अली सरदार जाफरी परिचय अली सरदार जाफरी उर्दू साहित्य में एक अलग मुकाम रखते है | आप अपनी शायरी से अधिक उर्दू साहित्य को आम जनों तक उपलब्ध कराने के लिये

अली सरदार जाफरी परिचय
अली सरदार जाफरी उर्दू साहित्य में एक अलग मुकाम रखते है | आप अपनी शायरी से अधिक उर्दू साहित्य को आम जनों तक उपलब्ध कराने के लिये मशहूर है | आपने उर्दू शायरी के कई महान शायरों की अमूल्य कृतियों को कहकशा नाम के प्रोग्राम से जनता के समक्ष पहुचाया था |
इस अदीब का जन्म 29 नवम्बर 1913 को गोंडा ज़िले के बलरामपुर गाँव में हुआ था | वही पर आपकी शिक्षा-दीक्षा भी हुई | आप शुरुवात में जोश मलीहाबादी, जिगर मुरादाबादी और फिराक गोरखपुरी से प्रभावित थे | आगे की शिक्षा के लिये आपने 1933 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय Aligarh Muslim University ( AMU) में दाखिला ले लिया | वहा पर अख़्तर हुसैन रायपुरी, सिब्ते-हसन, जज़्बी, मजाज़, जाँनिसार अख़्तर और ख़्वाजा अहमद अब्बास की संगत मिली | यही पर आप कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित हुए और सन 1936 में ही राजनितिक कारणों से आप विश्वविद्यालय से निकल गए | बाद में आपने 1938 में जाकिर हुसैन कालेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से स्नातक किया | परन्तु आपकी उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में जाकर संपत हुई जहा आप युद्ध विरोधी गज़ले और इंडियन नेशनल कांग्रेस की राजनितिक गतिविधियों में भाग लेने के लिये 1940-41 में गिरफ्तार भी हुए |
आपका साहित्यिक सफर 1938 में लघु कथाओ के प्रथम संग्रह मंजिल के प्रकाशन से प्रारंभ हुआ |
आपकी गज़लों का पहला संग्रह 'परवाज' 1943 में प्रकाशित हुआ | संयोग की बात देखिये इसी वर्ष मखदूम मोहीउद्दीन का पहला संग्रह ‘सुर्ख सबेरा’, जज्बी का पहला संग्रह ‘फरोजां’ और कैफ़ी आज़मी का पहला संग्रह ‘झंकार’ भी प्रकाशित हुए | 1936 में आप प्रोग्रेसिव रायटर्स मूवमेंट की पहली सभा के प्रेसिडेंट बने | इस मूवमेंट के प्रेसिडेंट आप अपनी बाकी की जिंदगी भी बने रहे | प्रोग्रेसिव रायटर्स मूवमेंट को समर्पित ‘नया अदब’ साहित्यिक पत्रिका के 1939 में आप सह-संपादक बने, जिसका प्रकाशन 1949 तक जारी रहा |
आपका विवाह जनवरी 1948 को सुल्ताना से हुआ | आपको 20 जनवरी 1949 को प्रोग्रेसिव उर्दू रायटर्स की सभा आयोजित करने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया | आपको मुंबई के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने भी इस हेतु कई चेतावनिया दी थी और इन चेतावनी के 3 महीनो बाद आपको गिरफ्तार किया गया |
आपकी मुख्य साहित्यिक कृतियों में ‘परवाज’ ( 1943), ‘नई दुनिया को सलाम’ ( 1948), ‘खून की लकीर’ (1949), अम्न का सितारा ( 1950) एशिया जाग उठा ( 1951), 'पत्थर की दीवार' ( 1953), एक ख्वाब और (1964), पैरहन-ए-शरार ( 1965) और 'लहू पुकारता है' ( 1978) | इसके अतिरिक्त अवध की 'खाक-ए-हसीन', 'सुब्हे फर्दा', 'मेरा सफर' और आखिरी कृति 'सरहद' ( 1999) रही |
आप तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ पकिस्तान गए थे तब सरहद पर एक ऑडियो एल्बम भी बनाया गया Squadron Leader अनिल सहगल निर्माता थे और बुलबुल-ए-कश्मीर “सीमा सहगल” ने गाया था | जिसे ( सरहद ऑडियो एल्बम) तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को 20-21 फ़रवरी 1999 को लाहौर सम्मिट में भेट स्वरूप प्रदान किया था |
आपने अपने 5 दशको के साहित्यिक सफर में कबीर, मीर, ग़ालिब और मीरा बाई की रचनाओं के संग्रह पर काम किया था | इसके अतिरिक्त आपने दो मशहूर टी.वी. प्रोग्रामो को बनाया था एक था 18 एपिसोड में बना कहकशा, जिसमे आपने 20वी सदी के सात मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़, फिराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, मजाज़, हसरत मोहानी, मखदूम मोहिउद्दीन और जिगर मुरादाबादी के जीवन पर बहुत अच्छी और विश्लेष्णात्मक रूप से प्रकाश डाला था; और दूसरा महफ़िल-ए-यारां जिसमे आपने अलग-अलग हस्तियों के इंटरव्यू लिये थे | इसके साथ-साथ ही आप उर्दू की प्रसिद्द पत्रिका गुफ्तगू के संपादक भी रहे|
तारीख 1 अगस्त, 2000 को यह महान शायर मुंबई में यह दुनिया-ए-फानी छोडकर चले गए | उनकी मृत्यु के एक वर्ष उपरांत Squadron Leader अनिल सहगल ने एक किताब प्रकाशित करवाई नाम था अली सरदार जाफरी The Youthful Boatman of Joy.
