बेटी पर शायरी | बेटियों पर शायरी
बेटियां घर की रौनक होती हैं और माता-पिता खासकर पिता के दिल के बेहद करीब भी होती हैं | हम आपके लिए लाए है बेटियों पर लिखे चुनिन्दा बेहतरीन शेरो और कवितांश का संकलन जिसमे शायरों और कवियों ने बेटियों को लेकर अपने जज़्बातों का इज़हार किया है।
अगर बेटी नहीं होती तो घर अच्छा नहीं लगता
के अख़लाक़ो शराफ़त का कोई पौधा नहीं लगता
- नज़र द्विवेदी
अच्छा दहेज दे न सका मैं बस इसलिए
दुनिया में जितने ऐब थे बेटी में आ गये
- तुफ़ैल चर्तुवेदी
अब तो बेटे भी चले जाते हैं हो कर रुख़्सत
सिर्फ़ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए
- रेहाना रूही
अब हवस की भूख चढ़ती जा रहीं हैं बेटियाँ,
ये घिनौने खेल क्यों आसान होते जा रहे
- डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय
अभी से छोटी हुई जा रही हैं दीवारें
अभी तो बेटी ज़रा सी मिरी बड़ी हुई है
- शबाना यूसुफ़
आके ससुराल अपने मइके से
एक बच्ची भी पूरी नारी लगे
- डॉ जियाउर रहमान जाफरी
आँख में बेटी के आया था मगर देखो 'ज़िया'
एक आँसू ने हमें कितना रुलाया हुआ है
- ज़िया ज़मीर
आँगन का है फूल हमारी बेटियां
मौसम के अनुकूल हमारी बेटियां
- सुरेन्द्र शर्मा सत्यम्
आई जिस रोज़ से बेटी पे जवानी उस की
बाप हर वक़्त परेशान नज़र आता है
- अभिषेक कुमार अम्बर
उड़के एक रोज़ बड़ी दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं
- मुनव्वर राना
उम्र भर ऐसा लगा फूल सी बेटी है ग़ज़ल
अब तो लगता है के बेटी की विदाई है ग़ज़ल
- एजाज शेख़
उस को बेटी की शादी करनी है
क़र्ज़ ले कर जहेज़ कर लेगा
- हबीब कैफ़ी
उसकी ख्वाहिश, बेटी मेरी, नाम हो उसका
इसलिए मैंने ग़ज़ल उस नाम पर लिक्खा
- अम्बुज श्रीवास्तव
उसको थक हार के भी नींद कहाँ आती है
एक मज़दूर की बेटी जो सयानी हो जाए
- अब्दुल रहमान मंसूर
उसे जन्मा था मैं ने दुख उठा के
पराई कैसे बेटी हो गई थी
- नाहीद अख़्तर बलूच
उसे हम पर तो देते हैं मगर उड़ने नहीं देते
हमारी बेटी बुलबुल है मगर पिंजरे में रहती है
- रहमान मुसव्विर
एक तरफ़ बेटी है मेरी
एक तरफ़ मिरी माँ
दोनों मुझ को अक़्ल बताती रहती हैं
बारी बारी सबक़ पढाती रहती हैं
- इशरत आफ़रीं
ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ घर अकेला हो गया
- मुनव्वर राना
कभी बनके कली बगिया को महकाती रही बेटी
कभी परछाई बनके साथ मेरे चल पड़ी बेटी
- सीमा शर्मा मेरठी
कभी माँ बाप की झोली में हो जब नूर की बारिश!
ख़ुदा के फ़ज़्ल से घर बेटियाँ जन्नत से आती हैं
- साग़र त्रिपाठी
करेंगी ये दो घरों को रौशन बताओ जाकर के जाहिलों को
जो कह रहे हैं कि बेटियाँ हैं, इन्हें पढ़ा कर के क्या करेंगे
- अहमद अज़ीम
कलेजे का है ये टुकड़ा मगर मजबूर हूँ कितनी
करू कैसे विदा बोलो तुझे तो रो पड़ी बेटी
- सीमा शर्मा मेरठी
कहने को तो सब कहते हैं बेटी हम को प्यारी है
किन्तु कोख में अक्सर बेटी ही तो जाती मारी है
- रंजना वर्मा
किसी तरह से भी कमज़ोर क्यों बनाऊँ उसे,
मैं अपनी बेटी को बेटा नहीं पुकारुंगा
- खालीद नदीम सानी
कोख से अब जन्म लेती, बेटियाँ मत छीनिए
गुनगुनाने दो,चमन से, तितलियाँ मत छीनिए
- संदीप मिश्रा सरस
कोमल एहसास सी होती हैं बेटियाँ
पिता के आँसूं भी रोती हैं बेटियाँ
- शुचि भवि
क्या ख़ुदा ने खूब हम सबकी बनाई ज़िंदगी
बेटियों की तर्ह दी हमको पराई ज़िंदगी
- हरीश राही
ख़ुदाए अर्ज़! मैं बेटी के ख़्वाब कात सकूँ
तू मेरे खेत में इतनी कपास रहने दे !!
