ऐ मेरे शहर, यहां मुझे घाटा बहुत है - आला चौहान" मुसाफिर"

ऐ मेरे शहर, यहां मुझे घाटा बहुत है!  लाखों की भीड़ में सन्नाटा बहुत है !!

ऐ मेरे शहर, यहां मुझे घाटा बहुत है!

ऐ मेरे शहर, यहां मुझे घाटा बहुत है!
लाखों की भीड़ में सन्नाटा बहुत है !!

माँ सुकून की रोटी यहां मिलती नहीं !
लोग कहते है महंगा आटा बहुत है !!

मज़दूर का खून मालिक पीता है यहां !
चिखती मीले, बिरला टाटा बहुत है !!

मासुम छोटु, खिलोना बेचता दिखा!
टूकड़ा रोटी का, बचपन रूलाता बहुत है !!

फिर बुढ़ा बाप, आज घर से निकाला गया !
बहू कहती है, बुढ़ापे में वो खाता बहुत है !!

साहित्य देखो सर पटक के रो रहा यहां !
नंगेपन पे नंगा, तालियाँ बजाता बहुत है !! - आला चौहान" मुसाफिर"


ae mere shahar, yaha mujhe ghata bahut hai

ae mere shahar, yaha mujhe ghata bahut hai
laakho ki bheed me sannata bahut hai

maa ki sukun ki roti yaha milti nahi
log kahte hai mahanga aata bahut hai

majdur ka khun malik peeta hai yaha
chikhti mile, birla tata bahut hai

masum chhotu, khilona bechta dikha
tukda roti ka, bachpan rulata bahut hai

phir budha baap, aaj ghar se nikala gaya
bahu kahti hai, budhape me khata bahut hai

sahitya dekho sar patak ke ro raha yahan
nagepan pe nanga, taliyaN bajata bahut hai - Ala Chouhan Musafir

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