मौज-ए-गुल, मौज-ए-सबा, मौज-ए-सहर लगती है - जाँ निसार अख्तर

मौज-ए-गुल, मौज-ए-सबा, मौज-ए-सहर लगती है

मौज-ए-गुल, मौज-ए-सबा, मौज-ए-सहर लगती है
सर से पा तक वो समाँ है कि नज़र लगती है

हमने हर गाम सजदों ए जलाये हैं चिराग़
अब तेरी राहगुज़र राहगुज़र लगती है

लम्हे लम्हे बसी है तेरी यादों की महक
आज की रात तो ख़ुश्बू का सफ़र लगती है

जल गया अपना नशेमन तो कोई बात नहीं
देखना ये है कि अब आग किधर लगती है

सारी दुनिया में ग़रीबों का लहू बहता है
हर ज़मीं मुझको मेरे ख़ून से तर लगती है

वाक़या शहर में कल तो कोई ऐसा न हुआ
ये तो “अख़्तर” के दफ़्तर की ख़बर लगती है - जाँ निसार अख्तर
मायने
मौज-ए-गुल = फूलो की उमंग, मौज-ए-सबा = धीमी हवा की उमंग, मौज-ए-सहर = सुबह की उमंग, नशेमन = घोसला


mauj-e-gul, mauj-e-saba, mauj-e-sahar lagti hai

mauj-e-gul, mauj-e-saba, mauj-e-sahar lagti hai
sar se paa tak wo samaN hai ki nazar lagti hai

hamne har ghaam sajdo e jalaye hai chiragh
ab teri raahguzar raahguzar lagti hai

lamhe lamhe basi hai teri yaado ki mahak
aaj ki raat to khushbu ka safar lagti hai

jal gaya apna nasheman to koi baat nahi
dekhna ye hai ki ab aag kidhar lagti hai

sari duniya me gareebo ka lahu bahta hai
har zameen mujhko mere khoon se tar lagti hai

waqya shahar me kal to koi aisa n hua
ye to "Akhtar" ke daftar ki khabar lagti hai - Jaan Nisar Akhtar

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