज़गार में सब खप गया दिमाग़
अब शाइ'री को चाहिए इक दूसरा दिमाग़
- बासिर सुल्तान काज़मी
'नमन' क्या बचा जो करें फ़िक्र उसकी,
लुटा कारवाँ पासबाँ आते आते
- बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
ख़ुद अपनी फ़िक्र उगाती है वहम के काँटे
उलझ उलझ के मिरा हर सवाल ठहरा है
- बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन
फ़िक्र की चाक पे माटी की तू शक्ल बदलता है, या खुद ही ढलता है खैर
बेकल' बे पर लफ़्ज़ों को तख़यील का तैर करे, मौला खैर करे
- बेकल उत्साही
कहता हूँ कि आ ही जाएगा सब्र
ये फ़िक्र भी है अगर न आया
- बेखुद बदायुनी
कश्ती-ए-फ़िक्र बही जाती है जमुना की तरफ
दिल मेरा खीच रहा है मुझे मथुरा की तरफ
- ब्रज नारायण चकबस्त
उन्हें ये फ़िक्र है हर दम नई तर्ज़-ए-जफ़ा क्या है
हमें ये शौक़ है देखें सितम की इंतिहा क्या है
- चकबस्त ब्रिज नारायण
मैं रुत्बा हूँ तो मेरी हैसियत है
सिमटती है वहाँ हर फ़िक्र मेरी
- चन्द्र शेखर वर्मा
वो सूरज का साथी अँधेरों के बन में
असासा लिए फ़िक्र का अपने फ़न में
- चन्द्रभान ख़याल
हमें तो फ़िक्र यही है कि कौन आएगा
हमारे बा'द लहू के दिए जलाने को
- चन्द्रभान ख़याल
बार-ए-ख़ातिर है हम को फ़िक्र-ए-ज़ीस्त
हसरतों का मज़ार झूटा है
- चाँद अकबराबादी
जब सूँ देखा हूँ उस की ज़ुल्फ़-ए-दराज़
तब सूँ मुझ फ़िक्र में रसाई है
- दाऊद औरंगाबादी
अपने ही ग़म से नहीं मिलती नजात
इस बिना पर फ़िक्र-ए-आलम क्या करें
- दाग़ देहलवी
ग़म-ए-जानाँ तो राहत-ए-दिल है
फ़िक्र-ए-दुनिया अज़ाब है यारो
- दानिश फ़राही
आज के पल क्यूँ बिगाड़ें फ़िक्र में
कल जो होगा कल ही सोचा जाएगा
- दिनेश ठाकुर
हम ने दुनिया में क्या नहीं देखा
हश्र की फ़िक्र अब नहीं होती
- दिनेश ठाकुर
मत करो फ़िक्र इमारत की कोई ज़ेर-ए-फ़लक
ख़ाना-ए-दिल जो गिरा है उसे ता'मीर करो
- दुल्हन बेगम
फ़िक्र-ए-'दौर' को तुम से पहले
तेरे मेरे काम बहुत थे
- दौर आफ़रीदी
क्या मिला फ़िक्र की रसाई से
मेरी फ़िक्र-ए-रसा की बात न कर
- द्वारका दास शोला
कभी फ़िक्र-ए-मआ'श और कभी दिल
दुख हैं मेरे जुदा जुदा मिरे दोस्त
- एज़ाज़ काज़मी
वाहिमों के ज़िंदाँ का ज़ेहन ज़ेहन क़ैदी है
बोल फ़िक्र-ए-ताबिंदा मैं किधर किधर जाऊँ
- एजाज़ गुल
आँखें सब की फ़िक्र-ज़दा
कैसे बीतेगा ये साल
- एजाज़ तालिब
निज़ाम-ए-फ़िक्र ने बदला ही था सवाल का रंग
झलक उठा कई चेहरों से इंफ़िआल का रंग
- एजाज़ सिद्दीक़ी
ज़िंदगी क्या हश्र का मैदान थी
अपनी अपनी फ़िक्र में ग़लताँ थे हम
- एम ए क़दीर
देखिए ये कलाम-ए-'मेहदी' में
फ़िक्र इंसाँ की इंतिहा क्या है
- एस ए मेहदी
फ़िक्र-ए-नान-ए-जवीं का ग़लबा है
अपने हर इक ख़याल पर फ़िलहाल
- एहतिशाम हसन
हम अगर फ़िक्र-ए-गुलिस्ताँ करते
रोज़ दामन को गरेबाँ करते
- एहसास मुरादाबादी
फ़िक्र के तीरा-ख़ाने रौशन कर
लौ देते जज़्बात की सूरत आ
- फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
सब होंगे उस से अपने तआरुफ़ की फ़िक्र में
मुझ को मिरे सुकूत से पहचान जाएगा
- फ़ना निज़ामी कानपुरी
अभी तो तुम बचपने की सरहद फलांगने ही की फ़िक्र में हो
अभी तो तुम मेंढियाँ बनाती हो, चोटियाँ कस के बाँधती हो
- फ़य्याज़ तहसीन
शुऊर-ओ-फ़िक्र की तज्दीद का गुमाँ तो हुआ
चलो कि फ़न का उफ़ुक़ किश्त-ए-ज़ाफ़राँ तो हुआ
- फ़रहत क़ादरी
जीतना चाहो तो हर मात सहो हँस हँस कर
फ़िक्र-ए-मायूस ख़यालों से बचाए रक्खो
- फ़रहत शहज़ाद
फ़िक्र का तन कब ढाँप सकी मद-होशी तक
छोड़ दिए नश्शों ने हाथ शराबों के
- फ़रहत शहज़ाद
मेरे सौ नख़रे सहती है
मेरी फ़िक्र उसे रहती है
- फ़राग़ रोहवी
ये तही फ़िक्र कुएँ के मेंडक
ये न समझेंगे मसाइल मेरे
- फरीहा नक़वी
दयार-ए-फ़िक्र-ओ-हुनर को निखारने वाला
कहाँ गया मिरी दुनिया सँवारने वाला
- फ़र्रुख़ ज़ोहरा गिलानी
फ़िक्र-ओ-मसाइल याद-ए-जानाँ
गर्म हवाएँ ठंडा पानी
- फ़हमी बदायूनी
गुल तिरे मुख की फ़िक्र में बीमार
जीव बुलबुल का तुझ क़दम पे निसार
- फ़ाएज़ देहलवी
शाम से फ़िक्र-ए-सुब्ह क्या शब-ए-हिज्र
मर रहेंगे अगर सहर न हुई
- फ़ानी बदायुनी
हम एक फ़िक्र के पैकर हैं इक ख़याल के फूल
तिरा वजूद नहीं है तो मेरा साया नहीं
- फ़ारिग़ बुख़ारी
आरज़ू हसरत-ए-नाकाम से आगे न बढ़ी
फ़िक्र अंदेशा-ए-अंजाम से आगे न बढ़ी
- फ़िगार उन्नावी
बादाकशो को फ़िक्र है जिसकी
बादा न सागर, बर्क न बारां
- फ़िराक गोरखपुरी
सुनते हैं इश्क़ नाम के गुज़रे हैं इक बुज़ुर्ग
हम लोग भी फ़क़ीर इसी सिलसिले के हैं
- फ़िराक़ गोरखपुरी
फ़िक्र है सुब्ह की दुश्मन कैसी
रात की रात ग़ज़ल चाहती है
- फ़े सीन एजाज़
गुज़िश्ता हसरतों के दाग़ मेरे दिल से धुल जाएँ
मैं आने वाले ग़म की फ़िक्र से आज़ाद हो जाऊँ
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
थे शब-ए-हिज्र काम और बहुत
हम ने फ़िक्र-ए-दिल-ए-तबाह न की
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
न किसी पे ज़ख़्म अयाँ कोई न किसी को फ़िक्र रफ़ू की है
न करम है हम पे हबीब का न निगाह हम पे अदू की है
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
फ़िक्र-ए-दिलदारी-ए-गुलज़ार करूँ या न करूँ
ज़िक्र-ए-मुर्ग़ान-ए-गिरफ़्तार करूँ या न करूँ
- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आज मिरा दिल फ़िक्र में है,
ऐ रौशनियों के शहर शब-ख़ूँ से मुँह फेर न जाए,
अरमानों की रौ ख़ैर हो तेरी लैलाओं की,
इन सब से कह दो आज की शब जब दिए जलाएँ, ऊँची रक्खें लौ
- फैज़ अहमद फैज़
जो फ़न से फ़िक्र की तदबीर गुफ़्तुगू करेगी
तो गूँगी-बहरी भी तस्वीर गुफ़्तुगू करेगी
- फ़ैज़ ख़लीलाबादी
उसी से फ़िक्र-ओ-फ़न को हर घड़ी मंसूब रखते हैं
ग़ज़ल वाले ग़ज़ल को सूरत-ए-महबूब रखते हैं
- फ़ैयाज़ रश्क़
मुझ को ये फ़िक्र कब है कि साया कहाँ गया
सूरज को रो रहा हूँ ख़ुदाया कहाँ गया
- फ़ैसल अजमी
जज़्बात आ सके हैं कभी इख़्तियार में
आँखों की फ़िक्र छोड़िए दिल को सँभालिये
- फ़ैसल नदीम फ़ैसल
शहज़ादे ये दुनिया फ़िक्र में ग़लताँ है
जब से मैं हूँ तुम पर माइल शहज़ादे
- फ़ौज़िया रबाब
न फ़िक्र करना हमारे दिल की न उस जुनूँ का मलाल रखना
ये इल्तिजा है हमारी तुम से तुम अपने दिल को सँभाल रखना
- ग़ज़ल अंसारी
अंदाज़-ए-फ़िक्र अहल-ए-जहाँ का जुदा रहा
वो मुझ से ख़ुश रहे तो ज़माना ख़फ़ा रहा
- ग़नी एजाज़
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ?
