जागती रात अकेली सी लगे - अब्दुल अहद साज़

जागती रात अकेली सी लगे

जागती रात अकेली सी लगे
जिंदगी एक पहेली सी लगे

रूप का रंग महल, ये दुनिया
एक दिन सुनी हवेली सी लगे

हम-कलामी तिरी खुश आये उसे
शायरी तेरी सहेली सी लगे

मेरी इक उम्र की साथी ये ग़ज़ल
मुझ को हर रात नवेली-सी लगे

रातरानी-सी वो महके खामोश
मुस्कुरा दे तो चमेली सी लगे

फ़न की महकी हुई मेहँदी से रची
ये बयाज़ उसकी हथेली-सी लगे - अब्दुल अहद साज़


jagti raat akeli si lage

jagti raat akeli si lage
zindgi ek paheli si lage

roop ka rang mahal, ye duniya
ek din suni haweli si lage

hamkalami tiri khush aaye use
shayari teri saheli si lage

meri ik umr ki sathi ye ghazal
mujh ko har raat naweli si lage

ratrani si wo mahke khamosh
muskura de to chameli si lage

fan ki mahki hui mehndi se rachi
ye bayaz uski hatheli si lage- Abdul ahad Saaz

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