मजदूर दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाए | मजदूर और मजदूरी पर शायरों ने काफी कुछ कहा है हमने उनमे से कुछ एकत्रित किये है हो सकता है इनमे से...
मजदूर दिवस पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाए | मजदूर और मजदूरी पर शायरों ने काफी कुछ कहा है हमने उनमे से कुछ एकत्रित किये है हो सकता है इनमे से कुछ रह गए हो आप हमें उन्हें कमेन्ट में बता सकते है
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को । - अदम गोण्डवी
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सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को । - अदम गोण्डवी
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कब तक सहेंगे ज़ुल्म रफ़ीको रकीब के
शोलो में अब ढलेंगे ये आंसू गरीब के - अदम गोंडवी
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आरती लिए तू किसे ढूंढता है मूरख
मंदिरों राजप्रासादों और तहखानों में
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में - दिनकर
*****
बारे-ग़म हम भी उठाते हैं तेरा
ज़िंदगी हम भी तेरे मज़दूर हैं - रेणु नय्यर Renu Nayyar
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फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
सुर्ख़ परचम उफ़ुक़-ए-सुब्ह पे लहराते हैं - अली सरदार जाफ़री
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मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच -अनवर मसूद
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दिन भर चलेगा रंग,मिलेगा न कोई काम,
मज़दूर ग़मज़दा है बहुत कल की फ़िक्र में। - आदर्श बाराबंकवी
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थके मजदूर रह-रह कर जुगत ऐसी लगाते हैं
कभी खैनी बनाते हैं कभी बीड़ी लगाते हैं - ओमप्रकाश यती
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ना मै सोना, ना मै मोती, ना मै कोहेनूर हूँ
कौन थामे हाथ मेरा, मै तो इक मजदूर हूँ- अबरार दानिश
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मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था
दरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था- अबु तुरा
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तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी
है सूखने को पसीना मुआवज़ा है कहाँ - आसिम वास्ती
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तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात - अल्लामा इक़बाल
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लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की - अफ़ज़ल ख़ान
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कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं -अहमद सलमान
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साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है - ओम प्रकाश यती
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तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं - ओबैदुर् रहमान
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मीनार और महल से, राईसियत से कोसों दूर हूँ...
गर्व से कहता हूँ मैं, हाँ मैं मज़दूर हूँ - अतुल" प्रेमी"
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मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ
मिरी क़िस्मत है बार-ए-हुक्मरानी पुश्त पर रखना - एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
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हैया रे हैया, हैया रे हैया
भूखा है बाबा नंगी है मैया
खेतों में हम है, माटी का जीवन,
मीलो में हम है लोहे का ईधन |
फौजो में हम है बनके सिपहिया,
हैया रे हैया, हैया रे हैया- कैफ भोपाली
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आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
मैं लोहे की नाफ़ से पैदा जो कस्तूरी करता हूँ - तनवीर सिप्रा
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मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
लेकिन मज़दूरों के चेहरे पीले हैं - तनवीर सिप्रा
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अब तक मेरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
अब तक मेरे कानों में मशीनों की सदा है - तनवीर सिप्रा
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आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए -हफ़ीज़ जालंधरी
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खा जाने का कौन सा गुर है को इन सबको याद नही,
जब तक इनको आजादी है, कोई भी आजाद नही।
उसकी आजादी की बातें सारी झूठी बातें हैं,
मजदूरों को, मजबूरों को खा जाने की घातें हैं। - हफ़ीज़ जालंधरी
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गोली खाने के बाद
एक के मुंह से निकला राम
दुसरे के मुंह से निकला माओ
तीसरे के मुंह से निकला आलू
पोस्ट–मोर्टेम की रिपोर्ट यह कहती है
कि पहले दो के पेट भरे हुए थे - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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अच्छा हुआ के 1 मई की याद आ गई
कितनों को याद भी नहीं मज़दूर डे भी है। - ख़ालिद कमाल भारत
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ख़्वाब क्या देखे थके हारे लोग
ऐसे सोते है कि मर जाते है - शकील आज़मी
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बुझ जाते है हम भी सूरज के हमराह
राख उठा कर बिस्तर तक ले जाते है - शकील आज़मी
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अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं - नफ़स अम्बालवी
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सो जाता है फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाता - मुनव्वर राना
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बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है
रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं - मुनव्वर राना
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फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं - मुनव्वर राना
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शर्म आती है मजदूरी बताते हुए हमको
इतने में तो बच्चे का गुब्बारा नहीं मिलता - मुनव्वर राना Munwwar Rana
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सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते - मुनव्वर राना