- ग़ालिब
ये मय-कदा है कलीसा ओ ख़ानक़ाह नहीं
उरूज-ए-फ़िक्र ओ फ़रोग़-ए-नज़र की मंज़िल है
- ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
ख़याल-ओ-फ़िक्र का दम घुट रहा है
नई दुनिया बनाना चाहता हूँ
- ग़यास अंजुम
किसी ने फ़क़्र से अपने ख़ज़ाने भर लिए लेकिन
किसी ने शहरयारों से भी सीम-ओ-ज़र नहीं पाए
- ग़ुलाम हुसैन साजिद
अपने सिवा नहीं है कोई अपना आश्ना
दरिया की तरह आप हैं अपने कनार में
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
आसमाँ कहते हैं जिस को वो ज़मीन-ए-शेर है
माह-ए-नौ मिस्रा है वस्फ़-ए-अबरू-ए-ख़मदार में
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ऐ जुनूँ हाथ जो वो ज़ुल्फ़ न आई होती
आह ने अर्श की ज़ंजीर हिलाई होती
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ख़ार चुभ कर जो टूटता है कभी
आबला फूट फूट रोता है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ख़ून मिरा कर के लगाना न हिना मेरे ब'अद
दस्त रंगीं न हों अंगुश्त-नुमा मेरे ब'अद
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
गया है कूचा-ए-काकुल में अब दिल
मुसलमाँ वारिद-ए-हिन्दोस्ताँ है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
गर हमारे क़त्ल के मज़मूँ का वो नामा लिखे
बैज़ा-ए-फ़ौलाद से निकलें कबूतर सैकड़ों
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
जामा-ए-सुर्ख़ तिरा देख के गुल
पैरहन अपना क़बा करते हैं
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ज़ाहिदो क़ुदरत-ए-ख़ुदा देखो
बुत को भी दावा-ए-ख़ुदाई है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ज़ोफ़ से रहता है अब पाँव पे सर
आप-अपनी ठोकरें खाते हैं हम
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ठुकरा के चले जबीं को मेरी
क़िस्मत की लिखी ने यावरी की
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
दर पे नालाँ जो हूँ तो कहता है
पूछो क्या चीज़ बेचता है ये
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
दिमाग़ और ही पाती हैं इन हसीनों में
ये माह वो हैं नज़र आएँ जो महीनों में
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
न मर के भी तिरी सूरत को देखने दूँगा
पड़ूँगा ग़ैर की आँखों में वो ग़ुबार हूँ मैं
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
न होगा कोई मुझ सा महव-ए-तसव्वुर
जिसे देखता हूँ समझता हूँ तू है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
नक़्श-ए-पा पंच-शाख़ा क़बर पर रौशन करो
मर गया हूँ मैं तुम्हारी गरमी-ए-रफ़्तार पर
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
नहीं चाक-दामन कोई मुझ सा 'गोया'
न बख़िया की ख़्वाहिश न फ़िक्र-ए-रफ़ू है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
नहीं बचता है बीमार-ए-मोहब्बत
सुना है हम ने 'गोया' की ज़बानी
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
नासेहा आशिक़ी में रख मा'ज़ूर
क्या करूँ आलम-ए-जवानी है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
बिजली चमकी तो अब्र रोया
याद आ गई क्या हँसी किसी की
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
मिस्ल-ए-तिफ़्लाँ वहशियों से ज़िद है चर्ख़-ए-पीर को
गर तलब मुँह की करें बरसाए पत्थर सैकड़ों
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
वो तिफ़्ल-ए-नुसैरी आए शायद
क़स्में दूँ मुर्तज़ा-अली की
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
सख़्त है हैरत हमें जो ज़ेर-ए-अबरू ख़ाल है
हम तो सुनते थे कि का'बे में कोई हिन्दू नहीं
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
सारे क़ुरआन से उस परी-रू को
याद इक लफ़्ज़-ए-लन-तरानी है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
हर गाम पे ही साए से इक मिस्रा-ए-मौज़ूँ
गर चंद क़दम चलिए तो क्या ख़ूब ग़ज़ल हो
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
है हर इक शेर यार की तस्वीर
फ़िक्र अपनी ख़याल-ए-मानी है
- गोया फ़क़ीर मोहम्मद
फ़िक्र में आएगा सवाल मिरा
और जवाब उस का हाँ से गुज़रेगा
- गोविन्द गुलशन
मैं कि हर-दम मुझे बालीदगी-ए-रूह की फ़िक्र
रूह को फ़िक्र है वारस्ता-ए-तन होने की
- गौहर होशियारपुरी
हक़ारत की निगाहों से न फ़र्श-ए-ख़ाक को देखो
अमीरों का फ़क़ीरों का यही आख़िर को बिस्तर है
- हक़ीर
जो है ताज़गी मिरी ज़ात में वही ज़िक्र-ओ-फ़िक्र-ए-चमन में है
कि वजूद मेरा कहीं भी हो मिरी रूह मेरे वतन में है
- हनीफ़ अख़गर
नौहागरों को भी है गला बैठने की फ़िक्र
जाता हूँ आप अपनी अजल को पुकारने
- हफ़ीज़ जालंधरी
सरमाये का जि़क्र करो मज़दूरों की इनको फ़िक्र नहीं
मुख्तारी पर मरते हैं मजबूरों की इनको फ़िक्र नहीं
- हफीज़ जालंधरी
उम्र भर फ़िक्र-ए-सुख़न में था 'हफ़ीज़'
शाएरी का दिल में इक नासूर था
- हफ़ीज़ जौनपुरी
चारागर को है मिरे फ़िक्र-ए-दवा
दर्द ही जान है क्या मुश्किल है
- हफ़ीज़ जौनपुरी
ख़फ़ा है गर ये ख़ुदाई तो फ़िक्र ही क्या है
तिरी निगाह सलामत मुझे कमी क्या है
- हफ़ीज़ बनारसी
इश्तिराक-ए-फ़िक्र हो कैसे हमारे दरमियाँ
तेरी ख़्वाहिश और है मेरी तमन्ना और है
- हफ़ीज़ शाहिद
दिल के आँगन में रौशनी के लिए
फ़िक्र की ताज़गी ही काफ़ी है
- हफ़ीज़ शाहिद
फ़िक्र-ए-इतलाफ़-ए-ज़िंदगी कैसा
मैं अजल की अमाँ में रहता हूँ
- हफ़ीज़ शाहिद
अब नज़र में नहीं है एक ही फूल
फ़िक्र हम को कली कली की है
- हबीब जालिब
बढ़ा फ़िक्र में रंग ज़र्दी-ए-रुख़ से
ये इत्र-ए-गुल-ए-ज़ाफ़राँ खींचते हैं
- हबीब मूसवी
मैं वो ईज़ा-कश-ए-फ़िक्र हूँ आज तक
जो उड़ाता रहा अपनी ही धज्जियाँ
- हमदुन उसमानी
फ़िक्र पाबंदी-ए-हालात से आगे न बढ़ी
ज़िंदगी क़ैद-ए-मक़ामात से आगे न बढ़ी
- हमीद नागपुरी
चराग़ फ़न के जलाएँगे हम अँधेरों में
शुऊ'र फ़िक्र की मशअ'ल है अपने हाथों में
- हयात मदरासी
अपना अपना ज़ौक़-ए-तलफ़ है अपनी अपनी फ़िक्र-ए-नज़र है
हर मंज़िल अंजाम-ए-सफ़र है हर मंज़िल आग़ाज़-ए-सफ़र है
- हर भगवान शाद
फ़िक्र-ए-उक़्बा है मुझे ख़्वाहिश-ए-दुनिया है मुझे
ऐश की धुन है मुझे मौत का धड़का है मुझे
- हरी चंद अख़्तर
उम्र गुज़री गुनाह-गारी में
फ़िक्र अंजाम की रही न रही
- हरी मेहता
मैं था बे-फ़िक्र बैठ कश्ती में
कश्ती ने ही डुबो दिया मुझ को
- हर्षल ग़ाफ़िल
फ़िक्र-ए-मंज़िल है न नाम-ए-रहनुमा लेते हैं हम
अपना ज़ौक़-ए-रह-रवी ख़ुद आज़मा लेते हैं हम
- हसन अज़ीमाबादी
फ़क़त अपनी न रही फ़िक्र 'जमील'
हम ने तेरा भी पता रक्खा है
- हसन जमील
क्या फ़िराक़ ओ फ़ैज़ से लेना था मुझ को ऐ 'नईम'
मेरे आगे फ़िक्र-ओ-फ़न के कुछ नए आदाब थे
- हसन नईम
माँगो समुंदरों से न साहिल की भीक तुम
हाँ फ़िक्र ओ फ़न के वास्ते गहराई माँग लो
- हसन नज्मी सिकन्दरपुरी
मिरे मरने से तुम को फ़िक्र ऐ दिलदार कैसी है
तुम्हारी दिल-लगी को महफ़िल-ए-अग़्यार कैसी है
- हसन बरेलवी
तिरी फ़िक्र का मुब्तिला हो गया दिल
मगर क़ैद-ए-ग़म से रिहा हो गए हम
- हसरत मोहानी
दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम से कर दिया आज़ाद
तिरे जुनूँ का ख़ुदा सिलसिला दराज़ करे
- हसरत मोहानी
मस्लक-ए-इश्क़ में है फ़िक्र हराम
दिल को तदबीर-आश्ना न करें
- हसरत मोहानी
मिल ही रहती है मय-परस्त को मय
फ़िक्र-ए-नायाबी-ए-शराब न कर
- हसरत मोहानी
फ़िक्र अब तक तिरी कहानी के
इक़्तिबासात से है वाबस्ता
- हाजरा नूर ज़रयाब
'मेहर' यूँ फ़िक्र-ए-परेशाँ ता-ब-कै
जम्अ' दीवाँ कर जो तुझ से हो सके
- हातिम अली मेहर
रंगीं-ख़यालियाँ दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न न थीं
ज़ेब तन-ए-उरूस लिबास-ए-शहाना था
- हातिम अली मेहर
हो दाख़िल जब हवा में ऑक्सीजन
अबस कोई करे फ़िक्र-ए-ग़िज़ा क्या
- हाशिम अज़ीमाबादी
कभी ये फ़िक्र कि वो याद क्यूँ करेंगे हमें
कभी ख़याल कि ख़त का जवाब आएगा
- हिज्र नाज़िम अली ख़ान
बर्क़ मंज़र से निगाहों की बसारत छीने
फ़िक्र दुश्मन को मिरे है मिरी बीनाई की
- हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी
उस को रक्खा है फ़िक्र से आज़ाद
ख़ुद पे पाबंदियाँ लगाती हूँ
- हिना अंबरीन
'मीर' ने दिल की धड़कन दी 'इक़बाल' ने फ़िक्र का नूर दिया
'ग़ालिब' ने आग़ोश को इस की हुस्न-ए-क़रीब-ओ-दूर दिया
- हुरमतुल इकराम
फ़ैसला दिल का मोहब्बत में है रहबर अपना
फ़िक्र किया मंज़िल-ए-जानाँ अगर अनजानी है
- हेंसन रेहानी
उस कमर के सुबूत में आजिज़
फ़िक्र कर कर के मूशिगाफ़ हुआ
- हैदर अली आतिश
किसी हालत में नहीं फ़िक्र से दुश्मन ग़ाफ़िल
आफ़त-ए-मुर्ग़ है रंगीन हो बादाम सफ़ेद
- हैदर अली आतिश
फ़िक्र-ए-बुलंद ने मिरी ऐसा किया बुलंद
'आतिश' ज़मीन-ए-शेर से पस्त आसमाँ हुआ
- हैदर अली आतिश
मसनद-ए-शाही की हसरत हम फ़क़ीरों को नहीं
फ़र्श है घर में हमारे चादर-ए-महताब का
- हैदर अली आतिश
रही सब्ज़ बे-फ़िक्र किश्त-ए-सुख़न
न जोता किया मैं न बोया किया
- हैदर अली आतिश
न तो कुछ फ़िक्र में हासिल है न तदबीर में है
वही होता है जो इंसान की तक़दीर में है
- हैरत इलाहाबादी
बस ऐ शम्अ कर फ़िक्र अपनी ज़रा
इन्ही चार आँसू पे इतना घमंड
- इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
