ये मेरे शहर को हुआ क्या है ?
"ये मेरे शहर को हुआ क्या है ?" कविता मैंने करीब चार साल पहले 2011 में लिखी थी । यह Facebook timeline से लिया गया है देवेन्द्र गेहलोदकुछ दिनों से समाचार पत्रों में इंदौर में हुई घटनाओं को पढकर बड़ा अफ़सोस होता है जहा हर शहरवासी दूसरे पर आसानी से भरोसा कर सकता था हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल दी जाती थी.... प्रस्तुत है दिल पर असर करती यह कविता...
हर तरफ है कत्लो-गारत,
दामनो पे दाग, और मुह पे रौनक
ये मेरे शहर को हुआ क्या है ?
ये सब देख के
अब और देखने को बचा क्या है ?
ये मेरे शहर को हुआ क्या है ?
लहू से रंगे हाथ है,
सियासत भी खामोश, अपने बांधे हाथ है
कोई बच्ची अब सहम सी जाती है
ये मौसम ये हवा क्या है ?
अब तो चारो और रावण ही रावण है
रक्षा किससे करोगे अपनी
निकले जो अकेले घर से तुम्हारे
बदमाश सारे तुम्हारी राह निहारे
अपनी अपनी रोटी सेके
नेता इन पर यूं नोट फेके
ये तो वही है जिन्हें चुना था
हां हमने अपने लिए कांटो का ताज बुना था
अब तो पत्थर भी रोने लगा है
इन हवाओ का असर सब पर होने लगा है
सब चुप बेठे अपने घरों में
डर लेके रखा है अपने सरो में
ये मेरा शहर था प्यारा
अपने आप में निराला-न्यारा
सीनों में आग तो फिर ये धुंआ क्या है
ये मेरे शहर को हुआ क्या है? - देवेन्द्र 'देव'
ye mere shahar ko hua kya hai?
har taraf ai katl-o-garatdamno pe daag aur muh pe rounak
ye mere shahar ko hua kya hai ?
ye sab dekh ke
ab aur dekhne ko bacha kya hai ?
ye mere shahar ko hua kya hai ?
lahu se range haath hai,
siyasat bhi khamosh, apne bandhe haath hai
koi bachchi ab saham si jati hai
ye mousam ye hawa kya hai ?
ye mere shahar ko hua kya hai ?
ab to charo aur rawan hi rawan hai
raksha kisse karoge apni
nikle jo akele ghar se tumhare
badmash sare tumhari raah nihare
apni apni roti seke
neta in par yun note feke
ye to wahi hai jinhe chuna tha
haN hamne apne liye kanta buna tha
ab to patthar bhi rone laga hai
in hawao ka asar sab par hone laga hai
sab chup baithe apne gharo me
dar leke rakha hai apne saro me
ye mera shahar tha pyara
apne aap me nirala-nyara
seeno me aag to phir ye dhuaaN kya hai
ye mere shahar ko hua kya hai ? - Devendra Dev