दाग़ देहलवी के 22 बेहतरीन शेर

दाग़ देहलवी के 22 बेहतरीन शेर

अगर आप उर्दू शायरी पसंद करते है तो आपने दिल्ली के मशहूर शायर दाग़ देहलवी साहब का नाम जरुर सुना होगा |
आप उनका सम्पूर्ण परिचय यहाँ पढ़ सकते है
उनके जीवन का अधिकांश समय दिल्ली में व्यतीत हुआ था, यही कारण है कि उनकी शायरी में दिल्ली की तहजीब नज़र आती है। दाग़ देहलवी की शायरी इश्क़ और मोहब्बत की सच्ची तस्वीर पेश करती है | दाग़ की जबान खालिद उर्दू है आप सभी के लिए पेश है दाग़ देहलवी की बेहतरीन शायरी, आप फरमाते है :

कहते है उसे जबाने उर्दू
जिसमे न हो रंग फ़ारसी का



यह क्या कहा कि दाग को पहचानते नहीं
वो एक ही तो शख्स है, तुम जानते नहीं ?




तुम्हारा दिल मेरे दिल के बराबर हो नहीं सकता
वो शीशा हो नहीं सकता, यह पत्थर हो नहीं सकता
ज़फाए 'दाग' पर करते है, वो यह भी समझते है
की ऐसा आदमी मुझको मयस्सर हो नहीं सकता



तुम्हारे ख़त में नया इक सलाम किसका था?
न था रकीब तो आखिर वह नाम किसका था?
वोह क़त्ल करके मुझे हर किसी से पूछते है -
"यह काम किसने किया है, यह काम किसका था ?"
"वफ़ा करेंगे, निबाहेंगे, बात मानेंगे -
तुम्हे भी याद है कुछ, यह क़लाम किसका था ?



हर वक़्त पढ़े जाते है 'दाग' के अशआर
क्या तुमको कोई और सुखनवर नहीं मिलता



काबे की है हवस कभी कूए बुताँ की है
मुझको खबर नहीं, मेरी मिटटी कहाँ की है

उर्दू है जिसका नाम, हामी जानते है दाग
सारे जहाँ में, धूम हमारी जबाँ की है



दिल में समां गई है, क़यामत की शोखियाँ
दो चार दिन रहा था किसी की निगाह में



यह काम नहीं आसाँ इंसान को, मुश्किल है,
दुनिया में भला होना, दुनिया का भला करना



अल्लाह का घर काबे को कहते है वो लेकिन
देता है पता और वो मिलता है कही और



फलक देता है जिनको ऐश उनको ग़म भी होते है
जहा बजते है नक्कारे वहा मातम भी होते है



खूबियाँ लाख किसी में हो तो जाहिर न करे
लोग करते है बुरी बात का चर्चा कैसा ?



नहीं खेल ए 'दाग' यारो से कह दो
की आती है उर्दू ज़बां आते-आते



न रोना है तरीके का, न हसना है सलीके का
परेशानी म कोई काम जी से हो नहीं सकता



तेरी उल्फत की चिंगारी ने जालिम इक जहाँ फूंका
इधर चमकी उधर सुलगी यहाँ फूंका वहाँ फूंका



देखा है मयकदे में जो, ऐ शेख! कुछ न पूछ
ईमान की तो ये है कि ईमान तो गया



दुनिया में मजा इश्क से बहतर नहीं होता
यह जायका वो है की मयस्सर नहीं होता
वेदाद तेरी देख के यह हाल हुआ है
आशिक कोई दुनिया में किसी पर नहीं होता



गज़ब किया तेरे वादे पे एतबार किया
तमाम रात क़यामत का इंतज़ार किया



तेरे वादे पर सितमगर अभी और सब्र करते
अगर अपनी जिंदगी का हमें एतबार होता



दिल चुराकर आप तो बैठे हुए है चैन से
ढूढने वाले से पूछे कोई, क्या जाता रहा



दोस्तों से तो कुछ न निकला काम
कोई दुश्मन ही काम का मिलता



न सीधी चाल चलते है न सीधी बात करते है
दिखाते है वोह कमजोरो को तनकर बांकपन अपना



हँसी आती है अपने रोने पर
और रोना है जग हँसाई का


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