मजदूर पर शायरी

मजदूर पर शायरी

मजदूर और मजदूरी पर शायरों ने काफी कुछ कहा है | शायरों ने मजदूरों के दर्द को उनकी मुश्किलों और भावनाओं को शायरी में पिरोयाँ है आप सभी के लिए मजदूर पर शायरी संकलन पेश है :


अच्छा हुआ के 1 मई की याद आ गई
कितनों को याद भी नहीं मज़दूर डे भी है।
- ख़ालिद कमाल भारत



अपनी उजरत नहीं छोड़ेगा रुलानेवाला
देख लेना, वो किसी रोज़ हँसायेगा मुझे
- शाहिद कबीर



अपनी मेहनत की कमाई से जलाओगे अगर
इक दिए से ही हरिक घर में उजाला होगा
- आराधना प्रसाद



अब इनकी ख़्वाबगाहों में कोई आवाज़ मत करना
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं
- नफ़स अम्बालवी



अब तक मेरे आसाब पे मेहनत है मुसल्लत
अब तक मेरे कानों में मशीनों की सदा है
- तनवीर सिप्रा



अब तलक मैं, हाशिये पर ही खड़ा हूँ,
ज़ीस्त जीने की मगर ज़िद पर अड़ा हूँ,
हाँ सही समझा !बहुत मजबूर हूँ मैं,
आपके इस मुल्क का, मज़दूर हूँ मैं
- असमा सुबहानी



अमां मेहनत की उजरत भी हमें जायज़ नहीं मिलती
हमें दिन रात ही मन्सूर है खपना ग़रीबी में
- अब्दुल रहमान मन्सूर



आज फिर उसने हथेली को छुपाया माँ से
आज फिर हांथ में उजरत नहीं छाला होगा
- सलीम सिद्दीकी



आज भी सिपरा उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
मैं लोहे की नाफ़ से पैदा जो कस्तूरी करता हूँ
- तनवीर सिप्रा



आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए
- हफ़ीज़ जालंधरी



आरती लिए तू किसे ढूंढता है मूरख
मंदिरों राजप्रासादों और तहखानों में
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में
- दिनकर



आसमाँ में सितारा चमकता गया
बस हुनर जिंदगी मे झलकता गया
बनके मजदूर की हैं इबादत यहाँ
मेहनत का पसीना महकता गया
- एजाज शेख़



इतराते हैं ख़ुद पर महनत और पसीना भी
खेतों वाले लौट के जब भी घर को आते हैं
- के.पी.अनमोल



इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भी
जो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं
- जमील मज़हरी



इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू आमी
मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ
- इमरान आमी



उजरत-ए-इश्क़ वफ़ा है तो हम ऐसे मज़दूर,
कुछ भी कर लेंगे ये मेहनत नहीं होगी हम से
- इफ़्तिख़ार आरिफ़



उजरते न हुर्मते ना काम के
सर में सौदे हैं कई आराम के
- ललित माथुर



उजालों की हिमायत कर रहा है
अँधेरा फिर सियासत कर रहा है
बहोत मुश्किल है उसको भूल पाना
ये दिल बेकार मेहनत कर रहा है
- महशर आफ़रीदी



उन पे छोड़ा था हमेँ जो भी इनायत करते
किस लिए माँग के हम अज्र को उजरत करते
- अब्बास ताबिश



उनका दीदार मेरी क़िस्मत में
इश्क़ तो खुश है इतनी उजरत में
- निशांत नायाब



उन्हें मजदूरी भी तो दे दो कुछ तुम
कि परबत जिनसे उठवाये गये हैं
- नवीन नीर



उसके दिल में जब कभी तनहाइयां रक्खी मिलीं
मेरे दिल में भी वही परछाइयां रक्खी मिलीं
ज़र्दियां मजदूर-मेहनतकश के थीं चेहरों पे जो
मेरी ग़ज़लों में वही रानाइयां रक्खी मिली
- विवेक भटनागर



उससे पूछो वो बताएगा थकन का मतलब!
एक मजदूर जिसे काम नहीं मिल पाया !!
- आसिम क़मर



ऐ ख़ुदा ! कबतक मैं अपने पाँओं को मोड़े रहूँ
मेरे पाँओं के मुताबिक़ अब मिरी चादर बना
तू तो मेह़नतकश है तुझको यूँ भी आ जाएगी नींद
हाथ को तकिया बना फ़ुटपाथ को बिस्तर बना
- राजेश रेड्डी