"कोई सरदार कब था इससे पहले तेरी महफ़िल में
बहुत अहले-सुखन उट्ठे बहुत अहले-कलाम आये"
आपको 1997 में जगन्नाथ पुरस्कार से नवाजा गया इस पुरस्कार को पाने वाले आप तीसरे शायर थे इससे पहले इसे फिराक गोरखपुरी ( 1969) और कुर्रतुलैन हैदर को दिया जा चुका था | आप कई साहित्यिक और अन्य उपाधियो से गोरवान्वित किये गए जिनमे पद्म श्री ( 1967), इकबाल पर कार्य करने हेतु पाकिस्तान सरकार द्वारा स्वर्ण पदक ( 1978), शायरी के लिये उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी पुरस्कार, मखदूम पुरस्कार, फैज़ अहमद फैज़ पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार की और से इकबाल सम्मान, और महाराष्ट्र सरकार की और से संत दयानेश्वर पुरस्कार दिया गया |
आप आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन आपकी एक नज्म “मेरा सफर” में आपने अपने जीवन दर्शन को बताया है जिसमे आपने फारसी के शायर रूमी के एक मिसरे का उपयोग कर जीवन की मौत पर विजय बताई है | सरदार जाफरी ने अपनी शायरी में कई नए शब्दों की रचनाए की और उसे उर्दू के बोझिलपने से दूर रखा |
Ali Sardar Jafri Official Website- www.sardarjafri.com
here you can also get most of the information on him.
इस अदीब का जन्म 29 नवम्बर 1913 को गोंडा ज़िले के बलरामपुर गाँव में हुआ था | वही पर आपकी शिक्षा-दीक्षा भी हुई | आप शुरुवात में जोश मलीहाबादी, जिगर मुरादाबादी और फिराक गोरखपुरी से प्रभावित थे | आगे की शिक्षा के लिये आपने 1933 में अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय Aligarh Muslim University ( AMU) में दाखिला ले लिया | वहा पर अख़्तर हुसैन रायपुरी, सिब्ते-हसन, जज़्बी, मजाज़, जाँनिसार अख़्तर और ख़्वाजा अहमद अब्बास की संगत मिली | यही पर आप कम्युनिस्ट विचारधारा से प्रभावित हुए और सन 1936 में ही राजनितिक कारणों से आप विश्वविद्यालय से निकल गए | बाद में आपने 1938 में जाकिर हुसैन कालेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) से स्नातक किया | परन्तु आपकी उच्च शिक्षा लखनऊ विश्वविद्यालय में जाकर संपत हुई जहा आप युद्ध विरोधी गज़ले और इंडियन नेशनल कांग्रेस की राजनितिक गतिविधियों में भाग लेने के लिये 1940-41 में गिरफ्तार भी हुए |
आपका साहित्यिक सफर 1938 में लघु कथाओ के प्रथम संग्रह मंजिल के प्रकाशन से प्रारंभ हुआ |
आपकी गज़लों का पहला संग्रह 'परवाज' 1943 में प्रकाशित हुआ | संयोग की बात देखिये इसी वर्ष मखदूम मोहीउद्दीन का पहला संग्रह ‘सुर्ख सबेरा’, जज्बी का पहला संग्रह ‘फरोजां’ और कैफ़ी आज़मी का पहला संग्रह ‘झंकार’ भी प्रकाशित हुए | 1936 में आप प्रोग्रेसिव रायटर्स मूवमेंट की पहली सभा के प्रेसिडेंट बने | इस मूवमेंट के प्रेसिडेंट आप अपनी बाकी की जिंदगी भी बने रहे | प्रोग्रेसिव रायटर्स मूवमेंट को समर्पित ‘नया अदब’ साहित्यिक पत्रिका के 1939 में आप सह-संपादक बने, जिसका प्रकाशन 1949 तक जारी रहा |
आपका विवाह जनवरी 1948 को सुल्ताना से हुआ | आपको 20 जनवरी 1949 को प्रोग्रेसिव उर्दू रायटर्स की सभा आयोजित करने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया | आपको मुंबई के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोरारजी देसाई ने भी इस हेतु कई चेतावनिया दी थी और इन चेतावनी के 3 महीनो बाद आपको गिरफ्तार किया गया |