मिल गए पर हिजाब बाक़ी है
फ़िक्र-ए-नाज़-ओ-इताब बाक़ी है
- इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
खुला हर मंज़र-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र आहिस्ता आहिस्ता
छटा आख़िर ग़ुबार-ए-रहगुज़र आहिस्ता आहिस्ता
- इक़बाल अंजुम
ज़वाल-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न था और मैं था
अजब क़हत-ए-सुख़न था और मैं था
- इक़बाल अासिफ़
अटे हुए हैं फ़क़ीरों के पैरहन 'कैफ़ी'
जहाँ ने भीक में मिट्टी बिखेर कर दी है
- इक़बाल कैफ़ी
इक संग से है फ़िक्र-ए-अरस्तू शरर-नुमा
इक आइने में अक्स-ए-सिकंदर शिकस्ता है
- इक़बाल कौसर
राह-नुमा को फ़िक्र ही क्या
कोई मुसाफ़िर क्यों है मलूल
- इक़बाल जहाँ क़दीर
आतिश-ए-फ़िक्र तुझ में जलते हुए
अब चमन-ज़ार चीख़ उठे हैं
- इक़बाल तारिक़
ज़ेहन-ए-आज़र है ख़्वाब-गाह-ए-जुमूद
फ़िक्र-ओ-फ़न के हैं बुत-कदे ख़ामोश
- इक़बाल माहिर
फ़िक्र-ए-मेआर-ए-सुख़न बाइस-ए-आज़ार हुई
तंग रक्खा तो हमें अपनी क़बा ने रक्खा
- इक़बाल साजिद
मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर
आदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं
- इक़बाल साजिद
मरे दोष पर तिरी लाश रे ओ मुआ'शरे
तेरा मर्ग फ़िक्र-ए-मआ'श रे ओ मुआ'शरे
- इकराम बसरा
तसव्वुर उस दहान-ए-तंग का रुख़्सत नहीं देता
जो टुक दम मार सकते हम तो कुछ फ़िक्र-ए-सुख़न करते
- इनामुल्लाह ख़ाँ यक़ीन
तमाम फ़िक्र ज़माने की टाल देता है
ये कैसा कैफ़ तुम्हारा ख़याल देता है
- इन्दिरा वर्मा
आजिज़ी बख़्शी गई तमकनत-ए-फ़क़्र के साथ
देने वाले ने हमें कौन सी दौलत नहीं दी
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
किस की ख़ातिर ग़ज़ल की चादर पर
गौहर-ए-फ़िक्र जुड़ रहा हूँ मैं
- इफ़्तिख़ार राग़िब
तोड़ कर सारी फ़सीलें 'राग़िब'
फ़िक्र-ए-आगाह निकल जाएगी
- इफ़्तिख़ार राग़िब
'राग़िब' वो मेरी फ़िक्र में ख़ुद को भी भूल जाएँ
ऐसी तो कोई बात नहीं चाहता था मैं
- इफ़्तिख़ार राग़िब
वो कहते हैं कि 'राग़िब' तुम नहीं रखते ख़याल अपना
मैं कहता हूँ कि हर दम फ़िक्र दामन-गीर किस की है
- इफ़्तिख़ार राग़िब
जान-ओ-माल फ़िदा करने में
फ़िक्र-ओ-तरद्दुद ऐ ना-मर्दो
- इमदाद अली बहर
'बहर' मुस्तग़नी हैं फ़िक्र-ए-शेर से
गौहर-ए-मा'नी फ़राहम कर चुके
- इमदाद अली बहर
'बहर' मुस्तग़नी हैं फ़िक्र-ए-शे'र से
गौहर-ए-मा'नी फ़राहम कर चुके
- इमदाद अली बहर
भेद अपना दिया न उस दिल ने
हम भी कुछ अपनी फ़िक्र कर रखते
- इमदाद अली बहर
पहुँच सके न वहाँ फ़िक्र-ओ-आगही वाले
तिरी निगाह के मारे जहाँ जहाँ गुज़रे
- इम्तियाज़ अहमद क़मर
उजलतों में उस ने हम से कह दिया बे-फ़िक्र हूँ
पर हमारी चाह में शाम-ओ-सहर रोते रहे
- इरफान आबिदी मानटवी
मिरे गुम-गश्ता ग़ज़ालों का पता पूछता है
फ़िक्र रखता है मसीहा मिरी बीमारी की
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
चराग़-ए-फ़िक्र जलाया है रात भर हम ने
और उस के बा'द निखारा रुख़-ए-सहर हम ने
- इरफ़ाना अज़ीज़
सुख़न-वर फ़िक्र के लम्हों में अक्सर
लगे है यूँ कि गो बैठा है पागल
- इरशाद ख़ान सिकंदर
खड़ी है फ़िक्र के आज़र-कदे में
बुरीदा-दस्त फिर आज़र की लड़की
- इशरत आफ़रीं
हम नई फ़िक्र के पयम्बर हैं
हम पे भी इक नई किताब उतरे
- इशरत आफ़रीं
क्या फ़िक्र-ए-आब-ओ-नान कि ग़म कह रहा है अब
मौजूद हूँ ज़ियाफ़त-ए-दिल और जिगर को मैं
- इस्माइल मेरठी
ज़िक्र-ए-क़ामत में अगर फ़िक्र तरक़्क़ी न करे
रश्क-ए-तूबा तो लिखे गो ब-तनज़्ज़ुल बाँधे
- इस्माइल मेरठी
फ़िक्र-ए-इफ़शा-ए-राज़ क्यूँ न करूँ
क्या हया-ख़ेज़ है नज़र देखो
- इस्माइल मेरठी
सच कहोगे तो तुम रहोगे शाद
फ़िक्र से पाक रंज से आज़ाद
- इस्माइल मेरठी
जो चाँदनी नहीं तो क्या, ये रोशनी है प्यार की
दिलों के फूल खिल गये, तो फ़िक्र क्या बहार की
हमारे घर ना आयेगी, कभी ख़ुशी उधार की
हमारी राहतों का घर, हमारी चाहतों का घर
- जावेद अख्तर
मैं ने इस फ़िक्र में काटें कई रातें कई दिन
मिरे शे'रों में तिरा नाम न आए लेकिन
- क़तील शिफ़ाई
मैं अपनी फ़िक्र का कोह-ए-निदा हूँ
कोई हातिम मिरे अंदर भी आए
- कबीर अजमल
आक़िबत की फ़िक्र नादानों का हिस्सा ही सही
आक़िबत के तज़्किरे पर बरमला रोया करो
- क़य्यूम नज़र
कैसे भूखों मरेंगे इतने लोग
बे-हुदा अहद-ए-नौ में फ़िक्र-ए-क़िमाश
- क़य्यूम नज़र
तुम्हारी सम्त ज़माना बिल-आख़िर आएगा
तुम अपनी फ़िक्र की सम्तों को मोड़ते क्यूँ हो
- करामत अली करामत
हर सोच में संगीन फ़ज़ाओं का फ़साना
हर फ़िक्र में शामिल हुआ तहरीर का मातम
- करामत बुख़ारी
फ़िक्र-ओ-इज़हार में ख़ुद आने लगी पा-मर्दी
भूक की आग ने लहजे में तमाज़त भर दी
- कर्रार नूरी
कीजिए अब मिरे निबाह की फ़िक्र
यार सब्र-ए-गुरेज़-पा कब तक
- क़लक़ मेरठी
फ़िक्र-ए-सितम में आप भी पाबंद हो गए
तुम मुझ को छोड़ दो तो मैं तुम को रिहा करूँ
- क़लक़ मेरठी
अब उन्हीं की फ़िक्र में सय्याद है
जिन के नग़्मों से चमन आबाद है
- कलीम आजिज़
अपने तईं आप वो नहीं पाते
फ़िक्र में तुझ कमर की हैं जो ज़ईफ़
- क़ाएम चाँदपुरी
गिर रहा है रवाक़-ए-वहम ग़ाफ़िल
फ़िक्र-ए-नक़्श-ओ-निगार करते हैं
- क़ाएम चाँदपुरी
फ़िक्र-ए-तामीर में हूँ फिर भी मैं घर की ऐ चर्ख़
अब तलक तू ने ख़बर दी नहीं सैलाब के तईं
- क़ाएम चाँदपुरी
मिरा ख़याल मिरी सोच है किताब मिरी
ख़ुदा-ए-फ़िक्र का भेजा हुआ नबी हूँ मैं
- काज़िम जरवली
जब फ़िकरों पर बादल से मंडलाते होंगे
इंसाँ घट कर साए से रह जाते होंगे
- कालीदास गुप्ता रज़ा
अज़-सर-ए-नौ फ़िक्र का आग़ाज़ करना चाहिए
बे-पर-ओ-बाल सही परवाज़ करना चाहिए
- काविश बद्री
बचा के फ़िक्र को तल्ख़ाबा-ए-तवारुद से
ग़ज़ल को ख़ूगर-ए-ता'क़ीद करने वाला था
- काविश बद्री
शैख़ मुझ को न डरा अपनी मुसलमानी थाम
हम फ़क़ीरों का किसी रंग से ईमान न जाए
- क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
गोशा-गीरी में हिर्स अफ़्ज़ूँ हो
सुब्ह शबनम को फ़िक्र-ए-रफ़तन है
- किशन कुमार वक़ार
ताइर-ए-फ़िक्र को सुस्ती से 'वक़ार'
तेज़ पर्वाज़ किया चाहिए अब
- किशन कुमार वक़ार
चादर अपनी बढे, घटे ये फ़िक्र नहीं
पाँव हमेशा हम फैलाते रहते है
- कुमार पाशी
फ़िक्र-ए-दुश्वारी-ए-मतालिब में
एक बेचारा राज़दाँ और मैं
- क़ुर्बान अली सालिक बेग
अहद-ए-हाज़िर की किताबी शाइरी
फ़िक्र की जागीर हो कर रह गई
- कृष्ण मोहन
वो था इक नुक्ता-दाँ ख़ुश-फ़िक्र शाएर
मगर नादान बन कर रह गया है
- कृष्ण मोहन
उन से मिल कर और भी कुछ बढ़ गईं
उलझनें फ़िक्रें क़यास-आराइयाँ
- कैफ़ भोपाली
तू भी मै भी मस्त कलंदर, मस्तो को क्या फ़िक्र
तेरे घर का हाल रे बाबा,
मेरे घर का हाल भूका है
- कैफ भोपाली
ग़म-ए-हस्ती न कुछ फ़िक्र-ए-दिल-ओ-जाँ है जहाँ मैं हूँ
कि हर हर गाम पर कोई निगहबाँ है जहाँ मैं हूँ
- कैफ़ मुरादाबादी
बक़ा की फ़िक्र करो ख़ुद ही ज़िंदगी के लिए
ज़माना कुछ नहीं करता कभी किसी के लिए
- कैफ़ मुरादाबादी
तमाम जिस्म है बेदार, फ़िक्र ख़ाबीदा
दिमाग़ पिछले ज़माने की यादगार सा है
- कैफी आज़मी
या कोई फ़िक्र-ए-औहाम में
फ़िक्र सदियों अकेली अकेली रही
- कैफ़ी आज़मी
हम अपनी फ़िक्र का चेहरा बदल के देखते हैं
तिलिस्म ख़्वाब से बाहर निकल के देखते हैं
- क़ैसर सिद्दीक़ी
अपने ग़म की फ़िक्र न की इस दुनिया की ग़म-ख़्वारी में
बरसों हम ने दस्त-ए-जुनूँ से काम लिया दानाई का
- क़ौसर जायसी
हमें जो फ़िक्र की दावत न दे सके 'कौसर'
वो शेर तो है रूह-ए-शाएरी तो नहीं
- कौसर सीवानी
लफ़्ज़ की काएनात में गुम हूँ
फ़िक्र में गुम हूँ बात में गुम हूँ
- ख़लील मामून
कब तलक शादाबी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र काम आएगी
गीले कपड़े से हवा पानी उड़ा ले जाएगी
- ख़लील रामपुरी
क्यूँ हर घड़ी ज़बाँ पे हो जुर्म-ओ-सज़ा का ज़िक्र
क्यूँ हर अमल की फ़िक्र में ख़ौफ़-ए-ख़ुदा की शर्त
- ख़लील-उर-रहमान आज़मी
ज़रा जो तेज़ चले तो कोई भी साथ न था
हिसार-ए-फ़िक्र ही बस अपना पासबान हुआ
- ख़लील-उर-रहमान आज़मी
फूल से बास जुदा फ़िक्र से एहसास जुदा
फ़र्द से टूट गए फ़र्द क़बीले न रहे
- ख़ालिद अहमद
खाते की इन को फ़िक्र न लेजर की फ़िक्र है
ननदों की ग़ीबतें हैं तो देवर का ज़िक्र है
- खालिद इरफ़ान
चाँद ने मुझ से कहा ऐ शायर-ए-फ़िक्र-ए-अज़ल
मेरे बारे में भी लिख दे कोई संजीदा ग़ज़ल
- खालिद इरफ़ान
ख़ुद-नुमाई का जाल था 'साहिल'
मैं ने भी फ़िक्र के सँवारे पर
- ख़ालिद मलिक साहिल
फ़िक्र हर कस ब-क़दर-ए-हिम्मत-ए-ऊस्त
हम को हिन्दोस्ताँ में रहना है
- ख़ालिद महमूद
दाएम आबाद रहे दार-ए-फ़ना के बासी
फ़िक्र में रूह-ए-बक़ायाब समोने वाले
- ख़ावर जीलानी
क़द्र क्या दावा-ए-अनल-हक़ की
फ़िक्र-ए-दार-ओ-रसन ही मरती है
- ख़ुमार मीरज़ादा
मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ग़म की राह में 'जामी'
नए चराग़ मिरी फ़िक्र ने जलाए हैं
- ख़ुर्शीद अहमद जामी
मैं ने तो तसव्वुर में और अक्स देखा था
फ़िक्र मुख़्तलिफ़ क्यूँ है शाएरी के पैकर में
- ख़ुशबीर सिंह शाद
'जावेद' अपने फ़िक्र-ओ-नज़र आसमाँ से ला
प्यारे ज़माना ख़ाक-नशीं का नहीं रहा
- ख़्वाजा जावेद अख़्तर
पहुँचाया ता-ब-काबा-ए-मक़्सूद फ़क़्र ने
तर्क-ए-लिबास-ए-जामा-ए-एहराम हो गया
- ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर
ग़म-ए-कौन-ओ-मकाँ से फ़िक्र बेश-ओ-कम से गुज़रे हैं
फ़क़त इक जाम में हम कितने ही आलम से गुज़रे हैं
- ख़्वाजा शौक़
सैल-ए-गिर्या से मिरी नींद उड़ी मर्दुम की
फ़िक्र-ए-बाम-ओ-दर-ओ-दीवार ने सोने न दिया
- ख्वाज़ा हैदर अली आतिश
उम्र भर दूसरों की फ़िक्र रही
अपना दामन रफ़ू न कर पाए
- लईक़ आजिज़
मलामतें ग़म-ओ-आलाम फ़िक्र मायूसी
ये ज़िंदगी है शिकस्ता किताब की सूरत
- लईक़ आजिज़
ए'तिबार-ए-आरज़ू-ए-मुख़्तसर बाक़ी सही
ए'तिबार-ए-जज़्बा-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र जाता रहा
- लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
वज्ह-ए-आशोब-ए-तमन्ना हुआ फ़िक्र-ए-जन्नत
वज्ह-ए-आसूदगी-ए-रूह मुनाजात हुई
- लक्ष्मी नारायण फ़ारिग़
ग़म का तूफ़ाँ भी अगर आए तो कुछ फ़िक्र न कर
क़ौम का दर्द हर इक दिल में मगर पैदा कर
- लाला अनूप चंद आफ़्ताब पानीपति
ढूँड लेंगे जब कोई तुम सा तभी चैन आएगा
हम भी अपनी फ़िक्र में रहते हैं कुछ ग़ाफ़िल नहीं
- लाला माधव राम जौहर
तुम शाह-ए-हुस्न हो के न पूछो फ़क़ीर से
ऐसे भरे मकान से ख़ाली गदा फिरे
- लाला माधव राम जौहर
वो है बड़ा करीम रहीम उस की ज़ात है
नाहक़ गुनाहगारों को फ़िक्र-नजात है
- लाला माधव राम जौहर
बारहा यूरिश-ए-अफ़्कार ने सोने न दिया
फ़िक्र आज़ाद है आज़ार ने सोने न दिया
- लैस क़ुरैशी
गुम है यूँ फ़िक्र-ए-काएनात में दिल
याद-ए-महबूब से भी ग़ाफ़िल है
- मंज़ूर आरिफ़
मुझे ख़ुद अपनी नहीं उस की फ़िक्र लाहक़ है
बिछड़ने वाला भी मुझ सा ही बे-सहारा था
- मक़बूल आमिर
फ़िक्र ओ ख़याल की रहगुज़र आबाद हो रही है
ज़बाँ बहुत सी पुरानी हद-बंदियों से आज़ाद हो रही है
- मख़मूर सईदी
मुझे ये फ़िक्र सब की प्यास अपनी प्यास है साक़ी
तुझे ये ज़िद कि ख़ाली है मिरा पैमाना बरसों से
- मजरूह सुल्तानपुरी
कल की फ़िक्र कहाँ तक कीजे
और बुरा अब कितना होगा
- मज़हर इमाम
ज़ुल्मत-ए-ग़म जब ज़ियादा हो 'इमाम'
शम्-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न जलाया कीजिए
- मज़हर इमाम
नई है फ़िक्र मगर लफ़्ज़ तो पुराने हैं
क़दामतें हैं वहीं ताज़गी के रस्ते में
- मज़हर इमाम
रिज़्क-ए-मक़्सूम खा के जीना था
खा गई फ़िक्र-ए-रोज़गार मुझे
- मजीद अख़्तर
मैं फ़िक्र-ए-राज़-ए-हस्ती का परस्तार
मिरी तस्बीह के दाने ज़माने
- मजीद अमजद
हम फ़िक्र में हैं इस आलम का दस्तूर है क्या दस्तूर
ये किस को ख़बर इस फ़िक्र का है दस्तूर-ए-दो-आलम नाम
- मजीद अमजद
हर वक़्त फ़िक्र-ए-मर्ग-ए-ग़रीबाना चाहिए
सेह्हत का एक पहलू मरीज़ाना चाहिए
- मजीद अमजद
गुज़श्त दिन के हवादिस का ज़िक्र करती है
उदास शाम बहुत मेरी फ़िक्र करती है
- मयंक अवस्थी
दाएरे फ़िक्र के महदूद हों मुमकिन ही नहीं
कब 'असर' मो'तरिफ़-ए-तंगी-ए-दामाँ निकला
- मर्ग़ूब असर फ़ातमी
दौर-ए-इशरत ने सँवारे हैं ग़ज़ल के गेसू
फ़िक्र के पहलू मगर ग़म की बदौलत आए
- मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
वक़्त चलता है उड़ाता हुआ लम्हात की गर्द
पैरहन फ़िक्र का हर रोज़ बदलते रहिए
- मलिकज़ादा मंज़ूर अहमद
हमारी फ़िक्र भी ख़स्ता हमारे कार ग़लत
हमारी जस्त ने बख़्शा हमें हिसार ग़लत
- मसूद हस्सास
काग़ज़ अगर सियाह करें तो करें हरीफ़
सूरज उगाए हैं मिरी फ़िक्र-ओ-निगाह ने
- महताब आलम
तुम अपनी फ़िक्र को बे-शक उड़ान में रखना
ज़मीन-बोस इमारत भी ध्यान में रखना
- महबूब ज़फ़र
फ़िक्र के सारे गुल-बूटे मुरझा गए
ज़ेहन की सारी शादाबियाँ ख़त्म-शुद
- महबूब राही
फ़िक्रों को चीरते हुए तेरे ख़याल ने
टूटे हुए बदन में नया दिल लगा दिया
- महमूद इश्क़ी
फ़िक्र मामिन की, जुबा दाग की, ग़ालिब का बयाँ
अब भला कौन यह करता है ग़ज़ल कहने में
- महमूद जकी
फ़िक्र-ए-तज्दीद-ए-रिवायात-ए-कुहन आज भी है
हक़-बयानी का सिला दार-ओ-रसन आज भी है
- महशर इनायती
ताज़ा नहीं है नश्शा-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न मुझे
तिर्याकी-ए-क़दीम हूँ दूद-ए-चराग़ का
- मिर्ज़ा ग़ालिब
न फ़िक्र-ए-सलामत न बीम-ए-मलामत
ज़े-ख़ुद-रफ़्तगी-हा-ए-हैरत सलामत
- मिर्ज़ा ग़ालिब
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
- मिर्ज़ा ग़ालिब
बना कर फ़क़ीरों का हम भेस 'ग़ालिब'
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
- मिर्ज़ा ग़ालिब
करीम जो तुझे देना है बे-तलब दे दे
फ़क़ीर हूँ प नहीं आदत-ए-सवाल मुझे
- मीर अनीस
सदा है फ़िक्र-ए-तरक़्क़ी बुलंद-बीनों को
हम आसमान से लाए हैं इन ज़मीनों को
- मीर अनीस
ता-ब-कै होगा असीर-ए-दाम-ए-फ़िक्र
'अर्श' कर मौक़ूफ़ अशआ'र-ए-क़फ़स
- मीर कल्लू अर्श
अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर
कि हम फ़क़ीर हुए हैं इन्हीं की दौलत से
- मीर तक़ी मीर
कहे है कोहकन कर फ़िक्र मेरी ख़स्ता-हाली में
इलाही शुक्र करता हूँ तिरी दरगाह आली में
- मीर तक़ी मीर
कुछ करो फ़िक्र मुझ दीवाने की
धूम है फिर बहार आने की
- मीर तक़ी मीर
गई उम्र दर-बंद-ए-फ़िक्र-ए-ग़ज़ल
सो इस फ़न को ऐसा बड़ा कर चले
- मीर तक़ी मीर
तिरे फ़िराक़ में जैसे ख़याल मुफ़्लिस का
गई है फ़िक्र-ए-परेशाँ कहाँ कहाँ मेरी
- मीर तक़ी मीर
तोशा-ए-आख़िरत का फ़िक्र रहे
जी से जाने का है सफ़र नज़दीक
- मीर तक़ी मीर
दिल के मामूरे की मत कर फ़िक्र फ़ुर्सत चाहिए
ऐसे वीराने के अब बसने को मुद्दत चाहिए
- मीर तक़ी मीर
न हो किस तरह फ़िक्र अंजाम कार
भरोसा है जिस पर सो मग़रूर है
- मीर तक़ी मीर
फ़िक्र मत कर हमारे जीने का
तेरे नज़दीक कुछ ये दूर नहीं
- मीर तक़ी मीर
फ़िक्र है माह के जो शहर-बदर करने की
है सज़ा तुझ पे ये गुस्ताख़ नज़र करने की
- मीर तक़ी मीर
फ़िक्र-ए-ता'मीर' में न रह मुनइम
ज़िंदगानी की कुछ भी है बुनियाद
- मीर तक़ी मीर
मुस्तग़नियाना तो जो करे पहले ही सुलूक
आशिक़ को फ़िक्र-ए-आक़िबत-कार क्यूँ न हो
- मीर तक़ी मीर
शोला-ए-आह जूँ-तूँ अब मुझ को
फ़िक्र है अपने हर बिन मू का
- मीर तक़ी मीर
हम फ़क़ीरों से बे-अदाई क्या
आन बैठे जो तुम ने प्यार किया
- मीर तक़ी मीर
सौ तरह की फ़िक्र में 'तस्कीं' पड़े
दिल लगा कर उस बुत-ए-अय्यार से
- मीर तस्कीन देहलवी
लो वो आते हैं जल्द हज़रत-ए-दिल
फ़िक्र-ए-सब्र-ए-गुरेज़-पा कीजे
- मीर मेहदी मजरूह
न ग़म-ए-दिल न फ़िक्र-ए-जाँ है याद
एक तेरी ही बर ज़बाँ है याद
- मीर मोहम्मदी बेदार
रोज़ी-रसाँ ख़ुदा है फ़िक्र-ए-मआश मत कर
इस ख़ार का तू दिल में ख़ौफ-ए-ख़राश मत कर
- मीर मोहम्मदी बेदार
परेशाँ रहा आप तो फ़िक्र क्या है
मिला जिस से भी उस को बहला गया दिल
- मीराजी
मुझ को कुछ फ़िक्र नहीं आज ये दुनिया मिट जाए
मुझ को कुछ फ़िक्र नहीं आज ये बे-कार समाज
- मीराजी
हमारी बीबी किसी मरदुए से मिलती है
मुझे ये फ़िक्र नहीं नौकरों को आदत है
- मीराजी
ज़माने से निराला है उरूस-ए-फ़िक्र का जौबन
जवाँ होती है ऐ 'तस्लीम' जब ये पीर होती है
- मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
फ़िक्र है शौक़-ए-कमर इश्क़-ए-दहाँ पैदा करूँ
चाहता हूँ एक दिल में दो मकाँ पैदा करूँ
- मुंशी अमीरुल्लाह तस्लीम
फ़िक्र-ए-मआल थी न ग़म-ए-रोज़गार था
हम थे जहाँ में और तिरा इंतिज़ार था
- मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
शौक़-ए-दिल फ़िक्र-ए-दहन में है जो रहबर की तरह
ढूँढता हूँ चश्मा-ए-हैवाँ सिकंदर की तरह
- मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
सुलगती धूप में जल कर फ़क़ीर-ए-शब तिरी ख़ाक
क्यूँ ख़ान-क़ाह-ए-शब-ए-बे-कराँ मैं बैठ गई
- मुईद रशीदी
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मुदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक्र-ए-आशियाना
- मुईन अहसन जज़्बी
फ़िक्र लाहिक़ है रोज़ी-रोटी की
मुझ को तेरा ख़याल थोड़ी है
- मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
फ़िक्र-ए-अंजाम न कर घूम के संसार में भौंक
रेडियो टी-वी में और मीडिया स्टार में भौंक
- मुख़तसर आज़मी
'शमीम' आइए फ़िक्र-ए-सुख़न-शिआ'र करें
यही फ़रार का रस्ता दिखाई देता है
- मुख़तार शमीम
फ़िक्र सब को है रफ़ू के लिए सामानों की
पूछता कोई नहीं हाल गिरेबानों के
- मुख़्तार सिद्दीक़ी
साहिब-ए-ताज-ए-बसीरत हूँ मैं दीवाना सही
फ़िक्र शाहाना है अंदाज़ फ़क़ीराना सही
- मुख़्तार हाशमी
वा'दा मुआवज़े का न करता अगर ख़ुदा
ख़ैरात भी सख़ी से न मिलती फ़क़ीर को
- मुज़फ़्फ़र वारसी
गुम्बद-ए-फ़िक्र में आवाज़ें ही आवाज़ें हैं
मैं हर आवाज़ की तस्वीर बनाऊँ कैसे
- मुनज़्ज़ा अनवर गोइंदी
अपने मजनूँ की ज़रा देख तो बे-परवाई
पैरहन चाक है और फ़िक्र सिलाने की नहीं
- मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल
किस को फ़िक्र-ए-गुम्बद-ए-क़स्र-ए-हबाब
आबजू पैहम चले पैहम चले
- मुनीर नियाज़ी
कोई तो है 'मुनीर' जिसे फ़िक्र है मिरी
ये जान कर अजीब सी हैरत हुई मुझे
- मुनीर नियाज़ी
बे-तकल्लुफ़ आ गया वो मह दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न
रह गया पास-ए-अदब से क़ाफ़िया आदाब का
- मुनीर शिकोहाबादी
रख फ़िक्र-ए-जिस्म आरयती काएनात में
चोरी न जाएँ माँग के कपड़े बरात में
- मुनीर शिकोहाबादी
हो गया हूँ मैं नक़ाब-ए-रू-ए-रौशन पर फ़क़ीर