कब तक सहेंगे ज़ुल्म रफ़ीको रकीब के
शोलो में अब ढलेंगे ये आंसू गरीब के
- अदम गोंडवी



कभी आँसू कभी ख़ुशी बेची
हम ग़रीबों ने बेकसी बेची
- अबु तालिब



कहां मानतें हैं मेहनतकश मुकद्दर की तहरीरों को
बदल देते हैं मशक्कत से वो हाथों की लकीरों को
खून पसीना मिला देतें हैं यह सीमेंट और रेत में
नमन करो इनके द्वारा की गई तामीरों को
- राजिंदर सिंह बग्गा



मजदूर पर शायरी - किताबें इतनी महंगी फीस कुछ इतनी ज्यादा है न जाने कितने बच्चों की पढाई छूट जाती है
किताबें इतनी महंगी फीस कुछ इतनी ज्यादा है
न जाने कितने बच्चों की पढाई छूट जाती है
- राम प्रकाश बेखुद



किस तरह चुकाओगे क़र्ज़ तुम उदासी का
इश्क़ के एवज़ हासिल रतजगों की उजरत से
- शिवओम मिश्रा



किसी अमीर से हमारी तबियत नही मिलती,
सो हमें हमारे वक़्त पर उजरत नही मिलती
- अलफ़ाज़ सिंगरौली



किसी के क़त्ल के उजरत के पैसे
किसी क़व्वाल पे लुटते भी देखे
- शारिक कैफ़ी



कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं
- अहमद सलमान



कोई मज़दूरी इश्क़ मे न मिली
काम पूरा कभी हुआ ही नहीं
- फ़हमी बदायुंनी



खा जाने का कौन सा गुर है को इन सबको याद नही,
जब तक इनको आजादी है, कोई भी आजाद नही।
उसकी आजादी की बातें सारी झूठी बातें हैं,
मजदूरों को, मजबूरों को खा जाने की घातें हैं।
- हफ़ीज़ जालंधरी



ख़ुदा को हँसाता रहूँ मसख़री से
मैं काफ़िर ही बेहतर हूँ इस नौकरी से
अब इक ख्व़ाब उजरत हो इन रतजगों का
तेरी दीद हो आँखों की सैलरी से
- स्वप्निल तिवारी



ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में
न हवेली न महल और न कोई घर होता
- हैदर अली जाफ़री



ख़्वाब क्या देखे थके हारे लोग
ऐसे सोते है कि मर जाते है
- शकील आज़मी



गोली खाने के बाद
एक के मुंह से निकला राम
दुसरे के मुंह से निकला माओ
तीसरे के मुंह से निकला आलू
पोस्ट–मोर्टेम की रिपोर्ट यह कहती है
कि पहले दो के पेट भरे हुए थे
- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना



चंद रोज मेरी जाना सिर्फ चंद ही रोज,
जुल्म की वाह में रहने को मजबूर है हम
- फैज अहमद फैज



जहाँ की कोई दुखती रग सहाफी ढूंढ लेता है
समन्दर में उतर कर सच्चे मोती ढूंढ लेता है
चलो इन सर्दियों में ये हुनर मज़दूर से सीखें
वो ठंडी राख़ में किस तरह गर्मी ढूंढ लेता है
- आदिल रशीद



ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूक ही मज़दूर की ख़ूराक हो जाएगी क्या
- रज़ा मौरान्वी



जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,
जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं।
- फैज अहमद फैज



ज़िन्दगी मजदूर की क्या ज़िन्दगी है
मौत से जिसको यहाँ बदतर लिखूँगा
क्यों दिहाड़ी पे लगा दिनकर जहाँ में
हैं अँधेरे रात भर नश्तर लिखूँगा
- दिनकर राव दिनकर



जिसकी उजरत कभी नहीं मिलती
मैं वो मज़दूर हूँ वफ़ाओं का
- युसुफ़ सहराई



जो बोझ भी ढोए और उजरत भी न माँगे।
हम जैसा यहां आप को हामिल न मिलेगा
- मंजुल मिश्रा मंज़र



टूट कर आंखों से आंसू तेरे दामन पर पड़े
इश्क़ की मेरे ख़ुदाया आज उजरत हो गई
- हर्ष अदीब



तय उजरतें करो तो ये रखना हिसाब भी
रोटी में अब हमारी है शामिल शराब भी
- महेश जानिब



