शकील बदायुनी के 25 बेहतरीन शेर

शकील बदायुनी के 25 बेहतरीन शेर

शकील बदायुनी के 25 बेहतरीन शेर

शकील बदायुनी वो उर्दू अदब के वो शायर है जिन्होंने अपने लिखे दिलकश फ़िल्मी गीतों से उर्दू शायरी को नया मुकाम दिया | आपने कई दर्द भरे और रोमांटिक फ़िल्मी गीत लिखे | पेश हैं शकील बदायुनी के लिखे हुए 25 बेहतरीन शेर :
शकील बदायुनी का जीवन परिचय


ऐ मोहब्बत तिरे अंजाम पे रोना आया
जाने क्यूँ आज तिरे नाम पे रोना आया



कैसे कह दूँ कि मुलाक़ात नहीं होती है
रोज़ मिलते हैं मगर बात नहीं होती है



अपनों ने नज़र फेरी तो दिल तू ने दिया साथ
दुनिया में कोई दोस्त मिरे काम तो आया



उन का ज़िक्र उन की तमन्ना उन की याद
वक़्त कितना क़ीमती है आज कल



इक शहंशाह ने बनवा के हसीं ताज-महल
सारी दुनिया को मोहब्बत की निशानी दी है



काँटों से गुज़र जाता हूँ दामन को बचा कर
फूलों की सियासत से मैं बेगाना नहीं हूँ



काफ़ी है मिरे दिल की तसल्ली को यही बात
आप आ न सके आप का पैग़ाम तो आया



उन्हें अपने दिल की ख़बरें मिरे दिल से मिल रही हैं
मैं जो उन से रूठ जाऊँ तो पयाम तक न पहुँचे



कल रात ज़िंदगी से मुलाक़ात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई



कोई ऐ 'शकील' पूछे ये जुनूँ नहीं तो क्या है
कि उसी के हो गए हम जो न हो सका हमारा



मोहब्बत ही में मिलते हैं शिकायत के मज़े पैहम
मोहब्बत जितनी बढ़ती है शिकायत होती जाती है



कोई दिलकश नज़ारा हो कोई दिलचस्प मंज़र हो
तबीअत ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती



नई सुब्ह पर नज़र है मगर आह ये भी डर है
ये सहर भी रफ़्ता रफ़्ता कहीं शाम तक न पहुँचे



दुनिया की रिवायात से बेगाना नहीं हूँ
छेड़ो न मुझे मैं कोई दीवाना नहीं हूँ



जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई



तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना



दिल की तरफ़ 'शकील' तवज्जोह ज़रूर हो
ये घर उजड़ गया तो बसाया न जाएगा



वो हवा दे रहे हैं दामन की
हाए किस वक़्त नींद आई है



आप जो कुछ कहें हमें मंज़ूर
नेक बंदे ख़ुदा से डरते हैं



भेज दी तस्वीर अपनी उन को ये लिख कर 'शकील'
आप की मर्ज़ी है चाहे जिस नज़र से देखिए



मुझे तो क़ैद-ए-मोहब्बत अज़ीज़ थी लेकिन
किसी ने मुझ को गिरफ़्तार कर के छोड़ दिया



मुश्किल था कुछ तो इश्क़ की बाज़ी को जीतना
कुछ जीतने के ख़ौफ़ से हारे चले गए



यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया



वो हम से ख़फ़ा हैं, हम उन से ख़फ़ा हैं
मगर बात करने को जी चाहता है



हमें जिन की दीद की आस थी वो मिले तो राह में यूँ मिले
मैं नज़र उठा के तड़प गया वो नज़र उठा के गुज़र गए


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