- शहजाद नीर
ख़ुश था रुख़स्त कर के बेटी को बहुत
दिल मगर इक बाप का रंजूर था
- शमशाद शाद
ख़ुश हैं दर ओ दीवार कि घर आई है बेटी
मत पूछ ये हँसता हुआ घर किसके लिए है
- हसन फ़तेहपुरी
खुशबू की है क्यारी बेटी, मन की बड़ी दुलारी बेटी
मनोकामना के आंगन में, सपने सभी हमारी बेटी
- अविनाश बागडे
खोल दो पैरों की इनके बेड़ियाँ
कम नहीं बेटों से अपनी बेटियाँ
- सौमेन्दु वर्धन मालवीय
ग़ज़ल वो सिंफे-नाजुक है जिसे अपनी रफाक़त से
वो महबूबा बना लेता है मै बेटी बनाता हूँ
- मुनव्वर राना
गुलों की पालकी में है बहारों की वो बेटी है
चहेती चाँद की रौशन सितारों की वो बेटी है
- रशीद हसरत
घर आँगन में खुशियों की उजियारी लातीं बेटियाँ
खुशियाँ मुट्ठी भर भर के बाँट जातीं हैं बेटियाँ
- जनार्दन द्विवेदी
घर का मिट्ठू चहचहाता है खुशी से देर तक
द्वार पर देती हैं जब भी अपनी दस्तक बेटियाँ
- अभिषेक सिंह
घर की इज़्ज़त, घर की दौलत, घर की रौनक़ बेटियाँ
कब तलक आख़िर रहेंगीं बन के बंधक बेटियाँ
- अभिषेक सिंह
घर के तमाम ख़्वाब सजाने के वास्ते
तारे फ़लक से तोड़ के लाती हैं बेटियां
- शिवशरण बंधू
घर में जब बेटियाँ नहीं होंगी
पेड़ पर टहनियाँ नहीं होंगी
- बिल्क़ीस ख़ान
घर में बेटी जो जनम ले तो ग़ज़ल होती है
दाई बाँहों में जो रख दे तो ग़ज़ल होती है
- आलोक यादव
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं
- मुनव्वर राना
घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक
- कुँवर बैचैन
घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम
माँ के क़दमों में भी जन्नत नहीं मिलने वाली
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
घर से रुख्सत… जब मेरी बेटी हुई,
यूँ लगा आँगन से चिड़िया उड़ गई
- प्रवीण फ़क़ीर
घरों में यूँ सयानी बेटियाँ बेचैन रहती हैं
कि जैसे साहिलों पर कश्तियाँ बेचैन रहती हैं
- मुनव्वर राना
घोड़े जोड़े की ये ला'नत ख़त्म हो
हर जवाँ बेटी की ये फ़रियाद है
- रहीम रामिश
चाँद जैसी भी हो बेटी किसी मुफ़्लिसी की तो
ऊँचे घर वालों से रिश्ता नहीं माँगा जाता
- अब्बास दाना
चारो सू दहशत का ऐसा है आलम,
बेटी सँग घर से निकलो डर लगता है
- अजय श्रीवास्तव मदहोश
जब तक वो साथ थीं तो मैं तन्हा नहीं रहा
मत पूछो कितना याद अब आती हैं बेटियाँ
- सलीम तन्हा
जब विदा हो गयी, हर नज़र कह गयी
ज़िन्दगी भर की इक प्यास हैं बेटियाँ
- डॉ हरीश अरोड़ा
जवाँ बेटों को घर के मसअलों से है कहाँ मतलब
सयानी बेटियाँ माँ बाप का हर ग़म समझती हैं
- सागर त्रिपाठी
जहेज़ नाम ही से रंग उड़ गया उस का
ग़रीब बाप की बेटी जहाँ-शनास लगी
- अजीत सिंह हसरत
ज़िन्दगी की धूप में, है छाव सी है बेटियाँ
पलकों पे सजे मधुर ख्वाब सी है बेटियाँ
- रीनू शर्मा
जिस घर में बेटी हो वो घर लगता है,
वरना तो घर भी सूना दर लगता है
- अजय श्रीवास्तव मदहोश
जिस्म पर माँ के जो खींचे सरहदे
बेटियों की वो हिफ़ाजत क्या करें
- सुधीर बल्लेवार मलंग
जीती रहो, मगर मुझे आता नहीं नज़र ?
बेटी कहाँ है चाँद ? मुझे भी बता, किधर ?
- हफीज़ जालंधरी
जीवन के संघर्षों का जवाब भी
देती हैं माकूल हमारी बेटियां
- सुरेन्द्र शर्मा सत्यम्
जो बा-क़िरदार हो उस को सियानी कौन कहता है
किसी मज़दूर की बेटी को रानी कौन कहता है
- सबीला इनाम सिद्दीक़ी
डाल से बिछड़ना बस पत्तियाँ समझती हैं
बेटियों की किस्मत को बेटियाँ समझती है
- डॉ.लवलेश दत्त
तुझे रुख़सत करूँगा हँस के बेटी
रुलाने को तेरी गुड़ियाँ बहोत है
- ख़ालिद सज्जाद अहमद
तुम आज कोख में ही क़तल कर तो रहे हो
सोचो बड़े नसीब से आती हैं बेटियाँ
- राजेश विद्रोही
तू अगर बेटियाँ नहीं लिखता
तो समझ खिड़कियाँ नहीं लिखता
- प्रताप सोमवंशी
तेरे इस काम से अल्लाह बहुत खुश होगा,
बेटियाँ अपनी ज़माने में पढ़ाएं तो सही
- अरमान जोधपुरी
तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
बेटी है अर्शिया भी तो हिन्दोस्तान की
- सय्यदा अरशिया हक़
तो फिर जाकर कहीँ माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
- मुनव्वर राना
दिया पलट के सहारा सिसकती बेटी ने
कि बाप गिरने लगा था विदाई करते हुए
- आबिद उमर
दुख़्तर-ए-रज़ तो है बेटी सी तिरे ऊपर हराम
रिंद इस रिश्ते से सारे तिरे दामाद हैं शैख़
- क़ाएम चाँदपुरी
दुख़्तर-ए-रज़ ने उठा रक्खी है आफ़त सर पर
ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ
- अकबर इलाहाबादी
दुनिया से तब डर लगता है
बेटी को जब पर लगता है
- विरल देसाई
द्रौपदी को तो बचाया था कनहैया तू ने
क्यों न मल्लाह की बेटी को बचाया लाला
- राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी
नूर बेटे हैं निगाहों का ये माना लेकिन
बेटियाँ जो हैं वो आँखों की तरह होती हैं
- मोहसीन आफ़ताब केलापुरी
पढ़ाने का अगर मतलब है हाथों से निकल जाना
ख़ुदाया फिर मिरी बेटी भी हाथों से निकल जाए
- कुशल दौनेरिया
पूछ रही है अपनी माँ से इक बेटी
ब्याह के मा'नी ज़ेवर लहँगा चोली है
- इशरत मोईन सीमा
पूछती है आज भारत की सभी बेटियाँ,
कब तलक हैवानियत को यूँ सहेगी बेटियाँ ?
