जुगनू - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

जुगनू - त्रिलोक सिंह ठकुरेला

जुगनू कहो, तुम्हारे मन में
कैसे सपने घिरते ।
मद्धिम-मद्धिम दीप्ति दिखाकर
किसे ढूंढते फिरते ।।

मन में क्या संकल्प लिए हो
निकले सघन निशा में ।
क्या तम का अस्तित्व मिटाने
फिरते दिशा दिशा में ।।

अंधकार की व्यापक सत्ता
दूर दूर तक छाई ।
तुम छोटे से, इतना साहस
इतनी बड़ी लड़ाई ।।

प्यारे जुगनू ! पहल तुम्हारी
है प्रशंस्य जग भर में ।
यत्न तुम्हारे बल भर देते
जन जन में, घर घर में ।।
- त्रिलोक सिंह ठकुरेला


jugnoo

jugnoo kaho, tumhare man mein
kaise sapne ghirte
maddhim-maddhim dipti dikhakar
kise dundhte phirte

man mein kya sankalp lie ho
nikle sapan nisha mein
kya tam ka astitv mitane
phirte disha disha mein

andhkar ki vyapak satta
door door tak chhai
tum chhote se, itna sahas
itni badi ladai

pyare jugnoo ! pahal tumhari
hai prashsy jag bhar mein
yatn tumhare bal bhar dete
jan jan mein, gar ghar mein
- Trilok Singh Thakurela

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