रक्षाबंधन पर बेहतरीन शायरी | राखी पर शायरी
राखी / रक्षाबंधन भाई बहन के प्रेम का त्यौहार है मानवीय भावनाओ का त्यौहार है | आज हम आपके लिए उन चुनिन्दा अशआरो को लाये है जिन्हें शायरों और कवियों ने या तो बहनों के लिए या फिर इस त्यौहार को लेकर लिखे है :बहनों की मोहब्बत की है अज़्मत की अलामत
राखी का है त्यौहार मोहब्बत की अलामत
- मुस्तफ़ा अकबर
रक्षा-बंधन की सुब्ह रस की पुतली
छाई है घटा गगन पे हल्की हल्की
- फ़िराक़ गोरखपुरी
बिजली की तरह लचक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधी चमकती राखी
- फ़िराक़ गोरखपुरी
हमारे और उसके बीच इक धागे का रिश्ता है
हमें लेकिन हमेशा वो सगा भाई समझती है
- मुनव्वर राना
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
- मुनव्वर राना
मुझे इस शहर की सब लड़किया आदाब करती है
मै बच्चो की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
- मुनव्वर राना
बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
- मुनव्वर राना
अब की बार तो राखी पर भी भी दे न सकी कुछ भय्या को
अब उस के सूने माथे पर सिर्फ़ है रोली बाबू-जी
- कुंवर बेचैन
सिर्फ़ बंधन नहीं एक पैमान है
भाइयों के दिलों का ये ईमान है
अपनी बहनों पे हर भाई क़ुर्बान है
- मसूदा हयात
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
एक राखी ज़िंदगी का रुख़ बदल सकती है आज
- इमाम आज़म
याद आई जब मुझे 'फ़रहत' से छोटी थी बहन
मेरे दुश्मन की बहन ने मुझ को राखी बाँध दी
- एहसान साक़िब
( फ़रहत = ख़ुशी )
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्क़त साथ चलती है
- सय्यद ज़मीर जाफ़री
(इल्तिजा = विनती, वफ़ा-ए-दोस्ताँ = दोस्त की वफ़ा, बहर-ए-मशक़्क़त= मेहनत का समन्दर)
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के बाद हाथ से मोती बिखर गए
- बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल
- मोहसिन काकोरवी
अज़ल से बरसे है पाकीज़गी फ़लक से यहाँ
नुमायाँ होवे है फिर शक्ल-ए-बहन में वो यहाँ
- दीपक पुरोहित
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
- सय्यद ज़मीर जाफ़री
मैं हरेक लड़की में माशूक़ नहीं ढूंडता हूँ
भाई जो कह दे मुझे हाथ का धागा हो जाय
- शकील आज़मी
तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
गया है भूल हैरत सीं पिया पानी के तईं बहना
- आबरू शाह मुबारक
ये अलग बात कि मैं नूह नहीं था लेकिन
मैं ने कश्ती को ग़लत सम्त में बहने न दिया
- अज़हर इनायती
(सम्त= दिशा )
हर बुरे वक्त में हिम्मत के लिए होते है
रिश्ते नाते तो जरुरत के लिए होते है
बेज़बां होके भी कहते है ये कच्चे धागे
भाई बहनों की हिफाज़त के लिये होते है
- अंजुम बाराम्बकवी
अपनी भी ज़िंदगी में बहार आई थी
मेरे घर थाली में लिए वो प्यार आई थी
अब ढूंढती रहती हैं आंखें उस मंज़र को
बसंत गोद में ले कर राख़ी का त्योहार आई थी
- परवेज़ मुज़फ़्फ़र
चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी
सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी
- नज़ीर अकबराबादी
(सब्ज़ = हरा, ज़र्द = पीला )
अदा से हाथ उठते हैं गुल-ए-राखी जो हिलते हैं
कलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
- नज़ीर अकबराबादी
फिरें हैं राखियाँ बाँधे जो हर दम हुस्न के तारे
