मज़दूर की अज़मत - मुज़फ़्फ़र हनफ़ी

मज़दूर की अज़मत

तेल निकालें रेत से ये
ग़ल्ला बंजर खेत से ये
ये तो हरफन मौला हैं
आठूं गाँठ कमीत से ये

बेशक दुनिया क़ायम हैं
मज़दूरों की मेहनत पर

ये हंगामा शहरों का
इन से पानी नहरों का
इन के दम से लरजे में
दिल तूफानी लहरों का

बेशक दुनिया क़ायम हैं
मज़दूरों की मेहनत पर

मिल में कपडा बुनते हैं
ये दीवारें चुनते हैं
हम टीवी और टेलीफोन
इन के दम से सुनते हैं

बेशक दुनिया क़ायम हैं
मज़दूरों की मेहनत पर

ये नावें तेराते हैं
और जहाज़ उड़ाते हैं
सुख देते हैं दुःख सह कर
रूखी सूकी खाते हैं

बेशक दुनिया क़ायम हैं
मज़दूरों की मेहनत पर

जब तक पहिये घूमेंगे
जब तक पोधे झूमेंगे
इन के ज़ख़्मी हाथो को
दुनिया वाले चूमेंगे

बेशक दुनिया क़ायम हैं
मज़दूरों की मेहनत पर
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी


mazdoor ki azmat

tel nikale ret se ye
galla banzar khet se ye
ye to harfan moula hai
aanthu ghaath kamit se ye

beshak duniya kayam hai
majduro ki mehnat par

ye hangama shaharo ka
in se paani nahro ka
in ke dam par larze me
din tufani lahro ka

beshak duniya kayam hai
majduro ki mehnat par

mil me kapda bunte hai
ye deeware chunte hai
ham tv aur telephone
inke dam se sunte hai

beshak duniya kayam hai
majduro ki mehnat par

ye naav tairate hai
aur jahaj udate hai
sukh dete hau dukh sah kar
rukhi sukhi khate hai

beshak duniya kayam hai
majduro ki mehnat par

jab tak pahiye ghumenge
jab tak poudh jhumenge
in ke jakhmi hatho ko
duniya wale chumenge

beshak duniya kayam hai
majduro ki mehnat par
- Muzaffar Hanfi

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