किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बांधेगा - मुनव्वर राना

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बांधेगा अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बांधेगा -  मुनव्वर राना

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बांधेगा

किसी के ज़ख़्म पर चाहत से पट्टी कौन बांधेगा
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बांधेगा

जहां लड़की की इज़्ज़त लुटना एक खेल बन जाए
वहां पर ऐ कबूतर तेरे चिट्ठी कौन बांधेगा

ये बाज़ार-ए-सियासत है यहां ख़ुद्दारियां कैसी
सभी के हाथ में कासा है मुट्ठी कौन बांधेगा

तुम्हारी महफ़िलों में हम बड़े बूढ़े ज़रूरी है
अगर हम ही नहीं होंगे तो पगड़ी कौन बांधेगा

मुक़द्दर देखिए वो बांझ भी है और बुढ़ी भी
हमेशा सोचती रहती है गठरी कौन बांधेगा - मुनव्वर राना


kisi ke zakhm par chahat se patti kaun bandhega

kisi ke zakhm par chahat se patti kaun bandhega
agar bahne nahin hongi to rakhi kaun bandhega

jahan ladki ki ijjat lutna ek khel ban jae
waha par ae kabootar tere chitthi kaun bandhega

ye bazar-e-siyasat hai yahan khuddariyan kaisi
sabhi ke sath me kasa hai mutthi kaun bandhega

tumhari mahfilon mein ham bade budhe jaruri hai
agar ham hi nahin honge to pagdi kaun bandhega

mukaddar dekhiye wo baanjh bhi hai aur budhi bhi
hamesha sochti rahti hai gathri kaun bandhega - Munawwar Rana

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