*****
कभी आँसू कभी ख़ुशी बेची
हम ग़रीबों ने बेकसी बेची - अबु तालिब
*****
तेल निकालें रेत से ये
ग़ल्ला बंजर खेत से
ये ये तो हरफन मौला हैं
आठूं गाँठ कमीत से ये
बेशक दुनिया क़ायम हे
मज़दूरों की मेहनत पर - मुजफ्फर हनफ़ी
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जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,
जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं। -फ़ैज
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चंद रोज मेरी जाना सिर्फ 'चंद ही रोज,
जुल्म की वाह में रहने को मजबूर है हम - फ़ैज
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पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली
सो गया मज़दूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए - शारिब मौरान्वी
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सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर
ख़ुद अपने सर पे उसे साएबाँ समझने लगे - शारिब मौरान्वी
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बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए - रज़ा मौरान्वी
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ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूक ही मज़दूर की ख़ूराक हो जाएगी क्या - रज़ा मौरान्वी
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दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए - नुशूर वाहिदी
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दुनिया मेरी ज़िंदगी के दिन कम करती जाती है क्यूँ
ख़ून पसीना एक किया है ये मेरी मज़दूरी है - मनमोहन तल्ख़
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शाम को जिस वक़्त खाली हाथ जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं -राजेश रेड्डी / Rajesh Reddy
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मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से - मजरूह सुल्तानपुरी
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मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में - विलास पंडित मुसाफ़िर
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पसीना मेरी मेहनत का मिरे माथे पे रौशन था
चमक लाल-ओ-जवाहर की मिरी ठोकर पे रक्खी थी - नाज़िर सिद्दीक़ी
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तेरी ताबिश से रौशन हैं गुल भी और वीराने भी
क्या तू भी इस हँसती-गाती दुनिया का मज़दूर है चाँद? - शबनम रूमानी
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होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली है
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है -जमील मज़हरी
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इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भी
जो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं - जमील मज़हरी
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इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू 'आमी'
मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ - इमरान आमी
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ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में
न हवेली न महल और न कोई घर होता - हैदर अली जाफ़री
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मजदूर का खून मलिक पीता है यहाँ
चीखती मीले, बिरला टाटा बहुत है - आला चौहान 'मुसाफिर'
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ले के तेशा उठा है फिर मज़दूर
ढल रहे हैं जबल मशीनों में - वामिक़ जौनपुरी
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ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं ।। - कांतिमोहन 'सोज़'
बेचता यूं ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को । - अदम गोण्डवी
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सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को । - अदम गोण्डवी
*****
कब तक सहेंगे ज़ुल्म रफ़ीको रकीब के
शोलो में अब ढलेंगे ये आंसू गरीब के - अदम गोंडवी
*****
आरती लिए तू किसे ढूंढता है मूरख
मंदिरों राजप्रासादों और तहखानों में
देवता कहीं सड़कों पर गिट्टी तोड़ रहे
देवता मिलेंगे खेतों में, खलिहानों में - दिनकर
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बारे-ग़म हम भी उठाते हैं तेरा
ज़िंदगी हम भी तेरे मज़दूर हैं - रेणु नय्यर Renu Nayyar
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फूटने वाली है मज़दूर के माथे से किरन
सुर्ख़ परचम उफ़ुक़-ए-सुब्ह पे लहराते हैं - अली सरदार जाफ़री
*****
मैं ने 'अनवर' इस लिए बाँधी कलाई पर घड़ी
वक़्त पूछेंगे कई मज़दूर भी रस्ते के बीच -अनवर मसूद
*****
दिन भर चलेगा रंग,मिलेगा न कोई काम,
मज़दूर ग़मज़दा है बहुत कल की फ़िक्र में। - आदर्श बाराबंकवी
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थके मजदूर रह-रह कर जुगत ऐसी लगाते हैं
कभी खैनी बनाते हैं कभी बीड़ी लगाते हैं - ओमप्रकाश यती
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ना मै सोना, ना मै मोती, ना मै कोहेनूर हूँ
कौन थामे हाथ मेरा, मै तो इक मजदूर हूँ- अबरार दानिश
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मेहनत से मिल गया जो सफ़ीने के बीच था
दरिया-ए-इत्र मेरे पसीने के बीच था- अबु तुरा
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तिरी ज़मीन पे करता रहा हूँ मज़दूरी
है सूखने को पसीना मुआवज़ा है कहाँ - आसिम वास्ती
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तू क़ादिर ओ आदिल है मगर तेरे जहाँ में
हैं तल्ख़ बहुत बंदा-ए-मज़दूर के औक़ात - अल्लामा इक़बाल
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लोगों ने आराम किया और छुट्टी पूरी की
यकुम मई को भी मज़दूरों ने मज़दूरी की - अफ़ज़ल ख़ान
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कुचल कुचल के न फ़ुटपाथ को चलो इतना
यहाँ पे रात को मज़दूर ख़्वाब देखते हैं -अहमद सलमान
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साधन नहीं है कोई भी, भरने हैं कई पेट
इक टोकरी है, सर है कि मज़दूर दिवस है - ओम प्रकाश यती
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तामीर-ओ-तरक़्क़ी वाले हैं कहिए भी तो उन को क्या कहिए
जो शीश-महल में बैठे हुए मज़दूर की बातें करते हैं - ओबैदुर् रहमान
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मीनार और महल से, राईसियत से कोसों दूर हूँ...
