सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है - अख़्तर नज़्मी

सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है

सिलसिला ज़ख्म ज़ख्म जारी है
ये ज़मी दूर तक हमारी है

मैं बहुत कम किसी से मिलता हूँ
जिससे यारी है उससे यारी है

हम जिसे जी रहे हैं वो लम्हा
हर गुज़िश्ता सदी पे भारी है

मैं तो अब उससे दूर हूँ शायद
जिस इमारत पे संगबारी है

नाव काग़ज़ की छोड़ दी मैंने
अब समन्दर की ज़िम्मेदारी है

फ़लसफ़ा है हयात का मुश्किल
वैसे मज़मून इख्तियारी है

रेत के घर तो बह गए नज़्मी
बारिशों का खुलूस जारी है- अख़्तर नज़्मी


silsila zakhm zakhm zari hai

silsila zakhm zakhm zari hai
ye zaeen door tak hamari hai

mai bahut kam kisi se milta hun
jisse yari hai usse yaari hai

ham jise ji rahe hai wo lamha
har guzishta sadi pe bhari hai

mai to ab usse door hun shayad
jis imarat pe sangbaari hai

naav kagaz ki chhod di maine
ab samandar ki jimmedari hai

falsafa hai hayat ka mushkil
waise mazmoon ikhtiyari hai

ret ke ghar to bah gaye nazmi
barisho ka khulus jari hai - Akhtar Nazmi

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