ज़िंदगी में ग़म उठाने का मज़ा कुछ और है - देवेश दीक्षित देव

ज़िंदगी में ग़म उठाने का मज़ा कुछ और है

ज़िंदगी में ग़म उठाने का मज़ा कुछ और है
चोट खाकर मुस्कराने का मज़ा कुछ और है

कौन कहता, है ज़रूरी जंग जीती जायें सब
प्यार में तो हार जाने का मज़ा कुछ और है

ख़ुशगुवारी में ग़ज़ल गाना कोई हैरत नहीं
रंज-ओ-ग़म में गुनगुनाने का मज़ा कुछ और है

नफ़रतो की तीरगी से किसको क्या हासिल हुआ,
प्यार के दीपक जलाने का मज़ा कुछ और है

फ़र्क बेटी और बेटे में नहीं होता है कुछ
बेटियों को भी पढ़ाने का मज़ा कुछ और है

हो गये क़ाबिल अगर रुख़्सत न होना देश से
मुल्क में अपने कमाने का मज़ा कुछ और है

बँट गये इंसान मज़हब में अगर तो क्या हुआ
'देव' सबसे दिल मिलाने का मज़ा कुछ और है - देवेश दीक्षित देव


zindagi me gham uthane ka maza kuchh aur hai

zindagi me gham uthane ka maza kuchh aur hai
chot-khakar muskurane ka maza kuchh aur hai

kaun kahta, hai zaruri jung jiti jayen sab
pyar men to haar jane ka maza kuchh aur hai

khushgawari me ghazal gana koi hairat nahin
ranz-o-gham me gungunane ka maza kuchh aur hai

nafrato ki teeragi se kisko kya hasil hua,
pyar ke deepak jalane ka maza kuchh aur hai

farq beti aur bete me nahin hota hai kuchh
betiyon ko bhi padhane ka maza kuchh aur hai

ho gaye qabil agar rukhsat n hona desh se
mulq me apne kamane ka maza kuchh aur hai

bant gaye insaan mazhab me agar to kya hua
'Dev' sabse dil milane ka maza kuchh aur hai - Devesh Dixit Dev

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post