सुब्ह आँख खुलती है एक दिन निकलता है - हसन आबिदी

सुब्ह आँख खुलती है एक दिन निकलता है

हसन आबिदी साहब पकिस्तान के मशहूर शायर और पत्रकार थे आपका जन्म 7 जुलाई 1929 को जौनपुर उ.प्र. में हुआ था और देश के बटवारे के बाद आप कराची पाकिस्तान में बस गए | आप 6 सितम्बर 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह गए |
सुब्ह आँख खुलती है एक दिन निकलता है
फिर ये एक दिन बरसों साथ साथ चलता है

कुछ न कुछ तो होता है इक तेरे न होने से
वरना ऐसी बातों पे कौन हाथ मलता है

क़ाफ़िले तो सहरा में थक के सो भी जाते हैं
चाँद बादलों के साथ सारी रात चलता है

दिल चराग़-ए-महफ़िल है लेकिन उस के आने तक
बार बार बुझता है बार बार जलता है

कुल्फ़तें जुदाई की उम्र भर नहीं जातीं
जी बहल तो जाता है पर कहाँ बहलता है

दिल तपान नहीं रहता मैं ग़ज़ल नहीं कहता
ये शरार अपनी ही आग से उछलता है

मैं बिसात-ए-दानिश का दूर से तमाशाई
देखता रहा शातिर कैसे चाल चलता है -हसन आबिदी


subah aankh khulti hai ek din nuklata hai

subah aankh khulti hai ek din nuklata hai
fir ye ek din baraso sath sath chalta hai

kuch n kuch to hota hai ek tere n hone se
warna aisi baato pe koun haath malta hai

kafile to sahra me thak ke so bhi jate hai
chand baadlo ke sath sari raat chalta hai

dil charag-e-mahfil hai lekin us ke aane tak
baar baar bujhta hai baar-baar jalta hai

kulfate judai ki umra bhar nahi jaati
ji bahal to jata hai par kahaan bahlata hai

dil tapaan nahi rahta mai gazal nahi kahta
ye shara apni hi aag se uchlata hai

mai bisat-e-danish ka door se tamashai
dekhta raha shatir kaise chaal chalta hai - Hasan Abidi

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