- मंजू सिंह
पेड़ों के झुनझुने,
बजने लगे,
लुढ़कती आ रही है,
सूरज की लाल गेंद
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
प्यार का गुलज़ार खुशियों से सजाती बेटियाँ
फूल सा खिलने दो कह के,मुस्कुराती बेटियाँ
- मोनिका सिंह
प्यार का मीठा एहसास हैं बेटियाँ
घर के आँगन का विश्वास हैं बेटियाँ
- डॉ हरीश अरोड़ा
प्रेम स्नेह का घन सी होती हैं बेटियाँ,
स्वच्छ, निर्मल अंतर्मन सी होती हैं बेटियाँ
- प्रीति चौधरी
फ़र्क बेटी और बेटे में नहीं होता है कुछ
बेटियों को भी पढ़ाने का मज़ा कुछ और है
- देवेश दीक्षित देव
फूलों जैसी एक महकती बेटी हो,
चंदा जैसी एक चमकती बेटी हो
स्वर्ग बनेगा निश्चित यदि घर में यारो,
कोयल जैसी एक चहकती बेटी हो
- अरविन्द उनियाल अनजान
बच नहीं पातीं हवस के भेडियों से बेटियाँ
है ग़नीमत के अदालत सामने आ जाए है
- मासूम ग़ाज़ियाबादी
बचीं तो कल्पनाओं-सी उड़ेंगी
हमारी बेटियाँ भी अम्बरों तक
- द्विजेन्द्र द्विज
बड़ी होने को हैं ये मूरतें आँगन में मिट्टी की
बहुत से काम बाक़ी हैं सँभाला ले लिया जाये
- मुनव्वर राना
बद नज़र उठने ही वाली थी किसी की जानिब
अपनी बेटी का ख़याल आया तो दिल काँप गया
- नवाज़ देवबंदी
बनी बेटी जो दुल्हन बाप बोला
हथेली पर हिना अच्छी लगी है
- संतोष खिरवड़कर
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
- मुनव्वर राना
बाप का है फ़ख़्र वो बेटा कि रखता हो कमाल
देख आईने को फ़रज़ंद-ए-रशीद-ए-संग है
- मीर मोहम्मदी बेदार
बाप के ज़िंदा रहने तक
हर बेटी शहज़ादी है
- बिल्क़ीस ख़ान
बाबुल की बेशक़ीमती थाती है बेटियाँ
बेटे अग़र चिराग हैं बाती हैं बेटियाँ
- राजेश विद्रोही
बाबुल के अँगने अब, बेटियाँ आतीं नहीं
माँ गईं; सावन का आना, फिर दुबारा ना हुआ
- सुधा राठौर
बाबुल के आँगन से इक दिन हर बेटी को जाना है
आँखों में नए ख़्वाब सजा कर तेरे दर तक आई हूँ
- इरुम
बाहर क्या अपने घर में भी हद से बढ कर पाबन्दी पर
बेटी सरकश हो जाती है बेटा बागी हो जाता है
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
बेटा बेटी का हिस्सा क्यूँ खा जाए
मैं ने ख़ुद उन में बटवारा करना है
- ज़हरा क़रार
बेटियाँ तो फिर भी आती रहती हैं मिलने,
पर कभी मिलने बहू बेटे नहीं आते
- अशोक रावत
बेटियाँ दो-दो कुलों की आन हैं,
शान बेटों से कहीं भी कम नहीं
- हरिवल्लभ शर्मा हरि शर्मा
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
बेटियाँ भी तो माओं जैसी होती हैं
ज़ब्त के ज़र्द आँचल में अपने
सारे दर्द छुपा लेती हैं
रोते रोते हंस पड़ती हैं
हँसते हँसते दिल ही दिल में रो लेती हैं
- नोशी गिलानी
बेटियाँ रहमत हैं, आक़ा ने कहा
इनसे रब की मेहरबानी आएगी
- ग़ुलाम मुईनुद्दीन शैख़ अदीब दमोही
बेटियाँ ही पदक देश में ला रहीं
कोख में अब तो इनकी हिफाज़त रहे
- सुभाष राहत बरेलवी
बेटियाँ ही बेटियाँ हों, बेटियों के क़हक़हे
शोर में भी इक तरन्नुम सा सुनाती बेटियाँ
- मोनिका सिंह
बेटियाँ हैं जग की दौलत दोस्तो
मान लो इनको ही जन्नत दोस्तो
- प्रकाश पटवर्धन
बेटियाँ हैं पेटियाँ धन की यहाँ
मायके की है वसीयत दोस्तो
- प्रकाश पटवर्धन
बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआएं हैं
बेटियां ज़ीनत हदीसों की, बेटियां जातक कथाएं हैं
- अज़हर हाशमी
बेटियों को कुछ नज़रें ग़लतियाँ समझती हैं
मोतियों की क़ीमत कब सीपियाँ समझती हैं
- के पी अनमोल
बेटियों को बचा के रखिए कँवल
इन को पाने में वक़्त लगता है
- रमेश कँवल
बेटियों से है घर में चहल-पहल,
पायल की छन -छन सी होती हैं बेटियाँ
- प्रीति चौधरी
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा
- प्रो.योगेश छिब्बर
बेटी गई है घर से लगा हम को बस यही
जैसे चला गया कोई अमराइयों का घर
- आदर्श दुबे
बेटी घर के आँगन में
ख़ुशियों की फुलवारी है
- अनीता मौर्या अनुश्री
बेटी जन्नत का दरवाजा
कैसे मैं बतलाऊँ तुम्हें
बेटी है अनमोल नगीना
कैसे मैं बतलाऊँ तुम्हें
बेटी घर की धूप छाँव है
- सुरजीत मान जलईया सिंह
बेटी रुख़सत तो हो गई लेकिन
घर से उसका असर नहीं जाता
- हसन फ़तेहपुरी
बेटों की चाहत जिन्हें वे आज सुनें
गुरुर पिता का तो होती हैं बेटियाँ
- शुचि भवि
बेटों से एक घर भी संभलता नहीं मग़र
दो मुख़्तलिफ़ घरों को मिलाती हैं बेटियाँ
- राजेश विद्रोही
बोझ पेड़ का तो बस टहनियाँ समझती हैं
माँ की बेबसी जैसे बेटियाँ समझती है
- असमा सुबहानी
भले ही नाम चलता हो,हमारे कुल का बेटों से,
मगर घर-बार की रौनक तो बस बेटी से आती है
- असमा सुबहानी
मम्मी ध्यान से बाहर आया जाया करो
मेरी बेटी ये मुझ को समझाती है
बेला चम्पा जूही और चमेली सी
बेटी ख़ुशबू से घर को महकाती है
- अंजना सिंह सेंगर
महंगे खिलौने दे न सका मैं ये मेरी लाचारी है
लेकिन मेरी बच्ची मुझको जाँ से ज़ियादा प्यारी है
- अतुल अजनबी
मह्काती जीवन उपवन अपने मुक्त हास से
प्रज्ज्वलित दीप शिखा की आब सी है बेटियाँ
- रीनू शर्मा
माँ को अपनी बेटियाँ जल्दी सयानी चाहिए
और बाबा को वही गुड़िया पुरानी चाहिए
- आरोही श्रीवास्तव
माँ ने बेटी से कहा तेरी ख़ता है इस में
तू ने ससुराल में क्यूँ सास को माँ समझा था
- खालिद इरफ़ान
माँ बाप के घर की प्यार की किलकारी हैं बेटियाँ
सारे जमाने में सबको जानसे प्यारी हैं बेटियाँ
- जनार्दन द्विवेदी
माँएं, बहनें, पिता, पुत्र, इस देश के,
शर्म कर रोड पर बेटियाँ आ गईं
- पवन मुंतज़िर
माँग लो खुदा से एक बेटी
जन्नत में घर नहीं, घर में जन्नत मांग लो
- लुबना फातिमा
मीठी तोतली बोली सी बेटियाँ
अँगने में फुदकती चिरैय्या सी बेटियाँ
- रीमा दीवान चड्ढा
मुझ को बख़्शी ख़ुदा ने इक बेटी
चाँद आँगन में इक उतर आया
- शायान क़ुरैशी
मुझको घर में चाहिए थी बरकतें,
एक बेटी... उस ख़ुदा से माँग ली
- प्रवीण फ़क़ीर
मुझे नवाज़ दी मौला ने फूल सी बेटी
मिरे हिसाब में कुछ नेकियाँ निकल आईं
- नफ़स अम्बालवी
मुझे भी उस की जुदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
- मुनव्वर राना
मुस्कराती खिलखिलाती मन लुभाती बेटियाँ
धूप जैसी ज़िन्दगी में छाँव लाती बेटियाँ
- शुभा शुक्ला मिश्रा अधर
मेरी आँखों से निकल आए ख़ुशी के आँसू
बेटी रुख़्सत जो हुई गूँजती शहनाई में
- कौकब ज़की
मेरी इक हंसमुख बेटी है
जादू की पुड़िया जैसी है
- रामनाथ शोधार्थी
मेरी बेटी जब बड़ी हो जाएगी
सारे घर में चाँदनी फैलाएगी
- आल-ए-अहमद सुरूर
मोल से इनके न जाने लोग क्यों अनजान हैं
कोख में ही आज भी क्यों मर रही हैं बेटियाँ ?