तरक़्क़ी आ भी जायेगी तो कितने रोज़ ठहरेगी
यहाँ, मेहनत-मशक्क़त को सही-क़ीमत नहीं मिलती
- नविन सी.चतुर्वेदी



तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं
- ओबैदुर् रहमान



तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी
है सूखने को पसीना मुआवज़ा है कहाँ
- आसिम वास्ती



तुमको मजदूर नज़र आता है
हमको मजबूर नज़र आता है
- विकास जोशी



तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात
- अल्लामा इक़बाल



तेरी ताबिश से रौशन हैं गुल भी और वीराने भी
क्या तू भी इस हँसती-गाती दुनिया का मज़दूर है चाँद?
- शबनम रूमानी



मजदूर पर शायरी - तेल निकालें रेत से ये ग़ल्ला बंजर खेत से ये ये तो हरफन मौला हैं आठूं गाँठ कमीत से ये बेशक दुनिया क़ायम हे मज़दूरों की मेहनत पर
तेल निकालें रेत से ये
ग़ल्ला बंजर खेत से
ये ये तो हरफन मौला हैं

आठूं गाँठ कमीत से ये
बेशक दुनिया क़ायम हे
मज़दूरों की मेहनत पर
- मुजफ्फर हनफ़ी



थके मजदूर रह-रह कर जुगत ऐसी लगाते हैं
कभी खैनी बनाते हैं कभी बीड़ी लगाते हैं
- ओमप्रकाश यती



दिन गुजरता हैं मेरा उजरत में
रात कटती मेरी अज़िय्यत में
- शिवा गुर्जरवाडिया



दिन भर कड़कती धूप में करता रहा वो काम,
उजरत मिली तो हाथ के छालों पे रो पड़ा,
फिर से अमीर-ए-शह्र का दरबार सज गया,
मजदूर अपने खुश्क नवालों पे रो पड़ा
- अता उल हसन



दिन भर चलेगा रंग,मिलेगा न कोई काम,
मज़दूर ग़मज़दा है बहुत कल की फ़िक्र में।
- आदर्श बाराबंकवी



दिल कभी ख़्वाब के पीछे कभी दुनिया की तरफ़
एक ने अज्र दिया एक ने उजरत नहीं दी
- इफ़्तिख़ार आरिफ़



दुनिया मेरी ज़िंदगी के दिन कम करती जाती है क्यूँ
ख़ून पसीना एक किया है ये मेरी मज़दूरी है
- मनमोहन तल्ख़



दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए
- नुशूर वाहिदी



नई छत ड़ालने पर जब बँटे मसरूर के लड्डू
पड़े हैं पेट तब जाके कहीं मज़दूर के.लड्डू
- पवन कुमार तोमर



ना मै सोना, ना मै मोती, ना मै कोहेनूर हूँ
कौन थामे हाथ मेरा, मै तो इक मजदूर हूँ
- अबरार दानिश



नारे केवल नारे निकले
मेहनतक़श बेचारे निकले
आसमान में उड़ने वाले
ज़्यादातर ग़ुब्बारे निकले
- सौरभ राजमूर्ति



निकलता है पसीना भी बदन से धूप में दिनकर
न कर परवाह मजदूरी सदा रोटी कमाती है
- दिनकर राव दिनकर



पटरी पे थक के सो गये मजदूर तब लगा
सचमुच किसी की दास कभी ज़िन्दगी न थी
- राजीव कुमार



पराई आग को घर में उठा के ले आया
ये काम दिल ने बग़ैर उजरत ओ ख़सारा किया
- जमाल एह्सानी



पसीना मेरी मेहनत का मिरे माथे पे रौशन था
चमक लाल-ओ-जवाहर की मिरी ठोकर पे रक्खी थी
- नाज़िर सिद्दीक़ी



पसीने में जब वुजूद, पिघल जाता है ,
खाली पेट को सूखी उजरत, याद आती है
- गोविन्द वर्मा सिराज



पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली
सो गया मज़दूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए
- शारिब मौरान्वी



फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं
- मुनव्वर राना



फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
सुर्ख़ परचम उफ़ुक़-ए-सुब्ह पे लहराते हैं
- अली सरदार जाफ़री



फूल लाया हूँ तेरा फ़र्ज़ है बोसे दे मुझे
मेरी उजरत मेरे मुँह पे अभी मारी जाए
- दख़लन भोपाली



फेंक कर दी गई उजरत को उठाना न पड़े
बेच कर अपनी अना रिज़्क़ कमाना न पड़े
- राजेश रेड्डी



