ख्वाबों में आते है, आखिर कुछ तो बात होगी
ख्वाबों में आते है, आखिर कुछ तो बात होगीजाते हुए भी मुड़ते जाते है, आखिर कुछ तो बात होगी
ये दिल ठिकाने पे नहीं, न जाने क्या वजह है
हर जगह टकराते है वो, आखिर कुछ तो बात होगी
सोचकर के हैरां हूँँ सारे सिलसिलो को
हर सिलसिले में एक कड़ी है, आखिर कुछ तो बात होगी
मै उन्हें मुतास्सिर करने की हर बार सोचता हूँ
जो सोचता हूँ वो कह देते है, आखिर कुछ तो बात होगी
अब तो नींद ने भी साथ छोड़ दिया अपना
अगर आये तो ख्वाब आये उनका, आखिर कुछ तो बात होगी
भटका भी हूँ कभी जो अपनी राह से
ठोकर खा के गिरा तो चोखट पे उसकी, आखिर कुछ तो बात होगी - देवेन्द्र देव
khwabon me aate hai, aakhir kuchh to baat hogi
khwabon me aate hai, aakhir kuchh to baat hogijate hue bhi mudte jaate hai, aakhir kuchh to baat hogi
ye dil thikane pe nain, n jane kya wajah hai
har jagah takrate hai wo, aakhir kuchh to baat hogi
sochkar ke hairaan hun sare silsilo ko
har silsile me ek kadi hai, aakhir kuchh to baat hogi
mai unhe mutaassir karne ki har baar sochta hun
jo sochta hun wo kah dete hai, aakhir kuchh to baat hogi
ab to neend ne bhi saath chhod diya apna
agar aaye to khwab aaye unka, aakhir kuchh to baat hogi
bhatka bhi hun kabhi jo apni raah se
thokar kha ke gira to chokhat pe uski, aakhir kuchh to baat hogi - Devendra Dev
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-07-2014) को ""चेहरे पर वक्त की खरोंच लिए" (चर्चा मंच 1661) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ji aapka bahut bahut dhanywad