- हीरालाल यादव
ये घर दरो दीवार सब तरसेंगे
जब बर्तन खन खन खनकेंगे
सारे पकवान फ़ीके पड़ जायेंगे
जब बेटी घर से विदा हो जायेगी
- शमशाद इलाही अंसारी
ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े- गुल देखे तो झूला डाल देती है
- मुनव्वर राना
ये तर्बियत थी घरों में हर एक बेटी को
किसी भी हाल में हो घर बचाना होता था
- अलमदार अदम
ये मेरे साथ छुप छुप कर हज़ारों बार रोएँगे
तिरी रुख़्सत पे ऐ बेटी दर-ओ-दीवार रोएँगे
- सुहैल सानी
रंजो गम सबको भूलाती मुसकराती बेटिया
आंखो की ज्योति बढाती झिलमिलाती बेटिया
- दिनकर राव दिनकर
रहमत बन के उतरी थी क्यों ज़हमत बन गई बेटी
मेरा जुर्म-ए-गुनह बतला दो पूछती रह गई बेटी
- समीना असलम समीना
रहें माँ-बाप जब तक, पूछी जाती है हर इक बेटी
फिर अपने गाँव उसका आना जाना छूट जाता है
- अंजुमन मंसूरी आरज़ू
रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रुख़सती अच्छी लगी
- मुनव्वर राना
रोज ऐसे गिद्धों की शिकार होती रही तो
मुझे कोई दे बता कैसे बचेगी बेटियाँ
- मंजू सिंह
रोटियों पे बिक रही हैं बेटियाँ
ख़ाक होगा दूसरा महशर कोई
- हातिम जावेद
लुट रही हैं इज़्ज़ते बेटी बहन की,
अनसुनी जैसे कोई फ़रियाद हैं हम
बेटियों को फैसलों का हक़ नहीं हैं,
क़ैद रक्खा हैं उन्हें सय्याद हैं हम
- सिया सचदेव
वही रहता है सब लेकिन ज़माना छूट जाता है
परी-सी बेटियों का मुस्कुराना छूट जाता है
- अंजुमन मंसूरी आरज़ू
वैसे तो इस घर को उस ने चाहे कम ख़ुश-हाली दी
बेटा बर-ख़ुरदार दिया और बेटी हौसले वाली दी
- अताउल हसन
वो बेटी है ज़ुबां से कुछ नहीं कहती मगर फिर भी,
गले से जब भी लगती है तो सब कुछ बोल जाती है।
- प्रवीण फ़क़ीर
शनासा ख़ौफ़ की तस्वीर है उस की बयाज़ों में
मिरी बेटी हसीं पिंजरे में इक चिड़िया बनाती है
- साबिर शाह साबिर
सब की माएँ भी बेटियाँ ही थीं
आज बेटी बनी मुसीबत क्यूँ
- मर्ग़ूब असर फ़ातमी
सर में बेटी के बहुत फैल चुकी है चाँदी
फिर भी माँ बाप को रिश्ते नहीं अच्छे लगते
- हुसैन अहमद वासिफ़
सारा गुलशन खिल उठा हो खिलखिलाती बेटिया
साज दिल का बज उठा जब गुनगुनाती बेटिया
- दिनकर राव दिनकर
सारे जहां की दौलतें मुठ्ठी में आ गई
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया
- मनोज अहसास
सिर्फ बेटों से उजाला नहीं होता घर में
बेटियाँ भी तो चराग़ों की तरह होती है
- मोहसीन आफ़ताब केलापुरी
सींचती हैं नेह-जल से शुष्क मन जीवन अधर,
प्रीति के आदर्श के शुचि गीत गाती बेटियाँ
- शुभा शुक्ला मिश्रा अधर
सुबह जब खिलखिलाती बेटियाँ स्कूल जाती हैं
तो सड़कें शहर की मानो कोई उत्सव मनाती हैं
- अंबर खरबंदा
हंसती हैं, मुस्कुराती हैं, गाती हैं बेटियाँ
दिल में सभी के प्यार जगाती हैं बेटियाँ
- सलीम तन्हा
हया क्या है सदाक़त क्या, किसी बेटी से पूछो तुम
बिना बेटी, यक़ीं मानो, ये घर, घर सा नहीं लगता
- नज़र द्विवेदी
हर घड़ी विश्वास पैदा कर रही हैं बेटियाँ
नित नयी ऊँची उड़ाने भर रही हैं बेटियाँ
- हीरालाल यादव
हरी रहती है वो टहनी जहां चिड़िया चहकती हो
जो बेटी मुस्कुराये तो उजाला फैल जाता है
- सतपाल ख़याल
हाशिये पे डाल दी जाती हैं बचपन से मगर
रखती हैं ऊँचा सदा बाबा का मस्तक बेटियाँ
- अभिषेक सिंह
हूँ फ़िक्रमंद आज के हालात देख कर
बेटी की माँ हूँ इस लिए सहमी हुई हूँ मैं
- सिया सचदेव
है बशर की बेटियाँ इन में तअस्सुब क्यों भला
आबरू तो आबरू है आबरू की जात क्या
- अजय पांडे बेवक़्त
के अख़लाक़ो शराफ़त का कोई पौधा नहीं लगता
- नज़र द्विवेदी
अच्छा दहेज दे न सका मैं बस इसलिए
दुनिया में जितने ऐब थे बेटी में आ गये
- तुफ़ैल चर्तुवेदी
अब तो बेटे भी चले जाते हैं हो कर रुख़्सत
सिर्फ़ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए
- रेहाना रूही
अब हवस की भूख चढ़ती जा रहीं हैं बेटियाँ,
ये घिनौने खेल क्यों आसान होते जा रहे