चाहिए तह-बंद मुझ को चादर-ए-महताब का
- मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल को मान लिया सब ने आबरू-ए-सुख़न
शुऊर-ओ-फ़िक्र के मौज़ूअ' मो'तबर बाँधो
- मुनीरुद्दीन सहर सईदी
नासेह यहाँ ये फ़िक्र है सीना भी चाक हो
है फ़िक्र-ए-बख़िया तुझ को गरेबाँ के चाक में
- मुफ़्ती सदरुद्दीन आज़ुर्दा
ज़मीन-ए-फ़िक्र में लफ़्ज़ों के जंगल छोड़ जाना
ग़ज़ल में अपनी कोई शे'र मोहमल छोड़ जाना
- मुबारक अंसारी
गर्मी का अब ज़िक्र नहीं है आया मौसम जाड़े का
पंखे की अब फ़िक्र नहीं है आया मौसम जाड़े का
- मुर्तजा साहिल तस्लीमी
दौलत-ए-फ़क़्र-ओ-फ़ना से हैं तवंगर हम लोग
जूतियाँ मारें हैं इक़बाल के सर पर हम लोग
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
फ़िक्र कर उन की वर्ना मज्लिस में
अभी तूफ़ाँ लाते हैं आँसू
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
फ़िक्र-ए-सुख़न तलाश-ए-मआश ओ ख़याल-ए-यार
ग़म कम हुआ तो हाँ दिल-ए-बे-ग़म से होवेगा
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
वाँ लाल फड़कता है अमीरों के क़फ़स में
याँ फ़ाख़्ता हक़-गो है फ़क़ीरों के क़फ़स में
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
सदा फ़िक्र-ए-रोज़ी है ता ज़िंदगी है
जो जीना यही है तो क्या ज़िंदगी है
- मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
अब इंक़िलाब-ए-ज़माना की फ़िक्र कौन करे
तिरी निगाह के मारों को नींद आती है
- मैकश नागपुरी
मुसलसल फ़िक्र-ए-दुनिया फ़िक्र-ए-उक़्बा
अब ऐसी ज़िंदगी क्या ज़िंदगी है
- मोज फ़तेहगढ़ी
अदम में रहते तो शाद रहते उसे भी फ़िक्र-ए-सितम न होता
जो हम न होते तो दिल न होता जो दिल न होता तो ग़म न होता
- मोमिन ख़ाँ मोमिन
किस पे मरते हो आप पूछते हैं
मुझ को फ़िक्र-ए-जवाब ने मारा
- मोमिन ख़ाँ मोमिन
थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब
- मोमिन ख़ाँ मोमिन
'मोमिन' इस ज़ेहन-ए-बे-ख़ता पर हैफ़
फ़िक्र-ए-आमुर्ज़िश-ए-गुनाह न की
- मोमिन ख़ाँ मोमिन
फ़ित्ना-ज़ा फ़िक्र हर इक दिल से निकाल अच्छा है
आए गर हुस्न-ए-ख़याल उस को सँभाल अच्छा है
- मोहम्मद अब्दुलहमीद सिद्दीक़ी नज़र लखनवी
अब किसी की याद भी आती नहीं
दिल पे अब फ़िक्रों के पहरे हो गए
- मोहम्मद अल्वी
ये भी शाएर हैं इन के बालों में
फ़िक्र-ओ-फ़न की जुएँ भटकती हैं
- मोहम्मद अल्वी
ज़र का ईंधन बनी फ़िक्र-ए-नौ
शाइ'री अध-मरी रह गई
- मोहम्मद अहमद
तिरी याद में थी वो बे-ख़ुदी कि न फ़िक्र-ए-नामा-बरी रही
मिरी वो निगारिश-ए-शौक़ भी कहीं ताक़ ही पे धरी रही
- मोहम्मद ज़ुबैर रूही इलाहाबादी
हम 'सुवैदा' से मिल के आए हैं
फ़िक्र रंगीं मिज़ाज सादा है
- मोहम्मद नबी ख़ाँ जमाल सुवेदा
जज़्ब-ए-दरूँ का फ़ैज़ है 'मंशा'
फ़िक्र-ए-सुख़न की ये परवाज़
- मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
दिल को जिस में हो फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ
उस तिजारत को आशिक़ी न कहो
- मोहम्मद मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
सर अपना उठा सकता नहीं कोई भी इबलीस
मिल जाए अगर फ़क़्र की तलवार मुझे भी
- मोहम्मद मुस्तहसन जामी
किस को पर्वा रहे मसाइब की
फ़िक्र को गर निखार मिल जाए
- मोहम्मद याक़ूब आसी
हमारी फ़िक्र अभी क़ैद है ज़वाहिर में
हम अपने काम से शोहरत कशीद करते हैं
- मोहम्मद याक़ूब आसी
इक न इक फ़िक्र लगी रहती है हर दम मुझ को
फ़िक्र-ए-दुनिया में पड़ा हूँ ग़म-ए-उक़्बा क्या है
- मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
फ़िक्र-ए-मआश इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इस ज़िंदगी में अब कोई क्या क्या किया करे
- मोहम्मद रफ़ी सौदा
वो ऐनक तो पहले लगा ही चुकी थी
हुई फ़िक्र डिबिया को अब खोलने की
- मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
रहे ख़ामोश तो ये होंट सुलग उठेंगे
शोला-ए-फ़िक्र को आवाज़ बनाते जाओ
- मोहसिन भोपाली
ज़रा भी नहीं फ़िक्र सूद-ओ-ज़ियाँ की
सर-ए-दार क्या बाँकपन नाचते हैं
- मोहसिन शाफ़ी
क़ैद हैं आँख में कई सपने
और है फ़िक्र की उड़ान अलग
- नक़्क़ाश आबिदी
'नक़्श' को फ़िक्र रातें जगाती रहीं
आज वो सो गया सोचते सोचते
- नक़्श लायलपुरी
बे-ज़री फ़ाक़ा-कशी मुफ़्लिसी बे-सामानी
हम फ़क़ीरों के भी हाँ कुछ नहीं और सब कुछ है
- नज़ीर अकबराबादी
यहाँ की फ़िक्र वहाँ का ख़याल रक्खा है
अकेले दोनों जहाँ को सँभाल रक्खा है
- नज़ीर बनारसी
सब को ये फ़िक्र हाथ से अब एक पल न जाए
दुनिया हुदूद-ए-वक़्त से आगे निकल न जाए
- नदीम फ़ाज़ली
मिरे दिल को नूर में ढाल कर
मिरे फ़िक्र-ओ-फ़न को उजाल दे
- नय्यर रानी शफ़क़
'नसीम' और कुछ फ़िक्र कीजे ख़ुदारा
अब इस नौकरी में गुज़ारा न होगा
- नसीम भरतपूरी
हम को है उन की फ़िक्र तो उन को अदू की फ़िक्र
दोनों हैं एक सिलसिला-ए-इज़्तिराब में
- नसीम भरतपूरी
हर एक शख़्स ज़माने में इंक़िलाबी है
कि इंक़िलाब नहीं फ़िक्र-ए-इंक़िलाब तो है
- नसीर आरज़ू
इक नई तख़्लीक़ का सूरज लिए
फ़िक्र के ज़ीने से उतरा आदमी
- नाज़ क़ादरी
'नाज़' का आहंग-ए-ताज़ा देखना
फ़िक्र-ओ-फ़न का दायरा रौशन हुआ
- नाज़ क़ादरी
क्यूँ तेरे नाम को सुनते ही मिरी साँस महकने लगती है
एहसास नशे में होता है हर फ़िक्र बहकने लगती है
- नाज़ बट
अपनी संजीदा तबीअत पे तो अक्सर 'नाज़िम'
फ़िक्र के शोख़ उजाले भी गिराँ होते हैं
- नाज़िम सुल्तानपूरी
फ़िक्र है मुझ को अपनी ही
ग़म भी मेरा ज़ाती है
- नाज़िर सिद्दीक़ी
घर बनाने की बड़ी फ़िक्र है दुनिया में हमें
साहब-ए-ख़ाना बने जाते हैं मेहमाँ हो कर
- नातिक़ गुलावठी
सर्द हो जाती है फ़िक्र-ए-जाह-ए-दुनिया जिस के बअ'द
वो ज़रा सा है ख़याल ऐ दिल कि फिर क्या इस के बअ'द
- नातिक़ गुलावठी
मैं कि 'नामी' पासदार-ए-फ़िक्र-नौ
जुर्म-हा-ए-गुफ़्तनी मेरी तरफ़
- नामी अंसारी
क्यूँ ग़म-ए-रफ़्तगाँ करे कोई
फ़िक्र-ए-वामाँदगाँ करे कोई
- नासिर काज़मी
गुलशन-ए-फ़िक्र की मुँह-बंद कली
शब-ए-महताब में वा होती है
- नासिर काज़मी
फ़िक्र-ए-तामीर-ए-आशियाँ भी है
ख़ौफ़-ए-बे-मेहरी-ए-ख़िज़ाँ भी है
- नासिर काज़मी
हुजूम-ए-नश्शा-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न में
बदल जाते हैं लफ़्ज़ों के मआ'नी
- नासिर काज़मी
तुम्हें सिर्फ़ औरों की फ़िक्र है
कि मेरा भी कोई ख़याल है
- नाहीद विर्क
फ़िक्र यही है हर घड़ी ग़म यही सुब्ह ओ शाम है
गर न मिला वो कुछ दिनों काम यहाँ तमाम है
- निज़ाम रामपुरी
न दुनिया का हूँ मैं न कुछ फ़िक्र दीं का
मोहब्बत ने रक्खा न मुझ को कहीं का
- नियाज़ फ़तेहपुरी
काम कोई न हो सका हम से
हम ने हर फ़िक्र पेशगी कर ली
- निशांत श्रीवास्तव नायाब
तू ही फ़िक्र-ए-अयाँ का मरकज़ भी
तू ही हर्फ़-ए-निहाँ का हिस्सा है
- निसार तुराबी
देख तिलिस्म-ए-फ़िक्र-ए-'निहाल'
सेहर-बयाँ शाइ'र से मिल
- निहाल सेवहारवी
मेरी हर फ़िक्र में तूफ़ान की तुग़्यानी है
और मिरे शौक़ में जज़्बों की फ़रावानी है
- नील अहमद
ज़िक्र तेरा हो फ़िक्र तेरी हो
उम्र कुछ इस तरह बसर हो जाए
- नीलम अंतुले
तिरे फ़िक्र के भी हैं ज़ाविए सभी मुनफ़रिद
तिरी गुफ़्तुगू की सभी जिहात अजीब हैं
- नीलम मालिक
अहद-ए-नौ की 'नुज़हत' हम बुनियाद रखें
फ़िक्र नई अब शामिल हो फ़न-पारों में
- नुज़हत अब्बासी
फ़िक्र-ए-नौ ज़ौक़-ए-तपाँ से आई है
गर्द थोड़ी कारवाँ से आई है
- नुशूर वाहिदी
बस यही फ़िक्र खा रही है मुझे
आप की याद आ रही है मुझे
- नूर एन साहिर
दिन इसी फ़िक्र में काटा हम ने
रात आई तो किधर जाएँगे हम
- नूर बिजनौरी
हम से शिकवा कर रहा था आज दामने-तीही
तोड़ लाए माहो-अंजुम, फ़िक्र के गुलजार से
- नूर बिज्नोरी
फ़िक्र ये है सुकूँ से रात कटे
ज़िक्र चलता है इंक़िलाबों का
- नूर मोहम्मद यास
'नूह' तूफ़ान-ए-बहर-ए-उल्फ़त में
फ़िक्र-ए-ज़ब्त-ओ-सुकूँ है'' बे-मअ'नी
- नूह नारवी
मुझ को ये फ़िक्र कि दिल मुफ़्त गया हाथों से
उन को ये नाज़ कि हम ने उसे छीना कैसा
- नूह नारवी
दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल
वापस न कर फ़क़ीर को आख़िर बदन तो है
- नोमान शौक़
फ़क़ीर लोग रहे अपने अपने हाल में मस्त
नहीं तो शहर का नक़्शा बदल चुका होता
- नोमान शौक़
फ़िक्र उस को नहीं पर हक़ीक़त है ये
हर घड़ी हो रहा पाएमाल आदमी
- नौशाद अशहर
अपनी अपनी ही फ़िक्र है सब को
अपने अपने ही दाएरे में हैं
- ओसामा अमीर
कोई फ़िक्र न कोई ग़म है
मेरे साथ मिरा हमदम है
- पंकज सरहदी
एक लम्हा था तुझ को पाने का
वो भी फ़िक्र-ए-मआल में खोया
- परतव रोहिला
जीने की फ़िक्र कीजिए और पेट का ख़याल
मौक़ूफ़ कीजे इश्क़ का आज़ार आज-कल
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
बा'द मुर्दन है हश्र का खटका
मेरी जाँ फ़िक्र से मफ़र ही नहीं
- परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
तवज्जोह बर्क़ की हासिल रही है
सो है आज़ाद फ़िक्र-ए-आशियाँ से
- परवीन शाकिर
उमीदी सीपियाँ इरफ़ान सी थीं
समुंदर फ़िक्र का पायाब था जब
- परवेज़ रहमानी
पुरानी सोच को समझें तो कोई बात बने
जदीद फ़िक्र में एहसास-ए-नग़्मगी कम है
- पी पी श्रीवास्तव रिंद
फ़िक्र ओ मअ'नी तलाज़मे तश्बीह
ऐ ग़ज़ल तेरे जाँ-निसार थे हम
- पी पी श्रीवास्तव रिंद
फ़िक्र कम बयान कम
रह गई ज़बान कम
