जब भी दुश्मन बढ़ा ठिकानों तक
जब भी दुश्मन बढ़ा ठिकानों तकहम न महदूद थे मकानों तक
जिसने अपने परों को फैलाया
वो परिंदा है आसमानों तक
उम्र तोहमत लगाते गुज़री है
ये सियासत है बदज़ुबानों तक
काम कुछ भी नज़र नहीं आया
काम दिखता है बस बयानों तक
पास आती है दौलतें जब भी
ज़ुल्म बढ़ता है कारखानों तक
उसकी मर्ज़ी के जब खिलाफ हुआ
उसने कोसा है ख़ानदानों तक
जाने किस दौर में चले आये
इल्म बिकने लगा दुकानों तक
एक लड़की थी इश्क कर बैठी
बात फैलेगी अब सयानों तक - डॉ. ज़ियाउर रहमान जाफ़री
jab bhi dushman badha thikano tak
jab bhi dushman badha thikano takham n mahdud the makano tak
jisne apne paro ko failaya
wo parinda hai aasmano tak
umra tohmat lagate gujri hai
ye siyasat hai badjubano tak
kaam kuch bhi nazar nahi aaya
kaam dikhata hai bas bayano tak
paas aati ai doulte jab bhi
zulm badhta hai karkhano tak
uski marzi ke jab khilaf hua
usne kosa hai khandano tak
jane kis dour me chale aaye
ilm bikne laga dukano tak
ek ladki thi ishq kar baithi
baat failegi ab sayano tak - Dr. Zia Ur Rahman Zafri
परिचय
डॉ. जिया उर रहमान जाफरी साहब ने हिन्दी से पी एचडी और एम॰ एड किया है | आप मुख्यतः ग़ज़ल विधा में लिखते है | आप हिन्दी उर्दू और मैथिली की राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में नियमित लेखन करते आ रहे है | आपको बिहार आपदा विभाग और बिहार राजभाषा विभाग से पुरुस्कृत किया जा चूका है |
आपकी मुख्य प्रकाशित कृतियों में खुले दरीचे की खुशबू (हिन्दी ग़ज़ल), खुशबू छू कर आई है (हिन्दी ग़ज़ल) , चाँद हमारी मुट्ठी में है (बाल कविता), परवीन शाकिर की शायरी (आलोचना), लड़की तब हँसती है (सम्पादन) शामिल है |
फ़िलहाल आप बिहार सरकार में अध्यापन कार्य कर रहे है |