- डॉ. प्रज्ञा पाण्डेय
अभी से छोटी हुई जा रही हैं दीवारें
अभी तो बेटी ज़रा सी मिरी बड़ी हुई है
- शबाना यूसुफ़
आके ससुराल अपने मइके से
एक बच्ची भी पूरी नारी लगे
- डॉ जियाउर रहमान जाफरी
आँख में बेटी के आया था मगर देखो 'ज़िया'
एक आँसू ने हमें कितना रुलाया हुआ है
- ज़िया ज़मीर
आँगन का है फूल हमारी बेटियां
मौसम के अनुकूल हमारी बेटियां
- सुरेन्द्र शर्मा सत्यम्
आई जिस रोज़ से बेटी पे जवानी उस की
बाप हर वक़्त परेशान नज़र आता है
- अभिषेक कुमार अम्बर
उड़के एक रोज़ बड़ी दूर चली जाती हैं
घर की शाख़ों पे ये चिड़ियों की तरह होती हैं
- मुनव्वर राना
उम्र भर ऐसा लगा फूल सी बेटी है ग़ज़ल
अब तो लगता है के बेटी की विदाई है ग़ज़ल
- एजाज शेख़
उस को बेटी की शादी करनी है
क़र्ज़ ले कर जहेज़ कर लेगा
- हबीब कैफ़ी
उसकी ख्वाहिश, बेटी मेरी, नाम हो उसका
इसलिए मैंने ग़ज़ल उस नाम पर लिक्खा
- अम्बुज श्रीवास्तव
उसको थक हार के भी नींद कहाँ आती है
एक मज़दूर की बेटी जो सयानी हो जाए
- अब्दुल रहमान मंसूर
उसे जन्मा था मैं ने दुख उठा के
पराई कैसे बेटी हो गई थी
- नाहीद अख़्तर बलूच
उसे हम पर तो देते हैं मगर उड़ने नहीं देते
हमारी बेटी बुलबुल है मगर पिंजरे में रहती है
- रहमान मुसव्विर
एक तरफ़ बेटी है मेरी
एक तरफ़ मिरी माँ
दोनों मुझ को अक़्ल बताती रहती हैं
बारी बारी सबक़ पढाती रहती हैं
- इशरत आफ़रीं
ऐसा लगता है कि जैसे ख़त्म मेला हो गया
उड़ गईं आँगन से चिड़ियाँ घर अकेला हो गया
- मुनव्वर राना
कभी बनके कली बगिया को महकाती रही बेटी
कभी परछाई बनके साथ मेरे चल पड़ी बेटी
- सीमा शर्मा मेरठी
कभी माँ बाप की झोली में हो जब नूर की बारिश!
ख़ुदा के फ़ज़्ल से घर बेटियाँ जन्नत से आती हैं
- साग़र त्रिपाठी
करेंगी ये दो घरों को रौशन बताओ जाकर के जाहिलों को
जो कह रहे हैं कि बेटियाँ हैं, इन्हें पढ़ा कर के क्या करेंगे
- अहमद अज़ीम
कलेजे का है ये टुकड़ा मगर मजबूर हूँ कितनी
करू कैसे विदा बोलो तुझे तो रो पड़ी बेटी
- सीमा शर्मा मेरठी
कहने को तो सब कहते हैं बेटी हम को प्यारी है
किन्तु कोख में अक्सर बेटी ही तो जाती मारी है
- रंजना वर्मा
किसी तरह से भी कमज़ोर क्यों बनाऊँ उसे,
मैं अपनी बेटी को बेटा नहीं पुकारुंगा
- खालीद नदीम सानी
कोख से अब जन्म लेती, बेटियाँ मत छीनिए
गुनगुनाने दो,चमन से, तितलियाँ मत छीनिए
- संदीप मिश्रा सरस
कोमल एहसास सी होती हैं बेटियाँ
पिता के आँसूं भी रोती हैं बेटियाँ
- शुचि भवि
क्या ख़ुदा ने खूब हम सबकी बनाई ज़िंदगी
बेटियों की तर्ह दी हमको पराई ज़िंदगी
- हरीश राही
ख़ुदाए अर्ज़! मैं बेटी के ख़्वाब कात सकूँ
तू मेरे खेत में इतनी कपास रहने दे !!
- शहजाद नीर
ख़ुश था रुख़स्त कर के बेटी को बहुत
दिल मगर इक बाप का रंजूर था
- शमशाद शाद
ख़ुश हैं दर ओ दीवार कि घर आई है बेटी
मत पूछ ये हँसता हुआ घर किसके लिए है
- हसन फ़तेहपुरी
खुशबू की है क्यारी बेटी, मन की बड़ी दुलारी बेटी
मनोकामना के आंगन में, सपने सभी हमारी बेटी
- अविनाश बागडे
खोल दो पैरों की इनके बेड़ियाँ
कम नहीं बेटों से अपनी बेटियाँ
- सौमेन्दु वर्धन मालवीय
ग़ज़ल वो सिंफे-नाजुक है जिसे अपनी रफाक़त से
वो महबूबा बना लेता है मै बेटी बनाता हूँ
- मुनव्वर राना
गुलों की पालकी में है बहारों की वो बेटी है
चहेती चाँद की रौशन सितारों की वो बेटी है
- रशीद हसरत
घर आँगन में खुशियों की उजियारी लातीं बेटियाँ
खुशियाँ मुट्ठी भर भर के बाँट जातीं हैं बेटियाँ
- जनार्दन द्विवेदी
घर का मिट्ठू चहचहाता है खुशी से देर तक
द्वार पर देती हैं जब भी अपनी दस्तक बेटियाँ
- अभिषेक सिंह
घर की इज़्ज़त, घर की दौलत, घर की रौनक़ बेटियाँ
कब तलक आख़िर रहेंगीं बन के बंधक बेटियाँ
- अभिषेक सिंह
घर के तमाम ख़्वाब सजाने के वास्ते
तारे फ़लक से तोड़ के लाती हैं बेटियां
- शिवशरण बंधू
घर में जब बेटियाँ नहीं होंगी
