न मै कंघी बनाता हूँ, न मै चोटी बनाता हूँ
न मै कंघी बनाता हूँ, न मै चोटी बनाता हूँग़ज़ल मै आप बीती को मै जग बीती बनाता हूँ
ग़ज़ल वो सिंफे-नाजुक है जिसे अपनी रफाक़त से
वो महबूबा बना लेता है मै बेटी बनाता हूँ
मुझे इस शहर की सब लड़किया आदाब करती है
मै बच्चो की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
हुकूमत का हर एक इनाम है बन्दूकसाजी पर
मुझे कैसे मिलेगा मै तो बैसाखी बनाता हूँ
वज़ारत चंद घंटो की महल मीनार से ऊँचा
मै ओरंगजेब हूँ अपने लिए खिचड़ी बनाता हूँ
हुकूमत आपको मिल जाए तो गुजरात बनते है
हुकूमत जब मुझे मिलती है मै दिल्ली बनाता हूँ
बस इतनी इल्तिजा है तुम इसे बर्बाद मत करना
तुमसे इस मुल्क का मालिक मै जीते-जी बनाता हूँ - मुनव्वर राना
मायने
सिंफे-नाजुक = स्त्रिया, रफाक़त = सोहबत, वज़ारत = सत्ता, इल्तिजा = निवेदन
Na mai kanghi banata hun, n mai choti banata hun
Na mai kanghi banata hun, n mai choti banata hunghazal mai aap biti ko mai jag biti banata hun
ghazal wo sinf-e-nazuk hai jise apni rafaqat se
wo mehbuba bana leta hai mai beti banata hun
mujhe is shahar ki sab ladkiya aadab karti hai
mai bachcho ki kalai ke liye rakhi banata hun
hukumat ka har ek inam hai banduksazi par
mujhe kaise milega mai to baisakhi banata hun
wajarat chand ghanto ki mahal minar se uncha
mai orangjeb hun apne liye khichdi banata hun
hukumat aapko mil jaye to gujrat bante hai
hukumat jab mujhe milti hai mai dilli banata hun
bas itni iltiza hai tum ise barbad mat karna
tumse is mulk ka malik mai jite-ji banata hun- Munwwar Rana
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
हुकूमत का हर एक इनाम है
ये लाइने बहुत अच्छी
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
हुकूमत का हर एक इनाम है
ये लाइने बहुत अच्छी