- पी पी श्रीवास्तव रिंद
कौन आया मिरे तआ'क़ुब में
वही फ़िक्र-ओ-ख़याल के जिन्नात
- रईस अमरोहवी
विसाल हिज्र वफ़ा फ़िक्र दर्द मजबूरी
ज़रा सी उम्र में कितने ज़माने आते हैं
- रईस सिद्दीक़ी
'रईस' फ़िक्र-ए-सुख़न रात भर जगाती है
कोई भी वक़्त मुक़र्रर नहीं है सोने का
- रईसुदीन रईस
तर्क होती नहीं ऐसी कुछ आदतें
फ़िक्र दाद-ए-हवस दाद की शाइरी
- रख़्शंदा नवेद
फ़िक्र उस को हो जिस के पास हो कुछ
कुछ नहीं मेरे पास खोने को
- रज़ा अमरोहवी
ग़म है फ़िक्र-ए-मआ'श में ऐसा
आदमी का पता नहीं लगता
- रफ़अत शमीम
कुछ अपनी फ़िक्र न अपना ख़याल करता हूँ
तो क्या ये कम है तिरी देख-भाल करता हूँ
- रम्ज़ी असीम
नए की फ़िक्र में हम घुल रहे हैं
नया हर पल पुराना हो रहा है
- रहमान मुसव्विर
आता चला गया है वो ख़ुश-फ़िक्र ध्यान में
बढ़ती चली गई है नफ़ासत बयान में
- रहमान हफ़ीज़
आप ने फ़िक्र की भरपूर हिमायत की है
आप को साहिब-ए-ईमान किया जाएगा
- राकेश राही
तुम्हारी फ़िक्र की बैसाखियाँ नहीं लेते
हम अपनी फ़िक्र से अपना जहाँ बनाते हैं
- राकेश राही
उख़ुव्वत का था वो परचम उठाए
न अपनी फ़िक्र न ख़ौफ़-ए-जहाँ था
- राग़िब देहलवी
साथ 'ग़ालिब' के गई फ़िक्र की गहराई भी
और लहजा भी गया 'मीर-तक़ी-मीर' के साथ
- राजेश रेड्डी
फ़िक्र-ए-उक़्बा भी कीजिए 'राहत'
दिल ये कहता है हर घड़ी मुझ से
- राहत सुल्ताना
तुम मगर फ़िक्र मत करो जानाँ
ये तो लालच है ज़िंदा रहने का
- राहील फ़ारूक़
है गिरह मू-ए-कमर की नाफ़-ए-यार
फ़िक्र ने अपने ये उक़्दा वा किया
- रिन्द लखनवी
फ़िक्र-ए-हयात-ओ-फ़िक्र-ए-ज़माना के साथ साथ
फ़िक्र-ए-हबीब है कभी फ़िक्र-ए-सुख़न मुझे
- रिफ़अत अल हुसैनी
जन्नत मिरी फ़िक्र की है मेराज
दोज़ख़ से तो मैं गुज़र रहा हूँ
- रिफ़अत सरोश
ख़याल-ओ-फ़िक्र जहाँ ज़ाविए बदलते हैं
वहीं से नित-नए उस्लूब चल निकलते हैं
- रियासत अली ताज
ये ज़िंदगी जो कहीं चैन से नहीं गुज़री
तमाम उम्र रही फ़िक्र-ए-रोज़गार मुझे
- रुख़्सार नाज़िमाबादी
जिस में 'रोबीना' नहीं है फ़िक्र-ओ-फ़न
क्या कहें क्या शाइ'री है हर तरफ़
- रोबीना मीर
मौत ने रूह भर निकाली है
फ़िक्र ने पहले खा लिया है मुझे
- ऋतु कौशिक
फ़िक्र-ए-ग़म-ओ-आलाम 'रिशी' है गोया नाम जुदाई का
उन की महफ़िल में कब दिल को फ़िक्र-ए-ग़म-ओ-आलाम हुई
- ऋषि पटियालवी
कासा-ए-फ़िक्र में रखता हूँ मैं दौलत अपनी
मुफ़्लिसी में भी बदलती नहीं आदत अपनी
- संजय मिश्रा शौक़
तुम्हारी फ़िक्र की कोताह-क़द हवेली में
बुझे चराग़ तो फिर मकड़ियों के जाले हुए
- संजय मिश्रा शौक़
जहाँ ख़ाली जगह है बैठ जाओ
अक़ीदत में ये फ़िक्र-ए-पेश-ओ-पस क्या
- सईद आसिम
हज़ार फ़िक्र-ओ-नज़र ने चाहा
समझ में फिर भी न बात आई
- सईद वारसी
हम अहल-ए-दिल भी अगर फ़िक्र-ए-जान-आे-तन करते
तो लोग हुस्न पे इज़हार-ए-हुस्न-ए-ज़न करते
- सईदुज़्ज़माँ अब्बासी
हो 'सख़ी' को न फ़िक्र या अल्लाह
अर्ज़ इतनी तेरी जनाब में है
- सख़ी लख़नवी
फ़रेब था अक़्ल-ओ-आगही का कि मेरी फ़िक्र-ओ-नज़र का धोका
जो आख़िर-ए-शब की चाँदनी पर हुआ था मुझ को सहर का धोका
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
हमारे दम से है रौशन दयार-ए-फ़िक्र-ओ-सुख़न
हमारे बाद ये गलियाँ धुआँ धुआँ होंगी
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
फ़िक्र को 'सज्जाद' पहनाए पसंदीदा लिबास
ये नहीं सोचा कि वो गहरा असर ले जाएगी
- सज्जाद बाबर
ख़याल-ओ-फ़िक्र की तज्सीम कर चुकी थी वहाँ
मैं उस की सल्तनत तस्लीम कर चुकी थी वहाँ
- सफ़ीया चौधरी
न भूले अहद-ए-हाज़िर के तक़ाज़े
ग़ज़ल जब फ़िक्र की महमिल में उतरे
- सबा नक़वी
आज़ाद नहीं ज़ेहन अभी फ़िक्र-ए-बदन से
निकला नहीं इंसान अभी अपने गहन से
- समद अंसारी
शोला-ए-फ़िक्र पे सूरज का गुमाँ होता है
शोला-ए-फ़िक्र को मोहताज-ए-बयाँ कौन करे
- समद अंसारी
हम दोज़ख़-ए-एहसास में जलते ही रहेंगे
ये फ़िक्र का हासिल है बसीरत की सज़ा है
- सय्यद अहमद शमीम
जुस्तुजू क़ातिल की ला-हासिल नहीं
तन मिरा फ़िक्र-ए-सुबुकदोशी में है
- सय्यद अाग़ा अली महर
तेरे ख़ुश-पोश फ़क़ीरों से वो मिलते तो सही
जो ये कहते हैं वफ़ा पैरहन-ए-चाक में है
- सय्यद आबिद अली आबिद
उर्यानी-ए-फ़िक्र खुल न जाए
ख़्वाबों के लिबास सी रहा हूँ
- सय्यद एहतिशाम हुसैन
क़ुव्वत-ए-फ़िक्र भी दी ऐसे कि इक हद में रहो
यानी बे-कार समझदार बनाए गए हम
- सय्यद ज़ामिन अब्बास काज़मी
'तमजीद' फ़िक्र कर मरज़-ए-जाँ-गुदाज़ की
बेदार हो कि राह-नुमाई का वक़्त है
- सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद
कर रहा हूँ दुआ कि दर्द बढ़े
फ़िक्र करता हूँ रोज़ मरहम की
- सय्यद बशीर हुसैन बशीर
बहर-ए-ग़म में ये फ़िक्र किस को है
ग़र्क़ होता हूँ या उभरता हूँ
- सय्यद बशीर हुसैन बशीर
फ़िक्र क्यूँ है क़याम करने की
कोई मंज़िल नहीं ठहरने की
- सय्यद मोहम्मद ज़फ़र अशक संभली
मेरे अशआ'र सब बयाज़ी हैं
हम-नशीं फ़िक्र-ए-इंतिख़ाब अबस
- सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
कब नहीं होती फ़िक्र किस लम्हा
दोश पर तस्मा-पा नहीं होता
- सय्यद हामिद
किस से दूँ तश्बीह मैं ज़ुल्फ़-ए-मुसलसल को तिरी
फ़िक्र है कोताह और मज़मूँ बहुत है दूर का
- सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
है जो फ़िक्र-ए-शाह आ'ली सिलसिला
आलम-ए-म'अनी से जोड़ा चाहिए
- सरदार गेंडा सिंह मशरिक़ी
फ़िक्र ओ एहसास के तपते हुए मंज़र तक आ
मेरे लफ़्ज़ों में उतर कर मिरे अंदर तक आ
- सरदार सलीम
कुछ भी नहीं दस्तरस में 'सरशार'
क्यूँ फ़िक्र-ए-मआल कर रहा हूँ
- सरशार सिद्दीक़ी
हुआ दिन फ़िक्र-ए-दुनिया ने दबोचा
तुम्हारी याद तो शब भर रही थी
- सलमा शाहीन
जहान-ए-फ़िक्र में मिस्ल-ए-हवा चलता रहा हूँ मैं
लिए गर्द-ए-ख़िरद चारों दिशा चलता रहा हूँ मैं
- सलमान सरवत
एक कंकर गिरा फ़िक्र की झील में और फ़न के उभरने लगे दाएरे
वज्द में आ गए आगही के कँवल फिर मचलने थिरकने लगे दाएरे
- सलाम नज्मी
मेरी फ़िक्र की ख़ुशबू क़ैद हो नहीं सकती
यूँ तो मेरे होंटों पर मस्लहत का ताला है
- सलाम मछली शहरी
जो सूद ओ ज़ियाँ की फ़िक्र करे
वो इश्क़ नहीं मज़दूरी है
- सलीम अहमद
फ़िक्र का सब्ज़ा मिला जज़्बात की काई मिली
ज़ेहन के तालाब पर क्या नक़्श-आराई मिली
- सलीम बेताब
बड़ी ही अँधेरी डगर है मियाँ
जहाँ हम फ़क़ीरों का घर है मियाँ
- सलीम शीराज़ी
किनारे लग गया गुस्ताख़ तिनका
समुंदर फ़िक्र में डूबा हुआ है
- सलीम शुजाअ अंसारी
ग़ुबार-ए-फ़िक्र को तहरीर करता रहता हूँ
मैं अपना दर्द हमा-गीर करता रहता हूँ
- सलीम शुजाअ अंसारी
तू अगर फ़िक्र की परवाज़ को बख़्शे रिफ़अत
कौन जाने कि कहाँ कितने ठिकाने खुल जाएँ
- सलीम शुजाअ अंसारी
फ़िक्र ऐसे मुहीत-ए-सुख़न की करो
जिस की अमवाज का कोई साहिल न हो
- सहबा अख़्तर
मुहीत मिस्ल-ए-आसमाँ ज़मीन-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न पे हूँ
सुकूत का सबब है ये मक़ाम-ए-ला-सुख़न पे हूँ
- सहबा अख़्तर
इलाही ख़ैर नामूस-ए-वफ़ा की
उन्हें भी फ़िक्र-ए-नामूस-ए-वफ़ा है
- साग़र निज़ामी
जिस अहद में लुट जाए फ़क़ीरों की कमाई
उस अहद के सुल्तान से कुछ भूल हुई है
- साग़र सिद्दीक़ी
घर में लड़की जवाँ हुई है क्या
फ़िक्र अब बे-शुमार रहता है
- सागर सियालकोटी
अज़मत-ए-फ़िक्र के अंदाज़ अयाँ भी होंगे
हम ज़माने में सुबुक हैं तो गराँ भी होंगे
- सादिक़ नसीम
शे'र बूँदें बने ग़ज़ल धारा
फ़िक्र-ए-'साबिर' रवाँ-दवाँ भी तो हो
- साबिर शाह साबिर
माल-ओ-ज़र अहल-ए-दुवल सामने यूँ गिनते हैं
हम फ़क़ीरों ने न कुछ सर्फ़ किया हो जैसे
- सालिक लखनवी
क़ुल्ज़ुम-ए-फ़िक्र में है कश्ती-ए-ईमाँ सालिम
ना-ख़ुदा हुस्न है और इश्क़ है लंगर अपना
- साहिर देहल्वी
आओ इस तीरा-बख़्त दुनिया में
फ़िक्र की रौशनी को आम करें
- साहिर लुधियानवी
दिल के मुआमले में नतीजे की फ़िक्र क्या
आगे है इश्क़ जुर्म-ओ-सज़ा के मक़ाम से
- साहिर लुधियानवी
मुझ को इस का रंज नहीं है लोग मुझे फ़नकार न मानें
फ़िक्र-ओ-फ़न के ताजिर मेरे शेरों को अशआर न मानें
- साहिर लुधियानवी
मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया
- साहिर लुधियानवी
फ़िक्र-ए-ज़र में बिलकता हुआ आदमी
अब कहाँ रह गया काम का आदमी
- साहिर शेवी
शाम से ही फ़िक्र गहरी हो गई
शहर से जब लोग घर आए नहीं
- साहिल अहमद
शबनम-ए-फ़िक्र-ओ-गुल्सितान-ए-सुख़न
जगमगाता है फूलबन मेरा
- सिकंदर अली वज्द
सोच लीजे कि ये अय्याम गुज़र जाएँगे
मतला-ए-फ़िक्र बहर-तौर निखर जाएगा
- सिद्दीक़ शाहिद
रुस्वाई-ए-जहाँ सीं मुझे फ़िक्र कुछ नहीं
दीवाना-ए-जुनूँ कूँ तअम्मुल सीं क्या ग़रज़
- सिराज औरंगाबादी
वस्फ़ ज़ुल्फ़-ए-यार का आसाँ नहीं
रिश्ता-ए-फ़िक्र-ए-रसा दरकार है
- सिराज औरंगाबादी
मैं अगर फ़िक्र के शह-पर से अलग हो जाऊँ
अपने अंदर के सुख़नवर से अलग हो जाऊँ
- सीन शीन आलम
अब वहाँ दामन-कशी की फ़िक्र दामन-गीर है
ये मिरे ख़्वाब-ए-मोहब्बत की नई ताबीर है
- सीमाब अकबराबादी
न उस पर इख़्तियार अपना न इस पर
सर-ए-आग़ाज़ ओ फ़िक्र-ए-इंतिहा किया
- सीमाब अकबराबादी
मुझे फ़िक्र-ओ-सर-ए-वफ़ा है हनूज़
बादा-ए-इश्क़ ना-रसा है हनूज़
- सीमाब अकबराबादी
'सीमाब' क़द्र-दाँ हैं मिरे ख़ान-ए-जाँसठ
हाज़िर हुआ हूँ फ़िक्र का हदिया लिए हुए