बंगले घर मीनार बनाये
मगर न अपने यार बनाये
मेहनतकश मज़दूर है हम तो
औरों का संसार बनाये
- अविनाश बागडे



बनाये हसरतों का रोज़ इक घर
मेरा दिल जैसे हो मज़दूर कोई
- अंजलि गुप्ता सिफ़र



बाज़ार में हर रोज़ ही बिक जाता है मजदूर
जिस रोज़ न बिक पाये वही दिन पहाड़ है
- अनिल गौड़



बात कहता हूँ बहुत ही दूर की,
बद्दुआ मत लीजिये मजबूर की
हो पसीना ख़ुश्क उससे क़िब्ल ही,
दीजिये उजरत सदा मज़दूर की
- एजाज़ उल हक़ शिहाब



बारे-ग़म हम भी उठाते हैं तेरा
ज़िंदगी हम भी तेरे मज़दूर हैं
- रेणु नय्यर



बिन मेहनत के उसकी किस्मत ने ऐसी करवट बदली,
इक दरिया सागर बन बैठा ये भी कोई बात हुई
- कुँवर कुसुमेश



बिना मेहनत, मश्शकत के, बशर तकदीर मांगे है,
हवा में ही इमारत की सदा तामीर मांगें है
- तिलक सेठी



बुझ जाते है हम भी सूरज के हमराह
राख उठा कर बिस्तर तक ले जाते है
- शकील आज़मी



बुझालो प्यास अपनी ऐ अमीरो
लहू मजदूर का सस्ता बहुत है
अजब बाजार है दुनिया का दानिश
यहाँ पर आदमी बिकता बहुत है
- कुणाल दानिश



बुलन्दी की गऱ हो आरजू तो मेहनत करना सीखिये
बन्दगी की ग़र हो आरजू तो इबादत करना सीखिये
- कपिल कुमार



बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए
- रज़ा मौरान्वी



बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को ।
- अदम गोण्डवी



बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है
रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं
- मुनव्वर राना



मंज़िलें दूर ही रहीं उससे
जिसने मेहनत से जी चुराया है
- डॉ. ब्रह्मजीत गौतम



मजदूर का खून मलिक पीता है यहाँ
चीखती मीले, बिरला टाटा बहुत है
- आला चौहान मुसाफिर



मजदूर की मजदूरी को लॉक डॉउन खा गया
संज़ीदा कौन है मुफ़लिस का घर बार देख कर
- विवेक बादल बाज़पुरी



मशक़्क़त करते हैं हम पर हमें उजरत नहीं मिलती
घड़ी भर को भी तेरी याद से फ़ुरसत नहीं मिलती
- रामवतार वरुण



मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
लेकिन मज़दूरों के चेहरे पीले हैं
- तनवीर सिप्रा



मिलनी है मुझे काम की उजरत अभी कुछ और
लगनी है मेरे नाम पे तोहमत अभी कुछ और
- ज़र्रा



मीनार और महल से, राईसियत से कोसों दूर हूँ...
गर्व से कहता हूँ मैं, हाँ मैं मज़दूर हूँ
- अतुल प्रेमी



मुकम्मल हिसाब कर दे आज मेरी रोज की दिहाड़ी का,
अब इश्क़ की मजदूरी उधार में नहीं होती
- जैब खान



मुझको उजरत की तमन्ना ही नहीं दुनिया से
मेरा क़िरदार मेरे दोस्त शजर जैसा है
- सिया सचदेव



मुझे सिर्फ मेहनत पे ही है भरोसा,
ये मेहनत बहुत रंग लाती है यारो
किसी का हो किर्दार अच्छा कुँवर तो,
ये दुनिया उसे सर झुकाती है यारो
- कुँवर कुसुमेश



मेरी क़ीमत समझ न ले कोई,
जो मुझे मिल रही है उजरत है
- नवीन जोशी नवा



मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में
- विलास पंडित मुसाफ़िर



मेहनत का था नतीजा उस्ताद-ए-पार्सा की
झुकते थे फ़न के तालिब शागिर्द उनके दर पर
- नलिनी विभा नाज़ली



मेहनत का मंज़िल से रिश्ता,
किस्मत से पूछेंगे इक दिन
- डॉ.सीमा विजय



मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था
दरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था
- अबु तुरा



