मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओ
मेरे होने में किसी तौर से शामिल हो जाओतुम मसीहा नहीं होते हो तो क़ातिल हो जाओ
दश्त से दूर भी क्या रंग दिखाता है जुनूँ
देखना है तो किसी शहर में दाख़िल हो जाओ
जिस पे होता ही नहीं ख़ून-ए-दो-आलम साबित
बढ़ के इक दिन उसी गर्दन में हमाइल हो जाओ
वो सितमगर तुम्हें तस्ख़ीर किया चाहता है
ख़ाक बन जाओ और उस शख़्स को हासिल हो जाओ
इश्क़ क्या कार-ए-हवस भी कोई आसान नहीं
ख़ैर से पहले इसी काम के क़ाबिल हो जाओ
अभी पैकर ही जला है तो ये आलम है मियाँ
आग ये रूह में लग जाए तो कामिल हो जाओ
मैं हूँ या मौज-ए-फ़ना और यहाँ कोई नहीं
तुम अगर हो तो ज़रा राह में हाइल हो जाओ - इरफ़ान सिद्दीकी
मायने
दश्त = जंगल, ख़ून-ए-दो-आलम = दो दुनिया का क़त्ल, हमाइल = गर्दन से लिपटना, तस्ख़ीर = वश में करना, कार-ए-हवस = वासना कार्य, पैकर = शरीर, कामिल = पूर्ण होना, मौज-ए-फ़ना = मिटा देने वाली लहर, हाइल = राह की अड़चन
mere hone me kisi taur se shamil ho jao
mere hone me kisi taur se shamil ho jaotum masiha nahi hote ho to qatil ho jao
dasht se door bhi kya rang dikhata hai junoon
dekhta hai to kisi shahar me dakhil ho jao
jis pe hota hi nahi khoon-e-do-alam sabir
badh k ik din usi gardan me hamail ho jao
wo sitamgar tumhe taskheer kiya chahta hai
khak ban jao aur us shakhs ko hasil ho jao
ishq kya kar-e-hawas bhi koi asan nahi
khair se pahle isi kam ke qabil ho jao
abhi paikar hi jala hai to ye aalam hai miyan
aag ye rooh me lag jaye to kamil ho jao
mai hun ya mauj-e-fana aur yahan koi nahi
tum agar ho to zara rah me haail ho jao - Irfan Siddiqi