डॉ राहत इंदौरी के 22 बेहतरीन शेर

डॉ राहत इंदौरी के 22 बेहतरीन शेर | Best Rahat Indori Shayari

डॉ राहत इंदौरी के 22 बेहतरीन शेर

1.
ज़ुबाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे
मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे।


2.
लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूँ है
इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूँ है।


3.
शाख़ों से टूट जाएँ वो पत्ते नहीं हैं हम
आँधी से कोई कह दे कि औक़ात में रहे


4.
आँखों में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो।


5.
एक ही नदी के है यह दो किनारे दोस्तो
दोस्ताना ज़िन्दगी से, मौत से यारी रखो।


6.
फूक़ डालूगा मैं किसी रोज़ दिल की दुनिया
ये तेरा ख़त तो नहीं है की जला भी न सकूं।


7.
कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूँगा उसे
जहाँ जहाँ से वो टूटा है जोड़ दूँगा उसे
मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का
इरादा मैंने किया था की छोड़ दूँगा उसे।


8.
जा के ये कह दो कोई शोलो से, चिंगारी से
फूल इस बार खिले है बड़ी तय्यारी से
बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के ना लिए
हमने ख़ैरात भी माँगी है तो ख़ुद्दारी से।



9.
प्यास तो अपनी सात समन्दर जैसी थी,
ना हक हमने बारिश का अहसान लिया।


10.
मैंने दिल दे कर उसे की थी वफ़ा की इब्तिदा
उसने धोखा दे के ये किस्सा मुकम्मल कर दिया
शहर में चर्चा है आख़िर ऐसी लड़की कौन है
जिसने अच्छे खासे एक शायर को पागल कर दिया।


11.
मज़ा चखा के ही माना हूँ मैं भी दुनिया को
समझ रही थी की ऐसे ही छोड़ दूंगा उसे।


12.
नये किरदार आते जा रहे है
मगर नाटक पुराना चल रहा है।


13.
उस की याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनो से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।


14.
मैं वो दरिया हूँ की हर बूंद भँवर है जिसकी,
तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके।


15.
दो ग़ज सही ये मेरी मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया।


16.
हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है
आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा है
मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है।


17.
ना हम-सफ़र ना किसी हम-नशीं से निकलेगा
हमारे पाँव का काँटा हमीं से निकलेगा।


18.
बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाय।


19.
रोज़ तारों को नुमाइश में ख़लल पड़ता है
चाँद पागल है अंन्धेरे में निकल पड़ता है।


20.
छू गया जब कभी ख्याल तेरा
दिल मेरा देर तक धड़कता रहा।
कल तेरा जिक्र छिड़ गया था घर में
और घर देर तक महकता रहा।


21.
कभी महक की तरह हम गुलों से उड़ते हैं,
कभी धुए की तरह परबतों से उड़ते हैं,
ये कैंचियाँ हमें उड़ने से ख़ाक रोकेंगी,
के हम परों से नहीं हौसलों से उड़ते हैं...


22.
तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पे वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो,
तैर के दरिया पार करो
फूलों की दुकानें खोलो,
ख़ुशबू का व्यापार करो
इश्क़ ख़ता है तो ये ख़ता
एक बार नहीं सौ बार करो।


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