सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैं
सदमा तो है मुझे भी कि तुझसे जुदा हूँ मैंलेकिन ये सोचता हूँ कि अब तेरा क्या हूँ मैं
बिखरा पड़ा है तेरे ही घर में तेरा वजूद
बेकार महफ़िलों में तुझे ढूँढता हूँ मैं
मैं ख़ुदकशी के जुर्म का करता हूँ ऐतराफ़
अपने बदन की क़ब्र में कब से गड़ा हूँ मैं
किस-किसका नाम लाऊँ ज़बाँ पर कि तेरे साथ
हर रोज़ एक शख़्स नया देखता हूँ मैं
ना जाने किस अदा से लिया तूने मेरा नाम
दुनिया समझ रही है के सब कुछ तेरा हूँ मैं
ले मेरे तजुर्बों से सबक ऐ मेरे रक़ीब
दो चार साल उम्र में तुझसे बड़ा हूँ मैं
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है 'क़तील'
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं - क़तील शिफ़ाई
Sadma to hai mujhe bhi ki tujhse juda hu mai
Sadma to hai mujhe bhi ki tujhse juda hu mailekin ye sochta hu ki ab tera kya hu mai
bikhra pada hai tere ghar me tera wajood
bekar mahfilo me tujhe dhundhta hun mai
me khudkushi ke jurm ka karta hu aetraf
apne badan ki kabr me kab se gada hu mai
kis-kis ka naam lau zubaan par ki tere sath
har roz ek shakhs naya dekhta hu mai
na jane kis ada se liya tune mera naam
duniya samajh rahi hai ke sab kuch tera hun mai
le mere tajurbo se sabak ae mere rakeeb
do char sal umra me tujhse bada hun mai
jaga hua zameer wo aaina hai "Qateel"
sone se pahle roz jise dekhta hu mai - Qateel shifai
बेहद प्यारी गजल है ये और खूब सुनती थी इसे मैं.
जाने कब कैसे एकदम भूल गई इसे.आज इसे यहाँ देखते ही सब छोड़ पहले इसे सुन रही हूँ किन्तु कैसे 'सेव' करूं,बस दिमाग यही सोच रहा है.
बेहतरीन,उम्दा पसंद हमारे व्यक्तित्व का आइना है. है न?
बहुत खूब ...बहुत बहुत शुक्रिया इस प्यारी गजल के लिए.
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Sunder gazal....sajha karne ka aabhar...