टी.वी. से अखबार तक गर सेक्स की बौछार हो
टी.वी. से अखबार तक गर सेक्स की बौछार होफिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो
बह गए कितने सिकंदर वक्त के सैलाब में,
अक्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो
सभ्यता ने मौत से डरकर उठाये है कदम,
ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो
मेरी खुद्दारी ने अपना सर झुकाया दो जगह
वो कोई मजलूम हो या साहिबे किरदार हो
एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हे
झोपडी से राजपथ का रास्ता हमवार हो - अदम गोंडवी
tv se akhbaar tak gar sex ki bouchhar ho
tv se akhbaar tak gar sex ki bouchhar hofir batao kaise apni soch ka vistaar ho
bah gaye kitne sikandar waqt ke sailab me
aqal is kachche ghade se kaise dariya paar ho
sabhyta ne mout se darkar uthaye hai kadam
taaj ki karigari ya chin ki deewar ho
meri khuddari ne apna sar jhukaya do jagah
wo koi majloom ho ya sahibe kirdar ho
ek sapna hai jise sakar karna hai tumhe
jhopdi se rajpath ka rasta hamwaar ho - Adam Gondvi
दिनांक 24/10/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आपका बहुत बहुत आभार