- सीमाब अकबराबादी
मेरी फ़िक्र-ए-सुख़न भी रंगीं है
तेरे हुस्न-ए-शबाब की सूरत
- सीमाब बटालवी
अपनी सूरत लगी पराई सी
जब कभी हम ने आईना देखा
- सुदर्शन फ़ाकिर
आशिक़ी हो कि बंदगी 'फ़ाख़िर'
बे-दिली से तो इब्तिदा न करो
- सुदर्शन फ़ाकिर
इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया
- सुदर्शन फ़ाकिर
इश्क़ है इश्क़ ये मज़ाक़ नहीं
चंद लम्हों में फ़ैसला न करो
- सुदर्शन फ़ाकिर
एक दो रोज़ का सदमा हो तो रो लें 'फ़ाकिर'
हम को हर रोज़ के सदमात ने रोने न दिया
- सुदर्शन फ़ाकिर
ज़िक्र जब होगा मोहब्बत में तबाही का कहीं
याद हम आएँगे दुनिया को हवालों की तरह
- सुदर्शन फ़ाकिर
तेरी आँखों में हम ने क्या देखा
कभी क़ातिल कभी ख़ुदा देखा
- सुदर्शन फ़ाकिर
तेरे जाने में और आने में
हम ने सदियों का फ़ासला देखा
- सुदर्शन फ़ाकिर
दिल के दीवार-ओ-दर पे क्या देखा
बस तिरा नाम ही लिखा देखा
- सुदर्शन फ़ाकिर
दिल तो रोता रहे ओर आँख से आँसू न बहे
इश्क़ की ऐसी रिवायात ने दिल तोड़ दिया
- सुदर्शन फ़ाकिर
देखने वालो तबस्सुम को करम मत समझो
उन्हें तो देखने वालों पे हँसी आती है
- सुदर्शन फ़ाकिर
मेरा क़ातिल ही मेरा मुंसिफ़ है
क्या मिरे हक़ में फ़ैसला देगा
- सुदर्शन फ़ाकिर
मेरे दुख की कोई दवा न करो
मुझ को मुझ से अभी जुदा न करो
- सुदर्शन फ़ाकिर
मेरे रुकते ही मिरी साँसें भी रुक जाएँगी
फ़ासले और बढ़ा दो कि मैं ज़िंदा हूँ अभी
- सुदर्शन फ़ाकिर
ये सिखाया है दोस्ती ने हमें
दोस्त बन कर कभी वफ़ा न करो
- सुदर्शन फ़ाकिर
सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं
जिस को देखा ही नहीं उस को ख़ुदा कहते हैं
- सुदर्शन फ़ाकिर
हम तो समझे थे कि बरसात में बरसेगी शराब
आई बरसात तो बरसात ने दिल तोड़ दिया
- सुदर्शन फ़ाकिर
हम से पूछो न दोस्ती का सिला
दुश्मनों का भी दिल हिला देगा
- सुदर्शन फ़ाकिर
हर तरफ़ ज़ीस्त की राहों में कड़ी धूप है दोस्त
बस तिरी याद के साए हैं पनाहों की तरह
- सुदर्शन फ़ाकिर
पाँव में फ़िक्र की ज़ंजीर लिए
आज दुनिया में हैं सारे रक़्साँ
- सुमन ढींगरा दुग्गल
जब तलक रौशनी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र बाक़ी है
तीरगी लाख हो इमकान-ए-सहर बाक़ी है
- सुरूर बाराबंकवी
न किसी को फ़िक्र-ए-मंज़िल न कहीं सुराग़-ए-जादा
ये अजीब कारवाँ है जो रवाँ है बे-इरादा
- सुरूर बाराबंकवी
हाल में अपने मगन हो फ़िक्र-ए-आइंदा न हो
ये उसी इंसान से मुमकिन है जो ज़िंदा न हो
- सुरूर बाराबंकवी
फ़िक्र के होंटों पर ताले थे
ग़ज़लों का दामन सूना था
- सुलेमान ख़ुमार
वही शहर-दर-शहर मसरूफ़ियत
वही फ़िक्र-ए-कार-ए-जहाँ हर तरफ़
- सुल्तान अख़्तर
ये किस की फ़िक्र में तुम हो ये किस की खोज में तुम हो
मैं समझी अपने इन गुज़रे दिनों की सोच में तुम हो
- सूफ़िया अनजुम ताज
तस्वीर-ए-दोस्त फ़िक्र-ए-मुजस्सम बनी रही
मैं उस से बोलता रहा वो सोचती रही
- सौलत ज़ैदी
फ़िक्र-ए-नक़्क़ाद-ए-अदब दिरहम-ओ-दीनार में है
कौन सी जिन्स-ए-सुख़न कूचा-ओ-बाज़ार में है
- सौलत ज़ैदी
इस फ़िक्र में है मिरा परी-रू
दीवाना बनाइए किसी को
- शऊर बिलग्रामी
सरसरी तौर से मत लो हम को
हम ज़रा फ़िक्र ज़रा ग़ौर के हैं
- शकील जमाली
चमन की फ़िक्र भी कर आशियाँ की फ़िक्र के साथ
किधर को टूट पड़ें बिजलियाँ नहीं मा'लूम
- शकील बदायुनी
फिर वही जोहद-ए-मुसलसल फिर वही फ़िक्र-ए-मआश
मंज़िल-ए-जानाँ से कोई कामयाब आया तो क्या
- शकील बदायुनी
फ़िक्र क्या सुर्ख़-रू हो या टूटे
दिल मिरा उन की देख-भाल में है
- शकीला बानो
ग़म-ए-हयात की लज़्ज़त बदलती रहती है
ब-क़द्र-ए-फ़िक्र शिकायत बदलती रहती है
- शकेब जलाली
जन्नत-ए-फ़िक्र बुलाती है चलो
दैर-ओ-का'बा से कलीसाओं से दूर
- शकेब जलाली
यूँ हैं फ़िक्र-ओ-ख़याल हम-आहंग
लफ़्ज़ मा'नी के है असर में असीर
- शमा ज़फर मेहदी
आसमाँ की फ़िक्र क्या आसमाँ ख़फ़ा सही
आप ये बताइए आप तो ख़फ़ा नहीं
- शमीम करहानी
अपनी ग़ज़ल सुनाओ 'शमीम' अहल-ए-ज़ौक़ को
ज़ाएअ' करो न फ़िक्र के जौहर इधर-उधर
- शमीम फ़तेहपुरी
अभी क्लास नया है नई किताबें हैं
पढ़ें अभी से भला फ़िक्र ही पड़ी क्या है
- शमीम हाश्मी
हर फ़िक्र मिसाल-ए-चेहरा रौशन
हर शेर में बू-ए-पैरहन है
- शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी
कल थी ये फ़िक्र उसे हाल सुनाएँ कैसे
आज ये सोचते हैं उस को सुना क्यूँ आए
- शहज़ाद अहमद
हुज़ूर-ए-हुस्न ये दिल कासा-ए-गदाई है
हूँ वो फ़क़ीर जिसे भीक भी न दे कोई
- शहज़ाद अहमद
इक फ़िक्र लगी रहती है दुनिया की हमेशा
हर चंद इसे हम ने बनाया भी नहीं है
- शहनवाज़ फ़ारूक़ी
बात करनी है तो आ अब फ़िक्र-ओ-फ़न की बात कर
हम-नवा ऐ हम-नफ़स हम से सुख़न की बात कर
- शहनाज़ रहमत
छोड़ा है किसे फ़िक्र के दरिया ने सलामत
रास आया किसे मौजा-ए-इदराक से रिश्ता
- शहबाज़ ख़्वाजा
किस फ़िक्र किस ख़याल में खोया हुआ सा है
दिल आज तेरी याद को भूला हुआ सा है
- शहरयार
जो होने वाला है अब उस की फ़िक्र क्या कीजे
जो हो चुका है उसी पर यक़ीं नहीं आता
- शहरयार
अब ये एहसास दम-ए-फ़िक्र-ए-सुख़न होने लगा
अपनी ही नज़्मों का भूला हुआ किरदार हूँ मैं
- शाज़ तमकनत
नहीं ये फ़िक्र कि सर फोड़ने कहाँ जाएँ
बहुत बुलंद है अपने वजूद की दीवार
- शाज़ तमकनत
तुझ को अपनी फ़िक्र करनी चाहिए हर हाल में
अच्छे अच्छे लोग आ जाते हैं इस की चाल में
- शातिर हकीमी
हमारी फ़िक्र हद-ए-आसमाँ से आगे थी
मगर कभी न रिवायत से वास्ता टूटा
- शान भारती
किस की ख़ातिर है परेशाँ तिरी ज़ुल्फ़
हम इसी फ़िक्र में शब भर जागे
- शायर लखनवी
हैं अब इस फ़िक्र में डूबे हुए हम
उसे कैसे लगे रोते हुए हम
- शारिक़ कैफ़ी
फिर किस से उठेगा बोझ मेरा
इस फ़िक्र में ख़ुद को ढो रहा हूँ
- शाहिद कबीर
फ़िक्र-ए-ईजाद में हूँ खोल नया दर कोई
कुंज-ए-गुल भेज मिरी शाख़-ए-हुनर पर कोई
- शाहिद कमाल
हो कोई शेर शेर-ए-शोर-अंगेज़
फ़िक्र कोई कोई ख़याल उछाल
- शाहिद कमाल
फ़िक्र होती नहीं जो रोटी की
कोई अपना जुदा नहीं होता
- शिफ़ा कजगावन्वी
वहशत तो संग-ओ-ख़िश्त की तरतीब ले गई
अब फ़िक्र ये है दश्त की वुसअत भी ले न जाए
- शीन काफ़ निज़ाम
सुब्ह की फ़िक्र ब'अद में करना
रात कितनी गुज़र गई देखो
- शीन काफ़ निज़ाम
ऐ दिल न कर तू फ़िक्र पड़ेगा बला के हाथ
आईना हो के जा के लग अब दिलरुबा के हाथ
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
जो मुक़द्दर था हो चुका 'हातिम'
फ़िक्र में दम न खो हुआ सो हुआ
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
फ़िक्र में मुफ़्त उम्र खोना है
हो चुका है जो कुछ कि होना है
- शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
दोस्ती का दावा क्या आशिक़ी से क्या मतलब
मैं तिरे फ़क़ीरों में मैं तिरे ग़ुलामों में
- शोएब बिन अज़ीज़
रंज-ए-दुनिया फ़िक्र-ए-उक़्बा जाने क्या क्या दिल में है
ज़िंदगी दो दिन की अपनी सैकड़ों मुश्किल में है
- शोला करारवी
ज़ाविए फ़िक्र के अब और बनाओ यारो
बात काग़ज़ पे नए ढंग से लाओ यारो
- शौक़ सालकी
नतीजा जोहद-ए-मुसलसल का आगे क्या होगा
महल्ल-ए-फ़िक्र यही है ज़रा ठहर जाओ
- शौकत परदेसी
शान की फ़िक्र है न आन की है
अब मुझे फ़िक्र इम्तिहान की है
- शौकत परदेसी
मुझे है फ़िक्र ख़त भेजा है जब से उस गुल-ए-तर को
हज़ारों बुलबुलें रोकेंगी रस्सी में कबूतर को
- तअशशुक़ लखनवी
अता कर दे इलाही फिर से बचपन
मुझे हर फ़िक्र से बेगाना कर दे
- तनवीर गौहर
फ़िक्र की आँच में पिघले तो ये मालूम हुआ
कितने पर्दों में छुपी ज़ात की सच्चाई है
- तनवीर सामानी
हक़ीक़तों के मुक़ाबिल ठहर नहीं सकती
पुरानी फ़िक्र भी झूटे ख़ुदाओं जैसी है
- तनवीर सिप्रा
ये जो हैं अहल-ए-रिया आज फ़क़ीरों के बीच
कल गिनेंगे हुमक़ा उन ही को पीरों के बीच
- ताबाँ अब्दुल हई
न कर 'महरूम' तू फ़िक्र-ए-सुख़न अब फ़िक्र-ए-उक़्बा कर
नवा-परवाज़ बज़्म-ए-शेर में आज़ाद होता है
- तिलोकचंद महरूम
फ़िक्र-ए-मआश ओ इश्क़-ए-बुताँ याद-ए-रफ़्तगाँ
इन मुश्किलों से अहद-बरआई न हो सकी
- तिलोकचंद महरूम
जीत चुनाव फ़िक्र सही है
पर हो क्या गर देश नहीं है
- उज़ैर रहमान
सर-निगूँ है सर्व-क़द की फ़िक्र में
बेद ने मजनूँ की सब लैली तरह
- उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
साहिब-ए-हाल को ज़माने में
फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल और माज़ी नईं
- उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
फ़िक्र-ए-बेश-ओ-कम नहीं उन की रज़ा के सामने
ये मुझे तस्लीम है अर्ज़-ओ-समा के सामने
- उरूज ज़ैदी बदायूनी
मुझ को बख़्शी है फ़िक्र-ए-अर्ज़-ओ-समा
दोस्त की बंदा-परवरी कहिए
- उरूज ज़ैदी बदायूनी
ये हिजाबात-ए-तअय्युन मुझे मंज़ूर नहीं
फ़िक्र-ए-आज़ाद को बंदिश का गुमाँ होता है
- उरूज ज़ैदी बदायूनी
जब तग़ाफ़ुल का इरादा कर लिया
कौन करता फ़िक्र ख़ैर ओ दीद की
- उर्मिलामाधव
हाए बेचारगी-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र
वो भी ता-हद्द-ए-मुम्किनात गई
- वक़ार बिजनोरी
अर्श-ए-आली पे फ़िक्र-ए-आली है
हम ने पाया सुराग़ किस का है
- वज़ीर अली सबा लखनवी
फ़िक्र रखते नहीं हैं दीवाने
बाइ'स-ए-ग़म शुऊ'र होता है
- वज़ीर अली सबा लखनवी
फ़िक्र-ए-रंज-ओ-राहत कैसी
दोज़ख़ कैसा जन्नत कैसी
