जो बात है हद से बढ़ गयी है - फ़िराक गोरखपुरी

जो बात है हद से बढ़ गयी है

जो बात है हद से बढ़ गयी है
वाएज़ के भी कितनी चढ़ गई है

हम तो ये कहेंगे तेरी शोख़ी
दबने से कुछ और बढ़ गई है

हर शय ब-नसीमे-लम्से-नाज़ुक
बर्गे-गुले-तर से बढ़ गयी है

जब-जब वो नज़र उठी मेरे सर
लाखों इल्ज़ाम मढ़ गयी है

तुझ पर जो पड़ी है इत्तफ़ाक़न
हर आँख दुरूद पढ़ गयी है

सुनते हैं कि पेंचो-ख़म निकल कर
उस ज़ुल्फ़ की रात बढ़ गयी है

जब-जब आया है नाम मेरा
उसकी तेवरी-सी चढ़ गयी है

अब मुफ़्त न देंगे दिल हम अपना
हर चीज़ की क़द्र बढ़ गयी है

जब मुझसे मिली ‍फ़ि‍राक वो आँख
हर बार इक बात गढ़ गयी है -फ़िराक गोरखपुरी
मायने
वाएज़ = उपदेशक, ब-नसीमे-लम्से-नाज़ुक = कोमल हवा के स्पर्श से, दुरूद= दुआ का मन्त्र, पेंचो-ख़म = टेढ़ापन


Jo baat hai had se badh gai hai

Jo baat hai had se badh gai hai
wayej ke bhi kitni chadh gai hai

ham to ye kahenge teri shoukhi
dabne se kuch aur badh gai hai

har shay b-nasime-lamse-nazuk
barge-gule-tar se badh gai hai

jab-jab wo nazar uthi mere sir
lakho ilzam madh gai hai

tujh par jo padi hai ittfakan
har aankh durud padh gai hai

sunte hai ki pencho-kham nikal kar
us zulf ki raat badh gai hai

jab-jab aaya hai naam tera
uski tevri-si chadh gai hai

ab muft n denge dil ham apna
har cheez ki kadr badh gai hai

jab mujhse mili firaq wo aankh
har baar ek baat gadh gai hai - Firaq Gorakhpuri

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