पेड़ पर टहनियाँ नहीं होंगी
- बिल्क़ीस ख़ान
घर में बेटी जो जनम ले तो ग़ज़ल होती है
दाई बाँहों में जो रख दे तो ग़ज़ल होती है
- आलोक यादव
घर में रहते हुए ग़ैरों की तरह होती हैं
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं
- मुनव्वर राना
घर से निकला तो चली साथ में बिटिया की हँसी
ख़ुशबुएँ देती रही नन्हीं कली मीलों तक
- कुँवर बैचैन
घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम
माँ के क़दमों में भी जन्नत नहीं मिलने वाली
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
घर से रुख्सत… जब मेरी बेटी हुई,
यूँ लगा आँगन से चिड़िया उड़ गई
- प्रवीण फ़क़ीर
घरों में यूँ सयानी बेटियाँ बेचैन रहती हैं
कि जैसे साहिलों पर कश्तियाँ बेचैन रहती हैं
- मुनव्वर राना
घोड़े जोड़े की ये ला'नत ख़त्म हो
हर जवाँ बेटी की ये फ़रियाद है
- रहीम रामिश
चाँद जैसी भी हो बेटी किसी मुफ़्लिसी की तो
ऊँचे घर वालों से रिश्ता नहीं माँगा जाता
- अब्बास दाना
चारो सू दहशत का ऐसा है आलम,
बेटी सँग घर से निकलो डर लगता है
- अजय श्रीवास्तव मदहोश
जब तक वो साथ थीं तो मैं तन्हा नहीं रहा
मत पूछो कितना याद अब आती हैं बेटियाँ
- सलीम तन्हा
जब विदा हो गयी, हर नज़र कह गयी
ज़िन्दगी भर की इक प्यास हैं बेटियाँ
- डॉ हरीश अरोड़ा
जवाँ बेटों को घर के मसअलों से है कहाँ मतलब
सयानी बेटियाँ माँ बाप का हर ग़म समझती हैं
- सागर त्रिपाठी
जहेज़ नाम ही से रंग उड़ गया उस का
ग़रीब बाप की बेटी जहाँ-शनास लगी
- अजीत सिंह हसरत
ज़िन्दगी की धूप में, है छाव सी है बेटियाँ
पलकों पे सजे मधुर ख्वाब सी है बेटियाँ
- रीनू शर्मा
जिस घर में बेटी हो वो घर लगता है,
वरना तो घर भी सूना दर लगता है
- अजय श्रीवास्तव मदहोश
जिस्म पर माँ के जो खींचे सरहदे
बेटियों की वो हिफ़ाजत क्या करें
- सुधीर बल्लेवार मलंग
जीती रहो, मगर मुझे आता नहीं नज़र ?
बेटी कहाँ है चाँद ? मुझे भी बता, किधर ?
- हफीज़ जालंधरी
जीवन के संघर्षों का जवाब भी
देती हैं माकूल हमारी बेटियां
- सुरेन्द्र शर्मा सत्यम्
जो बा-क़िरदार हो उस को सियानी कौन कहता है
किसी मज़दूर की बेटी को रानी कौन कहता है
- सबीला इनाम सिद्दीक़ी
डाल से बिछड़ना बस पत्तियाँ समझती हैं
बेटियों की किस्मत को बेटियाँ समझती है
- डॉ.लवलेश दत्त
तुझे रुख़सत करूँगा हँस के बेटी
रुलाने को तेरी गुड़ियाँ बहोत है
- ख़ालिद सज्जाद अहमद
तुम आज कोख में ही क़तल कर तो रहे हो
सोचो बड़े नसीब से आती हैं बेटियाँ
- राजेश विद्रोही
तू अगर बेटियाँ नहीं लिखता
तो समझ खिड़कियाँ नहीं लिखता
- प्रताप सोमवंशी
तेरे इस काम से अल्लाह बहुत खुश होगा,
बेटियाँ अपनी ज़माने में पढ़ाएं तो सही
- अरमान जोधपुरी
तो क्या हुआ जो जन्मी थी परदेस में कभी
बेटी है अर्शिया भी तो हिन्दोस्तान की
- सय्यदा अरशिया हक़
तो फिर जाकर कहीँ माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
- मुनव्वर राना
दिया पलट के सहारा सिसकती बेटी ने
कि बाप गिरने लगा था विदाई करते हुए
- आबिद उमर
दुख़्तर-ए-रज़ तो है बेटी सी तिरे ऊपर हराम
रिंद इस रिश्ते से सारे तिरे दामाद हैं शैख़
- क़ाएम चाँदपुरी
दुख़्तर-ए-रज़ ने उठा रक्खी है आफ़त सर पर
ख़ैरियत गुज़री कि अंगूर के बेटा न हुआ
- अकबर इलाहाबादी
दुनिया से तब डर लगता है
बेटी को जब पर लगता है
- विरल देसाई
द्रौपदी को तो बचाया था कनहैया तू ने
क्यों न मल्लाह की बेटी को बचाया लाला
- राजीव रियाज़ प्रतापगढ़ी
नूर बेटे हैं निगाहों का ये माना लेकिन
बेटियाँ जो हैं वो आँखों की तरह होती हैं
- मोहसीन आफ़ताब केलापुरी
पढ़ाने का अगर मतलब है हाथों से निकल जाना
ख़ुदाया फिर मिरी बेटी भी हाथों से निकल जाए
- कुशल दौनेरिया
पूछ रही है अपनी माँ से इक बेटी
ब्याह के मा'नी ज़ेवर लहँगा चोली है
- इशरत मोईन सीमा
पूछती है आज भारत की सभी बेटियाँ,
कब तलक हैवानियत को यूँ सहेगी बेटियाँ ?
