माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते - आसिम वास्ती

माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते

माना किसी ज़ालिम की हिमायत नहीं करते
ये लोग मगर खुल के बग़ावत नहीं करते

करते हैं मुसलसल मिरे ईमान पे तन्क़ीद
ख़ुद अपने अक़ीदों की वज़ाहत नहीं करते

कुछ वो भी तबीअ'त का सख़ी है नहीं ऐसा
कुछ हम भी मोहब्बत में क़नाअ'त नहीं करते

जो ज़ख़्म दिए आप ने महफ़ूज़ हैं अब तक
आदत है अमानत में ख़यानत नहीं करते

क्यूँ इन को मिला मंसब-ए-अफ़्ज़ाइश-ए-गीती
ये लोग तो मिट्टी से मोहब्बत नहीं करते

कुछ ऐसी बग़ावत है तबीअ'त में हमारी
जिस बात की होती है इजाज़त नहीं करते

तंज़ीम का ये हाल है इस शहर में 'आसिम'
बे-साख़्ता बच्चे भी शरारत नहीं करते - डॉ. सबाहत आसिम वास्ती
मायने
तन्क़ीद = आलोचना, अक़ीदों = आस्था, वज़ाहत = स्पष्टीकरण, सख़ी = उदार, क़नाअ'त = संतोष, ख़यानत = धोका/हेराफेरी, मंसब-ए-अफ़्ज़ाइश-ए-गीती = दुनिया की ओहदे में बढोत्तरी, तंज़ीम = व्यवस्था, बे-साख़्ता = अपने आप


mana kisi zalim ki himayat nahin karte

mana kisi zalim ki himayat nahin karte
hum log magar khul ke baghawat nahin karte

karte hain musalsal mere iman pe tanqid
khud apne aqidon ki wazahat nahin karte

kuchh wo bhi tabiat ka sukhi aisa nahin hai
kuchh hum bhi mohabbat mein qanaat nahin karte

jo zakhm diye aap ne mahfuz hain ab tak
aadat hai amanat mein khayanat nahin karte

kyun in ko mila mansab-e-afzaish-e-giti
ye log to mitti se mohabbat nahin karte

kuchh aisi baghawat hai tabiat mein hamari
jis baat ki hoti hai ijazat nahin karte

tanzim ka ye haal hai is shahr mein 'asim'
be-sakhta bachche bhi shararat nahin karte - Dr. Sabahat Asim Wasti

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