आँखों में अश्कों के समंदर रो रहे हैं! - मोहम्मद मुमताज़ हसन

आँखों में अश्कों के समंदर रो रहे हैं!

आँखों में अश्कों के समंदर रो रहे हैं!
ग़म मुहब्बत के कई मेरे अंदर रो रहे हैं!

मिट गया झगड़े में नामोनिशान घर का,
बैठ कर दहलीज़ पर खंडहर रो रहे हैं!

हवस में तरक़्क़ी की गांव का मिट गया वजूद,
कंक्रीट की बस्ती में बूढ़े अब शज़र रो रहे हैं!

ले आना खरीदकर तुम खुशियां बाज़ार से,
वीरानगी में यहां शहर के मंज़र रो रहे हैं!! - मोहम्मद मुमताज़ हसन


Aankho me ashqo ke samndar ro rahe hai

Aankho me ashqo ke samndar ro rahe hai
gham muhabbat ke kai mere andar ro rahe hai

mit gaya jhagde me namonishan ghar ka
baith kar dahleej par khandhar ro rahe hai

hawas me tarkki ki gaon ka mit gaya wajood
concrete ki basti me budhe ab shazar ro rahe hai

le aana kharidkar tum khushiyan bazaar se
veeranagi me yaha shahar ke manzar ro rahe hai - Mohd. Mumtaz Hasan

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post