इंटरव्यू से घबराता हूँ
इब्ने इंशा के एक पुराने इंटरव्यू के कुछ हिस्से ....
इंटरव्यू से घबराता हूँ, सवाल छोटे होने चाहिए, नहीं हुए तो! तो जवाब छोटे कर दूँगा |मैंने ग्यारह साल से ही शायरी शुरू कर दी! छटी जमात से ही... तब तो ये हाल है! शेर मोहम्मद 'मायूस अदमाबादी' रखा | स्कूल में हमारे उस्ताद थे, उन्होंने कहा, समझाया सारिया के हवाले कि मायूसी गुनाह है वगैरह-वगैरह... फिर हमने कैसर सहराई!
खां नाम केवल सर्टिफिकेटो में रहा, हां कुछ दिन शेर मोहम्मद 'असगर' रहा | फिर हाई स्कूल में, गाँव से शहर आए, लुधियाना तो अजीब किस्म की रुमानियत तारी रहती, मेरे जैसा आदमी, गाँव के माहौल से आकर कैसा मायूस रहता है, तो पहला नाम रखा उसमे वो झलकता भी है! वो था
मेरी पहली किताब संगम पब्लिशर्स ने छपी, जो राजिंदर सिंह बेदी वगैरह ने मिलकर कंपनी बनायीं थी | बग़दाद की एक रात ने ओवरनाईट रिकोग्निशन दिलाया - इब्ने इंशा