दीपावली पर शायरी

दीपावली पर शायरी | दीपो के पर्व दिवाली / दीपावली पर शायरो के कुछ अशआर

दीपो के पर्व दिवाली / दीपावली पर शायरो के कुछ अशआर


कुछ ग़रीबों की गली में भी दिए जल जाएँ
इस से बेहतर भी दिवाली का उजाला क्या है
- अजय सहाब



आज की रात दिवाली है दिए रौशन हैं
आज की रात ये लगता है मैं सो सकता हूँ
- अज़्म शाकरी



था इंतिज़ार मनाएँगे मिल के दिवाली
न तुम ही लौट के आए न वक़्त-ए-शाम हुआ
- अनिस मुईन



हर एक लब पे तबस्सुम हर एक दिल में ख़ुशी
ख़ुशी का दिन है तो खुशियां मना रहे हैं चराग़
- अरमान जोधपुरी



'अलका' वो जिस ने फूँक दिया मेरा आशियाँ
यादों से उम्र-भर वो दिवाली नहीं गई
- अल्का मिश्रा



झुटपुटे के वक़्त घर से एक मिट्टी का दिया
एक बुढ़िया ने सर-ए-रह ला के रौशन कर दिया
- अल्ताफ हुसैन हाली



कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल
चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ
- अल्लामा इकबाल



कुछ आज शाम ही से है दिल भी बुझा-बुझा
कुछ शहर के चिराग़ भी मद्धम हैं दोस्तो
- अहमद फ़राज़



हम चिराग़-ए-शब ही जब ठहरे तो फिर क्या सोचना
रात थी किस का मुक़द्दर और सहर देखेगा कौन
- अहमद फ़राज़



जब से आई है दीपावली
हर तरफ़ छाई है रौशनी
- आदिल हयात



दिल इक कुटिया दश्त किनारे
धूप जले कहीं साया चाहें
अंधी रातें दीप दिवाली
- इब्नएइंशा



दीप जलाए रस्ता तकती रहती हूँ
वो आए तो ईद दिवाली होली है
- इशरत मोईन सीमा



अंधेरे जश्न मनाने की भूल करते हैं
चिराग़ अब भी हवाओं पे वार करता है
- इसहाक़ असर इन्दौरी



रो रहा था गोद में अम्माँ की इक तिफ़्ल-ए-हसीं
इस तरह पलकों पे आँसू हो रहे थे बे-क़रार
जैसे दिवाली की शब हल्की हवा के सामने
गाँव की नीची मुंडेरों पर चराग़ों की क़तार
- एहसान दानिश



राहों में जान घर में चराग़ों से शान है
दीपावली से आज ज़मीन आसमान है
- ओबैद आज़म आज़मी



मुझ को ख़्वाहिश है उसी शान की दिवाली की
लक्ष्मी देश में उल्फ़त की शब-ओ-रोज़ रहे
देश को प्यार से मेहनत से सँवारें मिल कर
अहल-ए-भारत के दिलों में ये 'कँवल' सोज़ रहे
- कँवल डिबाइवी



नूर-ए-उल्फ़त से सजाना है नए भारत को
मिल के त्यौहार दिवाली का मनाना है तुम्हें
- कँवल डिबाइवी



अब जिसके जी में आए वही पाए रौशनी
हमने तो दिल जला के सरे-आम रख दिया
- क़तील शिफ़ाई



ये किस मुक़ाम पे ले आई जुस्तजू तेरी
कोई चिराग़ नहीं और रोशनी है बहुत
- कृष्ण बिहारी नूर



हर मोड़, हर गली में, हर इक घर उजास हो
यानी अँधेरा पूरी तरह बदहवास हो
इस दिन ज़माने भर की निगाहों में हो चमक
ऐसा न हो कि आज कोई मन उदास हो
- के० पी० अनमोल



वो दिन भी हाए क्या दिन थे जब अपना भी तअल्लुक़ था
दशहरे से दिवाली से बसंतों से बहारों से
- कैफ़ भोपाली



जब भी चूम लेता हूँ उन हसीन आँखों को,
सौ चिराग़ अँधेरे में झिलमिलाने लगते हैं
- कैफ़ी आज़मी



दिल में दिए जला के अंधेरे में जीना सीख
बुझते हुए चिराग़ का मातम फ़ुज़ूल है
- कौसर सद्दीकी



आँखों के चराग़ों मे उजाले न रहेंगे
आ जाओ कि फिर देखने वाले न रहेंगे
- खुमार बाराबंकवी



रोशन रहे चराग़ उसी की मज़ार पर
ताज़िन्दगी जो दिल में उजाला लिए जिया
- चिराग जैन



होने दो चराग़ाँ महलों में क्या हम को अगर दिवाली है
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम मज़दूर की दुनिया काली है
- जमील मज़हरी



'आली' अब के कठिन पड़ा दिवाली का त्यौहार
हम तो गए थे छैला बन कर भय्या कह गई नार
- जमीलुद्दीन आली



