मई गुजर के जल्दी से जून आ जाए - अशोक मिजाज़

मई गुजर के जल्दी से जून आ जाए, हवाए चलने लगे मानसून आ जाए

मई गुजर के जल्दी से जून आ जाए

मई गुजर के जल्दी से जून आ जाए,
हवाए चलने लगे मानसून आ जाए

जरा सी देर में उठकर टहलने लगता हूँ
किसी बहाने ज़रा सा सुकून आ जाए

कही से आये वो बारिश की सौंधी-सौंधी महक
मेरी शिकस्ता रगों में जुनून आ जाए

मै आँखे बंद करु तो मेरे ख्यालो में,
कभी मसूरी कभी देहरादून आ जाए

मै शेर कह के रिसालो में भेज देता हूँ,
किसी के काम तो आखिर ये खून आ जाए - अशोक मिजाज़


mai gujar ke jaldi se june aa jaye

mai gujar ke jaldi se june aa jaye
hawaye chalne lage mansoon aa jaye

jara si der me uthkar tahlane lagta hun
kisi bahane zara sa sukun aa jaye

kahi se aaye wo barish ki saundhi-saundhi mahak
meri shiksta rago me junoon aa jaye

mai ankhe band karu to mere khyalo me
kabhi masuri kabhi dehradoon aa jaye

mai sher kah ke risalo me bhej deta hun
kisi ke kaam to aakhir ye khoon aa jaye - Ashok Mijaz
गर्मी पर शायरी, मई गुजर के जल्दी से जून आ जाए

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