- मंजू सिंह
पेड़ों के झुनझुने,
बजने लगे,
लुढ़कती आ रही है,
सूरज की लाल गेंद
उठ मेरी बेटी सुबह हो गई
- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
प्यार का गुलज़ार खुशियों से सजाती बेटियाँ
फूल सा खिलने दो कह के,मुस्कुराती बेटियाँ
- मोनिका सिंह
प्यार का मीठा एहसास हैं बेटियाँ
घर के आँगन का विश्वास हैं बेटियाँ
- डॉ हरीश अरोड़ा
प्रेम स्नेह का घन सी होती हैं बेटियाँ,
स्वच्छ, निर्मल अंतर्मन सी होती हैं बेटियाँ
- प्रीति चौधरी
फ़र्क बेटी और बेटे में नहीं होता है कुछ
बेटियों को भी पढ़ाने का मज़ा कुछ और है
- देवेश दीक्षित देव
फूलों जैसी एक महकती बेटी हो,
चंदा जैसी एक चमकती बेटी हो
स्वर्ग बनेगा निश्चित यदि घर में यारो,
कोयल जैसी एक चहकती बेटी हो
- अरविन्द उनियाल अनजान
बच नहीं पातीं हवस के भेडियों से बेटियाँ
है ग़नीमत के अदालत सामने आ जाए है
- मासूम ग़ाज़ियाबादी
बचीं तो कल्पनाओं-सी उड़ेंगी
हमारी बेटियाँ भी अम्बरों तक
- द्विजेन्द्र द्विज
बड़ी होने को हैं ये मूरतें आँगन में मिट्टी की
बहुत से काम बाक़ी हैं सँभाला ले लिया जाये
- मुनव्वर राना
बद नज़र उठने ही वाली थी किसी की जानिब
अपनी बेटी का ख़याल आया तो दिल काँप गया
- नवाज़ देवबंदी
बनी बेटी जो दुल्हन बाप बोला
हथेली पर हिना अच्छी लगी है
- संतोष खिरवड़कर
बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
- मुनव्वर राना
बाप का है फ़ख़्र वो बेटा कि रखता हो कमाल
देख आईने को फ़रज़ंद-ए-रशीद-ए-संग है
- मीर मोहम्मदी बेदार
बाप के ज़िंदा रहने तक
हर बेटी शहज़ादी है
- बिल्क़ीस ख़ान
बाबुल की बेशक़ीमती थाती है बेटियाँ
बेटे अग़र चिराग हैं बाती हैं बेटियाँ
- राजेश विद्रोही
बाबुल के अँगने अब, बेटियाँ आतीं नहीं
माँ गईं; सावन का आना, फिर दुबारा ना हुआ
- सुधा राठौर
बाबुल के आँगन से इक दिन हर बेटी को जाना है
आँखों में नए ख़्वाब सजा कर तेरे दर तक आई हूँ
- इरुम
बाहर क्या अपने घर में भी हद से बढ कर पाबन्दी पर
बेटी सरकश हो जाती है बेटा बागी हो जाता है
- मुज़फ़्फ़र हनफ़ी
बेटा बेटी का हिस्सा क्यूँ खा जाए
मैं ने ख़ुद उन में बटवारा करना है
- ज़हरा क़रार
बेटियाँ तो फिर भी आती रहती हैं मिलने,
पर कभी मिलने बहू बेटे नहीं आते
- अशोक रावत
बेटियाँ दो-दो कुलों की आन हैं,
शान बेटों से कहीं भी कम नहीं
- हरिवल्लभ शर्मा हरि शर्मा
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
बेटियाँ भी तो माओं जैसी होती हैं
ज़ब्त के ज़र्द आँचल में अपने
सारे दर्द छुपा लेती हैं
रोते रोते हंस पड़ती हैं
हँसते हँसते दिल ही दिल में रो लेती हैं
- नोशी गिलानी
बेटियाँ रहमत हैं, आक़ा ने कहा
इनसे रब की मेहरबानी आएगी
- ग़ुलाम मुईनुद्दीन शैख़ अदीब दमोही
बेटियाँ ही पदक देश में ला रहीं
कोख में अब तो इनकी हिफाज़त रहे
- सुभाष राहत बरेलवी
बेटियाँ ही बेटियाँ हों, बेटियों के क़हक़हे
शोर में भी इक तरन्नुम सा सुनाती बेटियाँ
- मोनिका सिंह
बेटियाँ हैं जग की दौलत दोस्तो
मान लो इनको ही जन्नत दोस्तो
- प्रकाश पटवर्धन
बेटियाँ हैं पेटियाँ धन की यहाँ
मायके की है वसीयत दोस्तो
- प्रकाश पटवर्धन
बेटियां शुभकामनाएं हैं, बेटियां पावन दुआएं हैं
बेटियां ज़ीनत हदीसों की, बेटियां जातक कथाएं हैं
- अज़हर हाशमी
बेटियों को कुछ नज़रें ग़लतियाँ समझती हैं
मोतियों की क़ीमत कब सीपियाँ समझती हैं
- के पी अनमोल
बेटियों को बचा के रखिए कँवल
इन को पाने में वक़्त लगता है
- रमेश कँवल
बेटियों से है घर में चहल-पहल,
पायल की छन -छन सी होती हैं बेटियाँ
- प्रीति चौधरी
बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा
- प्रो.योगेश छिब्बर
बेटी गई है घर से लगा हम को बस यही
जैसे चला गया कोई अमराइयों का घर
- आदर्श दुबे
बेटी घर के आँगन में
ख़ुशियों की फुलवारी है
- अनीता मौर्या अनुश्री
बेटी जन्नत का दरवाजा
कैसे मैं बतलाऊँ तुम्हें
बेटी है अनमोल नगीना
कैसे मैं बतलाऊँ तुम्हें
बेटी घर की धूप छाँव है
- सुरजीत मान जलईया सिंह
बेटी रुख़सत तो हो गई लेकिन
घर से उसका असर नहीं जाता
- हसन फ़तेहपुरी
बेटों की चाहत जिन्हें वे आज सुनें
गुरुर पिता का तो होती हैं बेटियाँ
- शुचि भवि
बेटों से एक घर भी संभलता नहीं मग़र
दो मुख़्तलिफ़ घरों को मिलाती हैं बेटियाँ
- राजेश विद्रोही
बोझ पेड़ का तो बस टहनियाँ समझती हैं
माँ की बेबसी जैसे बेटियाँ समझती है
- असमा सुबहानी
भले ही नाम चलता हो,हमारे कुल का बेटों से,
मगर घर-बार की रौनक तो बस बेटी से आती है
- असमा सुबहानी
मम्मी ध्यान से बाहर आया जाया करो
मेरी बेटी ये मुझ को समझाती है
बेला चम्पा जूही और चमेली सी
बेटी ख़ुशबू से घर को महकाती है
- अंजना सिंह सेंगर
महंगे खिलौने दे न सका मैं ये मेरी लाचारी है
लेकिन मेरी बच्ची मुझको जाँ से ज़ियादा प्यारी है
- अतुल अजनबी
मह्काती जीवन उपवन अपने मुक्त हास से
प्रज्ज्वलित दीप शिखा की आब सी है बेटियाँ
- रीनू शर्मा
माँ को अपनी बेटियाँ जल्दी सयानी चाहिए
और बाबा को वही गुड़िया पुरानी चाहिए
- आरोही श्रीवास्तव
माँ ने बेटी से कहा तेरी ख़ता है इस में
तू ने ससुराल में क्यूँ सास को माँ समझा था
- खालिद इरफ़ान
माँ बाप के घर की प्यार की किलकारी हैं बेटियाँ
सारे जमाने में सबको जानसे प्यारी हैं बेटियाँ
- जनार्दन द्विवेदी
माँएं, बहनें, पिता, पुत्र, इस देश के,
शर्म कर रोड पर बेटियाँ आ गईं
- पवन मुंतज़िर
माँग लो खुदा से एक बेटी
जन्नत में घर नहीं, घर में जन्नत मांग लो
- लुबना फातिमा
मीठी तोतली बोली सी बेटियाँ
अँगने में फुदकती चिरैय्या सी बेटियाँ
- रीमा दीवान चड्ढा
मुझ को बख़्शी ख़ुदा ने इक बेटी
चाँद आँगन में इक उतर आया
- शायान क़ुरैशी
मुझको घर में चाहिए थी बरकतें,
एक बेटी... उस ख़ुदा से माँग ली
- प्रवीण फ़क़ीर
मुझे नवाज़ दी मौला ने फूल सी बेटी
मिरे हिसाब में कुछ नेकियाँ निकल आईं
- नफ़स अम्बालवी
मुझे भी उस की जुदाई सताती रहती है
उसे भी ख़्वाब में बेटा दिखाई देता है
- मुनव्वर राना
मुस्कराती खिलखिलाती मन लुभाती बेटियाँ
धूप जैसी ज़िन्दगी में छाँव लाती बेटियाँ
- शुभा शुक्ला मिश्रा अधर
मेरी आँखों से निकल आए ख़ुशी के आँसू
बेटी रुख़्सत जो हुई गूँजती शहनाई में
- कौकब ज़की
मेरी इक हंसमुख बेटी है
जादू की पुड़िया जैसी है
- रामनाथ शोधार्थी
मेरी बेटी जब बड़ी हो जाएगी
सारे घर में चाँदनी फैलाएगी
- आल-ए-अहमद सुरूर
मोल से इनके न जाने लोग क्यों अनजान हैं
कोख में ही आज भी क्यों मर रही हैं बेटियाँ ?