जो सुनते हैं कि तिरे शहर में दसहरा है
हम अपने घर में दिवाली सजाने लगते हैं
- जमुना प्रसाद राही



हमने हर गाम पे सजदों के जलाये हैं चिराग़
अब तिरी राहगुज़र, राहगुज़र लगती है
- जां निसार अख्तर



हमने उन तुन्द हवाओं में जलाये हैं चिराग़
जिन हवाओं ने उलट दी हैं बिसातें अक्सर
- जां निसार अख्तर



तमन्नाओं की पामाली रहेगी
जलेंगे अश्क दिवाली रहेगी
- डा.असलम इलाहाबादी



कहाँ तो तय था चरागां हरेक घर के लिए
कहाँ चराग मय्यसर नहीं शहर के लिए
- दुष्यंत कुमार



तूने जलाईं बस्तियाँ ले-ले के मशअलें
अपना चराग़ अपने ही हाथों बुझा के देख
- देवेन्द्र शर्मा 'इन्द्र'



उन्हें चिराग़ कहाने का हक़ दिया किसने
अँधेरों में जो कभी रौशनी नहीं देते
- द्विजेंद्र द्विज



हर इक मकाँ में जला फिर दिया दिवाली का
हर इक तरफ़ को उजाला हुआ दिवाली का

सभी के दिल में समाँ भा गया दिवाली का
किसी के दिल को मज़ा ख़ुश लगा दिवाली का
दिवाली आई है सब दे दिलाएँगे ऐ यार
ख़ुदा के फ़ज़्ल से है आसरा दिवाली का
- नज़ीर अकबराबादी



दोस्तो क्या क्या दिवाली में नशात-ओ-ऐश है
सब मुहय्या है जो इस हंगाम के शायाँ है शय
- नज़ीर अकबराबादी



है दसहरे में भी यूँ गर फ़रहत-ओ-ज़ीनत 'नज़ीर'
पर दिवाली भी अजब पाकीज़ा-तर त्यौहार है
- नज़ीर अकबराबादी



है दीवाली का त्यौहार जितना शरीफ़
शहर की बिजलियाँ उतनी ही बद-चलन
उन से अच्छे तो माटी के कोरे दिए

जिन से दहलीज़ रौशन है आँगन चमन
है दिवाली-मिलन में ज़रूरी 'नज़ीर'
हाथ मिलने से पहले दिलों का मिलन
- नजीर बनारसी



घुट गया अँधेरे का आज दम अकेले में
हर नज़र टहलती है रौशनी के मेले में
- नजीर बनारसी



मिरी साँसों को गीत और आत्मा को साज़ देती है
ये दिवाली है सब को जीने का अंदाज़ देती है
- नजीर बनारसी



दीपावली पर शायरी | सब से गर्मियाँ ले कर सीने में छुपाना है दिल को इस दिवाली से अग्नी बम बनाना है
सब से गर्मियाँ ले कर सीने में छुपाना है
दिल को इस दिवाली से अग्नी बम बनाना है
- नज़ीर बनारसी



जल बुझूँगा भड़क के दम भर में
मैं हूँ गोया दिया दिवाली का
- नादिर शाहजहाँपुरी



वो ख़्वाबों ख़यालों में परियों की बातें
वो होली के दिन वो दिवाली की रातें
- नितिन नायाब



इक अमावस ही तो थी अपनी हयात
मिल गए तुम तो दिवाली हो गई
- नीरज गोस्वामी



हस्ती का नज़ारा क्या कहिए मरता है कोई जीता है कोई
जैसे कि दिवाली हो कि दिया जलता जाए बुझता जाए
- नुशूर वाहिदी



आज की शब ज़रा ख़ामोश रहें सारे चराग़
आज महफिल में कोई शम्अर फ़रोजां होगी
- नुसरत मेंहदी



जलते मकान देख के लोग इतने ख़ुश हुए
पल में समाँ ही जैसे दिवाली का हो गया
- नोमान शौक़



दीपावली आती है जो हर साल फिर आई
पैग़ाम मसर्रत का जहाँ के लिए लाई
- प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी



यह नर्म नर्म हवा, झिलमिला रहे हैं चराग़
तेरे ख्याल की खुश्बू से बस रहे हैं दिमाग़
- फ़िराक गोरखपुरी



नई हुई फिर रस्म पुरानी दिवाली के दीप जले
शाम सुहानी रात सुहानी दिवाली के दीप जले

धरती का रस डोल रहा है दूर-दूर तक खेतों के
लहराये वो आंचल धानी दिवाली के दीप जले
- फ़िराक गोरखपुरी



तस्मा मिरे मत दिल पे दिवाली का बजाना
ये लट जो है चाबुक उसी काली का बजाना
- बक़ा उल्लाह 'बक़ा'



मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र मगर इस शरर की बिसात क्या
ये चिराग़ कोई चिराग़ है न जला हुआ न बुझा हुआ
- बशीर बद्र



इस एक ज़ौम में जलते हैं ताबदार चराग़
हवा के होश उड़ाएँगे बार - बार चराग़
- बुनियाद हुसैन ज़हीन