तो उन की राखियों को देख ऐ जाँ चाव के मारे
- नज़ीर अकबराबादी
Note: हो सकता है कुछ शे'र छुट गए हो आप कमेन्ट में उन्हें बता सकते है |
राखी का है त्यौहार मोहब्बत की अलामत
- मुस्तफ़ा अकबर
रक्षा-बंधन की सुब्ह रस की पुतली
छाई है घटा गगन पे हल्की हल्की
- फ़िराक़ गोरखपुरी
बिजली की तरह लचक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधी चमकती राखी
- फ़िराक़ गोरखपुरी
हमारे और उसके बीच इक धागे का रिश्ता है
हमें लेकिन हमेशा वो सगा भाई समझती है
- मुनव्वर राना
किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बाँधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बाँधेगा
- मुनव्वर राना
मुझे इस शहर की सब लड़किया आदाब करती है
मै बच्चो की कलाई के लिए राखी बनाता हूँ
- मुनव्वर राना
बहन का प्यार माँ की ममता दो चीखती आँखें
यही तोहफ़े थे वो जिनको मैं अक्सर याद करता था
- मुनव्वर राना
अब की बार तो राखी पर भी भी दे न सकी कुछ भय्या को
अब उस के सूने माथे पर सिर्फ़ है रोली बाबू-जी
- कुंवर बेचैन
सिर्फ़ बंधन नहीं एक पैमान है
भाइयों के दिलों का ये ईमान है
अपनी बहनों पे हर भाई क़ुर्बान है
- मसूदा हयात
आस्था का रंग आ जाए अगर माहौल में
एक राखी ज़िंदगी का रुख़ बदल सकती है आज
- इमाम आज़म
याद आई जब मुझे 'फ़रहत' से छोटी थी बहन
मेरे दुश्मन की बहन ने मुझ को राखी बाँध दी
- एहसान साक़िब
( फ़रहत = ख़ुशी )
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्क़त साथ चलती है
- सय्यद ज़मीर जाफ़री
(इल्तिजा = विनती, वफ़ा-ए-दोस्ताँ = दोस्त की वफ़ा, बहर-ए-मशक़्क़त= मेहनत का समन्दर)
बंधन सा इक बँधा था रग-ओ-पय से जिस्म में
मरने के बाद हाथ से मोती बिखर गए
- बशीरुद्दीन अहमद देहलवी
राखियाँ ले के सिलोनों की बरहमन निकलें
तार बारिश का तो टूटे कोई साअत कोई पल
- मोहसिन काकोरवी
अज़ल से बरसे है पाकीज़गी फ़लक से यहाँ
नुमायाँ होवे है फिर शक्ल-ए-बहन में वो यहाँ
- दीपक पुरोहित
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है
- सय्यद ज़मीर जाफ़री
मैं हरेक लड़की में माशूक़ नहीं ढूंडता हूँ
भाई जो कह दे मुझे हाथ का धागा हो जाय
- शकील आज़मी
तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
गया है भूल हैरत सीं पिया पानी के तईं बहना
- आबरू शाह मुबारक
ये अलग बात कि मैं नूह नहीं था लेकिन
मैं ने कश्ती को ग़लत सम्त में बहने न दिया
- अज़हर इनायती
(सम्त= दिशा )
हर बुरे वक्त में हिम्मत के लिए होते है
रिश्ते नाते तो जरुरत के लिए होते है
बेज़बां होके भी कहते है ये कच्चे धागे
भाई बहनों की हिफाज़त के लिये होते है
- अंजुम बाराम्बकवी
अपनी भी ज़िंदगी में बहार आई थी
मेरे घर थाली में लिए वो प्यार आई थी
अब ढूंढती रहती हैं आंखें उस मंज़र को
बसंत गोद में ले कर राख़ी का त्योहार आई थी
- परवेज़ मुज़फ़्फ़र
चली आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखी
सुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी
- नज़ीर अकबराबादी
(सब्ज़ = हरा, ज़र्द = पीला )
अदा से हाथ उठते हैं गुल-ए-राखी जो हिलते हैं
कलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
- नज़ीर अकबराबादी
फिरें हैं राखियाँ बाँधे जो हर दम हुस्न के तारे
तो उन की राखियों को देख ऐ जाँ चाव के मारे
- नज़ीर अकबराबादी