- वज़ीर अली सबा लखनवी
मादूम हुए जाते हैं हम फ़िक्र के मारे
मज़मूँ कमर-ए-यार का पैदा नहीं होता
- वज़ीर अली सबा लखनवी
अब तो शादी की फ़िक्र है उस की
एक गुड़िया से इश्क़ जारी है
- वरुण गगनेजा वाहिद
इश्क़ में सब्र-ओ-रज़ा दरकार है
फ़िक्र-ए-असबाब-ए-वफ़ा दरकार है
- वली मोहम्मद वली
कमर-ए-नाज़ुक ओ दहान-ए-सनम
फ़िक्र बारीक है मुअम्मा है
- वली मोहम्मद वली
सजन के हुस्न कूँ टुक फ़िक्र सूँ देख
कि ये आईना-ए-मअ'नी-नुमा है
- वली मोहम्मद वली
फ़ाएदा तुझ को ऐ ज़-ख़ुद ग़ाफ़िल
फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियान में कुछ है
- वलीउल्लाह मुहिब
सुख़न जिन के कि सूरत जूँ गुहर है बहर-ए-मअ'नी में
अबस ग़लताँ रखे है फ़िक्र उन के आब-ओ-दाने का
- वलीउल्लाह मुहिब
वादी-ए-क़िर्तास में बहता हूँ मैं
आबशार-ए-फ़िक्र का दरिया हूँ मैं
- वलीउल्लाह वली
है ख़मोशी मुझे ज़बाँ 'वहशत'
फ़िक्र क्या अर्ज़-ए-मुद्दआ के लिए
- वहशत रज़ा अली कलकत्वी
नश्शा-ए-फ़िक्र अभी बाक़ी है
एक जाम और उठा दे साक़ी
- वामिक़ जौनपुरी
मिरे फ़िक्र ओ फ़न को नई फ़ज़ा नए बाल-ओ-पर की तलाश है
जो क़फ़स को यास के फूँक दे मुझे उस शरर की तलाश है
- वामिक़ जौनपुरी
मुझे इश्क़ हुस्न ओ हयात से मुझे रब्त फ़िक्र ओ नशात से
मिरा शेर नग़्मा-ए-ज़िंदगी तुझे नौहागर की तलाश है
- वामिक़ जौनपुरी
मुसल्ला रखते हैं सहबा-ओ-जाम रखते हैं
फ़क़ीर सब के लिए इंतिज़ाम रखते हैं
- वाली आसी
ख़याल-ओ-फ़िक्र के कुछ ज़ाविए तलाश करो
ग़ज़ल कहो तो नए क़ाफ़िए तलाश करो
- वासिफ़ फ़ारूक़ी
तस्वीर-ए-अहद-ए-नौ है मुजस्सम मिरा वजूद
आलाम-ए-रोज़गार हूँ फ़िक्र-ए-मआ'श हूँ
- वाहिद प्रेमी
खुलने वाला नहीं दर-ए-तौबा
फ़िक्र-ए-अंजाम वक़्त पर न हुई
- यगाना चंगेज़ी
दर्द से पहले करूँ फ़िक्र-ए-दवा
वाह ये अच्छी उलटवांसी कही
- यगाना चंगेज़ी
फ़िक्र-ए-अंजाम न आग़ाज़ का कुछ होश रहा
चार दिन तक तो जवानी का अजब जोश रहा
- यगाना चंगेज़ी
वो क्यूँ सर खपाए तिरी जुस्तुजू में
जो अंजाम-ए-फ़िक्र-ए-रसा जानता है
- यगाना चंगेज़ी
पारा पारा है ख़ुद जुनूँ लेकिन
फ़िक्र-ए-इंसाँ इसी से है मोहकम
- यज़दानी जालंधरी
ये समझ कर फ़क़ीरी ही में है ख़ुदा
गुन हमेशा फ़क़ीरों के गाते रहे
- यशपाल गुप्ता
नहीं है फ़िक्र कोई बाग़बान को 'निकहत'
बहार आई न आई कली खिली न खिली
- यासमीन हुसैनी ज़ैदी निकहत
जहाँ बात वहदत की गहरी रहेगी
वहाँ फ़िक्र अपनी न तेरी रहेगी
- यासीन अली ख़ाँ मरकज़
मुझ को दुनिया की फ़िक्र लाहक़ है
या'नी कोई वली नहीं हूँ मैं
- यूनुस तहसीन
न फ़िक्र-ए-वर्ता थी उस को ज़रा भी
वो कश्ती ज़ीस्त की खेता गया है
- जगदीश राज फ़िगार
तुम्हारी ज़ुल्फ़-ए-मोअम्बर का आसरा ले कर
हमारी फ़िक्र ओ नज़र में पली है तन्हाई
- ज़फ़र अहमद परवाज़
अजीब शहर है कोई सुख़न-शनास नहीं
मता-ए-फ़िक्र मैं मंसूब किस के नाम करूँ
- ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र
फ़िक्र की तल्ख़ियों में गुम हो कर
आदमी बे-सबब भी हँसता है
- जमील नज़र
तू भी मेरी तरह न हो नाकाम
फ़िक्र ये रब-ए-दो-जहाँ है अब
- जमील मज़हरी
न वो शम्स में न क़मर में है वो हिजाब-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र में है
जो हिजाब-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र उठा तो ग़िज़ा-ए-मआनी-ओ-लफ़्ज़ क्या
- जमील मज़हरी
किसी के जलवों से मा'मूर है जहाँ अपना
नहीं ये फ़िक्र कि दुनिया ने साथ छोड़ दिया
- जयकृष्ण चौधरी हबीब
ज़रा से दिल को क्या क्या वुसअ'तें तू ने ख़ुदाया दीं
यहीं फ़िक्र-ए-जहाँ रख दी यहीं फ़िक्र-ए-बुताँ रख दी
- जयकृष्ण चौधरी हबीब
तलाश-ए-रहबर न ख़ौफ़-ए-मंज़िल न फ़िक्र कोई है जिस्म-ओ-जाँ की
जुनूँ सलामत तो किस को पर्वा रहे वफ़ा के हर इम्तिहाँ की
- जयकृष्ण चौधरी हबीब
तेरा ग़म फ़िक्र-ए-जहाँ तन्हाइयाँ
दाग़ हम सीने पे क्या क्या सह गए
- जयकृष्ण चौधरी हबीब
फ़िक्र-ए-जहाँ से खेले ज़ोर-ए-बुताँ से खेले
हम दौर-ए-ज़िंदगी में हर इम्तिहाँ से खेले
- जयकृष्ण चौधरी हबीब
क़ैस कहता था यही फ़िक्र है दिन-रात मुझे
मार दे नाक़ा-ए-लैला न कहीं लात मुझे
- ज़रीफ़ लखनवी
ग़ुरूर-ए-इश्क़ में इक इंकिसार-ए-फ़क़्र भी है
ख़मीदा-सर हैं वफ़ा को अलम बनाते हुए
- जलील ’आली’
तमीज़-दैर-ओ-का'बा है न फ़िक्र-ए-दीन-दुनिया है
ये रिंद-ए-पाक-तीनत भी तिरे अल्लाह वाले हैं
- जलील मानिकपूरी
वो सँवरते हैं मुझे इस की है फ़िक्र
आरज़ू किस की निकाली जाएगी
- जलील मानिकपूरी
शेर-ए-रंगीं न समझो उन को 'जलील'
तूति-ए-फ़िक्र लाल उगलता है
- जलील मानिकपूरी
कार-ए-दिल है सो इस लिए इस में
फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ नहीं प्यारे
- जहाँ आरा तबस्सुम
कुछ अपना फ़र्ज़ प्यार तिरा फ़िक्र-ए-रोज़गार
कितने ही वारदात में उलझा हुआ हूँ मैं
- जहाँगीर नायाब
कुल काएनात फ़िक्र से आज़ाद हो गई
इंसाँ मिसाल-ए-दस्त-ए-तह-ए-संग रह गया
- ज़हीर काश्मीरी
ता-उम्र अपनी फ़िक्र ओ रियाज़त के बावजूद
ख़ुद को किसी सज़ा से बचाना मुहाल है
- ज़हीर ग़ाज़ीपुरी
फ़िक्र भी है अजीब सा जंगल
जिस का मौसम बदलता रहता है
- ज़हीर ग़ाज़ीपुरी
फ़िक्र में डूबे थे सब और बा-हुनर कोई न था
ज़िंदगी की शाख़ पर पुख़्ता समर कोई न था
- ज़ाकिर ख़ान ज़ाकिर
वही तो फ़िक्र-ए-सुख़न आज-कल करे 'जाफ़र'
जिसे हयात का माहौल ख़ुश-गवार मिले
- जाफ़र अब्बास सफ़वी
जान-ए-फ़िक्र-ओ-फ़न अब भी इश्क़ की कहानी है
लफ़्ज़ हैं नए लेकिन दास्ताँ पुरानी है
- जाफ़र बलूच
आतिश-ए-फ़िक्र बदन घुलता हो पैहम जैसे
किसी नागिन ने कहीं चाटी हो शबनम जैसे
- जाफ़र रज़ा
आँख से इस फ़िक्र में होता नहीं पानी जुदा
एक दिन हो जाएगी मुझ से मिरी बेटी जुदा
- जावेद आदिल सोहावी
तिलिस्म-ए-फ़िक्र से आगे हैं इशरतें 'आदिल'
ये क़ैद-ख़ाना गिरा डालो ज़िंदगी करो यार
- जावेद आदिल सोहावी
फ़िक्र-ए-मआश मातम-ए-दिल और ख़याल-ए-यार
तुम सब से माज़रत कि तबीअ'त उदास है
- जावेद इक़बाल
मक़ाम-ए-फ़िक्र है ये सम्त-फ़िक्र ठीक नहीं
सफ़र है तेज़ मगर है कहाँ ख़ुदा की तरफ़
- जावेद जमील
हमारी जंग में 'जावेद' ख़ूँ नहीं बहता
हमारे पास हैं फ़िक्र-ओ-नज़र की शमशीरें
- जावेद जमील
ख़ुलूस-ओ-फ़िक्र की ये रौशनी कहाँ तक हो
मैं सोचता हूँ तिरी चाँदनी कहाँ तक हो
- जावेद मंज़र
ज़मीं पे रह के कहाँ फ़िक्र-ए-आसमाँ रखना
तुम अपने दोस्त जो रखना तो हम-ज़बाँ रखना
- जावेद मंज़र
परवाज़-ए-फ़िक्र-ए-नौ नहीं पहुँची जहाँ तलक
ऐसा फ़लक में कोई सितारा नहीं रहा
- ज़ाहिद चौधरी
फ़िक्र-ए-वीरानी-ए-दिल क्या है अभी
पहले आबाद तो हो लेने दे
- जिगर बरेलवी
न ग़रज़ किसी से न वास्ता मुझे काम अपने ही काम से
तिरे ज़िक्र से तिरी फ़िक्र से तिरी याद से तिरे नाम से
- जिगर मुरादाबादी
नहीं जाती कहाँ तक फ़िक्र-ए-इंसानी नहीं जाती
मगर अपनी हक़ीक़त आप पहचानी नहीं जाती
- जिगर मुरादाबादी
फ़िक्र-ए-जमील ख़्वाब-ए-परेशाँ है आज-कल
शायर नहीं है वो जो ग़ज़ल-ख़्वाँ है आज-कल
- जिगर मुरादाबादी
फ़िक्र-ए-मंज़िल है न होश-ए-जादा-ए-मंज़िल मुझे
जा रहा हूँ जिस तरफ़ ले जा रहा है दिल मुझे
- जिगर मुरादाबादी
शाएर-ए-फ़ितरत हूँ जब भी फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं
रूह बन कर ज़र्रे ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं
- जिगर मुरादाबादी
शायरे फितरत हू मै, जब फ़िक्र फरमाता हू मै
रूह बन कर जर्रे-जर्रे में समां जाता हू मै
- जिगर मुरादाबादी
फ़िक्र-ए-सूद-ओ-ज़ियाँ ख़ाक-आलूदा हूँ
मैं कि था ताइर-ए-वुसअत-ए-नील-गूँ
- ज़िया जालंधरी
फ़िक्र-मंदी फ़ुज़ूल होती है
कोशिश-ए-दिल क़ुबूल होती है
- ज़ियाउद्दीन अहमद शकेब
बाशिंदगान-ए-चर्ख़ मिरी फ़िक्र छोड़ दें
ख़ुश हूँ ज़मीन पर कि यही है मिरी जगह
- ज़िशान इलाही
कोई डर था न फ़िक्र थी कोई
माँ की उँगली थी मेरे हाथों में
- जीम जाज़िल
अफ़्कार सैकड़ों हों अगर हो न फ़िक्र-ए-इश्क़
वारस्तगी कहाँ है कहें जी फँसाए बिन
- जुरअत क़लंदर बख़्श
उस ज़ुल्फ़ पे फबती शब-ए-दीजूर की सूझी
अंधे को अँधेरे में बड़ी दूर की सूझी
- जुरअत क़लंदर बख़्श
नासेह बहुत ब-फ़िक्र-ए-रफ़ू था पे जूँ हुबाब
मुतलक़ न उस के हाथ मिरा पैरहन लगा
- जुरअत क़लंदर बख़्श
फ़र्बा-तनी की फ़िक्र में नादाँ हैं रोज़-ओ-शब
आख़िर को जानते नहीं है ये ग़िज़ा-ए-मर्ग
- जुरअत क़लंदर बख़्श
शुऊर-ओ-फ़िक्र से आगे निकल भी सकता है
मिरा जुनून हवाओं पे चल भी सकता है
- ज़ुल्फ़िकार नक़वी
फ़लक को फ़िक्र कोई मेहर-ओ-माह तक पहोंचे
हमें ये ज़ोम कि हम वाह वाह तक पहोंचे
- ज़ुहूर-उल-इस्लाम जावेद
बीमार को उस सम्त नहीं फ़िक्र-ए-मुदावा
उस सम्त मुआलिज भी दवा भूल गया है
- जे. पी. सईद
नहीं है फ़ुर्सत यहीं के झगड़ों से फ़िक्र-ए-उक़्बा कहाँ की वाइ'ज़
अज़ाब-ए-दुनिया है हम को क्या कम सवाब हम ले के क्या करेंगे
- ज़ेबा
हर फ़िक्र की अपनी मंज़िल थी
हर सोच का अपना रस्ता था
- ज़ेहरा निगाह
फ़िक्र ही ठहरी तो दिल को फ़िक्र-ए-ख़ूबाँ क्यूँ न हो
ख़ाक होना है तो ख़ाक-ए-कू-ए-जानाँ क्यूँ न हो
- जोश मलीहाबादी
हो चुका मैं सो फ़िक्र यारों को
अब मिरी देख-भाल की होगी
- जौन एलिया
फ़िक्र की दुनिया में कोलम्बस बना फिरता हूँ मैं
इल्म की पहनाई का कितना बड़ा फ़ैज़ान है
- ज्ञान चंद जैन
COMMENTS