उदास उदास शाम में धुआं धुआं चराग हैं
हमें तेरे ख्याल में मिली फकत चुभन चुभन
- मरयम गजाला



यही चिराग़ जो रोशन है बुझ भी सकता था
भला हुआ कि हवाओं का सामना न हुआ
- महताब हैदर नक़बी



बीस बरस से इक तारे पर मन की जोत जगाता हूँ
दिवाली की रात को तू भी कोई दिया जलाया कर
- माजिदअलबाक़री



तेल की बेरुख़ी से बुझ गया यही सच है !
वो इक चिराग़ जो आँधी पे पड़ा था भारी !!
- मानव बजाज



बू-ए-गुल, नालह-ए-दिल, दूद-ए-चिराग़-ए-मह्फ़िल
जो तिरी बज़्म से निकला सो परेशां निकला
- मिर्ज़ा गा़लिब



है तमाशा-गाह-ए-सोज़-ए-ताज़ा हर यक उज़्व-ए-तन
जूँ चराग़ान-ए-दिवाली सफ़-ब-सफ़ जलता हूँ मैं
- मिर्ज़ा ग़ालिब



दिल है गोया चराग किसी मुफलिस का
शाम ही से बुझा सा रहता है
- मीर तक़ी मीर



ये मौसम है बाज़ारों का कि रौनक़ खींच लाती है
हमारी जेब ख़ाली कर दिवाली तुम मनाती हो
- मुंतज़िर फ़िरोज़ाबादी



अब भी रौशन हैं तेरी याद से घर के कमरे
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको
- मुनव्वर राना



मेले में गर नज़र न आता रूप किसी मतवाली का
फीका फीका रह जाता त्यौहार भी इस दिवाली का
- मुमताज़ गुर्मानी



खिड़कियों से झाँकती है रौशनी
बत्तियाँ जलती हैं घर घर रात में
- मोहम्मद अल्वी



मैं रोशनी था मुझे फैलते ही जाना था
वो बुझ गए जो समझते रहे चिराग़ मुझे
- राजेश रेड्डी



दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत
यह इक चिराग़ कई आँधियों पे भारी है
- वसीम बरेलवी



जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगा
किसी चराग का अपना मकां नहीं होता
- वसीम बरेलवी



तुम्हारे पास अगर रौशनी ज़्यादा है
तो आसपास के बुझते दिये तलाश करो
- विनीत आशना



धुआं धुआं है फज़ा रौशनी बहोत कम है
सभी से प्यार करो ज़िन्दगी बहोत कम है
तुम आसमान पे जाना तो चांद से कहना
जहां पे हम हैं वहां चांदनी बहोत कम है
- शकील आज़मी



प्यार की जोत से घर घर है चराग़ाँ वर्ना
एक भी शम्अ न रौशन हो हवा के डर से
- शकेब जलाली



शाम से छत पर घूम रहां हूँ
एक दिए के आगे पीछे
- शारिक़ कैफी



किसी को मार के ख़ुश हो रहे हैं दहशत-गर्द
कहीं पे शाम-ए-ग़रीबाँ कहीं दिवाली है
- शारिब मौरान्वी



दिवाली ईद में अक्सर खिलौने बेचता है अब
ये वो बच्चा है जिस ने अपनी ख़्वाहिश को दबा रक्खा
- संजीव आर्या



आज बिखरी है हवाओं में चरागों की महक
आज रौशन है हवा चाँद-सितारों की तरह
- सतपाल ख़याल



उजालों पर तेरी तक़रीर से कुछ भी नहीं होगा
दियों में तेल से भीगी हुई बाती ज़रूरी है
- सतपाल ख्याल



ये धरती ख़ूब-सूरत है
दिवाली और सुब्ह-ए-ईद फ़ारूक़ी! मुबारक हो
मुझे छोड़ो में जिस आलम में हूँ वो मेरी क़िस्मत है!!
- सलाम मछली शहरी



वही जीने की आज़ादी वही मरने की जल्दी है
दिवाली देख ली हम ने दसहरे कर लिए हम ने
- साक़ी फ़ारुक़ी



मेरे मन की अयोध्या में न जाने कब हो दिवाली
अभी तो झलकता है राम का बनवास आँखों में
- साग़र पालमपुरी



सभी के दीप सुंदर हैं हमारे क्या तुम्हारे क्या
उजाला हर तरफ़ है इस किनारे उस किनारे क्या
- हफ़ीज़ बनारसी



चिराग़ हो कि ना हो, दिल जला के रखते हैं
हम आंधियों में भी तेवर बला के रखते हैं मिला
- हस्तीमल हस्ती



दाग़ों की बस दिखा दी दिवाली में रौशनी
हम सा न होगा कोई जहाँ में दिवालिया
- हातिम अली मेहर



कहने को हर धर्म जुदा है
लेकिन सब का एक ख़ुदा है
इक माटी के पुतले 'हैदर'

इस साँचे में ख़ूब ढले हैं
दीवाली के दीप जले हैं
- हैदर बयाबानी



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