सच तो बैठ के खाता है - शारिक़ कैफ़ी

सच तो बैठ के खाता है झूठ कमा कर लाता है याद भी कोई आता है याद तो रक्खा जाता है

सच तो बैठ के खाता है

सच तो बैठ के खाता है
झूठ कमा कर लाता है

याद भी कोई आता है
याद तो रक्खा जाता है

जैसे लफ़्ज़ हों वैसा ही
मुँह का मज़ा हो जाता है

फिर दुश्मन बढ़ जाएँगे
किस को दोस्त बनाता है

कैसी ख़ुश्क हवाएँ हैं
सुब्ह से दिन चढ़ जाता है

उसे घटा कर दुनिया में
बाक़ी क्या रह जाता है

जाने वो इस चेहरे पर
किस का धोका खाता है

इश्क़ से बढ़ कर कौन हमें
दुनिया-दार बनाता है

दिल जैसा मा'सूम भी आज
अपनी अक़्ल चलाता है

कुछ तो है जो सिर्फ़ यहाँ
मेरी समझ में आता है

मुश्किल सुन ली जाती है
कोई करम फ़रमाता है - शारिक़ कैफ़ी


sach to baith ke khata hai

sach to baith ke khata hai
jhuth kama kar lata hai

yaad bhi koi aata hai
yaad to rakkha jata hai

jaise lafz hon waisa hi
munh ka maza ho jata hai

phir dushman badh jaenge
kis ko dost banata hai

kaisi khushk hawaen hain
subh se din chadh jata hai

use ghata kar duniya mein
baqi kya rah jata hai

jaane wo is chehre par
kis ka dhoka khata hai

ishq se badh kar kaun hamein
duniya-dar banata hai

dil jaisa masum bhi aaj
apni aql chalata hai

kuchh to hai jo sirf yahan
meri samajh mein aata hai

mushkil sun li jati hai
koi karam farmata hai - Shariq Kaifi

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