आहट हमारी सुन के वो खिड़की में आ गये
आहट हमारी सुन के वो खिड़की में आ गयेअब तो ग़ज़ल के शेर असीरी में आ गये
साहिल पे दुश्मनों ने लगाई थी ऐसी आग
हम बदहवास डूबती कश्ती में आ गये
अच्छा दहेज दे न सका मैं बस इसलिए
दुनिया में जितने ऐब थे बेटी में आ गये
हम तो समझ रहे थे ज़माने को क्या ख़बर
किरदार अपने, देख कहानी में आ गये
तुमने कहा था आओगे जब आयेगी बहार
देखो तो कितने फूल चमेली में आ गये
उस की गली को छोड़ के ये फ़ायदा हुआ
ग़ालिब, फ़िराक़, जोश की बस्ती में आ गये
हम राख़ हो चुके हैं तुझे भी जता तो दें
बस इस ख़याल से तेरी शादी में आ गये
हाँ इस ग़ज़ल में उन के ख़यालात नज़्म हैं
इस बार बादशाह ग़ुलामी में आ गये - तुफ़ैल चर्तुवेदी
aahat hamari sun ke wo khidki me aa gaye
aahat hamari sun ke wo khidki me aa gayeab to ghazal ke sher asiri me aa gye
sahil pe dushmano ne lagai aisi aag
ham badhawas dubti kashti me aa gaye
achcha dahej de n saka mai bas isliye
duniya me jitne eb the beti me aa gaye
ham to samajh rahe the jamane ko kya khabar
kirdar apne, dekh kahani me aa gaye
tumne kaha tha aaoge jab aayegi bahar
dekho to kitne phool chameli me aa gaye
us ki gali ko chhod ke ye fayda hua
ghalib, firaq, josh ki basti me aagye - Tufail Chaturvedi
वाह बेहद शानदार गज़ल्।
तुफैल भाई जिंदाबाद जिंदाबाद...क्या खूब ग़ज़ल कही है...भाई वाह...दिली दाद कबूल करें...हम तो आपकी शायरी के पुराने दीवाने हैं...तारीफ़ के लिए 'लफ्ज़' ढूंढते फिरते हैं...
नीरज
नीरज साहब सच में हम भी 'लफ्ज़' को ढूंढते है वैसे यहाँ मै 'लफ्ज़' पत्रिका बारे में कह रहा हु और आप शायद तारीफ के लिये शब्द कह रहे है |