- हीरालाल यादव
ये घर दरो दीवार सब तरसेंगे
जब बर्तन खन खन खनकेंगे
सारे पकवान फ़ीके पड़ जायेंगे
जब बेटी घर से विदा हो जायेगी
- शमशाद इलाही अंसारी
ये चिड़िया भी मेरी बेटी से कितनी मिलती जुलती है
कहीं भी शाख़े- गुल देखे तो झूला डाल देती है
- मुनव्वर राना
ये तर्बियत थी घरों में हर एक बेटी को
किसी भी हाल में हो घर बचाना होता था
- अलमदार अदम
ये मेरे साथ छुप छुप कर हज़ारों बार रोएँगे
तिरी रुख़्सत पे ऐ बेटी दर-ओ-दीवार रोएँगे
- सुहैल सानी
रंजो गम सबको भूलाती मुसकराती बेटिया
आंखो की ज्योति बढाती झिलमिलाती बेटिया
- दिनकर राव दिनकर
रहमत बन के उतरी थी क्यों ज़हमत बन गई बेटी
मेरा जुर्म-ए-गुनह बतला दो पूछती रह गई बेटी
- समीना असलम समीना
रहें माँ-बाप जब तक, पूछी जाती है हर इक बेटी
फिर अपने गाँव उसका आना जाना छूट जाता है
- अंजुमन मंसूरी आरज़ू
रो रहे थे सब तो मैं भी फूट कर रोने लगा
वरना मुझको बेटियों की रुख़सती अच्छी लगी
- मुनव्वर राना
रोज ऐसे गिद्धों की शिकार होती रही तो
मुझे कोई दे बता कैसे बचेगी बेटियाँ
- मंजू सिंह
रोटियों पे बिक रही हैं बेटियाँ
ख़ाक होगा दूसरा महशर कोई
- हातिम जावेद
लुट रही हैं इज़्ज़ते बेटी बहन की,
अनसुनी जैसे कोई फ़रियाद हैं हम
बेटियों को फैसलों का हक़ नहीं हैं,
क़ैद रक्खा हैं उन्हें सय्याद हैं हम
- सिया सचदेव
वही रहता है सब लेकिन ज़माना छूट जाता है
परी-सी बेटियों का मुस्कुराना छूट जाता है
- अंजुमन मंसूरी आरज़ू
वैसे तो इस घर को उस ने चाहे कम ख़ुश-हाली दी
बेटा बर-ख़ुरदार दिया और बेटी हौसले वाली दी
- अताउल हसन
वो बेटी है ज़ुबां से कुछ नहीं कहती मगर फिर भी,
गले से जब भी लगती है तो सब कुछ बोल जाती है।
- प्रवीण फ़क़ीर
शनासा ख़ौफ़ की तस्वीर है उस की बयाज़ों में
मिरी बेटी हसीं पिंजरे में इक चिड़िया बनाती है
- साबिर शाह साबिर
सब की माएँ भी बेटियाँ ही थीं
आज बेटी बनी मुसीबत क्यूँ
- मर्ग़ूब असर फ़ातमी
सर में बेटी के बहुत फैल चुकी है चाँदी
फिर भी माँ बाप को रिश्ते नहीं अच्छे लगते
- हुसैन अहमद वासिफ़
सारा गुलशन खिल उठा हो खिलखिलाती बेटिया
साज दिल का बज उठा जब गुनगुनाती बेटिया
- दिनकर राव दिनकर
सारे जहां की दौलतें मुठ्ठी में आ गई
बेटी ने मेरे हाथ पर जब नाम लिख दिया
- मनोज अहसास
सिर्फ बेटों से उजाला नहीं होता घर में
बेटियाँ भी तो चराग़ों की तरह होती है
- मोहसीन आफ़ताब केलापुरी
सींचती हैं नेह-जल से शुष्क मन जीवन अधर,
प्रीति के आदर्श के शुचि गीत गाती बेटियाँ
- शुभा शुक्ला मिश्रा अधर
सुबह जब खिलखिलाती बेटियाँ स्कूल जाती हैं
तो सड़कें शहर की मानो कोई उत्सव मनाती हैं
- अंबर खरबंदा
हंसती हैं, मुस्कुराती हैं, गाती हैं बेटियाँ
दिल में सभी के प्यार जगाती हैं बेटियाँ
- सलीम तन्हा
हया क्या है सदाक़त क्या, किसी बेटी से पूछो तुम
बिना बेटी, यक़ीं मानो, ये घर, घर सा नहीं लगता
- नज़र द्विवेदी
हर घड़ी विश्वास पैदा कर रही हैं बेटियाँ
नित नयी ऊँची उड़ाने भर रही हैं बेटियाँ
- हीरालाल यादव
हरी रहती है वो टहनी जहां चिड़िया चहकती हो
जो बेटी मुस्कुराये तो उजाला फैल जाता है
- सतपाल ख़याल
हाशिये पे डाल दी जाती हैं बचपन से मगर
रखती हैं ऊँचा सदा बाबा का मस्तक बेटियाँ
- अभिषेक सिंह
हूँ फ़िक्रमंद आज के हालात देख कर
बेटी की माँ हूँ इस लिए सहमी हुई हूँ मैं
- सिया सचदेव
है बशर की बेटियाँ इन में तअस्सुब क्यों भला
आबरू तो आबरू है आबरू की जात क्या
- अजय पांडे बेवक़्त