गर्व से कहता हूँ मैं, हाँ मैं मज़दूर हूँ - अतुल" प्रेमी"
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मैं इक मज़दूर हूँ रोटी की ख़ातिर बोझ उठाता हूँ
मिरी क़िस्मत है बार-ए-हुक्मरानी पुश्त पर रखना - एहतिशामुल हक़ सिद्दीक़ी
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हैया रे हैया, हैया रे हैया
भूखा है बाबा नंगी है मैया
खेतों में हम है, माटी का जीवन,
मीलो में हम है लोहे का ईधन |
फौजो में हम है बनके सिपहिया,
हैया रे हैया, हैया रे हैया- कैफ भोपाली
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आज भी 'सिपरा' उस की ख़ुश्बू मिल मालिक ले जाता है
मैं लोहे की नाफ़ से पैदा जो कस्तूरी करता हूँ - तनवीर सिप्रा
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मिल मालिक के कुत्ते भी चर्बीले हैं
लेकिन मज़दूरों के चेहरे पीले हैं - तनवीर सिप्रा
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अब तक मेरे आ'साब पे मेहनत है मुसल्लत
अब तक मेरे कानों में मशीनों की सदा है - तनवीर सिप्रा
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आने वाले जाने वाले हर ज़माने के लिए
आदमी मज़दूर है राहें बनाने के लिए -हफ़ीज़ जालंधरी
*****
खा जाने का कौन सा गुर है को इन सबको याद नही,
जब तक इनको आजादी है, कोई भी आजाद नही।
उसकी आजादी की बातें सारी झूठी बातें हैं,
मजदूरों को, मजबूरों को खा जाने की घातें हैं। - हफ़ीज़ जालंधरी
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गोली खाने के बाद
एक के मुंह से निकला राम
दुसरे के मुंह से निकला माओ
तीसरे के मुंह से निकला आलू
पोस्ट–मोर्टेम की रिपोर्ट यह कहती है
कि पहले दो के पेट भरे हुए थे - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना
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अच्छा हुआ के 1 मई की याद आ गई
कितनों को याद भी नहीं मज़दूर डे भी है। - ख़ालिद कमाल भारत
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ख़्वाब क्या देखे थके हारे लोग
ऐसे सोते है कि मर जाते है - शकील आज़मी
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बुझ जाते है हम भी सूरज के हमराह
राख उठा कर बिस्तर तक ले जाते है - शकील आज़मी
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अब उन की ख़्वाब-गाहों में कोई आवाज़ मत करना
बहुत थक-हार कर फ़ुटपाथ पर मज़दूर सोए हैं - नफ़स अम्बालवी
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सो जाता है फुटपाथ पे अख़बार बिछाकर,
मजदूर कभी नींद की गोली नहीं खाता - मुनव्वर राना
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बोझ उठाना शौक़ कहाँ है मजबूरी का सौदा है
रहते रहते स्टेशन पर लोग क़ुली हो जाते हैं - मुनव्वर राना
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फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं - मुनव्वर राना
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शर्म आती है मजदूरी बताते हुए हमको
इतने में तो बच्चे का गुब्बारा नहीं मिलता - मुनव्वर राना Munwwar Rana
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सो जाते हैं फ़ुटपाथ पे अख़बार बिछा कर
मज़दूर कभी नींद की गोली नहीं खाते - मुनव्वर राना
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कभी आँसू कभी ख़ुशी बेची
हम ग़रीबों ने बेकसी बेची - अबु तालिब
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तेल निकालें रेत से ये
ग़ल्ला बंजर खेत से
ये ये तो हरफन मौला हैं
आठूं गाँठ कमीत से ये
बेशक दुनिया क़ायम हे
मज़दूरों की मेहनत पर - मुजफ्फर हनफ़ी
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जिंदगी क्या किसी मुफलिस की कबा है,
जिसमें हर घड़ी दर्द के पैबन्द लगे जाते हैं। -फ़ैज