आपकी मुख्य साहित्यिक कृतियों में ‘परवाज’ ( 1943), ‘नई दुनिया को सलाम’ ( 1948), ‘खून की लकीर’ (1949), अम्न का सितारा ( 1950) एशिया जाग उठा ( 1951), 'पत्थर की दीवार' ( 1953), एक ख्वाब और (1964), पैरहन-ए-शरार ( 1965) और 'लहू पुकारता है' ( 1978) | इसके अतिरिक्त अवध की 'खाक-ए-हसीन', 'सुब्हे फर्दा', 'मेरा सफर' और आखिरी कृति 'सरहद' ( 1999) रही |
आप तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के साथ पकिस्तान गए थे तब सरहद पर एक ऑडियो एल्बम भी बनाया गया Squadron Leader अनिल सहगल निर्माता थे और बुलबुल-ए-कश्मीर “सीमा सहगल” ने गाया था | जिसे ( सरहद ऑडियो एल्बम) तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को 20-21 फ़रवरी 1999 को लाहौर सम्मिट में भेट स्वरूप प्रदान किया था |
आपने अपने 5 दशको के साहित्यिक सफर में कबीर, मीर, ग़ालिब और मीरा बाई की रचनाओं के संग्रह पर काम किया था | इसके अतिरिक्त आपने दो मशहूर टी.वी. प्रोग्रामो को बनाया था एक था 18 एपिसोड में बना कहकशा, जिसमे आपने 20वी सदी के सात मशहूर शायर फैज़ अहमद फैज़, फिराक गोरखपुरी, जोश मलीहाबादी, मजाज़, हसरत मोहानी, मखदूम मोहिउद्दीन और जिगर मुरादाबादी के जीवन पर बहुत अच्छी और विश्लेष्णात्मक रूप से प्रकाश डाला था; और दूसरा महफ़िल-ए-यारां जिसमे आपने अलग-अलग हस्तियों के इंटरव्यू लिये थे | इसके साथ-साथ ही आप उर्दू की प्रसिद्द पत्रिका गुफ्तगू के संपादक भी रहे|
तारीख 1 अगस्त, 2000 को यह महान शायर मुंबई में यह दुनिया-ए-फानी छोडकर चले गए | उनकी मृत्यु के एक वर्ष उपरांत Squadron Leader अनिल सहगल ने एक किताब प्रकाशित करवाई नाम था अली सरदार जाफरी The Youthful Boatman of Joy.
"कोई सरदार कब था इससे पहले तेरी महफ़िल में
बहुत अहले-सुखन उट्ठे बहुत अहले-कलाम आये"
आपको 1997 में जगन्नाथ पुरस्कार से नवाजा गया इस पुरस्कार को पाने वाले आप तीसरे शायर थे इससे पहले इसे फिराक गोरखपुरी ( 1969) और कुर्रतुलैन हैदर को दिया जा चुका था | आप कई साहित्यिक और अन्य उपाधियो से गोरवान्वित किये गए जिनमे पद्म श्री ( 1967), इकबाल पर कार्य करने हेतु पाकिस्तान सरकार द्वारा स्वर्ण पदक ( 1978), शायरी के लिये उत्तर प्रदेश उर्दू अकेडमी पुरस्कार, मखदूम पुरस्कार, फैज़ अहमद फैज़ पुरस्कार, मध्यप्रदेश सरकार की और से इकबाल सम्मान, और महाराष्ट्र सरकार की और से संत दयानेश्वर पुरस्कार दिया गया |
आप आज हमारे बीच में नहीं है लेकिन आपकी एक नज्म “मेरा सफर” में आपने अपने जीवन दर्शन को बताया है जिसमे आपने फारसी के शायर रूमी के एक मिसरे का उपयोग कर जीवन की मौत पर विजय बताई है | सरदार जाफरी ने अपनी शायरी में कई नए शब्दों की रचनाए की और उसे उर्दू के बोझिलपने से दूर रखा |
Ali Sardar Jafri Official Website- www.sardarjafri.com
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- देवेन्द्र गेहलोद
कुछ न जानने वालों के लिए जानकारीप्रद आलेख .....आभार
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