तुम नद्दी पर जा कर देखो
तुम नद्दी पर जा कर देखोजब नद्दी में नहाए चाँद
कैसी लगाई डुबकी उस ने
डर है डूब न जाए चाँद
किरनों की इक सीढ़ी ले कर
छम छम उतरा जाए चाँद
जब तुम उसे पकड़ने जाओ
पानी में छुप जाए चाँद
अब पानी में चुप बैठा है
क्या क्या रूप दिखाए चाँद
चाहे जिधर को जाओ 'अफ़सर'
साथ हमारे जाए चाँद - अफ़सर मेरठी
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tum nadi par ja ka dekho
tum nadi par ja ka dekhojab nadi me nahaye chand
kaisi lagai dubki usne
dar hai dub n jaye chand
kirno ki ek sidhi le kar
cham cham utra jaye chand
jab tum use pakdane jao
pani me chhup jaye chand
ab paani me chup baitha hai
kya kya roop dikhaye chand
chahe jidhar ko jao afsar
sath hamare jaye chand - Afsar Merthi
दिनांक 31/05/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
आपका बहुत बहुत धन्यवाद कुलदीप जी वैसे इस ब्लॉग की हर लिंक एक मोतियों की लड़ी की तरह होती है |
आदरणीय ,आपके लघु शब्द कई भावनायें व सन्देश समेटे हैं ,अतिसुंदर ,आभार। ''एकलव्य''
अरमानों की धूप -छाँह में कुछ भ्रम बने रहते हैं कुछ वास्तविकता समझ भी आ जाती है। रहस्य हम कितना समझ पाते हैं .... उत्तम रचना।