वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँ
वो फ़िराक़ और वो विसाल कहाँवो शब-ओ-रोज़ ओ माह-ओ-साल कहाँ
फ़ुर्सत-ए-कारोबार-ए-शौक़ किसे
ज़ौक़-ए-नज़्ज़ारा-ए-जमाल कहाँ
दिल तो दिल वो दिमाग़ भी न रहा
शोर-ए-सौदा-ए-ख़त्त-ओ-ख़ाल कहाँ
थी वो इक शख़्स के तसव्वुर से
अब वो रानाई-ए-ख़याल कहाँ
ऐसा आसाँ नहीं लहू रोना
दिल में ताक़त जिगर में हाल कहाँ
हम से छूटा क़िमार-ख़ाना-ए-इश्क़़
वाँ जो जावें गिरह में माल कहाँ
फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ
मुज़्महिल हो गए क़वा ग़ालिब
वो अनासिर में ए'तिदाल कहाँ
बोसे में वो मुज़ाइक़ा न करे
पर मुझे ताक़त-ए-सवाल कहाँ
फ़लक-ए-सिफ़्ला बे-मुहाबा है
इस सितम-गर को इंफ़िआल कहाँ - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
फ़िराक़ = बिछोह, विसाल = मिलन, शबो-रोजो-माहो-साल = रात-दिन-महीने-साल, तसव्वुर = कल्पना, रानाई-ए-ख़याल = विचारो की सुन्दरता, हाल = हालत/शक्ति, किमारखाना-ए-इश्क़ = इश्क़ का जुआखाना, फ़िक्र-ए-दुनिया = संसार की चिंताए
wo firaq aur wo visal kahan
wo firaq aur wo visal kahanwo shab-o-roz o mah-o-sal kahan
fursat-e-karobar-e-shauq kise
zauq-e-nazzara-e-jamal kahan
dil to dil wo dimagh bhi na raha
shor-e-sauda-e-KHatt-o-KHal kahan
thi wo ek shaKHs ke tasawwur se
ab wo ranai-e-KHayal kahan
aisa aasan nahin lahu rona
dil mein taqat jigar mein haal kahan
hum se chhuTa qimar-KHana-e-ishq
wan jo jawen girah mein mal kahan
fikr-e-duniya mein sar khapata hun
main kahan aur ye wabaal kahan
muzmahil ho gae qawa Ghalib
wo anasir mein e'tidal kahan
bose mein wo muzaiqa na kare
par mujhe taqat-e-sawal kahan
falak-e-sifla be-muhaba hai
is sitam-gar ko infial kahan - Mirza Ghalib