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चंद रोज मेरी जाना सिर्फ 'चंद ही रोज,
जुल्म की वाह में रहने को मजबूर है हम - फ़ैज
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पेड़ के नीचे ज़रा सी छाँव जो उस को मिली
सो गया मज़दूर तन पर बोरिया ओढ़े हुए - शारिब मौरान्वी
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सरों पे ओढ़ के मज़दूर धूप की चादर
ख़ुद अपने सर पे उसे साएबाँ समझने लगे - शारिब मौरान्वी
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बुलाते हैं हमें मेहनत-कशों के हाथ के छाले
चलो मुहताज के मुँह में निवाला रख दिया जाए - रज़ा मौरान्वी
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ज़िंदगी अब इस क़दर सफ़्फ़ाक हो जाएगी क्या
भूक ही मज़दूर की ख़ूराक हो जाएगी क्या - रज़ा मौरान्वी
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दौलत का फ़लक तोड़ के आलम की जबीं पर
मज़दूर की क़िस्मत के सितारे निकल आए - नुशूर वाहिदी
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दुनिया मेरी ज़िंदगी के दिन कम करती जाती है क्यूँ
ख़ून पसीना एक किया है ये मेरी मज़दूरी है - मनमोहन तल्ख़
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शाम को जिस वक़्त खाली हाथ जाता हूँ मैं
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं -राजेश रेड्डी / Rajesh Reddy
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मैं कि एक मेहनत-कश मैं कि तीरगी-दुश्मन
सुब्ह-ए-नौ इबारत है मेरे मुस्कुराने से - मजरूह सुल्तानपुरी
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मेहनत कर के हम तो आख़िर भूके भी सो जाएँगे
या मौला तू बरकत रखना बच्चों की गुड़-धानी में - विलास पंडित मुसाफ़िर
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पसीना मेरी मेहनत का मिरे माथे पे रौशन था
चमक लाल-ओ-जवाहर की मिरी ठोकर पे रक्खी थी - नाज़िर सिद्दीक़ी
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तेरी ताबिश से रौशन हैं गुल भी और वीराने भी
क्या तू भी इस हँसती-गाती दुनिया का मज़दूर है चाँद? - शबनम रूमानी
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होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दीवाली है
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है -जमील मज़हरी
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इन्ही हैरत-ज़दा आँखों से देखे हैं वो आँसू भी
जो अक्सर धूप में मेहनत की पेशानी से ढलते हैं - जमील मज़हरी
*****
इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू 'आमी'
मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ - इमरान आमी
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ख़ून मज़दूर का मिलता जो न तामीरों में
न हवेली न महल और न कोई घर होता - हैदर अली जाफ़री
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मजदूर का खून मलिक पीता है यहाँ
चीखती मीले, बिरला टाटा बहुत है - आला चौहान 'मुसाफिर'
*****
ले के तेशा उठा है फिर मज़दूर
ढल रहे हैं जबल मशीनों में - वामिक़ जौनपुरी
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ये बात ज़माना याद रखे मज़दूर हैं हम मजबूर नहीं
ये भूख ग़रीबी बदहाली हरगिज़ हमको मँज़ूर नहीं ।। - कांतिमोहन 'सोज़'
ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सब को मजदूर दिवस की हार्दिक मंगलकामनाएँ !!
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/05/2019 की बुलेटिन, " १ मई - मजदूर दिवस - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
बहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteसादर
मजदूरों की दशा, दिशा एवं महत्व को प्रदर्शित करने वाली बेहतरीन पोस्ट !!!
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