मेहनतकश की उजरत बस इतनी सी है
अक्सर भूखे-प्यासे सोना पड़ता है
- नज़्म सुभाष



मेहनतकश के हाथ हमेशा, सूखी रोटी आई है
और दलालों की मुट्ठी में, जकड़ा कोहेनूर रहा
- नज़्म सुभाष



मेहनतकश हक़ मांगने से भी डरता है
मालिक वादा करके रोज़ मुकरता है
- अब्दुल रहमान मन्सूर



मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ
मिरी क़िस्मत है बार-ए-हुक्मरानी पुश्त पर रखना
- एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी



मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से
- मजरूह सुल्तानपुरी



मैं ने अनवर इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच
- अनवर मसूद



ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं ।।
- कांतिमोहन सोज़



ये महफ़िलें जो बग़ैर उजरत की ख़िदमतें हैं
तो क्या यहाँ भी ग़ज़ल पुरानी नहीं चलेगी
- शकील जमाली



ये हिज्र इश्क़ की उजरत है यार क्या कीजै
बदन की अपनी मुसीबत है यार क्या कीजै
- दख़लन भोपाली



रंग लायेगी ये मेहनत मेरी कुछ देर से ही
डूब जाए न मेरी सच्ची लगन पानी में
- आरती कुमारी



ले के तेशा उठा है फिर मज़दूर
ढल रहे हैं जबल मशीनों में
- वामिक़ जौनपुरी



लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की
लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की
- अफ़ज़ल ख़ान



वादों में यूँ तो कितने, बहीखाते भर दिये ,
ग़रीब हाथ में वाज़िब मगर, उजरत नहीं रही
- गोविन्द वर्मा सिराज



शर्म आती है मजदूरी बताते हुए हमको
इतने में तो बच्चे का गुब्बारा नहीं मिलता
- मुनव्वर राना



शाम को जिस वक़्त खाली हाथ जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं
- राजेश रेड्डी



सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।
- अदम गोण्डवी



सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर
ख़ुद अपने सर पे उसे साएबाँ समझने लगे
- शारिब मौरान्वी



सहे न जायेंगे मेहनतकशों पे जुल्मो-सितम
नज़र से दूर नही है निजात का मंजर
- डॉ.संदीप गुप्ते



साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है
- ओम प्रकाश यती



सूख जाए न कहीं देखो पसीना उसका
कोई ताख़ीरे अदा उजरते मज़दूर न कर
- वक़ार अहमद



मजदूर पर शायरी - सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर, मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते
- मुनव्वर राना



हम इतनी करके मेहनत शहर में फुटपाथ पर सोये
ये मेहनत गाँव में करते तो अपना घर बना लेते
- कुँवर बेचैन



हम मेहनतकश जग वालों से जब अपना हिस्सा मांगेंगे,
एक खेत नहीं, एक देश नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे
- फैज अहमद फैज



हम हैं उजरत पे रखे ग़ैर-मुमालिक मज़दूर
जो तेरा वस्ल कमाते हैं चले जाते हैं
- लक़ी फ़ारुक़ी



हमको उजरत में फ़क़त और फ़क़त
तेरी तस्वीर दिखाई गई है
- एजाज साहिल



हाथों की लकीरों में है सबकी लिखी किस्मत,
फितरत ये मिले हमको यूं उज़रत से जियादा,
- मनोरमा श्रीवास्तव



हाल चेहरे से बयाँ हो जाए
वो तो मजदूर नज़र आता है
- कुलदीप गर्ग तरुण



हालांकि एक कतरा ही उसका वुजूद था
लेकिन समुंदरों को भी वो मात दे गया
चंदा मांगते थे कई हट्टे कट्टे लोग
मेहनत पसंद बच्चा था खैरात दे गया
- अज़ीम अंसारी



हासिल उन्हें ही होती है मंज़िल जहान में
दुनिया में जो भी चलते हैं मेहनत के रास्ते
- महेश कुमार कुलदीप माही



है कोई सोच अभी जिसपे अमल बाकी है
और शायद के यहीं वजह ग़ज़ल बाकी है
हम है मजदूर हमे काम है मजदूरी से
ख़ाब है आपके तो आपका फल बाकी है
- अनंत नांदुरकर खलिश



हैया रे हैया, हैया रे हैया
भूखा है बाबा नंगी है मैया
खेतों में हम है, माटी का जीवन,
मीलो में हम है लोहे का ईधन |

फौजो में हम है बनके सिपहिया,
हैया रे हैया, हैया रे हैया
- कैफ भोपाली



होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली है
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है
- जमील मज़हरी



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